राष्ट्रीय किसान दिवस विशेष
सवैया (किसान)
(1)
खूब कमाय किसान सबो पर हासिल तो पीरा बस आथे।
बादर हा बरसै नइ जी बरसै जब वो बिक्टे बरसाथे।
जाय सुखाय बिना जल के सह या बरसा ले वो सर जाथे।
मौसम ठीक रहै त कभू चट कीट पतंगा हा कर जाथे।
(2)
छूटय गा नइ संग कभू करजा रइथे मूड़ी लदकाये।
ले उँन पावयँ तो नइ जी चिरहा पटकू ले काम चलाये।
लाँघन गा रहि जाय घलो उँन भाग म बासी पेज लिखाये।
पालनहार कहाँय भले उँन रोज गरीबी भोग पहाये।
- मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन (सिमगा )
जिला बलौदाबाजार भाटापारा
छत्तीसगढ़ 493101
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सरसी छन्द
छलत रही दुनिया मा कब तक, संगी मोर किसान।
नाम बड़े अउ दर्शन छोटे, भुइँया के भगवान।।
करके लागा बोड़ी बपुरा, करथे खेती काम।
तरस एक दाना बर जाथे, अनदाता बस नाम।।
बीज भात अउ खातू महँगा, धरे मूड़ ला रोय।
बेमौसम बरसा के सेती, नास फसल मन होय।।
होवय बरसा चाहे गरमी, लागय चाहे जाड़।
रोज कमाना काम इँखर हे, टूटत ले जी हाड़।।
भूखे प्यासे कई दिनन ले, बपुरामन सह जाय।
साथ देय जब ठगिया मौसम, तब दाना कुछ पाय।।
बिचौलियामन नजर गड़ाये, रहिथे रस्ता रोक।
औने पौने भाव म लेके, उनमन बेचय थोक।।
हे किसान मन के सेती जी, फलत फुलत व्यापार।
अँधरा बहरा देख बने हे, तब्भो ले सरकार।।
लदे पाँव सिर ऊपर कर्जा, बनके गड़थे शूल।
अइसन मा का करही बपुरा, जाथे फाँसी झूल।।
सुख सुविधा हा सदा इँखर ले, रहिथे कोसों दूर।
भूख गरीबी लाचारी मा, जीये बर मजबूर।।
करव भरोसा झन कखरो तुम, बनव अपन खुद ढ़ाल।
अपन हाथ मा जगन्नाथ हे, तभे सुधरही हाल।।
ज्ञानु
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*भुइयाँ के भगवान - हरिगीतिका छंद*
भुइयाँ बिराजे देख लौ,करथे किसानी काम ला।
एला कथे भगवान जी,सहिथे अबड़ जे घाम ला।।
बरसा रहै सर्दी रहै,बड़ भोंभरा रख पाँव ला।
बड़ काम करथे रात दिन,नइ खोजथे सुख छाँव ला।।
चिखला मताके खेत मा,अन सोन कस उपजात हे।
बासी पसइया नून ला,धर खार मा वो खात हे।।
ट्रेक्टर तको आगे तभो,बइला कमावै साथ मा।
कतको मशीनी छोड़ के,नाँगर चलावै हाथ मा।।
छत्तीसगढ़ भुइयाँ हमर,सोना कटोरा धान के।
कर लौ इँखर सम्मान ला,भगवान इन ला जान के।।
सब पेट भर खावत हवौ,इँखरे भरोसा प्रान हे।
दुख दर्द ला समझौ सबो,जग मा तभे तो मान हे।।
रचना:-
बोधन राम निषादराज
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किसान दिवस मा मोर रचना
सार छंद
तुँहर पसीना के कीमत ला ,कोनो नइ पहिचानै।
हे किसान हो तुँहर दरद ला ,धरती दाई जानै।
साँझ बिहनिया एक बरोबर, घाम जाड़ हे संगी।
जग के थारी अन्न भरत हव, तुँहरे घर मा तंगी।।
सुरुज देव ले पहली निशदिन ,तुँहर करम हा जागे।
हाथ पाँव के सुमत देख के, आलस दुरिहा भागे।।
बादर अउ आँखी के पानी ,जइसे बदे मितानी।
रहय नमक गुड़ एक तराजू, बीच झुलय जिनगानी।।
नांगर बइला रापा गैंती, हावय तुँहर चिन्हारी।
मिहनत हा जब संग रहय तब, हाँसय खेती बारी।।
लोहा के जुग जब ले आये, माटी बनथे सोना।
अब मशीन मन बइठे हावँय, जग के कोना कोना।।
ट्रेक्टर थ्रेसर हार्वेस्टर सब , मिलके करँय किसानी।
उन्नत खेती पोठ बीज मन, सुघ्घर लिखंय कहानी।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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धान लुवाई- सार छंद
पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।
भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।
चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।
काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।
चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।
चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।
भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।
लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।
बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी भरे कटोरी।
बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।
हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।
अमली बोइर हवै मेड़ मा, खावत हें सब टोरी।
बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड़ मा छोरी।
लाख लाखड़ी जामत हावय, घटकत हवै चनोरी।
आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।
ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।
महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।
लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
किसान दिवस के अवसर मा अब्बड़ सुग्घर छंद सृजन
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