नवरात्रि(कज्जल छंद)
लागे महिना,हे कुँवार।
बोहावत हे,भक्ति धार।
बना मातु बर,फूल हार।
सुमिरन करके,बार बार।
महकै अँगना,गली खोल।
अन्तस् मा तैं,भक्ति घोल।
जय माता दी,रोज बोल।
मनभर माँदर,बजा ढोल।
सबे खूँट हे,खुशी छाय।
शेर सवारी,चढ़े आय।
आस भवानी,हा पुराय।
जस सेवा बड़,मन लुभाय।
पबरित महिना,हरे सीप।
मोती पा ले,मोह तीप।
घर अँगना तैं,बने लीप।
जगमग जगमग,जला दीप।
माता के तैं,रह उपास।
तोर पुराही,सबे आस।
आही जिनगी,मा उजास।
होही दुख अउ,द्वेष नास।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)L
लागे महिना,हे कुँवार।
बोहावत हे,भक्ति धार।
बना मातु बर,फूल हार।
सुमिरन करके,बार बार।
महकै अँगना,गली खोल।
अन्तस् मा तैं,भक्ति घोल।
जय माता दी,रोज बोल।
मनभर माँदर,बजा ढोल।
सबे खूँट हे,खुशी छाय।
शेर सवारी,चढ़े आय।
आस भवानी,हा पुराय।
जस सेवा बड़,मन लुभाय।
पबरित महिना,हरे सीप।
मोती पा ले,मोह तीप।
घर अँगना तैं,बने लीप।
जगमग जगमग,जला दीप।
माता के तैं,रह उपास।
तोर पुराही,सबे आस।
आही जिनगी,मा उजास।
होही दुख अउ,द्वेष नास।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)L
सादर नमन गुरुदेव,, माता रानी सबके आस पुराय
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कज्जल छंद म कुवांर महीना के पावन वर्णन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कज्जल छंद म कुवांर महीना के पावन वर्णन
ReplyDeleteवाहह वाहह सुन्दर कज्जल छंद सर।
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया गुरू जी
ReplyDeleteबढ़िया छंद हे, जीतेन्द्र, बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजय माता दी
बहुत सुघ्घर रचना बहुत बहुत बधाई आदरणीय।
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