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Saturday, March 4, 2023

बरी अउ बादर- सार छन्द

 बरी अउ बादर- सार छन्द


बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।

घाम उगासे रहिथे बढ़िया, देखत बरी बिगड़थे।


पर्रा पर्रा बरी घाम बिन, भँभा चिटिक नइ पाये।

उरिद दार अउ रखिया तूमा, बिरथा सब हो जाये।।

शहर गांव अब देख मेहनत, इसन बुता ले डरथे।

बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।।


हाँस हाँस के बरी बिजौरी, सबे चाहथें खाना।

फेर देख पिचकाट अबड़ के, चाहे कोन बनाना।।

कहूँ बनाबे हिम्मत करके, ता घन बैरी झरथे।

बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।


बरसा घरी सहारा बनथे, बरी बिजौरी घर के।

दाई दीदी मन गर्मी मा, रखथें जोरा करके।।

चुरथे आलू मुनगा सँग मा, खाके टुरा फुदरथे।

बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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