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Thursday, September 1, 2022

गणेश चतुर्थी विशेष छंदबद कविता

 



गणेश चतुर्थी विशेष छंदबद कविता

*गणेश वंदना(विष्णु पद छंद)*

जय  गणेश गणनायक देवा,बिपदा  मोर हरौ।
आवँव तोर दुवारी मँय तो, झोली  मोर भरौ।।

दीन-हीन  लइका  मँय देवा,आ के  दुःख हरौ।
मँय अज्ञानी दुनिया मा हँव,मन मा ज्ञान भरौ।।

गिरिजा नन्दन हे गण राजा, लाड़ू  हाथ धरौ।
लम्बोदर अब हाथ बढ़ाओ,किरपा आज करौ।।

शिव शंकर के सुग्घर ललना,सबके ख्याल करौ।
ज्ञानवान तँय सबले जादा,मन मा ज्ञान भरौ।।

जगमग तोर दुवारी चमकै,स्वामी चरन परौं।
एक दंत स्वामी हे प्रभु जी,तोरे बिनय करौं।। 

रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 छंद गीत- *लंबोदर गनराज*

अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।
दुख ला हर दौ सुख ला भर दौ, मंगल कर दौ काज।।

पहिली पूजा तोर करे जग, गूँजय जय जयकार।
जगह जगह हौ आप बिराजे, गाँव शहर घर द्वार।।
नर नारी सब गावँय महिमा, थाल आरती साज।
अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।।

मन मंदिर मा बसा गणेशा, मिलही खुशी अपार।
विघ्न हरण ला जपते कर ले, भव सागर ला पार।।
सुनथौ सबके अरजी बिनती, मोरो सुन लौ आज।
अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।।

याचक बन के खड़े हवँव मँय, देहू बुद्धि विवेक।
माँगत हँव आशीष सुमत के, तोर चरण सर टेक।।
भरे रहय प्रभु सुख सुविधा ले, छत्तीसगढ़ ये राज।
अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध''
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 31/08/22

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 सार छंद गीत- पोरा ३०/०८/२०२२

माटी के जाॅंता पोरा अउ, नॅंदिया बइला आगे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

बेंचत हवय कुम्हारिन मन हा,ओरी ओर लगाके।
बीच- गली अउ पारा- पारा, गाॅंव- गाॅंव मा जाके।।

रोजी-रोटी चलथे सुग्घर, दुख पीरा बिसरागे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

घर मा लाके करथें पूजा, नरियर फूल चढ़ाथें।
चीला रोटी बरा राॅंध के,बइला तीर मढ़ाथें।।

खेले बर सॅंगवारी मन सॅंग, लइका मन जुरियागे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

दीदी मन हा पोरा धरके, जघा-जघा मा पटकॅंय।
भइया मन हा खाये बर जी, सोंहारी ला झपटॅंय।।

खेलॅंय-कूदॅंय नाचॅंय-गावॅंय, मन मा खुशी समागे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"
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 तीजा के बिहान दिन
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तीजा परब बिहान दिन , सब्बो घर सत्कार।
तिजहारिन मन हें करत ,घूम घूम फरहार।
घूम घूम फरहार, बने हे रोटी पीठा।
मन भावै नमकीन,अइरसा पपची मीठा।
करू करेला साग, बजै चुर्रुस ले बीजा।
बाँटै मया दुलार, परब पावन हे तीजा।

जीजा लुकरू आय हे, बड़े बिहनिया आज।
चल झटकुन जाबो कथे, नइये चिटको लाज।
नइये चिटको लाज, हवै दीदी गुसियाये।
काहै जाबो काल, आज बस रात पहाये।
 करथच तैं हलकान ,  भेज के मोला तीजा।
करत हवै मनुहार, सुने ये ताना जीजा।


झोला-झँगड़ी जोर के, बेटी हे तइयार।
सुग्घर तीज मनाय हे, फिरना हे ससुरार।
फिरना हे ससुरार, निंदाई हे पछुयाये।
लइका जाही स्कूल, वोकरो फिकर सताये।
जोहत होही सास, चेत सबके हे वोला।
चल ना कहिस दमाँद ,टँगागे सइकिल झोला।

गणराजा आये हवै ,परब चतुर्थी आज।
करबो पूजा पाठ हम, होय सफल सब काज।
 होय सफल सब काज, देश मा सुख भर जावै।
मिटै गरीबी रोग, खुशी घर घर मा छावै।
उन्नति चारों खूँट, बजै सुमता के बाजा।
बढ़ै हिंद के शान, करै किरपा गणराजा।

चोवा राम  'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़

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गणेश वंदना

सँउरथन हम देँवता मा तोर पहिली नाँँव जी।
प्रथम पूजा तोर करथन फेर परथन पाँव जी।।१।।
सीख मिलथे तोर ले गा कोन सबले हे बड़े।
परिक्रमा कर बाप  दाई के त आगू मा खड़े।।२।।
तोर काया के महत्तम जान लन हम आज तो।
फेर करबो  नाँव लेके तोर  हम  हर काज तो।।३‌।
मूड़ बड़का तोर मा हे गुन भरे मुखिया सही।
सीख लन चिटिकुन हमू जी दुःख दुरिहाये रही।।४।।
नानकुन  आँखी  बताथे,  देखथस  बारीक  गा।
भाग  कोनो  नइ  सकै जी  देत तोला तो दगा।।५।।
कान  सूपा  कस  बड़े  हे,  बात सुनथस ध्यान से।
का  सही अउ का  गलत हे  जानथस तँय ज्ञान से।।६।।
काकरो भी  बात मा  बिस्वास जल्दी झन करौ।
ज़िंदगी  मा  सत्य  बोले  बर कभू तुम झन डरौ।।७‌‌।।
सोंढ़  गनपति  तोर हालय  नइ रहय स्थिर कभू।
देत तँय संदेस  कहिथस आलसी बन झन कभू।।८।।
लोग   पूजैं   देख   के  तो  सोँढ़  केती   हे  मुड़े।
फायदा  डेरी अउ जवनी  दूनो' कोती  मा जुड़े।।९।।
जेवनी  कोती  मुड़े   हर  आय  धन  बिंदास  के।
अउ  मुड़े  डेरी   डहर  हर   आय  बैरी  नास के।।१०।।
पेट  बड़का  हर  सिखोथे  गुण  पचाए  के कथे।
बात    अच्छा  या  बुरा  हो  भीतरे   मा  तो  रथे।।११।।
दॉंत   टूटिस   जुद्ध   मा  तौ  फेंक  ओला नइ देहे।
कलम  ओकर  तैं  ह  बढ़िया झट बनाए तो रेहे।।१२।।
ज़िन्दगी जीए के हूनर, आप ले  हम सीख लन।
खॉंय कोनों अब कभू गा मॉंग के तो भीख झन।।१३।।

सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
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सुधार

छन्न पकैया छन्न पकैया,गणपति जी हा आगे। 
पारा पारा होये झाँकी, देखे मा निक लागे।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, ग्यारह दिन मन भाये।
मुसवा तोरे बने सवारी, रिद्धि सिद्धि जस गाये।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, हूम धूप ममहाये। 
अइसे लागे सरग लोक हा, भुइयाँ मा हे आये।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, गंगा जी मा जाही। 
बीते पुरखा सबके सियान, घर घर पूजा पाही।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, पितर पाख हा जाही।
माता रानी बघुवा चढ़के, पहुना बनके आही।।

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