चौपाई छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
( *संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी के 52 उपदेश* )
*अ*
अमर नही संतो ये चोला| काल उठा ले जाही तोला||
हिरदे मा सतनाम बसा ले| गुरु के महिमा मनुवा गा ले||1
*आ*
आवव आवव सतगुरु चरना| नाम-पान हे गुरु के धरना||
भवसागर ले तब तर जाहू| सबद सबद जब ज्ञान लखाहू||2
*इ*
इरखा लिग़री-चारी त्यागौ| मीठ बोल मा अंतस पागौ||
दूर बुराई पर के रहना| सत मारग धर निस दिन चलना||3
*ई*
सत ईमान धरम हे गहना| संत गुनी गुरु जन के कहना||
सत ला जानौ सत ला मानौ| सत रक्षा बर मन मा ठानौ||4
*उ*
उल्लू चाहत घपटे रतिया| हम ला भावत सतगुरु बतिया||
सत्य प्रकाश करे उजियारा| झूठ करे जग मन अँधियारा||5
*ऊ*
ऊँचा जग मा इंखर दर्जा| चुका कभू नइ पावन कर्जा||
दाई ददा जनम देवइया| गुरु हे जिनगी के सिरजइया||6
*ए*
एक नाम हे सार जगत मा| रमे बसे सतनाम भगत मा||
घट घट कण कण जीव चराचर| चाँद सुरुज अउ पर्वत सागर||7
*ऐ*
ऐंठ गोठ झन ऐंठत रहिबे| दया मया झन मेंटत रहिबे||
धन दौलत के छोड़ गुमाना| जुच्छा आना जुच्छा जाना||8
*ओ*
ओढ़ चलौ गुरु नाम चदरिया| छाय नही तब दुःख बदरिया||
नार फाँस ला काटे यम के| खुशहाली से जिनगी दमके||9
*औ*
और नही मन रंग रँगावव| अजर नाम सतनाम लखावव||
दया दान जन पर हित सेवा| कर्म नेक रख पावव मेवा||10
*अं*
अंत अनंत अनादि हवे सच| लोभ मोह ले रइहौ बच बच||
क्रोध अगन ले तन मन जलथे| धीर धरे सुख जिनगी चलथे||11
*अः*
छः आगर छः कोरी सुमिरन| करके तन मन गुरु ला अर्पन||
बन सत हंसा गुरु गुन गावय| जनम दुबारा जग मा पावय||12
*ऋ*
ऋषि मुनि गुरु जन के बानी| सत्य प्रेम ले सत पहचानी||
कर्मयोग जिनगी के शाखा| जग कल्याण करे नित भाखा||13
*क*
कपट द्वेष झन रार करौ जी| सत्य काम मा ध्यान धरौ जी||
नजर गड़े झन पर धन नारी| अपन करम फल कर निस्तारी||14
*ख*
खान-पान सादा रख भाई| काम असुर हे मांस खवाई||
स्वस्थ दिमाक बसे चतुराई| बात कहे सच गुरु गोसाई||15
*ग*
गला लगा ले दीन दुखी ला| हँसी खुशी दे बाँट सुखी ला||
मान असल जग मान खजाना| दुख बिपदा मा हाथ बँटाना||16
*घ*
घर घर मंगल चौका गावव| सत के मांदर झाँझ बजावव||
महानाम सतनाम जपौ सब| सत्य करम मा पाँव नपौ सब||17
*ङ*
गङ्गा जल कस गुरु के बानी| ध्यान लगा उर बनबे ज्ञानी||
बुरा भला के राह बतावय| भटकत हंसा पार लगावय||18
*च*
चाल चलन रख नेक करम ला| थाम सदा सतनाम धरम ला||
जनम धरे हस कुल सतनामी| सत्य अहिंसा बन अनुगामी||19
*छ*
छोड़ बुराई जी सुख जिनगी| नशा पान हे दुख के तिलगी||
हँसी खुशी घर तन जर जाये| पद इज्जत धन मान गँवाये||20
*ज*
जल जंगल के रक्षा कर लौ| मातृभूमि बर जी लौ मर लौ||
जिनगी के आधार हवय ये| सतगुरु उद्गार हवय ये||21
*झ*
झगरा झंझट ला तुम टारौ| द्वेष अहम ला आगी बारौ||
आपस मा हम भाई भाई| सुमता के मिल बीज उगाईं||22
*ञ*
पञ्च तत्व ले बने शरीरा| अग्नि भूमि जल गगन समीरा||
नाम तभे भगवान पड़े हे| सत्यनाम संसार खड़े हे||23
*ट*
टल जाथे दुख बिपदा आये| महामंत्र सतनाम लखाये||
मनुज मनोरथ सुफल सुहाये| पद निर्वान सुगम पथ पाये||24
*ठ*
ठगनी हे ये काया माया| मोह धरे जग जन इतराया||
अंत घड़ी मिट्टी मिल जाना| फिर मनुवा काहे पछताना||25
*ड*
डर डर के नइ जिनगी जीना| सुख दुख के हे बिछे बिछौना||
दुख दिन बाद मिले सुख रैना| कतका सुग्घर गुरु के बैना||26
*ढ*
ढोंग रूढ़िवादी ला छोड़व| ज्ञान राह मा मन ला मोड़व||
सही गलत के कर करौ सरेखा| कर्म बनाये सब के लेखा||27
*ण*
प्राण भले जावय सच खातिर| पर जीते ना कपटी शातिर||
ध्यान धरौ सतगुरु के कहना| सत्य सदा हो सबके गहना||28
*त*
तरी तरी तन घुन्ना खाये| जे सतनाम सबद दुरिहाये|
धरे नही जे गुरु के बैना| पाय नही वो सुख दिन रैना||29
*थ*
थाह मिले ना ज्ञान समुंदर| खोज मनुज मन खुद के अंदर||
सबद सबद धर गुरु के बानी| बनबे मनुवा परम सुजानी||30
*द*
दान ज्ञान के मोल अनोखा| बिना ज्ञान के जिनगी खोखा||
सच ला थाम मढ़ा ले जोखा| नइ खाबे तब मनुवा धोखा||31
*ध*
धरम करम दू नाँव बने हे| सतगुरु किरपा छाँव बने हे||
धरम बिना हे करम अधूरा| करम लेख ला कर लौ पूरा||32
*न*
नमन करौ गुरु संत चरन मा| ध्यान लगा सतनाम भजन मा||
नाम सबद जग मुक्ति बँधे हे| हर प्राणी के साँस छँदे हे||33
*प*
पाटव जाति- पाति के खाई| एक रंग तन लहू समाई||
मनखे मनखे एक समाना| सीखव सब ला गले लगाना||34
*फ*
फाँस फँसौ ना जाति धरम के| पाठ पढ़व सब नेक करम के||
कर्म बड़े हे मानव जग मा| बाँध सुमत चल हर पग पग मा||35
*ब*
बैर खैर के दाग न छूटे| प्रेम भाव के घड़ा न फूटे||
बात ध्यान ये रख के चलना| झूल सबो लौ सुमता पलना||36
*भ*
भरम-भूत के तोड़व जाला| सत्य प्रेम के पी लौ प्याला||
बाँध मया परिवार रखौ जी| सुख जिनगी आधार रखौ जी||37
*म*
मन के जीते जीत हवे जग| मन के हारे हार हवे पग||
धीर धरे सुख जिनगी मिलथे| रात गये ही भोर निकलथे||38
*य*
यज्ञ बरोबर मारग सच के| चलिहौ संतो तुम बच बच के||
कठिन परीक्षा पग पग मिलथे| फूल सफलता के तब खिलथे||39
*र*
रंग रचे बस सादा तन मा| नाम सुमर गुरु के जीवन मा||
अइसे कर लौ खुद के करनी| तर जाहू संतो बैतरनी||40
*ल*
लगन लगा कर माटी सेवा| मिलही धाम परम सुख मेवा||
येखर गोदी सरग समाना| संत गुनी गुन करे बखाना||41
*व*
वाणी गुरु के अमरित जइसे| सत्य ज्ञान हे पबरित जइसे||
जग जन हित संदेश दिये हे| मानवता परिवेश दिये हे||42
*श*
शंख बजे सतनाम सबद जब| मिट जाये दुख संत दरद सब||
मन कर चंगा भरे उमंगा| जब जब बाजे झाँझ मृदंगा||43
*ष*
षड़यंत्र करे जे सगा बिरादर| नइ पावय वो जग मा आदर||
छल कपटी ले बच के रइहू| नइ तो पग पग दुख ला सइहू||44
*स*
समय बड़ा बलवान हवे जी| सुख दुख के पहिचान हवे जी||
कदर करे जे मान कमाये| समय गवायें वो पछताये||45
*ह*
हँसी खुशी धर जिनगी जीना| चमके श्रम के माथ पसीना||
हीन भाव तज आगू बढ़ना| नव विकास के सिढ़ही गढ़ना||46
*क्ष*
क्षमा प्रेम ज्ञानी के गहना| दूर द्वेष कुंठा ले रहना||
समरसता के पाठ पढ़ावय| भला करे जग पाँव बढ़ावय||47
*त्र*
त्रास मिटे सतनाम जपन मा| फूल खिले सुख हिया चमन मा||
गा लौ संतो सतगुरु महिमा| जेन बढ़ावय जग जन गरिमा||48
*ज्ञ*
ज्ञान कभू नइ बिरथा जावय| मान सदा वो जग मा पावय||
धीर विवेक रखे ये मनखे| सच ला जाने सच ला परखे||49
*ढ़*
ढूँढ़ फिरे मन अंदर बाहिर| सत के महिमा जग हे जाहिर||
सत मा धरती खड़े अकासा| बात कहे गुरु घासीदासा||50
*ड़*
हाड़ मांस के देह बने हे| छुआछूत धर लोग सने हे||
खून अलग नइ बहे शरीरा| एक सबो के सुख अउ पीरा||51
*श्र*
श्रवण करौ सतगुरु के बानी| सँवर जही मानुष जिनगानी||
धर चलिहौ बावन उपदेशा| मिट जाही संतो सब क्लेशा||52
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
मो.नं.- 8889747888
*नोट:- सर्वाधिकार सुरक्षित*
बहुत सुंदर, बधाई भैया जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर जी । जय बाबा की
ReplyDeleteअनमोल रचना सर
ReplyDeleteअद्भुत चौपाई जय सतनाम
ReplyDeleteलाजवाब गुरूदेव धरोहर बनगे कालजयी रचना बर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर सर
ReplyDeleteबेहतरीन सर जी
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