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Saturday, April 24, 2021

चौपाई छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


 

चौपाई छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


( *संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी के 52 उपदेश* )

*अ*

अमर नही संतो ये चोला| काल उठा ले जाही तोला||

हिरदे मा सतनाम बसा ले| गुरु के महिमा मनुवा गा ले||1


*आ*

आवव आवव सतगुरु चरना| नाम-पान हे गुरु के धरना||

भवसागर ले तब तर जाहू| सबद सबद जब ज्ञान लखाहू||2


*इ* 

इरखा लिग़री-चारी त्यागौ| मीठ बोल मा अंतस पागौ||

दूर बुराई पर के रहना| सत मारग धर निस दिन चलना||3


*ई*

सत ईमान धरम हे गहना| संत गुनी गुरु जन के कहना||

सत ला जानौ सत ला मानौ| सत रक्षा बर मन मा ठानौ||4


*उ*

उल्लू चाहत घपटे रतिया| हम ला भावत सतगुरु बतिया||

सत्य प्रकाश करे उजियारा| झूठ करे जग मन अँधियारा||5


*ऊ*

ऊँचा जग मा इंखर दर्जा| चुका कभू नइ पावन कर्जा||

दाई ददा जनम देवइया| गुरु हे जिनगी के सिरजइया||6


*ए*

एक नाम हे सार जगत मा| रमे बसे सतनाम भगत मा||

घट घट कण कण जीव चराचर| चाँद सुरुज अउ पर्वत सागर||7


*ऐ*

ऐंठ गोठ झन ऐंठत रहिबे| दया मया झन मेंटत रहिबे||

धन दौलत के छोड़ गुमाना| जुच्छा आना जुच्छा जाना||8


*ओ*

ओढ़ चलौ गुरु नाम चदरिया| छाय नही तब दुःख बदरिया||

नार फाँस ला काटे यम के| खुशहाली से जिनगी दमके||9


*औ*

और नही मन रंग रँगावव| अजर नाम सतनाम लखावव||

दया दान जन पर हित सेवा| कर्म नेक रख पावव मेवा||10


*अं*

अंत अनंत अनादि हवे सच| लोभ मोह ले रइहौ बच बच||

क्रोध अगन ले तन मन जलथे| धीर धरे सुख जिनगी चलथे||11


*अः*

छः आगर छः कोरी सुमिरन| करके तन मन गुरु ला अर्पन||

बन सत हंसा गुरु गुन गावय| जनम दुबारा जग मा पावय||12


*ऋ*

ऋषि मुनि गुरु जन के बानी| सत्य प्रेम ले सत पहचानी||

कर्मयोग जिनगी के शाखा| जग कल्याण करे नित भाखा||13


*क*

कपट द्वेष झन रार करौ जी| सत्य काम मा ध्यान धरौ जी||

नजर गड़े झन पर धन नारी| अपन करम फल कर निस्तारी||14


*ख*

खान-पान सादा रख भाई| काम असुर हे मांस खवाई||

स्वस्थ दिमाक बसे चतुराई| बात कहे सच गुरु गोसाई||15


*ग*

गला लगा ले दीन दुखी ला| हँसी खुशी दे बाँट सुखी ला||

मान असल जग मान खजाना| दुख बिपदा मा हाथ बँटाना||16


*घ*

घर घर मंगल चौका गावव| सत के मांदर झाँझ बजावव||

महानाम सतनाम जपौ सब| सत्य करम मा पाँव नपौ सब||17


*ङ*

गङ्गा जल कस गुरु के बानी| ध्यान लगा उर बनबे ज्ञानी||

बुरा भला के राह बतावय| भटकत हंसा पार लगावय||18


*च*

चाल चलन रख नेक करम ला| थाम सदा सतनाम धरम ला||

जनम धरे हस कुल सतनामी| सत्य अहिंसा बन अनुगामी||19


*छ*

छोड़ बुराई जी सुख जिनगी| नशा पान हे दुख के तिलगी||

हँसी खुशी घर तन जर जाये| पद इज्जत धन मान गँवाये||20


*ज*

जल जंगल के रक्षा कर लौ| मातृभूमि बर जी लौ मर लौ||

जिनगी के आधार हवय ये| सतगुरु उद्गार हवय ये||21


*झ*

झगरा झंझट ला तुम टारौ| द्वेष अहम ला आगी बारौ||

आपस मा हम भाई भाई| सुमता के मिल बीज उगाईं||22


*ञ*

पञ्च तत्व ले बने शरीरा| अग्नि भूमि जल गगन समीरा||

नाम तभे भगवान पड़े हे| सत्यनाम संसार खड़े हे||23


*ट*

टल जाथे दुख बिपदा आये| महामंत्र सतनाम लखाये||

मनुज मनोरथ सुफल सुहाये| पद निर्वान सुगम पथ पाये||24


*ठ*

ठगनी हे ये काया माया| मोह धरे जग जन इतराया||

अंत घड़ी मिट्टी मिल जाना| फिर मनुवा काहे पछताना||25


*ड*

डर डर के नइ जिनगी जीना| सुख दुख के हे बिछे बिछौना||

दुख दिन बाद मिले सुख रैना| कतका सुग्घर गुरु के बैना||26


*ढ*

ढोंग रूढ़िवादी ला छोड़व| ज्ञान राह मा मन ला मोड़व||

सही गलत के कर करौ सरेखा| कर्म बनाये सब के लेखा||27


*ण*

प्राण भले जावय सच खातिर| पर जीते ना कपटी शातिर||

ध्यान धरौ सतगुरु के कहना| सत्य सदा हो सबके गहना||28


*त*

तरी तरी तन घुन्ना खाये| जे सतनाम सबद दुरिहाये|

धरे नही जे गुरु के बैना| पाय नही वो सुख दिन रैना||29


*थ*

थाह मिले ना ज्ञान समुंदर| खोज मनुज मन खुद के अंदर||

सबद सबद धर गुरु के बानी| बनबे मनुवा परम सुजानी||30


*द*

दान ज्ञान के मोल अनोखा| बिना ज्ञान के जिनगी खोखा||

सच ला थाम मढ़ा ले जोखा| नइ खाबे तब मनुवा धोखा||31


*ध*

धरम करम दू नाँव बने हे| सतगुरु किरपा छाँव बने हे||

धरम बिना हे करम अधूरा| करम लेख ला कर लौ पूरा||32


*न*

नमन करौ गुरु संत चरन मा| ध्यान लगा सतनाम भजन मा||

नाम सबद जग मुक्ति बँधे हे| हर प्राणी के साँस छँदे हे||33


*प*

पाटव जाति- पाति के खाई| एक रंग तन लहू समाई||

मनखे मनखे एक समाना| सीखव सब ला गले लगाना||34


*फ*

फाँस फँसौ ना जाति धरम के| पाठ पढ़व सब नेक करम के||

कर्म बड़े हे मानव जग मा| बाँध सुमत चल हर पग पग मा||35


*ब*

बैर खैर के दाग न छूटे| प्रेम भाव के घड़ा न फूटे||

बात ध्यान ये रख के चलना| झूल सबो लौ सुमता पलना||36


*भ*

भरम-भूत के तोड़व जाला| सत्य प्रेम के पी लौ प्याला||

बाँध मया परिवार रखौ जी| सुख जिनगी आधार रखौ जी||37


*म*

मन के जीते जीत हवे जग| मन के हारे हार हवे पग||

धीर धरे सुख जिनगी मिलथे| रात गये ही भोर निकलथे||38


*य*

यज्ञ बरोबर मारग सच के| चलिहौ संतो तुम बच बच के||

कठिन परीक्षा पग पग मिलथे| फूल सफलता के तब खिलथे||39


*र*

रंग रचे बस सादा तन मा| नाम सुमर गुरु के जीवन मा||

अइसे कर लौ खुद के करनी| तर जाहू संतो बैतरनी||40


*ल*

लगन लगा कर माटी सेवा| मिलही धाम परम सुख मेवा||

येखर गोदी सरग समाना| संत गुनी गुन करे बखाना||41


*व*

वाणी गुरु के अमरित जइसे| सत्य ज्ञान हे पबरित जइसे||

जग जन हित संदेश दिये हे| मानवता परिवेश दिये हे||42


*श*

शंख बजे सतनाम सबद जब| मिट जाये दुख संत दरद सब||

मन कर चंगा भरे उमंगा| जब जब बाजे झाँझ मृदंगा||43


*ष*

षड़यंत्र करे जे सगा बिरादर| नइ पावय वो जग मा आदर||

छल कपटी ले बच के रइहू| नइ तो पग पग दुख ला सइहू||44


*स*

समय बड़ा बलवान हवे जी| सुख दुख के पहिचान हवे जी||

कदर करे जे मान कमाये| समय गवायें वो पछताये||45


*ह*

हँसी खुशी धर जिनगी जीना| चमके श्रम के माथ पसीना||

हीन भाव तज आगू बढ़ना| नव विकास के सिढ़ही गढ़ना||46


*क्ष*

क्षमा प्रेम ज्ञानी के गहना| दूर द्वेष कुंठा ले रहना||

समरसता के पाठ पढ़ावय| भला करे जग पाँव बढ़ावय||47


*त्र*

त्रास मिटे सतनाम जपन मा| फूल खिले सुख हिया चमन मा||

गा लौ संतो सतगुरु महिमा| जेन बढ़ावय जग जन गरिमा||48


*ज्ञ*

ज्ञान कभू नइ बिरथा जावय| मान सदा वो जग मा पावय||

धीर विवेक रखे ये मनखे| सच ला जाने सच ला परखे||49


*ढ़*

ढूँढ़ फिरे मन अंदर बाहिर| सत के महिमा जग हे जाहिर||

सत मा धरती खड़े अकासा| बात कहे गुरु घासीदासा||50


*ड़*

हाड़ मांस के देह बने हे| छुआछूत धर लोग सने हे||

खून अलग नइ बहे शरीरा| एक सबो के सुख अउ पीरा||51


*श्र*

श्रवण करौ सतगुरु के बानी| सँवर जही मानुष जिनगानी||

धर चलिहौ बावन उपदेशा| मिट जाही संतो सब क्लेशा||52


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

मो.नं.- 8889747888

*नोट:- सर्वाधिकार सुरक्षित*

7 comments:

  1. बहुत सुंदर, बधाई भैया जी

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  2. बहुत सुन्दर सर जी । जय बाबा की

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  3. अनमोल रचना सर

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  4. अद्भुत चौपाई जय सतनाम

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  5. लाजवाब गुरूदेव धरोहर बनगे कालजयी रचना बर बधाई

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  6. बहुत सुंदर सर

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