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Sunday, October 24, 2021

दुर्मिल सवैया

 : दुर्मिल सवैया


 बिहने बिहने बड़ जाड़ लगे अउ साँझ बने मन भात रहे।

बुढ़ही बुढ़हा चँवरा बइठे गुड़ डार चहा छलकात रहे ।

लइका पिचका हर घीव बुड़े बड़ तात अँगाकर खात रहे ।

दिन चार धरे सुख आय हवे मनखे धन भाग बतात रहे ।

 शशि साहू कोरबा 🙏🙏

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