हाट बाजार, मेला मड़ई विशेष छंदबद्ध सृजन
*हाट बजार- अमृतध्वनि छंद*
गुप-चुप वाला देखले,लाय संग मा चाट।
कतका सुग्घर लागथे,मोर गाँव के हाट।।
मोर गाँव के हाट, लगे हे भारी रेला।
देखव मनखे आय,भीड़ जस लागै मेला।।
किसिम किसिम के साग,आय हे भाजी पाला।
बेचय हाथ लमाय,देख लौ गुप-चुप वाला।।
रचना:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*पोता के हाट*(सार छंद)
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पोता के गुरुवारी हटरी,मोला बढ़िया लगथे।
आनी बानी भाजी पाला,खई खजेना मिलथे।1।
केंवटीन हा बेचत रइथे,मुर्रा चना ग भजिया।
भाँटा मुरई धर के आथे,बेंचे बर ग कोंचिया।2।
सूपा टुकनी बहरी आये, तुरकिन बेचय चूरी।
पसरा बगरे मनिहारी के,खड़े हवैं सब टूरी।3।
होटल मालखरौदा वाला,आये हे हलवाई।
बेचत हवै जलेबी लड्डू,पेंड़ा रसेमलाई।4।
काँसा पीतल बरतन वाला,बेचय लोटा थारी।
दाई बहिनी मोल करत हें,भीड़ लगे हे भारी।5।
चाट संग मा गुपचुप ठेला,खावँय लइका कसके।
सार छंद मा पढ़य वसन्ती,हाट भरे हे ठसके।6।
वसन्ती वर्मा
नेहरू नगर, बिलासपुर
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विष्णुपद छन्द गीत- मेला (०३/०३/२०२३)
गुरु बाबा के जघा-जघा मा, मेला होवत हे ।
पापी मन के पाप करम ला, पल मा धोवत हे ।।
चल ना जाबो दरस करे बर, मोरो मन कइथे ।
चटुवा खड़ुवा अउ गिरौद मा, बाबा जी रइथे ।
तेलासी भण्डारपुरी हा, सुख ला बोंवत हे ।
गुरु बाबा के जघा- जघा मा, मेला होवत हे ।।
ज्यादा पइसा नइ लागय ओ, गाड़ी हे घर मा ।
होत बिहनिया निकल जबो ओ, आबो दिन भर मा ।।
जाबो- जाबो कहिके नोनी, बाबू रोवत हे ।
गुरु बाबा के जघा- जघा मा, मेला होवत हे ।।
गुरु गद्दी मा माथ नवाबो, पूजा ला कर के ।
पान सुपाड़ी जोड़ा नरियर, जाबो ओ धर के ।।
सादा झण्डा जैत खाम के, सीख सिखोवत हे ।
गुरु बाबा के जघा-जघा मा, मेला होवत हे ।।
ओम प्रकाश पात्रे "ओम "
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दोहा छंद-हाट बजार
जग के माया हाट मा,छै ठन हवय विकार।
काम-क्रोध अउ द्वेष सँग,लोभ-मोह अहँकार।।
छै विकार से जेन हा,खुद ले पाही पार।
जग के माया हाट मा,ओकर जय-जयकार।।
शक्ति शांति गंभीरता,पवित्रता अउ प्यार।
ज्ञान खुशी ये सात गुण,पा सत्संग बजार।।
असल सात सद्गुण जिनिस,बिकट बिसा तैं रोज।
खुद के हिरदै भीतरी,अइसन पसरा खोज।।
मिलही माया हाट मा,सरग बरोबर छाँव।
जपबे हरि के नाँव ला,घड़ी-घड़ी हर ठाँव।।
जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'
सांगली,जिला-बालोद
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मनहरण घनाक्षरी छंद "हटरी"
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टुकना मा साग भाजी, चना मुर्रा धरे खाजी,
बइठे मचोलिया मा, बेचे बर आय हे।
जुरी जुरी लाल पाला, मुरई धोवाए वाला,
कुड़हेना भाजी कांदा, पसरा लमाय हे।।
अपन बड़ाई मारे, गजबे सेखी बघारे,
झरराए घेरी बेरी, पुरऊनी नाय हे।
ले लेवव दीदी भाई, गोठ करे करलाई,
रंग रंग राग धरे, लेवइया बलाय हे।।
जेन धरे किलो बाट, ओकर गजब ठाट,
झुकती देवत हँव, तराजू मढ़ाय हे।
पाटा मा मिठाई वाला, पूछे लेबे काला काला,
बाट पाव आधा किलो, आहड़ा चढ़ाय हे।
जलेबी जबर रस, पेठा काड़ी काड़ी कस
मिक्चर मिंझारे माढ़े, शोभा ला बढ़ाय हे।।
रसगुल्ला रस भरे, देखैय्या के मन हरे,
हलवाई हटरी के, मजा ला गढ़ाय हे।।
मनियारी मुंदी माला, साँटी पैरी कुची ताला
दरपन कंघी झाबा, टाँगे हावै तार मा।
सजे कपड़ा दुकान, पनवाड़ी भाँजे पान,
फैंसी वाला पहिर के, चसमा कपार मा।।
होटल मा भीड़भाड़, बइठे कोनों हे ठाड़,
चरबत्ता चले हावै, गोठ दुई चार मा।
भेंट मुलाकात करे, झोला मोटरा ला धरे,
हफता भर मा भेंटे, गाँव के बजार मा।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
महासमुन्द छत्तीसगढ़
छंद साधक- कक्षा 15
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