बरवै छंद - श्री दिलीप कुमार वर्मा
पेड़ लगाव -
जगा खोज ले सुग्घर,पौधा लान।
राँपा कुदरी सँग मा,गड्ढा खान।
करिया माटी सँग मा,खातू डार।
कीरा झन राहय जी,बने निहार।
रोपव पौधा बीच म,जाली मार।
रोज बिहानी उठ के,पानी डार।
लइका पालव जइसे,तइसन पाल।
गरमी के मौसम मा,पानी डाल।
होही बड़का पौधा,सिरतो मान।
सेवा जाय न बिरथा,तेला जान।
छइहाँ सुग्घर दीही,संगी मोर।
जेहर पाही लीही,नाम ल तोर।
चिरई चिरगुन आही,नीड़ बनाय।
चींव चींव नरियाही,सुख ला पाय।
फुलही फरही पेंड़ ह,सब ला भाय।
लइका मन चढ़ जाही,फर ला खाय।
तोरो छाती फुलही,पा के मान।
सब ले बड़का पुन ये,पौधा दान।
धरती हर हरियाही,ख़ुशी मनाय।
सब ला सुख दे जाही,तोर लगाय।
तोर लगाये पौधा,रौनक लाय।
फुलय फरय जब ओ हर,नाती खाय।
जाबे जब दुनिया ले,तन ला छोंड़।
सुरता करहि सबझन,फर ला तोड़।
नाम अमर हो जाही.संगी मान ।
पेंड लगइ ला असने,तँय झन जान।
आवव पेंड़ लगाइन,समय निकाल।
धरती ला सुघराइन,श्रम ला डाल।
बिना लगे जी पइसा,नाम कमाव।
थोरिक करलव मिहनत,अमर कहाव।
सफाई -
साफ़ रखव घर कुरिया,लीप बहार।
अँगना परछी बरवट,अउ कोठार।
कचरा झन फेंकव जी,संगी खोर।
बिगड़ जही सँगवारी,तबियत तोर।
गन्दा रहिथे नाली,मच्छर होय।
अइसन होय बिमारी,जिनगी खोय।
पानी हर मइलाथे,करे बिमार।
बाढ़य पेट बिमारी,सब लाचार।
हैजा तक हो जाथे,सुन नादान।
आस पास कचरा ले,सिरतो जान।
माछी पनपय भारी,घर मा जाय।
बइठय ओ जे खाना,मनखे खाय।
कहत हवँव सँगवारी,कहना मान।
मैल बिमारी के जड़,कर पहिचान।
कचरा डारव घुरुवा,सबो निकाल।
गीला सुखा सब ला,अलग सम्हाल।
पानी झन माढ़य जी,डबरा पाट।
नाली साफ़ रखे ले,जीहव ठाट।
शौचालय मा जावव,घर बनवाय।
बाहिर मा झन जावव,मल फइलाय।
मान रखव मनखे के,घर मा जाव।
साफ़ स्वच्छ घर आँगन,आदर पाव।
खुद समझव समझावव,कहना मान।
गाँव शहर सफ्फा तब,देश महान।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
पेड़ लगाव -
जगा खोज ले सुग्घर,पौधा लान।
राँपा कुदरी सँग मा,गड्ढा खान।
करिया माटी सँग मा,खातू डार।
कीरा झन राहय जी,बने निहार।
रोपव पौधा बीच म,जाली मार।
रोज बिहानी उठ के,पानी डार।
लइका पालव जइसे,तइसन पाल।
गरमी के मौसम मा,पानी डाल।
होही बड़का पौधा,सिरतो मान।
सेवा जाय न बिरथा,तेला जान।
छइहाँ सुग्घर दीही,संगी मोर।
जेहर पाही लीही,नाम ल तोर।
चिरई चिरगुन आही,नीड़ बनाय।
चींव चींव नरियाही,सुख ला पाय।
फुलही फरही पेंड़ ह,सब ला भाय।
लइका मन चढ़ जाही,फर ला खाय।
तोरो छाती फुलही,पा के मान।
सब ले बड़का पुन ये,पौधा दान।
धरती हर हरियाही,ख़ुशी मनाय।
सब ला सुख दे जाही,तोर लगाय।
तोर लगाये पौधा,रौनक लाय।
फुलय फरय जब ओ हर,नाती खाय।
जाबे जब दुनिया ले,तन ला छोंड़।
सुरता करहि सबझन,फर ला तोड़।
नाम अमर हो जाही.संगी मान ।
पेंड लगइ ला असने,तँय झन जान।
आवव पेंड़ लगाइन,समय निकाल।
धरती ला सुघराइन,श्रम ला डाल।
बिना लगे जी पइसा,नाम कमाव।
थोरिक करलव मिहनत,अमर कहाव।
सफाई -
साफ़ रखव घर कुरिया,लीप बहार।
अँगना परछी बरवट,अउ कोठार।
कचरा झन फेंकव जी,संगी खोर।
बिगड़ जही सँगवारी,तबियत तोर।
गन्दा रहिथे नाली,मच्छर होय।
अइसन होय बिमारी,जिनगी खोय।
पानी हर मइलाथे,करे बिमार।
बाढ़य पेट बिमारी,सब लाचार।
हैजा तक हो जाथे,सुन नादान।
आस पास कचरा ले,सिरतो जान।
माछी पनपय भारी,घर मा जाय।
बइठय ओ जे खाना,मनखे खाय।
कहत हवँव सँगवारी,कहना मान।
मैल बिमारी के जड़,कर पहिचान।
कचरा डारव घुरुवा,सबो निकाल।
गीला सुखा सब ला,अलग सम्हाल।
पानी झन माढ़य जी,डबरा पाट।
नाली साफ़ रखे ले,जीहव ठाट।
शौचालय मा जावव,घर बनवाय।
बाहिर मा झन जावव,मल फइलाय।
मान रखव मनखे के,घर मा जाव।
साफ़ स्वच्छ घर आँगन,आदर पाव।
खुद समझव समझावव,कहना मान।
गाँव शहर सफ्फा तब,देश महान।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
बहुत सुग्घर बरवै छंद के रचना करे हव,गुरुदेव दिलीप वर्मा जी।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteधन्यवाद मोहन जी।
Deleteधन्यवाद गुरुदेव।
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् भइया सुग्घर संदेश देवत छंद ,सुग्घर रचना बर बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुन्दर बरवै सृजन सर जी।बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteलाजवाब सृजन हे भाई जी
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर
ReplyDelete