जस गीत -
काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल।
खाड़ा खप्पर हाथ हे,बने असुर के काल।
बने असुर के काल,गजब ढाये रन भीतर।
मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर।
गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली।
होवय हाँहाकार,खून पीये बड़ काली।
सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ।
गल मा माला मूंड के,बाँधे कनिहा हाथ।
बाँधे कनिहा हाथ,देंह हे कारी कारी।
चुंदी हे छरियाय,दाँत हावय जस आरी।
बहे लहू के धार,लाल होगे बड़ भूरज।
नाचत हे बिकराल,डरय चंदा अउ सूरज।
घबराये तीनो तिलिक,काली ला अस देख।
सबके बनगे काल वो,बिगड़े ब्रम्हा लेख।
बिगड़े ब्रम्हा लेख, देख रोवय सुर दानँव।
काली बड़ बगियाय,कहे कखरो नइ मानँव।
भोला सुनय गोहार,तीर काली के आये।
पाँव तरी गिर जाय,देख काली घबराये।
काली देखय पाँव मा,भोला हवय खुँदाय।
जिभिया भारी लामगे,आँखी आँसू आय।
आँखी आँसू आय,शांत काली हो जाये।
होवय जय जयकार,फूल देवन बरसाये।
बंदव माता पाँव,बजाके घंटा ताली।
जय हो देबी तोर,काल कस माता काली।
रचनाकार - श्री
बाल्को(कोरबा)
लाजवाब कुण्डलिया छंद खैरझिटिया जी।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर सिरजाय हवव वर्मा जी।बधाई।
ReplyDeleteरचना बढ़िया हे बने, सजे कुण्डली छंद
ReplyDeleteघेरी - बेरी पढ बही, तब आही आनंद।
तब आही आनंद, छंद हर शिक्षा - देथे
छंद राग के कंद, बात मन मा धर लेथे।
गावव गजहिन गीत,गजब हे गुरतुर गहना
सजै सुखद संगीत,रचे हस बढ़िया रचना।
गावव गजहिन गीत,गजब हे गुरतुर गहना।
Deleteअइसन अद्वितीय पंक्ति आपे मनके तीर हो सकथे दीदी,बने सोंच बिचार के लिखे बर बइठथन तभो मन म नइ आये,आप तुरते डहर चलती गढ़ देव,,सादर पायलागी।
बहुत सुग्घर कुण्डलिया छंद के रचना करे हव ,भैया।बहुत बहुत बधाईअउ शुभकामना।
ReplyDeleteसादर चरण बंदन अउ आभार गुरुदेव
ReplyDeleteआप सबो के मया बर बारम्बार नमन
ReplyDeleteसादर चरण बंदन अउ आभार गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाहःहः भाई जितेंन्द्र बहुते सुघ्घर सृजन
ReplyDeleteजितेन्द्र भईया ल बहुँत बहुँत बधाई
ReplyDeleteजितेन्द्र भईया ल बहुँत बहुँत बधाई
ReplyDeleteसुग्घर कुण्डलिया भाई जी
ReplyDeleteसुग्घर कुण्डलिया भाई जी
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया भाई...
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