हिंदू नववर्ष अउ चइत नवरात्रि परब विशेष
नवा साल (मनहरन घनाक्षरी)
आगै भाई नवा साल, चारों कोती दिखै लाल,
परसा सेम्हर मिल, देख परघात हे।
कहरथे आमा मौर, एती ओती ठौर-ठौर, फुनगी ले कोइली हा, कुहू कुहू गात हे।
फूल-फूल फुलवारी, बुलथे तितली कारी, मगन हे भँवरा हा, बड़ मटकात हे।
माते बड़ मउहा हे, कुलकुला कउहा हे, उलहाय पाना सबो, बड़ मुसकात हे।
- मनीराम साहू 'मितान'
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बादल जी
शैलपुत्री माँ आदि भवानी,होके बइल सवार।
आइस दु:ख हरे बर दुर्गा,सुनके भक्त पुकार।।
चइत महीना एकम तिथि के, महिमा अगम अपार।
एही दिन श्री ब्रह्मा जी हा,रचे रहिस संसार।।
विधना के काया ले निकले, हे जम्मों विस्तार।
तीन लोक अउ चउदा भुवना,पाँच तत्व हे सार।।
ऋषि-मुनि,ज्ञानी-विज्ञानी,सब्बो वेद-पुरान।
जोंड़ी-जाँवर मनु-शतरूपा,तेकर हम संतान।।
नदिया,नरवा,जंगल,पर्वत,आयँ सृष्टि के अंग।
हावय सबके गहरा नाता,जीव-जंतु के संग।।
आन एक हम कुटुम-कबीला,आय बात ये सार।
मिलजुल के सब राहन सुग्घर, बाँटन मया दुलार।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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नवा बछर (सार छंद)
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ उड़े हे मस्ती।
नवा बछर धर चैत हबरगे,गूँजय घर बन बस्ती।
चैत चँदैनी चंदा चमकै,चमकै रिगबिग जोती।
नवरात्री के पबरित महिना,लागै जस सुरहोती।
जोत जँवारा तोरन तारा,छाये चारों कोती।
झाँझ मँजीरा माँदर बाजै,झरै मया के मोती।
दाई दुर्गा के दर्शन ले,तरगे कतको हस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।
कोयलिया बइठे आमा मा,बोले गुरतुर बोली।
परसा सेम्हर पेड़ तरी मा,बने हवै रंगोली।
साल लीम मा पँढ़री पँढ़री,फूल लगे हे भारी।
नवा पात धर नाँचत हावै,बाग बगइचा बारी।
खेत खार अउ नदी ताल के,नैन करत हे गस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।
बर खाल्हे मा माते पासा, पुरवाही मन भावै।
तेज बढ़ावै सुरुज नरायण,ठंडा जिनिस सुहावै।
अमरे बर आगास गरेरा,रहि रहि के उड़ियावै।
गरती चार चिरौंजी कउहा,मँउहा बड़ ममहावै।
लाल कलिंदर खीरा ककड़ी,होगे हावै सस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।
खेल मदारी नाचा गम्मत,होवै भगवत गीता।
चना गहूँ सरसो घर आगे,खेत खार हे रीता।
चरे गाय गरुवा मन मनके,घूम घूम के चारा।
बर बिहाव के बाजा बाजै,दमकै गमकै पारा।
चैत अँजोरी नवा साल मा,पार लगे भव कस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"
बाल्को(कोरबा)
https://youtu.be/qG6A4ZHiXu
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सार छंद-चैत महीना(गीत)
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
चैत महीना पावन लागे,गमके घर बन डेरा।।
रंग फगुनवा छिटके हावय,चिपके हे सुख आसा।
दया मया के फुलवा फुलगे,भागे दुःख हतासा।
हूम धूप मा महकत हावै,गलियन बाग बसेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
नवा बछर अउ नवराती के,बगरे हवै अँजोरी।
चकवा संसो मा पड़ गेहे,खोजै कहाँ चकोरी।
धरा गगन दूनो चमकत हे,कती लगावै फेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
नवा नवा हरियर लुगरा मा,सजे हवै रुख राई।
गाना गावै जिया लुभाये,सुरुर सुरुर पुरवाई।
साल नीम हा फूल धरे हे,झूलत हे फर केरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
बर बिहाव के लाड़ू ढूलय,ऊलय धरती दर्रा।
घाम तरेरे चुँहै पसीना,चले बँरोड़ा गर्रा।।
बारी बखरी ला राखत हे,बबा चलावत ढेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
वाह! खैरझिटिया जी जोरदार आप मोरे लगाय हव, धन्यवाद आप ला।
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