धान लुवे के बाद देख ले,सुन्ना होगे खेत।
ओन्हारी बोये बर कखरो,नइहे एको चेत।
गाय गरू सब छेल्ला घूमय,संसो करे किसान।
हात हूत दिन रात करत मा,लटपट होइस धान।
लाख लाखड़ी चना गहूँ बिन,सुन्ना खेती खार।
अरसी सरसो कायउपजही,सोचय बइठे हार।
ढ़ील्ला हवे गाँव मा एसो, राउत कहाँ लगाय।
मिलके सब किसान हा जम्मो, गरवा अपन चराय।।
मिले नही अब खोजे मा जी ,तिवरा भाजी नार।
बिना उतेरा ओन्हारी के,रोवय खेती खार।।
रचनाकार - श्री संतोष फरिकार
छत्तीसगढ़
ओन्हारी बोये बर कखरो,नइहे एको चेत।
गाय गरू सब छेल्ला घूमय,संसो करे किसान।
हात हूत दिन रात करत मा,लटपट होइस धान।
लाख लाखड़ी चना गहूँ बिन,सुन्ना खेती खार।
अरसी सरसो कायउपजही,सोचय बइठे हार।
ढ़ील्ला हवे गाँव मा एसो, राउत कहाँ लगाय।
मिलके सब किसान हा जम्मो, गरवा अपन चराय।।
मिले नही अब खोजे मा जी ,तिवरा भाजी नार।
बिना उतेरा ओन्हारी के,रोवय खेती खार।।
रचनाकार - श्री संतोष फरिकार
छत्तीसगढ़
वाह्ह्ह्ह्ह् संतोष भइया सुग्घर सरसी छन्द में रचना
ReplyDeleteअबड़ सुग्घर भावपूर्ण सरसी छंद भईया
ReplyDeleteकिसान के पीरा , सुग्घर सरसी छ्न्द भाई
ReplyDeleteकिसान के पीरा , सुग्घर सरसी छ्न्द भाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सरसी छंद मा रचना भैया।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सरसी छंद मा रचना भैया।बधाई
ReplyDeleteवाहःहः भाई बहुत सुघ्घर सृजन करे हव
ReplyDeleteसही म गांव के इही हाल हो गए है ।
सब परेशान हवे गाय गरु चरैया बिन।
बहुत सुग्घर सरसी छंद ,संतोष भाई।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDelete"समर शेष है नहीं पाप का, भागी केवल व्याध
ReplyDeleteजो तटस्थ है समय लिखेगा, उनका भी इतिहास।"
रमधारी सिंह 'दिनकर'
तुकान्तता ?
Deleteखेत खार के आथे सुरता मोला एको बार।
ReplyDeleteजतका तो उद्योग बाढ़ही, खेती बंटाधार।।
सरसी मा तँय खेत खार के, बरने बढ़िया हाल।
फेर किसानी अउ किसान के जिनगी हे बदहाल।।
बहुत सुंदर सरसी भाई संतोष...
गजब सुघ्घर भैया
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