दुखिया के गोठ
कइसन दिन आगय वो फूफू ,बोलत हवे भतीजा |
पाक गए वो नीम धतूरा ,निकलत हावय बीजा |
हाँथ गोड़ मा फोरा परगे ,आँखी अँधरी होगे ,
अंतस होगे छर्री दर्री ,का करनी ला भोगे |
मोर सायकिल के पैडिल हा ,माढ़े हावय टूटे |
हाथी बर अब बाड़ा नइहे ,राजमहल हा फूटे |
नरम मुलायम मीठ मिठाई ,अब तो चेम्मर लागे ,
दाँत ओंठ हा बइठत हावय ,मन हा पल्ला भागे |
हमर जमाना मा वो फूफू ,सबो रिहिस हे सच्चा |
आज मशीन घलो हा देवय ,हमर भाग ला गच्चा |
बखत बखत के फेर भतीजा ,रानी भरथे पानी |
समझावत हे फूफू दीदी ,अखिल लोक कस ज्ञानी
झूठ लबारी अँधियारी के ,कब तक चलही माया |
दिन के भरे घाम मा तपथे ,सब प्रानी के काया
रचनाकार - श्रीमती आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा, छत्तीसगढ़
अन्तस् ले आभार गुरुदेव
ReplyDeleteमोर छंद रचना हा
छंद खजाना म स्थान पावत हे।
बहुत बहुत आभार नमन गुरुदेव
दुखिया के गोठ ला सार छंद मा बहुचेत मार्मिक भाव मामा प्रस्तुत करे गे हावय।
ReplyDeleteआशा देशमुख जी ला लाजवाब सृजन बर हार्दिक बधाई ।
सादर आभार भैया जी
Deleteसुघ्घर सार छंद आशा बहिनी बहुत बढ़ियाँ सृजन बर बधाई
ReplyDeleteसादर आभार दीदी
Deleteछत्तीसगढिया सबले बढ़िया, मन भर राखव आशा
ReplyDeleteआशा - धर के रेंगव भइया, छोड़व सबो निराशा।
वाह्ह्ह्ह्ह् दीदी सुग्घर रचना
ReplyDeleteसादर आभार भाई दुर्गा
Deleteजब किसी को अपना निकलना रहता है और स्वार्थ पूर्ति हेतु दुश्मन भी दोस्त बन जाते है ,और यहां तक होता है रिश्ते नाते बनाने लग जाते है ,जब राजगद्दी की बात होती है तब तो और मत पूछिए ,।
ReplyDeleteइसी को व्यंग्य रचना के तौर एक दूसरे की पीड़ा को जो नाते रिश्ते में स्वार्थ पूर्ति करते हैं ,उनके संवाद को सृजन किया है ।
अब कौन बुआ है कौन भतीजा
पाठक बेहतर समझ सकते है।
धन्यवाद
जब किसी को अपना निकलना रहता है और स्वार्थ पूर्ति हेतु दुश्मन भी दोस्त बन जाते है ,और यहां तक होता है रिश्ते नाते बनाने लग जाते है ,जब राजगद्दी की बात होती है तब तो और मत पूछिए ,।
ReplyDeleteइसी को व्यंग्य रचना के तौर एक दूसरे की पीड़ा को जो नाते रिश्ते में स्वार्थ पूर्ति करते हैं ,उनके संवाद को सृजन किया है ।
अब कौन बुआ है कौन भतीजा
पाठक बेहतर समझ सकते है।
धन्यवाद
अपना काम
ReplyDeleteअपना काम
ReplyDeleteसार बात ला बने मड़ाइन, बहिनी हमरे आशा।
ReplyDeleteदुनिया भर मा होवत रहिथे, का का नई तमाशा।।
छत्तिसगढ़िया सबले बढ़िया, एला साबित करबो।
साहित के बोहावय दरिया, बात इही हम धरबो।।
बहिनी के सुंदर सार छंद....बधाई बहिनी
सादर आभार भाई जी
Deleteवाह्ह वाह्ह बहुत सुग्घर रचना दीदी।बधाई
ReplyDeleteसादर आभार भाई ज्ञानु
Deleteवाह्ह वाह्ह बहुत सुग्घर रचना दीदी।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सार छंद सिरजाय हव,दीदी बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteसादर आभार भाई मोहन
Deleteबहुत सुग्घर सार छंद सिरजाय हव,दीदी बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteवाह वाह दीदी,अति उत्तम
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