(1) कोदूराम "दलित"
छत्तीसगढ़ के जागरूक कवि, निच्चट हे देहाती ठेठ
वो हर छंद जगत के हीरा, छंद - नेम के वोहर सेठ।
कोदूराम दलित हम कहिथन,सब समाज ला बाँटिस ज्ञान
भाव भावना मा हम बहिथन,जेहर सब बर देथे ध्यान।
देश धर्म के पीरा जानिस,सपना बनिस हमर आजाद
आजादी के रचना रच दिस, सत्याग्रह होगे आबाद।
अपन देश आजाद करे बर,चलव रे संगी सबो जेल
गाँधी जी के अघुवाई मा, आजादी नइ होवय फेल।
शिक्षा के चिमनी ला धर के, देखव बारिस कैसे जोत
मनखे मन ला जागृत करके,समझाइस हम एके गोत।
मार गुलामी के देखिस हे,जानिस आजादी अभिमान
ओरी ओरी दिया बरिस हे,अब कइसे होवय निरमान ।
जाति पाति के भेदभाव के,अडबड बाढ़त हावय नार
सुंदर दलित दुनो झन मिलके,सब्बो दुखले पाइन पार।
दलित सही शिक्षक मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात
सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।
(2) बाबा घासीदास
गुरु बाबा हर पंथ परोसिस,नाम दिहिस सुग्हर सतनाम
छत्तीसगढ़ ला तीर्थ बनाइस, जैत खंभ हर बनगे धाम।
सत के रसदा मा सब रेंगव, गुरु - दीक्षा बन गे वरदान
सबो परस्पर सुख दुख बाँटव,सबके भीतर हे भगवान।
सबके हित मा मोरो हित हे, एही मा सबके कल्याण
आमा - बोए आमा पाबे, दुख के काँटा लेवय प्राण।
देश रिणी हे गुरु बाबा के, बहु - जन ला देइस हे पंथ
बिना पंथ के मनुज भटकथे,कहिथें वेद उपनिषद् ग्रंथ।
कतको - भाई भटके हावैं, दुरिहा जा के होगिन आन
हमर बिकट नकसान होय हे, कैसे मैंहर करौं बखान।
पंथ सबो ला जोरिस हावै, देश - धर्म के होथे काम
कलाकार मन जस बगराथें, पंथी देवदास के नाम।
एक - पंथ मा ठाढे हावयँ, सब्बो भाई चतुर - सुजान
स्वाभिमान हर सबला भावै,करथें सबो देश बर गान।
मनखे मनके महिमा भारी, देस राग ला जानव आज
देख देश बर बुता करौ जी,तब्भे बनही सुखी समाज।
रचनाकार - शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के जागरूक कवि, निच्चट हे देहाती ठेठ
वो हर छंद जगत के हीरा, छंद - नेम के वोहर सेठ।
कोदूराम दलित हम कहिथन,सब समाज ला बाँटिस ज्ञान
भाव भावना मा हम बहिथन,जेहर सब बर देथे ध्यान।
देश धर्म के पीरा जानिस,सपना बनिस हमर आजाद
आजादी के रचना रच दिस, सत्याग्रह होगे आबाद।
अपन देश आजाद करे बर,चलव रे संगी सबो जेल
गाँधी जी के अघुवाई मा, आजादी नइ होवय फेल।
शिक्षा के चिमनी ला धर के, देखव बारिस कैसे जोत
मनखे मन ला जागृत करके,समझाइस हम एके गोत।
मार गुलामी के देखिस हे,जानिस आजादी अभिमान
ओरी ओरी दिया बरिस हे,अब कइसे होवय निरमान ।
जाति पाति के भेदभाव के,अडबड बाढ़त हावय नार
सुंदर दलित दुनो झन मिलके,सब्बो दुखले पाइन पार।
दलित सही शिक्षक मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात
सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।
(2) बाबा घासीदास
गुरु बाबा हर पंथ परोसिस,नाम दिहिस सुग्हर सतनाम
छत्तीसगढ़ ला तीर्थ बनाइस, जैत खंभ हर बनगे धाम।
सत के रसदा मा सब रेंगव, गुरु - दीक्षा बन गे वरदान
सबो परस्पर सुख दुख बाँटव,सबके भीतर हे भगवान।
सबके हित मा मोरो हित हे, एही मा सबके कल्याण
आमा - बोए आमा पाबे, दुख के काँटा लेवय प्राण।
देश रिणी हे गुरु बाबा के, बहु - जन ला देइस हे पंथ
बिना पंथ के मनुज भटकथे,कहिथें वेद उपनिषद् ग्रंथ।
कतको - भाई भटके हावैं, दुरिहा जा के होगिन आन
हमर बिकट नकसान होय हे, कैसे मैंहर करौं बखान।
पंथ सबो ला जोरिस हावै, देश - धर्म के होथे काम
कलाकार मन जस बगराथें, पंथी देवदास के नाम।
एक - पंथ मा ठाढे हावयँ, सब्बो भाई चतुर - सुजान
स्वाभिमान हर सबला भावै,करथें सबो देश बर गान।
मनखे मनके महिमा भारी, देस राग ला जानव आज
देख देश बर बुता करौ जी,तब्भे बनही सुखी समाज।
रचनाकार - शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़
सादर प्रणाम दीदी।
ReplyDeleteछात्तीसगढ़ के दू महापुरुष एक साहित्यिक संत दलित जी अउ दूसरा जगत विख्यात सन्त बाबा गुरू घासीदास के अवदान ला उकेरत लाजवाब आल्हा छंद हावय।
धन्यवाद, चोवा भाई ।
Deleteदीदी आपके विषय अउ सृजन ला कोटिशः प्रणाम ।
ReplyDeleteदो महापुरुष के जीवनी ल छंद मा उकेरना
वाकई नमन योग्य कार्य हे दीदी ।
धन्यवाद, आशा!
ReplyDeleteसुग्घर सृजन दीदी,सादर नमन
ReplyDeleteधन्यवाद दुर्गा भाई !
Deleteशकुन्तला दीदी के लेखनी ला सादर प्रणाम करथव जौन हर सुघ्घर आल्हा छंद मा दो महा पुरुष मनला आधार बनाके बढ़ियाँ सृजन करे हावय दीदी आप ला सत् सत् पायलगी
ReplyDeleteवासंती ! धन्यवाद बहिनी ।
Deleteदीदी ल सादर प्रणाम...
ReplyDeleteदीदी के शब्दचयन के जवाब नही
दूनो महपुरुष मन ल बढ़िया शब्द सुमन अर्पित करे हें...
पैलगी सहित बधाई दीदी ल
धन्यवाद, सूर ।
Deleteबहुत ही सुग्घर आल्हा छंद हे,दीदी।आपके लेखन हम सबो बर अनुकरणीय हे।सादर नमन ।बधाई।
ReplyDeleteवाह वाह दीदी,अति सुघ्घर आल्हा,,एक साहित्य के वीर,अउ एक समाज के वीर।सुघ्घर बरनन।।
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर रचना दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत सुग्घर रचना दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteप्रणम्य सृजन।दीदी।
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