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Saturday, September 17, 2022

देवशिल्पी विश्वकर्मा जयंती विशेष छंदबद्ध सृजन

 


देवशिल्पी विश्वकर्मा जयंती विशेष छंदबद्ध सृजन

जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)

देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक।
बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।

धरा धाम सुख सरग बनाइस,सिरजिस लंका सोन।
पुरी द्वारिका हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।

चक्र बनाइस विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।
यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।

इंद्र देव के बज्र बनाइस,पुष्पक दिव्य विमान।
सोना चाँदी मूँगा मोती,बीज भात धन धान।

बादर पानी पवन बनाइस,सागर बन पाताल।
रँगे हवे रुख राई फुलवा,डारा पाना छाल।

घाम जाड़ आसाढ़ बनाइस,पर्वत नदी पठार।
खेत खार पथ पथरा ढेला,सबला दिस आकार।

दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।
बबा विश्वकर्मा जी सबके,पहिली सिरजनकार।

सबले बड़का कारीगर के,हवै जंयती आज।
भक्ति भाव सँग सुमिरण करले,होय सुफल सब काज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
भगवान विश्वकर्मा सबके आस पुरावै
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[9/17, 11:51 AM] कवि बादल: विश्वकर्मा जयंती के हार्दिक बधाई।
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मजदूर  हा आय देव विश्वकर्मा
(हरिगीतिका छंद)
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 मजदूर तैं अच विश्वकर्मा,जग तहीं सुघराय हच।
अपने भुजा के बल धरा ला,तैं सरग लहुटाय हच।
निर्माण जे अद्भुत हवैं सब,तोर हाबय जी गढ़े।
पथरा तको मा जीव डारे, रूप अद्भुत तैं मढ़े।


जादू हवै तो हाथ मा बड़, सब कला भंडार हे।
विज्ञान हे अउ ज्ञान खाँटी, वास्तु के निक सार हे।
कतकों किला कतकों महल हें,बाँध पुलिया हें नहर।
हें रेलगाड़ी कार मोटर,यान चढ़ करथें सफर।

छीनी हथौड़ी गीत गाथें,मेहनत के शान मा।
तैं देवता अच सुख सबो ला,बाँटथच वरदान मा।
सुख शांति के मजबूत गहिरा, आच सिरतो नेव तैं।
'बादल' नवाथे माथ तोला, विश्वकर्मा देव तैं।

चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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 *विश्वकर्मा महराज-हरिगीतिका छंद*

हो देव शिल्पी आप प्रभु,शुभ विश्वकर्मा नाम हे।
सिरजन करइया विश्व के,अद्भुत तुँहर ये काम हे।।
सुमिरन करै नर-नार सब,जोड़े दुनों जी हाथ ला।
चौखट खड़े सब हे भगत,देखव झुकाए माथ ला।।

रचना करइया जीव के,मन्दिर महल घर द्वार के।
कल कारखाना ला रचे,वन डोंगरी संसार के।।
अउ बज्र रचना इंद्र के,तिरशूल भोलेनाथ के।
गहना रचे  अद्भुत इहाँ, श्रृंगार नारी माथ के।।

सुग्घर पुरी अउ द्वारिका,रामा अवध श्री धाम ला।
सार्थक करे रचना गजब,कारीगरी के नाम ला।।
सागर बँधाए सेतु अउ,पुलिया बड़े बाँधा बड़े।
औजार सब बनिहार बर,महिनत सिखाए जी खड़े।।

रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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सरसी छंद

कारीगरी देवशिल्पी के ,महिमा अगम अपार।
तोर कला के सिरजन अद्धभुत ,जानत हे संसार।।

गढ़ दिन अमरावती इंद्र बर , वज्र सही औजार।
मन मोहन बर पुरी द्वारका ,चक्र सुदर्शन धार।।

सब देवन के महल अटरिया , अलग अलग हे नाम।
कारीगर हवे विश्वकर्मा , अद्धभुत अनुपम काम।।

पांडव मन के इंद्रप्रस्थ ला ,कहँय कल्पना लोक।
कला देवशिल्पी के देखत ,भागे मन के शोक।।

अतुल अचंभित कला देखके ,सोचय पालनहार।
जग के दू झन सर्जक आवन ,दुनो बराबर भार।।

शिल्प क्षेत्र व्यापार जगत के , इही देव आराध्य।
श्रद्धा पूजा भाव भक्ति से ,चमकावत हे भाग्य।।

हवय कारखाना कलयुग मा ,मिले हवय परसाद।
बबा विश्वकर्मा हा देवय ,श्रम ला आशीर्वाद।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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विश्वकर्मा

छन्न पकैया छन्न पकैया,हे बाबा विश्वकर्मा|
जनम दिवस मा पूजा होथे,जमो प्लांट घर घर मा||

छन्न पकैया छन्न पकैया,लंका तॕय सिरजाये|
नाॕव नहीं गा लोहा लाखर,सोने सोन बनाये||

छन्न पकैया छन्न पकैया,सोन सोन के लंका|
तीन लोक मा बाजन लागे,कला ज्ञान के डंका||

छन्न पकैया छन्न पकैया,बंदव सिरजनहारा|
तोर चरन मा फूल चढा़बो,गाॕव गली सब पारा||

छन्न पकैया छन्न पकैया,सब ला कला सिखा दे|
किसम किसम के नवाचार करहीं,सत रद्दा बगरा दे||

शिवानी कुर्रे
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हरिगीतिका छन्द

विश्वकर्मा देव

औजार धरके बैठगे, गढ़दिन सकल संसार ला। 
धरती कहव या इंद्रपुर , सब देव के घर बार ला। 
लंका गढ़िन हें सोन के अउ कृष्ण जी के द्वारका। 
ये देव शिल्पी के जगत मा, पा सकय कोई पार का। 

हे देव अभियंता अबड़ , उपकार मानत हे जगत। 
जोड़े खड़े हें हाथ दूनो, देव मानव अउ भगत। 
कल कारखाना मन सबो प्रभु देन हावय आपके। 
दुनिया अतिक उन्नति करत उपकार आवय आपके।।

ब्रम्हा कहय हे विश्वकर्मा,  भाग एके पाय हन। 
एके बरोबर काम हे ,ये सृष्टि ला सिरजाय हन। 
औजार दूनो के अलग हे तैं गढ़े हस कर्म ला। 
मैंहा गढ़े हँव भाग्य सबके अउ गढ़े हँव धर्म ला। 

हे देव कारीगर  सबो तोला नवावत माथ हे। 
धन मान यश पाही कला आशीष तोरे हाथ हे। 
 यात्रा प्रगति करही बने, परसाद मिलही भाग्य के। 
सुख संपदा बढ़ही बने, दिन भागही वैराग्य के।। 

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
17_9_2022 शनिवार
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