योग करव जी
मनखे ला सुख योग ह देथे,पहिली सुख जेन कहाथे ।
योग करे तन बनय निरोगी,धरे रोग हा हट जाथे।।1
सुत उठ के जी रोज बिहनियाँ,पेट रहय गा जब खाली ।
दंड पेल अउ दँउड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली ।।2
रोज करव जी योगासन ला,चित्त शांत मन थिर होही ।
हिरदे हा पावन हो जाही,तन सुग्घर मंदिर होही।।3
नारी नर सब लइका छउवा, बन जावव योगिन योगी ।
धन माया के सुख हा मिलही,नइ रइही तन मन रोगी।।4
जात पाँत के बात कहाँ हे, काबर होबो झगरा जी।
इरखा के सब टंटा टोरे, योग करव सब सँघरा जी।।5
जेन सुभीता आसन होवय,वो आसन मा बइठे जी।
ध्यान रहय बस नस नाड़ी हा,चिंता मा झन अइठे जी।।6
बिन तनाव के योग करे मा, तुरते असर जनाथे गा ।
आधा घंटा समे निकालव, मन चंगा हो जाथे गा ।।7
अनुलोम करव सुग्घर भाई, साँस नाक ले ले लेके ।
कुंभक रेचक श्वांसा रोंके, अउ विलोम श्वांसा फेके ।।8
प्राणायाम भ्रस्तिका हावय, बुद्धि बढ़ाथे सँगवारी ।
अग्निसार के महिमा गावँव, भूँख जगाथे जी भारी ।।9
हे कपालभाती उपयोगी, अबड़े जी असर बताथे ।
एलर्जी नइ होवन देवय, ए कतको रोग भगाथे ।।10
कान मूँद के करव भ्रामरी, भौंरा जइसे गुंजारौ ।
माथा पीरा दूर भगाही, सात पइत बस कर डारौ ।।11
ओम जपव उद्गीत करव जी, बने शीतली कर लेहौ ।
रोज रोज आदत मा ढालव, आड़ परन जी झन देहौ ।।12
रचनाकार - श्री चोवा राम "बादल"
हथबंद, छत्तीसगढ़
मनखे ला सुख योग ह देथे,पहिली सुख जेन कहाथे ।
योग करे तन बनय निरोगी,धरे रोग हा हट जाथे।।1
सुत उठ के जी रोज बिहनियाँ,पेट रहय गा जब खाली ।
दंड पेल अउ दँउड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली ।।2
रोज करव जी योगासन ला,चित्त शांत मन थिर होही ।
हिरदे हा पावन हो जाही,तन सुग्घर मंदिर होही।।3
नारी नर सब लइका छउवा, बन जावव योगिन योगी ।
धन माया के सुख हा मिलही,नइ रइही तन मन रोगी।।4
जात पाँत के बात कहाँ हे, काबर होबो झगरा जी।
इरखा के सब टंटा टोरे, योग करव सब सँघरा जी।।5
जेन सुभीता आसन होवय,वो आसन मा बइठे जी।
ध्यान रहय बस नस नाड़ी हा,चिंता मा झन अइठे जी।।6
बिन तनाव के योग करे मा, तुरते असर जनाथे गा ।
आधा घंटा समे निकालव, मन चंगा हो जाथे गा ।।7
अनुलोम करव सुग्घर भाई, साँस नाक ले ले लेके ।
कुंभक रेचक श्वांसा रोंके, अउ विलोम श्वांसा फेके ।।8
प्राणायाम भ्रस्तिका हावय, बुद्धि बढ़ाथे सँगवारी ।
अग्निसार के महिमा गावँव, भूँख जगाथे जी भारी ।।9
हे कपालभाती उपयोगी, अबड़े जी असर बताथे ।
एलर्जी नइ होवन देवय, ए कतको रोग भगाथे ।।10
कान मूँद के करव भ्रामरी, भौंरा जइसे गुंजारौ ।
माथा पीरा दूर भगाही, सात पइत बस कर डारौ ।।11
ओम जपव उद्गीत करव जी, बने शीतली कर लेहौ ।
रोज रोज आदत मा ढालव, आड़ परन जी झन देहौ ।।12
रचनाकार - श्री चोवा राम "बादल"
हथबंद, छत्तीसगढ़
योग के बढ़िया फायदा बताये हव भैया कुकुभ छ्न्द में
ReplyDeleteसुग्घर सृजन
योग के बढ़िया फायदा बताये हव भैया कुकुभ छ्न्द में
ReplyDeleteसुग्घर सृजन
धन्यवाद अमृतांशु जी।
Deleteसुग्घर विषय मा रचना भइया ,
ReplyDeleteसादर आभार ।
Deleteकुकुभ छंद - 16/14- $$
ReplyDeleteयोग ज्ञान के धर ले रसदा, मोर बात सुन ले प्रानी
रोग दोख तज गुनले वरदा,बोल सदा गुरतुर - बानी।
आसन प्राणायाम करे कर,बन - जाबे तयँ वर दानी
चालाकी कभ्भू झन करबे,तब बनबे ज्ञानी - ध्यानी।
सादर प्रणाम दीदी।
Deleteवाहःहः भैया जी
ReplyDeleteहर विषय में आपके सृजन लाजवाब रहिथे ।
बहुत सुघ्घर भैया जी
सादर आभार।
Deleteछंद कुकुभ चोवा भैया के, सोरा आना बढ़िया हे।
ReplyDeleteयोग करौ बासी खावौ जी, टॉनिक छत्तिसगढ़िया हे।।
ठँउका कहिन हमर दीदी गा, बनबो हम ज्ञानी ध्यानी।
रद्दा सोझ रेंगबो छोड़त, चालाकी आनी बानी।।
चोवा भैया ल नमस्कार सहित...
सादर नमन सूर्या भैया जी।
Deleteयोगासन के लाभ ला ओकर नियम सहित बहुत सुग्घर ढंग ले कुकुभ छंद मा बताय हव ,गुरुदेव बादल जी।कोटि कोटि नमन।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर कुकुभ छंद के रचना सर।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर कुकुभ छंद के रचना सर।बधाई
ReplyDeleteगजब सुघ्घर गुरुदेव
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