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Wednesday, September 28, 2022

जनकवि कोदूराम दलित जी के 55 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन - छंद के छ डहर ले


 


जनकवि कोदूराम दलित जी के 55 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन - छंद के छ डहर ले


आल्हा छंद-#सुरता_पुरखा_मन_के


करके सुरता पुरखा मन के, चरन नवावँव मँय हा माथ।

समझ धरोहर मान रखव जी, मिलय कृपा के हर पल साथ।।


इही कड़ी मा जिला दुर्ग के, अर्जुन्दा टिकरी हे गाँव।

जनम लिये साहित्य पुरोधा, कोदूराम दलित हे नाँव।।


पाँच मार्च उन्निस सौ दस के, दिन पावन राहय शनिवार।

माता जाई के गोदी मा, कोदूराम लिये अवतार।।


रामभरोसा पिता कृषक के, जग मा बढ़हाये बर नाँव।

कलम सिपाही जनम लिये जी, बगराये साहित के छाँव।।


बचपन राहय सरल सादगी, धरे गाँव  सुख-दुख परिवेश।

खेत बाग बलखावत नदिया, भरिस काव्य मन रंग विशेष।।


होनहार बिरवान सहीं ये, बनके जग मा चिकना पात।

अलख जगाये ज्ञान दीप बन, नीति धरम के बोलय बात।।


छंद विधा के पहला कवि जे, कुण्डलिया रचना रस खास।

रखे बानगी छत्तीसगढ़ी, चल के राह कबीरा दास।।


गाँधीवादी विचार धारा, देश प्रेम प्रति मन मा भाव।

देश समाज सुधारक कवि जे, खादी वस्त्र रखे पहिनाव।।


ढ़ोंग रूढ़िवादी के ऊपर, काव्य डंड के करे प्रहार।

तर्कशील विज्ञानिकवादी, शोधपरक निज नेक विचार।।


गोठ सियानी ऊँखर रचना, जग-जन ला रस्ता दिखलाय।

मातृ बोल छत्तीसगढ़ी के, भावी पीढ़ी लाज बचाय।।


आज पुण्यतिथि गिरधर कवि के, गजानंद जी करे बखान।

जतका लिखहूँ कम पड़ जाही, कोदूराम दलित गुनगान।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ी)

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आल्हा छन्द - शकुन्तला शर्मा


(1) कोदूराम "दलित"


छत्तीसगढ़ के जागरूक कवि, निच्चट हे देहाती ठेठ

वो हर छंद जगत के हीरा, छंद - नेम के वोहर सेठ।


कोदूराम दलित हम कहिथन,सब समाज ला बाँटिस  ज्ञान

भाव भावना मा हम बहिथन,जेहर सब बर देथे ध्यान।


देश धर्म के पीरा जानिस,सपना बनिस हमर आजाद

आजादी के रचना रच दिस, सत्याग्रह होगे आबाद।


अपन देश आजाद करे बर,चलव रे संगी सबो जेल

गाँधी जी के अघुवाई मा, आजादी नइ होवय फेल।


शिक्षा के चिमनी ला धर के, देखव बारिस कैसे जोत

मनखे मन ला जागृत करके,समझाइस हम एके गोत।


मार गुलामी के देखिस हे,जानिस आजादी अभिमान

ओरी ओरी दिया बरिस हे,अब कइसे होवय निरमान ।


जाति पाति के भेदभाव के,अडबड बाढ़त हावय नार

सुंदर दलित दुनो झन मिलके,सब्बो दुखले पाइन पार।


दलित सही शिक्षक मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात

सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।


रचयिता - शकुन्तला शर्मा, भिलाई

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*जनकवि कोदूराम"दलित" जी ला समर्पित*

(05/03/1910 से 28/09/1968)

(आल्हा छंद जीवनी)

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आज सुनावौं एक कहानी,सुग्घर जनकवि कोदूराम।

जन-जन के वो हितवा राहय,उड़ै अगासा जेखर नाम।।


छत्तीसगढ़ी संस्कृति ज्ञाता,कोदूराम "दलित" हे नाम।

अमर काव्य रचना कर डारिन,जन मानस बर करके काम।।


गोरे अउ छरहरे रंग के,सुग्घर कद सुग्घर व्यवहार।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,सादा जिनगी उच्च विचार।।


छत्तीसगढ़ी जिला-दुर्ग मा,अर्जुन्दा टिकरी के गाँव।

जिहाँ जनम होइस हे भइया,दाई ददा मया के छाँव।।


पाँच मार्च उन्नीस शतक दस, "रामभरोसा" के परिवार।

अँगना मा किलकारी गूँजिस, कोदूराम "दलित"अवतार।।


दाई "जायी" के कोरा मा,खेलिस लइका "कोदूराम"।

"रामभरोसा" ददा भुलागे,अपने तन के दुःख तमाम।।


ददा एक किसनहा राहय,खेती बारी बदे मितान।

कोदूराम"दलित" हा देखिन,सबो गरीबी साँझ बिहान।।


अर्जुन्दा के ग्राम आशु कवि,चिनौरिया श्री पीलालाल।

इँखर प्रेरणा पा के सुग्घर,गीत कहानी लिखिन कमाल।।


शुरू करिन हे कविता लिखना,बछर रहिस हे सन् छब्बीस।

जिनगी भर साहित्य साधना,करत रहिन नइ कभ्भू रीस।।


मनखे मन हा सबो उमर के,हिलमिल के राहय जी संग।

जाति-पाँति के नइ चिनहारी,हँसमुख सुग्घर ओखर अंग।।


जन-जन के पीरा देखइया,मानवता के वो चिनहार।

गुरुजी एक रहिन अइसन वो,कलम बनिस जेखर हथियार।।


गाँधी जी के राह चलइया,मनखे मन ले करिस गुहार।

गाना कविता लिख-लिख के वो,बगराइन हे अपन विचार।।


गाँधी टोपी पहिन पजामा,छाता धरै हाथ मा एक।

मिलनसार सब ला वो चाहय,काम करय वो जन बर नेक।।


कोदूराम समाज सुधारक,मानवता के बनिस मिशाल।

संस्कृत निष्ठ व्यक्ति अवतारी,भारत भुइयाँ के ये लाल।।


कोदूराम"दलित" बड़ मनखे,रहिन जुझारू नेता एक।

सन् सैंतालिस मा शिक्षक के,करिन संघ बर काम अनेक।।


पन्द्रह दिन पतिराम साव सँग,कोदूराम "दलित" फिर जेल।

गइस प्रधानापाठक पद हा,अब साहित्य साधना खेल।।


लइका मन मा देश-प्रेम बर,स्वतन्त्रता के अलख जगाय।

देश-भक्ति के पबरित गंगा,कोदूराम "दलित" बोहाय।।


"गोठ सियानी" लिख कुण्डलिया,आडम्बर ला दूर भगाय।

छत्तीसगढ़ी "दलित" कहाये,ये गुरुजी गिरधर कविराय।।


गोठ कबीरा जइसन फक्कड़,बिना झिझक के बात बताय।

ढोंगी मन के ढोंग हटइया,हरिजन मन के दुख बिसराय।।


लेखन कौशल हा बड़ सुग्घर,देशी बोली हिंदी भाय।

कोदूराम मंच मा चढ़ के,कविता संगे गीत सुनाय।।


कविता के बारे मा काहय,गुरुजी कोदूराम सुजान।

जइसे मुसुवा बिला निकलथे,वइसे कविता दिल से जान।।


"दलित" पचास दशक के लगभग,मंच व्यवस्था करिन प्रचार।

संग द्वारिका "विप्र" रहिन हे,दुन्नों के जोड़ी दमदार।।


रचना रचिस आठ सौ जादा,पद्य-गद्य गंगा बोहाय।

हवै धरोहर ये किताब मन,जन मन मा अमरित बरसाय।।


"हमर देश","कनवा समधी" अउ,"दू मितान" के सुग्घर गीत।

"बालक कविता" बड़ मनभावन,रचिन "प्रकृति वर्णन" सुन मीत।।


"अलहन","कथा-कहानी",प्रहसन,सुग्घर-सुग्घर रचिन सुजान।

ये समाज ला राह दिखाथे,कतका मँय हा करौं बखान।।


प्रबल पक्षधर साक्षरता के,गिरे परे के कर उत्थान।

मास सितम्बर अट्ठाइस के,सन् सड़सठ मा देहवसान।।


फेर अपन रचना माध्यम ले,आज घलो जिन्दा कस जान।

अइसन कोदूराम"दलित"जी,जन-जन ले पावत सम्मान।।


जेखर बेटा "अरुण निगम" के,होवत हावय अड़बड़ सोर।

छत्तीसगढ़ी छंद ज्ञान के, बगरावत हे छंद अँजोर।।


अपन ददा के पद चिनहा मा,चल के अरुण निगम जी आज।

साहित लिखना धरम बना के,करत पूण्य के हावै काज।।


छंद ऑनलाइन कक्षा मा,अरुण निगम गुरु छंद सुजान।

छत्तीसगढ़ी छंद सिखावत,पोठ व्याकरण के जी ज्ञान।।

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज "विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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दोहा-छंद 


1-


बाबू कोदूराम के, अमर हवय सब काम |

कलम धनी के काज ला, बारम्बार प्रणाम ||


2-


छन्द साधना के पथिक, भागीरथी सुजान |

वोखर सुघ्घर लेखनी, हम सब बर वरदान ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला -केसीजी

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कुण्डलिया-कोदूराम "दलित"

जनकवि के पढ़ लेखनी,सुग्घर हे सब लेख।

आजो सच मा सार हे,लिखे काव्य ला देख।।

लिखे काव्य ला देख,हास्य पीरा सब मिलथे।

चिरहा मया दुलार,कलम के दम लिख सिलथे।।

गावत हँव गुण आज,तेज वो चमकत रवि के।

छाये हे सब खूँट,नाँव यसजस जनकवि के।।

राजकिशोर धिरही

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जनकवि कोदू राम दलित जी के 55वीं पुण्य तिथि म पूज्यनीय दलित जी ल शत शत  नमन--


करिस छंद के जौन हा,हमर इँहा शुरवात।

श्रद्धा सुमन चढाँव मैं, माथा अपन नँवात।


साहित के वो देंवता,जनकवि वो कहिलाय।

बगरे  बाँढ़य  छंद  बड़,आस  ओखरे आय।


सुध समाज के लेत नित, सिरजिस कविता पोठ।

छोट बड़े सब मंच मा, करिस सियानी गोठ।।


नशापान लत लोभ मा, करिन सबे दिन चोट।

ऊँच उठाइन देश ला, खुद बनगे कवि छोट।


गांधीवादी सोच ले, करिन सबे दिन काम।

आजादी के आग मा, अपन जलाइन चाम।


नाँव मिटाये नइ मिटै,करनी जेखर पोठ।

साहित के आगास मा,बरे सियानी गोठ।


पैरी जब जब बाजही,मुख मा आही गीत।

बैरी पढ़ पढ़ काँपही,फुलही फलही मीत।


रचना रिगबिग हे बरत,भले बछर के बीत।

डहर नवा गढ़ते रही,जनकवि जी के गीत।


नाँव अमर जुगजुग रही,जइसे  गंगा धार।

जनकवि कोदू राम जी,छंद सृजन आधार।


सपना उही सँजोय हे,अरुण निगम जी आज।

पालत  पोंसत  छंद ला,करत हवे निक काज।


साधक बन सीखत हवै,कतको कवि मन छंद।

महूँ  करत  हँव साधना,लइका  अँव  मतिमंद।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)

2 comments:

  1. छत्तीसगढ़ के धरोहर विभूति पुरोधा साहित्यकार पूज्य कोदूराम दलित जी ल समर्पित सुग्घर सुग्घर शब्द सुमन संकलन करे हे छन्द खजाना ह। छन्द के छ परिवार ह अपन प्रेरणास्रोत ल सुग्घर भावांजलि दे हे।

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