गँवई गाँव
बहारे बटोरे गली खोर ला।
रखे बड़ सजाके सबो छोर ला।
बरे जोत अँगना दुवारी सबे।
दिखे बस खुसी दुख रहे जी दबे।
गरू गाय घर मा बढ़ाये मया।
उड़े लाल कुधरिल गढ़ाये मया।
मिठाये नवा धान के भात जी।
कटे रात दिन गीत ला गात जी।
बियारी करे मिल सबे सँग चले।
रहे बाँस के बेंस थेभा भले।
ठिहा घर ठिकाना सरग कस लगे।
ददा दाइ के पाँव मा जस जगे।
बरे बूड़ बाती दिया भीतरी।
भरे जस मया बड़ जिया भीतरी।
बढ़ाले मया तैं बढ़ा मीत जी।
हरे गाँव गँवई मया गीत जी।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
बहारे बटोरे गली खोर ला।
रखे बड़ सजाके सबो छोर ला।
बरे जोत अँगना दुवारी सबे।
दिखे बस खुसी दुख रहे जी दबे।
गरू गाय घर मा बढ़ाये मया।
उड़े लाल कुधरिल गढ़ाये मया।
मिठाये नवा धान के भात जी।
कटे रात दिन गीत ला गात जी।
बियारी करे मिल सबे सँग चले।
रहे बाँस के बेंस थेभा भले।
ठिहा घर ठिकाना सरग कस लगे।
ददा दाइ के पाँव मा जस जगे।
बरे बूड़ बाती दिया भीतरी।
भरे जस मया बड़ जिया भीतरी।
बढ़ाले मया तैं बढ़ा मीत जी।
हरे गाँव गँवई मया गीत जी।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
बहुत सुग्घर शक्ति छंद के रचना करे हव,भैया ।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteसुग्घर भाई
ReplyDeleteसुग्घर भाई
ReplyDeleteसुग्घर शक्ति छंद वर्मा जी
ReplyDeleteजगाबो सबो झन अपन देश ला
ReplyDeleteसजाबो सहज - सार संदेश ला।
बनाबो - जनाबो अपन राग ला
मना ले मगन मन नवा पाग ला।
बहुत सुग्हर जितेन्द्र भाई, बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर शक्ति छंद सृजन हे भाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर शक्ति छंद सृजन हे भाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।बधाई
ReplyDeleteभुलाये हवौं मैं कथौं ख्याल मा।
ReplyDeleteफँदाये हवौं काम के जाल मा।।
भाई जितेंद्र के बढ़िया रचना....
बधाई भाई.....