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Monday, July 17, 2023

लोक परब हरेली विशेष छंदबद्ध कविता




 लोक परब हरेली विशेष छंदबद्ध कविता

 प्यारेलाल साहू मसौद: *छप्पय छंद*


*हरेली*


सुग्घर हवय तिहार, हरेली हमन मनाबों ।

नाँगर बक्खर आज, माँज धो भोग लगाबों।।

होथे गेंड़ी दउड़  खुशी मा लइका झूमें।

मच मच गेंड़ी भाग, गाँव मा वोमन घूमें।।

सुग्घर खेती खार हे, जम्मो मगन किसान हे।

बरसा बरसे पोठ अउ, हरियर-हरियर धान हे।।


*छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई, जोहार, जय छत्तीसगढ़*


*प्यारेलाल साहू*


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 सार छन्द  ।।परब हरेली।।


आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।

परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।


सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।

गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।


बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।

बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।


धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।

नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।


नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।

बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।


लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।

दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।


- गुमान प्रसाद साहू 

ग्राम-समोदा (महानदी),रायपुर, छत्तीसगढ़

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: छन्न पकैया छन्न पकैया, पहुना मन के डेरा।

राखी-तीज-हरेली आगे, चउमास के बेरा।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जेखर काम किसानी।

चूहय खपरा तभो ले माँगय, झम झम झम झम पानी।।


शुभ हरेली तिहार

जय जोहार


शुचि 'भवि'

भिलाई, छत्तीसगढ़

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: हरेली तिहार

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(छन्न पकैया)


छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन हे मनभावन ।

भोले बाबा के पूजा सँग ,मनै हरेली पावन।।


 छन्न पकैया छन्न पकैया, गरवा लोंदी खाथे।

 अंडी पाना नून बँधाये, राउत बने खवाथे।।


 छन्न पकैया छन्न पकैया ,नइ तो धरय बिमारी ।

हे दशमूल दवाई बढ़िया ,खावव सब सँगवारी।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया , चाउँर देवय मइया।

  सिंग दुवारी लीम डार ला,  खोंचय राउत भइया।।


 छन्न पकैया छन्न पकैया , कारीगर हा आथे।

 खीला ठोंक बाँध के घर ला, मान गउन ला पाथे।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया, घर घर पूजा होथे।

  नागर जूड़ा वाहन बक्खर, ला किसान हा धोथे।।


 छन्न पकैया छन्न पकैया , मनय तिहार हरेली।

  भाँठा मा जब खो खो मातय,खेलयँ सबो सहेली।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया, खुड़वा हा मन भाथे।

   फेंकत नरियर बेला भरके, कोनो दाँव लगाथे।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया, बोरा दउँड़ त्रिटंगी।

 नौजवान मन डोर इचौला ,खेलयँ जमके संगी।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया , खेल जमाये पासा।

  सकलायें सब गुड़ी सियनहाँ, नइये कहूँ हतासा।।


 छन्न पकैया छन्न पकैया, रच रच बाजै गेंड़ी।

नँगत मचयँ जब लइका मन जी,उठा उठा के ऍड़ी।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया , गेंड़ी महिमा भारी।

 द्वापर युग मा पांडव मन हा, चढ़े रहिंन सँगवारी।।


  छन्न पकैया छन्न पकैया, हे रिवाज जी सुग्घर।

 हँसी-खुशी सब मना हरेली, चीला खाबो मनभर।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 कुण्डलिया छंद- हरेली तिहार


सावन महिना के परब, हरय हरेली नाँव।

सजे गाँव घर द्वार हे, संग पिरित ले छाँव।।

संग पिरित ले छाँव, सजे हे बइला नाँगर।

कुलके आज किसान, खुशी मा झूमे जाँगर।।

लइका गेड़ी खाप, मचे हे बड़ मन भावन।

खुशी धरे सौगात, आय हे महिना सावन।।


बनथे खुरमी ठेठरी, घर-घर मा पकवान।

लोंदी धरे किसान हा, जाथे जी दइहान।।

जाथे जी दइहान, साज के पूजा थाली।

करके पूजा पाठ, मनाथे सब हरियाली।।

लोंदी पान खम्हार, नून आटा मा सनथे।

खाथे गरुवा गाय, निरोगी तब वो बनथे।।


गेड़ी रिचपिच बाजथे, गाँव गली घर खोर।

शहर बसे हँव आज ता, ललचाथे मन मोर।।

ललचाथे मन मोर, मनाये परब हरेली।

खुडुवा नरियर फेंक, चले हे रेलम पेली।।

गजानंद चल गाँव, उठा के ऊँचा एड़ी।

मिलके संगी साथ, आज चढ़बो जी गेड़ी।।


✍️ इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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हरेली तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई


खड़े दुवारी परब हरेली, कुलकत हाँसत हे।

दया मया के रँगे रंग मा, सब ला फाँसत हे।।


हूम धूप ला देव ठउँर मा, बइगा देवत हे।

आज गाय गरुवा मन सुग्घर, लोंदी जेवत हे।।


राँपा गैती धोके हँसिया, राखत नाँगर हे।

हमर मितानी संग किसानी, अपने जाँगर हे।।


हरियर हरियर धनहा डोली, बड़ इतरावत हे।

नेवरिया जस लागत हावय, बहू लजावत हे।।


गेड़ी सजके गली खोर मा, बाजत रिचरिच हे।

रीति-रिवाज कहाँ गय संगी, अब सब रिचपिच हे।।


छाती ठोक सियान कहै सब, सबले हन बढ़िया।

भूलत जावत हन अब संस्कृति, हम छत्तीसगढ़िया।।


ज्ञानु

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हरेली (कुंडलिया)

हवय हरेली आज जी, पबरित हमर तिहार।

नाँगर जुड़ा धोवात हे, सँग खेती औजार।

सँग खेती औजार, पूजके चीला जेंवाबो।

खाही लोंदी गाय, दवा ला घलो पियाबो।

चढ़बो गेंड़ी खूब, मजा आही बरपेली।

हमर गरब अभिमान, आज जी हवय हरेली।

- मनीराम साहू 'मितान'

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*कुंडलियां*


पाके बरखा के मया,धरती हा हरियाय।

परब हरेली आय हे,सब झन खुशी मनाय।।

सब झन खुशी मनाय,खोंचथे निमुवा डारा।

चीला बरा खवाय,नेवता झारा झारा।।

नाँगर बक्खर धोय,पूजथें माथ नवाँके।

जीवन हरा बनाय,संग हरियर के पाके।।


                  नारायण वर्मा बेमेतरा

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: *हरेली*


आए सावन मा अमावस, हे हरेली आज जी । 

पूज रापा खेत गैती,धोय लेऔजार जी। 

आज राँधें खीर चीला, खाए सब परसाद जी। 

लीमा ड़ारा खोंच देथे, ड़ार हरियर आज जी। 


मानथें पहिली तिहारे, झूम नाचे जोस मा। 

बाँस फाड़े बाँध खपची, बाँध गेड़ी गोड़ मा। 

गाँव घूमें लोग लइका, मानथें ब्योहार जी। 

रीति माने गाँव भर मा, आय हे त्यौहार जी। 


खेत बाढ़य धान बाढ़य, आस मन मा जागथे। 

ओढ़ हरियर रंग लुगरा, धान पाना झूम थे। 

देख गेड़ी खेल खेलन,कोन कइसे हारही देख लेथन कौन संगी, आज बाजी मारही। 


डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग.

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 दिलीप वर्मा सर: हरेली 


सरग बरोबर लागत हावय, चढ़े हवँव जब गेड़ी। 

नरक बरोबर ये चिखला ले, बाँच जवत हे एड़ी। 


मुड़ी टांग डँगडँग ले रेंगँव, ऊँट बरोबर धावँव। 

तीन पाँव भुइयाँ जस नापिस, वामन पाँव बढ़ावँव। 


कीट पतंगा जइसन लागय, बघुवा भलुवा हाथी। 

मोर उचाई के टक्कर मा, सिरिफ हिमालय साथी। 


नदिया मन हर नाली लागय, झील दिखे जस डबरी। 

गाँव शहर छिटही लुगरा के, चिनहा कबरी-कबरी। 


बादर मोरो मुँह धोवत हे, बिजुरी मांग सँवारे। 

बजा-बजा के ढोल नगाड़ा, ठाढ़े देव निहारे। 


रचरिच रइया रचरिच रइया, गेड़ी ताल मिलावय। 

आज हरेली के अवसर मा, मजा गजब के आवय।

दिपील कुमार वर्मा 

बलौदा बाजार

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* (विष्णु पद छंद गीत)

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हरियाली के गीत सुनावय, बड़ मनभावन जी।

परब हरेली आए हावय, गजब सुहावन जी।।

हाँसी खुशी मया बगरावय, हर घर आँगन जी।

परब हरेली आए हावय, गजब सुहावन जी।।

हरियर हरियर रुख राई मन, हरियर हे धरती।

धान लगे सब खेत हवय अब, नइ कोनो परती।।

सब किसान के मन हुलसावय, ए रितु सावन जी।

परब हरेली----

मच मच गेड़ी चढ़ लइका मन, गिंजरय खोर गली।

गगन मगन बरसावय पानी, चमकावय बिजली।।

बादर माँदर अबड़ बजावय, झूमँय जन जन जी।

परब हरेली----

लोंदी खवा किसान देत हें, आदर पशुधन ला।

खेती के औजार पूजना, भावय हर मन ला।।

गुरहा चीला सब झन खावँय, हवँय मगन मन जी ।

परब हरेली------

लीम डार खोंचय ग्वाला मन, द्वार सबो घर के।

दय असीस लोहार घरो घर, खीला ला थर के।।

आल्हा अउ रामायन गावँय, गुड़ी म भगतन जी।

परब हरेली-----


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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 कुंडलिया छंद 


सावन आगे बोलबम, होवत हे जयकार।

काँवरिया पैदल चले,शिव शंकर के द्वार।

शिव शंकर के द्वार,लगावत सब जयकारे।

दर्शन दे दव नाथ,आय हन तोरे द्वारे।

ले गंगा जल धार,धरे काँवर मा पावन।

पतिया बेल चढ़ाय ,झमाझम बरसत सावन।।


आगे सावन सँग मा,ले पहिली त्योहार। 

नाँगर बइला धो बने,रापा कुदरी धार।

रापा कुदरी धार, बने माटी ला धोले।

आथे खेती काम, बबा मिठ बानी बोले।

चीला गुरहा भोग,सबो ला गुरतुर लागे।

गेंड़ी बाजे आज,देख लइकन सब आगे।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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: हरेली  तिहार 


सरसी छन्द


पहिली परब हरेली आये, होवय अब्बड़ मान। 

छत्तीसगढ़ के गाँव - शहर मा, गावैं बड़ गुणगान। 


खेती थामे हे दुनिया ला, जग के भरथे पेट। 

बाहिर के मन इही खेत ले, भरें अपन पाकेट। 


ये आवय मिहनत के पूजा, करथें सबो किसान। 

नांगर बख्खर हँसिया रापा , श्रम के हे पहिचान।। 


मौसम के बदले ले होवय,किसम - किसम के रोग। 

ये बचाव बर करथें सब झन, जनहित सुघर प्रयोग।। 


लोंदी दवा जड़ी बूटी मन, करथें रोग बचाय। 

गाय - गरू मन बर हितकारी, लोगन तभे खवाँय।। 


नीम डार के महिमा भारी, कीरा भागे दूर। 

एखर भीतर छुपे हवय जी, मरम - करम भरपूर।। 


चुरे बरा सोंहारी चीला, ममहावय घर द्वार। 

खुशी छाय हे चारों कोती, कुलकत हे परिवार।। 


हरियर हरियर ओर छोर तक, धरती के सिंगार। 

दया - मया से भरे हवय जी, बादर के व्यवहार।। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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: विष्णुपद छंद -"आय हरेली"


आए जबर हरेली हावय, पहिली तिहार हे।

हरियर हरियर होगे हावय, सब खेत खार हे।।


बोनी बतर धान के करके, गदगद किसान हे।

खेती के औजारन मन के, पूजा  निसान  हे।।


कुधरी आरूग लान के जी,  रखथे नांगर ला।

पूजा करथे सबो किसनहा, अउ पबरित घर ला।।


राउत जाथे बस्ती घर घर, धर लीम डार ला।

राहय खुशहाली मालिक अब, झोंक जोहार ला।।


होथे खुश चारों पौनी मन, संगी किसान के।

नांगर  लोहा  चरवाहा के, हे  भाग धान के।।


सकला के गाँव गली भर के, चले मैदान मा।

खो खो खेल कबड्डी खेले, नवा परिधान मा।।


हावय अइसन हमर हरेली, बड़ उड़े सोर हे।

जुरमिल  रहिथें  संगी बाँधे, ये मया डोर हे।।


द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुन्द छत्तीसगढ़

छंद कक्षा -15

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 छप्पय छन्द

विषय - हरेली


पहिली आय तिहार, खुशी के परब हरेली।

हरियर खेती खार, पवन करथे अठखेली।।

महके अँगना खोर, घरो घर बनथे चीला।

करथे पूजा पाठ, बिहनिया माई पीला।।

खोंचे डारा लीम के, बैगा हा घर द्वार मा।

कुलके सबो किसान मन, पावन हमर तिहार मा।।


अनिता चन्द्राकर

भिलाई नगर

छन्द कक्षा 18

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परब हरेली आज, फोर ही भेला नरियर।

लहरावय बड़ धान, खेत मा हरियर हरियर।।

बइला नांँगर धोय, खूब बरसे हे सावन।  

कल-कल बोहय धार, देख लागे मनभावन।। 


फुगड़ी नरियर फेंक, दौड़ गेड़ी चढ़ करथें।

मया दया के भाव, लोग हिरदे मा  धरथें।।

छत्तीसगढ़ी लोग, पूजथें माटी पानी। 

देय फसल भरपूर, हमर ऐ धरती धानी।।



रामकली कारे

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इंद्राणी साहू: *"हरेली तिहार"*        

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खुशहाली ले संग मा, परब हरेली आय हे।

बुता किसानी के करत, सावन हा अधियाय हे।।


झुमरत हे छत्तीसगढ़, पहिली अपन तिहार मा।

सुघर बँधागे झूलना, अमरैया के डार मा।

हरियर-हरियर खेत मा, खुशहाली बड़ छाय हे।

खुशहाली ले संग मा, परब हरेली आय हे।।


बोवागे अब बीजहा, धोवागे औजार सब।

नाँगर ला घर लान के, पूजत हें परिवार सब।

सम्मत दे कुलदेवता, आसा इही लगाय हे।

खुशहाली ले संग मा, परब हरेली आय हे।।


गरुवा ला लोंदी खवा, हवय पहटिया हा मगन।

बीमारी सब भागही, इही सोच होवय जतन।

जुरमिल खेलँय खेल सब, गेड़ी घलो खपाय हे।

खुशहाली ले संग मा, परब हरेली आय हे।।


राखव संस्कृति ला सँजो, खेलव जुन्ना खेल ला।

बाँटी-भौरा संग मा, खो-खो फुगड़ी मेल ला।

पिट्ठुल नरियर फेंक के, सुरता घलो लमाय हे।

खुशहाली ले संग मा, परब हरेली आय हे।।


पेड़ लगालव एक ठन, पाहू जुड़हा छाँव ला।

मनमानी ला छोड़ दव, रखव सँजो के गाँव ला।

परब हरेली हा सुनव, ये संदेसा लाय हे।

खुशहाली ले संग मा, परब हरेली आय हे।।


      *इन्द्राणी साहू "साँची"*

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*आल्हा छंद*


आगे हवय हरेली देखौ, कतका बड़का हमर तिहार।

नाँगर गैती राँपा धोके, पूजा करबो घर परिवार।



धूप आरती चंदन रोली, माथ नवाबो देके मान।

गुरहा चीला काँची नरियर,अउ भोग चघाबो कर ध्यान।


नीम डरा अउ अंडा पाना, राउत खोंचय सब घर द्वार।

दय असीस वो सुपली भर -भर,मन ले कहिथे सुख के सार।


बरसत पानी ले बड़ कुलकय, रिमझिम-रिमझिम गिरय फुहार।

खोर गली मा चिखला मातै,कभू करै नइ दुख गोहार।



बतर मिलय बोये के अइसन, मिहनत करथे अबड किसान।

अन्न उगावय वो सुख लावै, खिल जाथे सबके मुसकान।


लइकन मन गेडी़ ला चघके,नरियर फेंकन खेलय खेल।

रुच -रुच गेडी़ मचकय सुघ्घर, नरियर ला कइसन दय ठेल।



*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️

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 सरसी छंद 

विषय - हरेली तिहार


परब हरेली मन ला भाथे, लहुटाथे मुस्कान।

बड़ सुग्घर आनंद उठाथें, लइकालोग सियान।।

चौमासा के सावन के हे, ये दिन अब्बड़ खास।

हमर किसनहा भाई मन ला, खच्चित आथे रास।।


गाय-बैल औजारन मन के, पूजा होथे आज।

परब हरेली लोगन मन के, मन मा करथे राज।।

लइका मन हा गेंड़ी चढ़थें, मस्ती करथें घात।

खेलत-खेलत दोपहरी तक, ओ मन जाथें मात।।


वरुण देव के कृपा बरसथे, भरथें डोली-खार।

बरसा ले हरियाथे भुइँया, आथे तभे तिहार।।

जीव-जंतु ले मया बढ़ावव, सुख के करव निवेश।

पर्यावरण बचाये राखव, सावन के संदेश।।


ग्राम देवता के सुमिरन ले, बनथे सुख के योग।

खुशहाली घर-घर मा आथे, भूख मरय नइ लोग।।

हमर सनातन परंपरा ला, कइसे देन भुलान।

परब हरेली ला जुरमिल के, आवव बने मनान।।


छंदकार:- श्लेष चन्द्राकर

पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद(छ.ग.)

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पोखनलाल जायसवाल: सरसी छंद म गीत के प्रयास



गेंड़ी चढ़के आय हरेली, पहुना सहीं दुआर।

धरे आरती हर्षत मन ले, आव करिन जोहार।


बइगा बबा उदिम बड़ करथे, गाँव रहय खुशहाल।

लगे नजर झन कखरो कहिके, मारय मंतर-जाल।

सुख सनात के दाबय पाती, चौखट मा लोहार।

धरे आरती हर्षत .....


मन ले बाँटत सुख-हरियाली, घर-घर खोंचय डार।

गाय-गरू ला झन तो ब्यापै, खुरहा-चपका मार।

राउत कका खवाये लोंदी, बनके पालनहार।

धरे आरती हर्षत.....


नाँगर-बक्खर सबो भुलागें, धर बिकास के मूँठ।

चारों डहर दिखत हावय अब, मेड़ पार हा ठूँठ। 

हरियाली बर तरसत भुइँया, सुनलन आज पुकार।।

धरे आरती हर्षत .....


मन हरियर हे तन हरियर हे, मन हावय कुछ आन।

लगे तोर बिन जोही अब तो, अँगना सरी बिरान।

नैना जोहत हावय आजा, आये हवय तिहार।

धरे आरती हर्षत.....


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

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💐💐💐💐💐💐💐रचनाकार पद्मा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ (के. सी. जी.) छत्तीसगढ़ 

 

           *हरेली तिहार*

            ( चौपाई छंद )


गैंती रापा हँसिया नांगर| धरे हवँय जी नौकर चाकर||

हरदी चंदन धरके थारी| देखव गेड़ी संग कुदारी||


हूम धूप अउ दीया बारे| इनकर जम्मों आरती उतारे||

राउत घूमैं आरा-पारा| घर-घर खोचथें नीम डारा||


लोंदी गहुँ पिसान के धरके |लोटा मा पानी ला भरके||

गउ माता ला आज खवाथें | संग हरेली परब मनाथें ||


दाई राँधय बरा सुहारी| लइका खावय भर-भर थारी||

भजिया अउ कड़ही ला धड़कय| ओला देखत भौजी भड़कय ||


बहिनी दाई संझा बेरा| इक दूसर के करत अगोरा ||

खेले खेल कबड्डी खो-खो| अउ खेले सब फुगड़ी देखो||


पहिली परब छत्तीसगढ़ के| खेलो गेड़ी सब बढ़-चढ़के ||

मया पिरित के धान उगाबों| आज हरेली परब मनाबों||


संग बइठ के आज थिराबो | सुख-दुख ला सबों गोठियाबो||

आवव सब हमर दुवारी मा | मया पिरित के फुलवारी मा||


पद्मा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

कुण्डलिया छंद

हरियर लुगरा ला पहिर, धरती करे सिंगार। 

परब हरेली आय हे, झूमें खेती-खार।। 

झूमें खेती-खार, छाय हे बड़   खुशहाली। 

नजर जिहाँ तक जाय, सबो कोती हरियाली। 

बइगा बाँधय गाँव, चढ़ावय भेला नरियर। 

रोग कभू झन आय, रहय सब हरियर-हरियर।।

विजेन्द्र वर्मा 

 नगरगाँव (धरसीवाँ)

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*हरेली परब (सरसी छंद)*


छत्तीसगढ़ी परब हरेली, 

                       पहिली इही तिहार ।

आवौ जुरमिल संग मनाबो,

                        लेलव जी जोहार ॥


लिपे-पुते भिथिया हे सुग्घर, 

                         सवनाही पहिचान।

नाँगर बख्खर धोये माँजे, 

                      हमरो देख किसान।।

खेत खार हरियाली सोहय, 

                          धरती के सिंगार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली............


रच-रच-रच-रच गेड़ी बाजै,

                       मन मा खुशी समाय।

गाँव-गली मा रेंगय लइका, 

                          पारा मा जुरियाय ॥

अइसन खुशहाली के बेरा, 

                              होवत हे गोहार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली.............


डंडा अउ पचरंगा खेलय, 

                           फुगड़ी के हे जोर।

खो-खो रेस,कबड्‌डी खेलत,

                        उड़त हवै जी सोर।।

मया प्रेम मा जम्मों बूड़े, 

                            बरसत हावै धार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली..............


होय बियासी हरियर धनहा, 

                            सुग्घर खेती खार।

मोर किसनहा भइया देखव,

                         खुश होवै बनिहार।।

सावन महिना रिमझिम रिमझिम,

                            बुँदियाँ परे फुहार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली.............


छंद सृजनकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

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*हरेली तिहार*


बड़े बिहनिया सूरज जागे। काम काज जम्मो सकलागे।।

खेत खार मनखे हर भागे। परब हरेली संगी आगे।।

नांगर बक्खर रापा गैती। धोये माँजे झटकुन चैती।।

रगड़ रगड़ बइला नउहाये। चंदन बंदन माथ सजाये।।


रदरद रदरद बरसे पानी। लइका लोग करय मनमानी।।

भरे लबालब नदिया तरिया। परे रिहिस जी जेहर परिया।।

दाई चीला मीठ बनाये। गुड़ के चीला भोग लगाये।।

गोल बनाये भइया लोंदी। देखत राहय बइठे कोंदी।।


फूल दूध अउ लोंदी गोला। धर के जाये झटकुन भोला।।

माई लोगिन सब सकलाये। नाग देव ला दूध पियाये।।

हे भगवन रक्षा तै करबे। दुख पीरा ला सब के हरबे।।

खेत खार मा डोलय पाना। तब मनखे ला मिलही दाना।।


रच रच रच रच चढ़हे गेड़ी। टांँग टांँग के राखय एड़ी।।

खो खो फुगड़ी दौड़ लगाये। लइका लोगन सब सकलाये।।

खोंचय भोंदू निमुआ डारा। धर के झोला घूमय पारा।।

कन्द मूल ला घर घर बांँटे। बीमारी ला ओहर काटे।।


बैगा मन हर भूत भगावै। मनखे मन ला अबड़ डरावै।।

अंँधविश्वासी संगी छोड़ो। नाथ शिवा से नाता जोड़ो।।

हमर गाँव के सुघर हरेली। नाचय गावय सखी सहेली।।

साथ रहे के इही निशानी। परब हरेली हवै कहानी।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"

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संसो किसान के-छंद त्रिभंगी


तन मन नइ हरियर, बन नइ हरियर, काय हरेली मैं मानौं।

उना कुँवा तरिया, सुख्खा परिया, का खुमरी छत्ता तानौं।।

गाँवौं का कर्मा, बन अउ घर मा, भाग अपन सुख्खा जानौं।

मारौं का मंतर, अन्तस् गे जर, नीर कहाँ ले अब लानौं।।


खापौ का गेंड़ी, पग हे बेंड़ी, बोली मुँह नइ फूटत हे।

बिन होय बियासी, होगे फाँसी, प्राण धान के छूटत हे।।

का धीर धरौं अब, खुदे जरौं अब, आस जिया के टूटत हे।

बिन बरसे जाथे, टुहूँ दिखाते, घन बैरी सुख लूटत हे।।


आगी संसो के, भभके भारी, उलट पुलट मन चूरत हे।

आँखी पथरागे, चेत हरागे, बने सकल ना सूरत हे।।

आने कर सुख हे, मोरे दुख हे, पानी तक नइ पूरत हे।

काखर कर जावौं, कर फैलावौं, पथरा के सब मूरत हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

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2 comments:

  1. सुग्घर संग्रह

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  2. बहुत सुग्घर संकलन।
    जम्मो छंदकार मन ला बधाई अउ शुभकामना।

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