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Tuesday, March 21, 2023

विश्व गउरइया दिवस मा छंदबद्ध गीत कविता



 

विश्व गउरइया दिवस मा छंदबद्ध गीत कविता

दोहा गीत

गउरइया मन झुंड मा, मोरो अँगना आँय।

मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।


रोजे बिहना साँझ के, बइठँय लिमवा डार।

किंजरँय घर कोठार मा, नइ जावँय गा खार।

भिनसरहा अँधियार मा, चिँव चिँव करत जगाँय।

मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।


फुदर फुदर चारा चरँय, बारी अँगना खोर।

पोरा के पानी पियँय, करत रहँय बड़ शोर।

कउँवा बिलई देख के, फुर्र करत उड़ जाँय।

मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।


लगगे हे ककरो नजर, या छिपगे हें राम।

दिखँय नहीं इँन गँय कहाँ,अँगना हे सिमसाम।

संसो मोला खात हे, कोन हवय बिलमाय।

मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय


-मनीराम साहू 'मितान'

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विश्व गौरैय्या दिवस विशेष- दोहा गीत


गौरैय्या चिरई हरौं, फुदकत रहिथौं खोर।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


मोर पेट भर जाय बस, दाना  देबे  छीत।

पानी रखबे घाम मा, जिनगी जाहूँ जीत।।

गोटीं मोला मारके, देथस काबर खेद।

भले पड़े या झन पड़े, जी हो जाथे छेद।।

हावय तोरे हाथ मा, ये जिनगी हा मोर।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


दू दाना के आस मा, आथँव बिना बुलाय।

कभू पेट जाथे अघा, कभू रथँव बिन खाय।

जंगल झाड़ी भाय नइ, नइ भाये वीरान।

मनुष देख फुदकत रथँव, मैं पंछी अंजान।।

पानी पुरवा पेड़ मा, बिख जादा झन घोर।।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


बाढ़त हावय ताप हा, बाढ़त हे संताप।

छिन भर मा मर जात हौं, मैंहा अपने आप।

सबदिन मैं फुदकत रहौं, इही हवै बस आस।

गाना गाहूँ तोर बर, छोड़ भूख अउ प्यास।

कुनबा देख सिरात हे, आरो ले ले मोर।।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


जीतेंद्र वर्मा"खैझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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*विश्व गौरैया दिवस*

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गौरैया या कहँव गुड़रिया, तोला बाम्हन चिरई।

कहाँ गँवागे कती लुकागे, सुग्घर तोर फुदकई।।


अँगना के दरमी मा बइठे, चीं-चीं-चीं चिल्लाना।

परछी के बटकी मा माढ़े, बासी भात ल खाना।।


ठोनक-ठोनक दरपन आगू, बिधुन रहस तैं दिनभर।

दाई के फोटो ल भुलाके, कहाँ बनाये अब घर।।


तोर अगोरा मा बइठे हँव, अब तो आजा रानी।

तोर पिये बर राखे हावँव, भरे कटोरा पानी।।


     *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

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1 comment:

  1. गौरइया (सार छंद)

    फुदकत चिरई गली-खोर मा,
    ये गौरइया रानी।
    बना खोंधरा रहिथे सुग्घर,
    कुरिया परवा छानी।।

    चींव-चींव गुरतुर बोली हा,
    सबके मन ला भाथे।
    होत बिहनिया परवा बइठे,
    जीवन गीत सुनाथे।।
    कनकी दाना खावत चिरई,
    पीथे सुग्घर पानी।
    फुदकत चिरई गली-खोर मा,...........

    अँगना तुलसी चौरा मा वो,
    चुक ले नाचत रहिथे।
    अपन मयारू जोड़ी सँग मा,
    चूँ-चूँ-चूँ का कहिथे।।
    फुर्र-फुर्र उड़ के आ जाथे,
    गड़थे करम कहानी।
    फुदकत चिरई गली-खोर मा,.........

    बिन पाले वो रथे पालतू,
    मन मा इही बसइया।
    कहाँ नँदावत हावै ये अब,
    सोर मिलै नइ भइया।।
    लइका मन सँग बइठे-बइठे,
    खाथे आनी बानी।
    फुदकत चिरई गली खोर मा,..........

    रचनाकार:-
    बोधन राम निषादराज"विनायक"
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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