बरसात (गीतिका छ्न्द)
घन घटा घनघोर धरके, बूँद बड़ बरसात हे।
नाच के गाके मँयूरा, नीर ला परघात हे।
खेत पानी पी अघागे, काम के हे शुभ लगन।
दिन किसानी के हबरगे, कहि कमैया हें मगन।।
ढोंड़िहा धमना हा भागे, ए मुड़ा ले ओ मुड़ा।
साँप बिच्छू बड़ दिखत हे, डर हवैं चारो मुड़ा।
बड़ चमकथे बड़ गरजथे, देख ले आगास ला।
धर तभो नाँगर किसनहा, खेत बोंथे आस ला।
घूमथे बड़ गोल लइका, नाचथें बौछार मा।
हाथ मा चिखला उठाके, पार बाँधे धार मा।
जब गिरे पानी रदारद, नइ सुनें तब बात ला।
नाच गाके दिन बिताथें, देख के बरसात ला।
लोग लइका जब सनावैं, धोयँ तब ऍड़ी गजब।
नाँदिया बइला चलावैं, चढ़ मचें गेड़ी गजब।
छड़ गड़उला खेल खेलैं, छोड़ गिल्ली भाँवरा।
लीम आमा बर लगावैं, अउ लगावैं आँवरा।।
ताल डबरी भीतरी ले, बोलथे टर मेचका।
ढेंखरा उप्पर मा चढ़के, डोलथे बड़ टेटका।
खोंधरा झाला उझरगे, का करे अब मेकरा।
टाँग के डाढ़ा चलत हें, चाब देथें केकरा।।
पार मा मछरी चढ़े तब, खाय बिनबिन कोकड़ा।
रात दिन खेलैं गरी मिल, छोकरा अउ डोकरा।
जब करे झक्कर झड़ी, सब खाय होरा भूँज के।
पाँख खग बड़ फड़फड़ाये, मन लुभाये गूँज के।।
खेत मा डँटगे कमैया, छोड़ के घर खोर ला।
लोर गेहे बउग बत्तर, देख के अंजोर ला।
फुरफुँदी फाँफा उड़े बड़, अउ उड़ें चमगेदरी।
सब कहैं कर जोर के घन, झन सताबे ए दरी।
होय परसानी गजब जब, रझरझा पानी गिरे।
काखरो घर ओदरे ता, काखरो छानी गिरे।
सज धरा सब ला लुभावै, रूप हरिहर रंग मा।
गीत गावै नित कमैया, काम बूता संग मा।
ओढ़ना कपड़ा महकथे, नइ सुखय बरसात मा।
झूमथें भिनभिन अबड़, माछी मछड़ दिन रात मा।
मतलहा पानी रथे, बोरिंग कुवाँ नद ताल के।
जर घरो घर मा हबरथे, ये समै हर साल के।
चूंहथे छानी अबड़, माते रथे घर सीड़ मा।
जोड़ के मूड़ी पुछी कीरा, चलैं सब भीड़ मा।
देख के कीरा कई, बड़ घिनघिनासी लागथे।
नींद घुघवा के परे नइ, रात भर नित जागथे।
नीर मोती के असन, घन रोज बरसाते हवे।
मन हरेली तीज पोरा, मा मगन माते हवे।
धान कोदो जोंधरी, कपसा तिली हे खेत मा।
लहलहावै पा पवन, छप जाय फोटू चेत मा।
बूँद तक बरसै नही, कतको बछर आसाढ़ मा।
ता कभू घर खेत पुलिया, तक बहे बड़ बाढ़ मा।
बाढ़ अउ सूखा पड़े ता, झट मरे मन आस हा।
चाल के पानी गिरे तब, भाय मन चौमास हा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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