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Thursday, October 26, 2017

कज्जल छंद - श्री दिलीप कुमार वर्मा

कज्जल छंद -  श्री दिलीप कुमार वर्मा

धरती जंगल रहे मान।
जीव जन्तु के रहे सान।
मन मरजी सब आय जाय।
बंधन ला तब कोन भाय।1।

गरवा मन सब खाय घाँस।
जीव जन्तु सब रहे पास।
मांस खवइया कर सिकार।
जीव जन्तु ला खाय मार।2।

बन मानुस तक पाय जाय।
जीव जन्तु ओ मार खाय।
पथरा के हथियार ताय।
धीरे लोहा तको पाय।3।

पत्ता ला सब ओढ़ आय।
या पेड़न के छाल पाय।
जीव जन्तु के खाल लाय।
तन बर सब कुरता बनाय।4।

धीरे धीरे धान जान।
खेती सब करथे ग मान।
बइला मन ला बाँध लान।
पालय पोसय बन किसान।5।

धीरे धीरे ग्यान आय।
तब ओ हर मनखे कहाय।
कपड़ा पहिरे अबड़ भाय।
आनी बानी रंग लाय।6।

पर जीवन के रीत ताय।
आय जहाँ ले तहाँ जाय।
कपड़ा लकता सब कटाय।
जादा कपड़ा अब न भाय।7।

जे मनखे ला देख आज।
छोड़त हाबय सबो लाज।
लुगरा ला सब टाँग दीच।
खुल्लम खुल्ला रहे बीच।8।

धोती कुरता छोड़ आय
पाजामा अब कोन भाय।
बरमूडा के संग संग।
देखय दुनिया रहे दंग।9।

फेसन के ये कहे बात।
चिरहा फटहा धरे जात।
ओ मनखे अब सभ्य होय।
जे मनखे कपड़ा ल खोय।10।

जाने अब का होय देस।
बदलत हाबय कोन भेस।
बिन कपड़ा तक सबो होय।
मरियादा ला सबो खोय।11।

फिर से बन मानुस कहाय।
पर जंगल अब कहाँ पाय।
पथरा मा सब सर खपाय।
गरमी ले तब जान जाय।12।

कहना ला अब मान जाव।
मरियादा के संग आव।
मनखे बन के मान पाव।
बंद जिनिस के बढ़े भाव।13।

रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़ 

24 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह्ह् भइया शानदार कज्जल छंद *मनखे बन के मान पाव * शानदार

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  2. मस्त कज्जल छंद

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  3. बहुत शानदार कज्जल छंद के रचना करे हव,गुरुदेव दिलीप वर्मा जी।बहुत बहुत बधाईअउ शुभकामना ।

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  4. बहुत बढ़ियाँ कज्जल छंद दिलीप भाई बधाई हो

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  5. बहुत बढ़ियाँ कज्जल छंद दिलीप भाई बधाई हो

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  6. बहुत सुंदर रचना भईया कज्जल छंद में बधाई हो आप ला

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  7. बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई

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  8. बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई

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  9. सुग्घरर कज्जल, दिलीप ।

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