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Monday, July 3, 2023

गुरु पूर्णिमा विशेष छंदबद्ध कविता-


 



गुरु पूर्णिमा विशेष छंदबद्ध कविता-

 डी पी लहरे: बरवै छंद गीत

गुरु पुर्णिमा


गुरू  चरन  मा  पूजा,बारंबार।

होवय आरुग फुलवा,के बौछार।


गुरू बचन हावय जग,मा अनमोल।

गुरू ज्ञान के नइ हे,कोनो तोल।

सतगुरु महिमा हावय,अपरंमपार।

गुरू  चरन  मा  पूजा, बारंबार।।(१)


गुरू शिष्य ला मानय,जी संतान।

करौ गुरू के निसदिन,बड़ सम्मान।।

गुरू मिटावय घपटे,जग अँधियार।

गुरू  चरन  मा  पूजा, बारंबार।।(२)


गुरू नाँव ले बड़का,नइ हे नाँव।

गुरू चरण मा मिलथे,जुड़हा छाँव।।

गुरू ज्ञान के भरथे,जी भंडार।

गुरू  चरन  मा  पूजा, बारंबार।।(३)


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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मीता अग्रवाल: गुरु


गुरु के करथव वंदना,गुरु ज्ञान के खान। 

बिन गुरु ज्ञान मिलय नही, मिलय नही सम्मान।। 


गुरु बानी अनमाेल हे,अंतस ले दे ध्यान। 

आस अउ विश्वास भरय,पंथ बनय आसान।। 


गुरु अइसन दीपक हवय,जर-जर करय प्रकाश। 

ज्ञान ध्यान कौशल भरय, जिनगी के आकाश।। 


जिहांँ-जिहांँ ले सीख मिलय,तँउने ला गुरु मान। 

जीव सबों मा गुरु लुके, अंतस ले पहिचान।। 


ज्ञान दीप बाती बरय, गुरु करथें उपकार। 

जगमग-जगमग जोत हे,महिमा अगम अपार।। 


गुरु दीपक अइसन बरय, जोत जरय निज ज्ञान। 

माटी ला आकार दे,गढ़य मान पहिचान।। 


*छंद रचनाकार*

*डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

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 आशा देशमुख: गुरु चालीसा


दोहा


करत हवँव गुरु वंदना, चरणन माथ नँवाय ।।

भाव भक्ति मन मा धरे , श्रद्धा फूल चढ़ाय।।


सदा रहय गुरु के कृपा,अतकी विनती मोर।

अंतस रहय अँजोर अउ,भागे अवगुण चोर।।


चौपाई 


गुरु ब्रह्मा अउ विष्णु महेशा। गुरु हे पहिली पूर्ण अशेषा।।

बरन बरन हे गुरु के वंदन।आखर आखर बनथे चंदन।।


 गुरु ला जानव सुरुज समाना।  गुरु आवय जी ज्ञान खजाना।।

गुरु जइसे नइहे उपकारी।गुरु के महिमा सब ले भारी।।



गुरु सउँहत भगवान कहाये। गुण अवगुण के भेद बताये।।

सात समुंदर बनही स्याही।गुरु गुण बर कमती पड़ जाही।।


गुरु के बल ला ईश्वर  जाने। तीन लोक  महिमा पहिचाने।।

गुरुवर सुरुज तमस हर लेथे। उजियारा जग मा भर देथे।।


जब जब छायअमावस कारी। गुरु पूनम  लावय उजियारी।।

गुरु पूनम के अबड़ बधाई।माथ नँवा लव बहिनी भाई।।



शिष्य विवेकानंद कहाये।परमहंस के मान बढ़ाये।।

द्रोण शिष्य हें पांडव कौरव ।अर्जुन बनगे गुरु के गौरव।।


त्याग तपस्या मिहनत पूजा।गुरु ले बढ़के नइहे दूजा।।

वेद ग्रंथ हे गुरु के बानी।पंडित मुल्ला ग्रंथी ज्ञानी।।


ज्ञान खजाना जेन लुटाए।जतका बाँटय बाढ़त जाए।।

गुरु के वचन परम हितकारी।मिट जाथे मन के बीमारी।।


जेखर बल मा हे इंद्रासन।बलि प्रहलाद करे हें शासन।।

ये जग गुरु बिन ज्ञान न पाये।गुरु गाथा हर युग हे गाये।।


सत्य पुरुष गुरु घासी बाबा। गुरु हे काशी गुरु हे काबा।।

 देवै ताल कबीरा साखी।

 उड़ जावय  मन भ्रम के पाखी।।


गुरु के जेन कृपा ला पाथे। पथरा तक पारस बन जाथे।।

माटी हा बन जावय गगरी। बूँद घलो हा लहुटय सगरी।।


महतारी पहली गुरु होथे । लइका ला संस्कार सिखोथे।।

देवय जे अँचरा के छइयाँ।दूसर हावय धरती मइयाँ।।



जाति धरम से ऊपर हावय।डूबत ला गुरु पार लगावय।।

आदि अनादिक अगम अनन्ता।जाप करयँ ऋषि मुनि अउ संता।।


गुरु के महिमा कतिक बखानौं।    ज्योति रूप के काया जानौं।।

बम्हरी तक बन जाथे चंदन। घेरी बेरी पउँरी वंदन।।


हाड़ माँस माटी के लोंदी।बानी पाके बोले कोंदी।।

पथरा के बदले हे सूरत। गढ़थे छिनी हथौड़ी  मूरत।।


भुइयाँ पानी पवन अकाशा।कण कण में विज्ञान प्रकाशा।।

समय घलो बड़ देथे शिक्षा।रतन मुकुट तक माँगे भिक्षा।।



अमर हवैं रैदास कबीरा। निर्गुण सगुण  बसावय मीरा।।

सातों सुर मन कंठ बिराजे। तानसेन के सुर धुन बाजे।।



कण कण मा गुरु तत्व समाये।सबो जिनिस कुछु बात सिखाये।।

गोठ करत हे सूपा चन्नी।कचरा ला छाने हे छन्नी।।



गुरु के दर हा सच्चा दर हे। मुड़ी कटाये नाम अमर हे।।

एकलव्य के दान अँगूठा। अइसन हे गुरु भक्ति अनूठा।।


श्रद्धा से गुरु पूजा करलव। ज्ञान बुद्धि से झोली भरलव।

जे निश्छल गुरु शरण म जावै।।अष्ट सिद्धि नवनिधि जस पावै।।



गुरु चालीसा जे पढ़े,ओखर जागे भाग।

दुख दारिद अज्ञानता ,ले लेथे बैराग।।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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: अरुण छंद~ गुरु वंदना


आन अब, शान सब, हमर अभिमान हें।

छंद  के, बंध  के, ग्यानी  महान  हें।।

संग दय, रंग दय, हाथ ला थाम के।

देव सम, हृदय नम, 'अरुण' गुरु नाम के।।


सियानी, सुजानी, 'दलित' कस पारखी।

जानलव, मानलव, जम्मों सखा सखी।।

शब्द के, गठरिया, बाँध  गुरु  ग्यान  दैं।

चइत  के,  चँदैनी, सहीं  लय  तान  दैं।।


टार भय, सीख दय, दोष ल सुधार के।

मीत कस, रोज दस, गलती बिसार के।।

ग्यान ला, ध्यान ला, होय खुश बाँट के।

जात  ला,  पात  ला, मेट  दय साँट के।।


काम  कर, नाम  कर, सुग्घर  बिचार दैं।

गोठ  ले, अपन  इन, पोठ  संस्कार  दैं।।

कर्म  कर, मर्म  धर,  इही  गुरु  मंत्र  हे।

बने लिख, तने दिख, सिरजन सुतंत्र हे।।


गाँव  घर, देश भर,  पुरातन  छंद  ला।

सिखोवत,पठोवत, 'अमित' आनंद ला।।

करज  हे, अरज  हे, गुरु  तोर  पाँव मा।

तम  घटे, दिन  कटे, छंद  के छाँव मा।।


कन्हैया साहू 'अमित'👏

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*मत्तगयंद सवैया - गुरु वंदना*


श्री गुरु वंदन पाँव पखारत साँझ-बिहान सदा गुण गावौं।

हे गुरुदेव कृपा बरसादव ये जग मा मँय नाम कमावौं।।

ज्ञान बिना अँधियार सबो तुँहरे बिन थाह कहाँ मँय पावौं।

राह दिखा सद् मारग के मँय ज्ञान अँजोर हिया बगरावौं।।


मातु-पिता गुरुदेव तहीं अँगरी धरके लिखना सिखवाए।

आखर-आखर जोरत-जोरत छंद सुजान तहींच बनाए।।

सोझ चलौं सद् मारग मा अइसे बढ़िया  गुरु ज्ञान बताए।

आज उतार सकौं करजा नइ, हे गुरुदेव कृपा बरसाए।।


पार करौं भवसागर ले पतवार धरौ गुरुदेव उबारौ।

ये जग भार सहौं कतका अब जीव बियाकुल आवव तारौ।।

कोन इहाँ रखवार हवै गुरुदेव सम्हालौ काज सँवारौ।

हे विनती गुरुजी सुनले गलती कछु होय हमार बिसारौ।।


*गुरुदेव जी को समर्पित*🙏🌹🙏

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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अशोक कुमार जायसवाल: *सबो गुरु देव मन ल पायलगी*

*गुरु पुर्णिमा के हार्दिक बधाई*

*दुर्मिल सवैया*


गुरु देव सुनौ हमरो विनती, अँधियार भगावव जोत जला |

अधिकार जमा बइठे तम हा, गड़थे चुक ले बन फाँस गला ||

जिनगी बिरथा बनगे जइसे, मति मूढ़ लगै बिन ज्ञान घला |

उजियार दिया जलवा सत के, चमके हिरदे बगराय कला ||


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

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 दुर्मिल सवैया 

गुरु वंदना 


गुरु के पग में नत मस्तक हो, 

शुभ ज्ञान- सु-ज्योति जगावत हैं। 

शत ज्योतित दीप जला मन से, 

अभिमान अधर्म नशावत हैं। 

नित पूजन अक्षत भाव भरे, 

जल चंदन अर्घ चढ़ावत हैं। 

मन हर्षित गर्वित हो नित ही, 

गुरु को हम शीश झुकावत हैं।। 


सुमित्रा कामड़िया शिशिर

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कुण्डलिया छंद- 


सागर ज्ञान अथाह गुरु, महिमा अगम अपार।

देवय सत्य प्रकाश गुण, अवगुण छाँट निमार।।

अवगुण छाँट निमार, करय मन निर्मल चंदन।

गजानंद कर जोर, करे गुरु ला नित वंदन।।

बाँचय कलम कलाम, कृपा गुरु के पा आगर।

ले लौ डुबकी मार, ज्ञान के हे गुरु सागर।।


पाये हँव सौभाग्य गुरु, तोर कृपा के छाँव।

दे हव शुभ आशीष ला, भाग अपन सहराँव।।

भाग अपन सहराँव, गांव नित गुरु के महिमा।

तोर नाम से नाम, मोर गुरु पद अउ गरिमा।।

गजानंद गुरु तोर, चरण मा माथ नवाये।

कलम ऊँचाई मान, सदा ये जग मा पाये।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 03/07/2023

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*कुण्डलिया छंद*


*बानी गुरु के सार हे, जानत सकल जहान।*

*देवत हवै अंजोर जी, सब ला एक समान।।*

*सब ला एक समान, चलव सब ले लव दीक्षा।*

*करलौ गुरु के ध्यान, तभे जी मिलही शिक्षा।।*

*महिमा ला जी जान, सफल होही जिनगानी।*

*जिनगी बनी तोर, मिलय गुरु अमरित बानी।।*


राजकुमार निषाद"राज"

साधक- सत्र १७

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गुरु के पूजा मँय करौं, गुरुवर देथे ज्ञान।

पाप पून्य के भेद ला, बतलाथे सुख मान।


अमर हवय ओखर शबद,करथे मन उजियार।

अँधियारी ला मेटके, उज्जर करथे सार।


गुरुतर गुरतुर गुण भरे, बाँटय सदा मिठास।

करू करेला बन घलो, जहर निकालय खास।


गुरु के महिमा जानलौ, देथे वो परकास।

धरती अंबर ले बडे़, करथे उही विकास।


डहर बतावय गुरु सदा, सत के रद्दा तीर।

मंजिल मिलथे गा घलो, अँगरी धर चल धीर।


पार करा काँटा खुटी, फूल बिछा दव राह।

ज्ञान जोति देथे गुरू,मिलथे तब जस वाह।


पाँय परौं गुरु गोड़ के, लगथे जस भगवान।

आँखी हिरदे मा बसै, गावंँव मँय गुनगान।


धनेश्वरी सोनी गुल

सत्र  11

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[विजेन्द्र: गुरु

चौपई छंद


करथे जिनगी ला उजियार। 

माथ नवावँव बारंबार।। 

कतका हे गुरु के उपकार। 

सदा लगाथे भव के पार।। 


बाँटय चेला मन ला ज्ञान। 

मूरख तको बनय सुजान।। 

जिनगी सुग्घर गो सिरजाय। 

नेक राह मा चलव बताय।। 


खुलय ज्ञान के सबो कपाट। 

दमकय सुग्घर तभे ललाट।। 

गुरुवर के जे मानय बात। 

कभू खाय नइ ओहर मात।। 


अड़चन अलहन देवय टार। 

बोली भाखा अमरित धार।। 

ज्ञान दान के जानव खान। 

गुरु ला देवव गा सम्मान।। 


गुरु ले बड़का हावय कोन। 

पथरा ला कर देथे सोन।। 

हरके मन के सबो विकार। 

जिनगी सुग्घर देय सँवार।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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छंद-दोहा 

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गाड़ा-गाड़ा हे नमन, टुकना भर जोहार |

विनती मोरे आज के, करिहव गुरु स्वीकार ||


गुरु होथे सबले बड़े, हर युग पाँव पुजाय |

जेखर ऊपर हे कृपा, जिनगी सरग बनाय ||


जहाँ-जहाँ गुरुवर कृपा, सुखी सदा परिवार |

पूरा हे सब कामना, सबो राह उजियार ||


गुरु के महिमा देख लव, जे पावय हुसियार |

बिन गुरुवर के आदमी, होथे निचट गँवार ||


गुरु पूर्णिमा आज हे, स्वीकारव  परणाम |

गुरुकुल मास्टर छंद के, देहु निगम गुरु ज्ञान ||


🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

छंद-साधक 

सत्र-20

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शशि मैडम: सतगुरु कबीर

दोहा

करौं गुरू ला बंदगी,चरण धरॅंव नित माथ।

अवगुन मन के टारिहौ,सकल जगत के नाथ।।


दया-मया अंतस धरें,वचन कहें बड़ गूढ़।

भाखा करू कबीर के,टोरे बधॅंना रूढ़।।


राग-द्वेष के गाॅंव मा,मिलिस मया के हीर।

ढाई आखर प्रेम ला,जीयत चलिस कबीर।।


चलती चक्की देख के,करम मइल नइ धोय।

जगत सुते मुॅंह तोप के,दास कबीरा रोय।।


सुख के साथी सब हवे,दुख मा एक कबीर।

संग कबीरा के लगा,जब तक हवे शरीर।।


बइठे काजल कोठरी,दाग़ लगे  नइ माथ।

संगत करें कबीर के,लाड़ू दोनों हाथ।।


कांशी जोहय बाट ला,जोहय गंगा नीर।

धोये बर जग पाप ला,आबे लहुट कबीर।


कथा कबीरा के कहे,गंगा जी के घाट।

शंकर जी के गाॅंव मा, निराकार के हाट।।


शशि साहू बाल्को नगर जिला कोरबा।


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◆   गुरु ले ये संसार हे ◆

गुरु ले पाय गियान ले,

जीवन के सब मान  हे।

शिष्य के गर के हार हा

गुरु बर बड़का तिहार हे।।

शिष्य तो बस एक बिजहा

का बने होही का गिनहा?

गुरु ला सब धियान हे....

कंटहा काँटा ला छंटइया

गुरु के गजब परताप हे।

गुरु परसाद ला पाके राम जी

मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाईस ।

सांदीपनी के अनुशासन ले

" योगेश्वर " ये जग पाईस ।

परमहंस के मोहनी खिचरी 

विवेक "आनन्द " बगराईस ।

गुरु के अधार ले

शिवा तलवार मा धार हे ।।

ये दुनिया निया के फेरा...

गुरु ले शून्य सार हे ,

गुरु ले संसार हे ।।

गुरु चरन रज 

आँखी अंजईया मन बर,

"गुरु ग्रंथ "वेद पुरान हे ।

आंसू मुसकी , सुख मा दुख मा

जीवन समरस गान हे ।

गुरु चेत कबीरा के साखी,

गुरु ले मीरा के गान हे।।

                🙏🙏रोशन साहू ( मोखला )🙏🙏

                       7999840942


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लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: *त्रिभंगी छंद*


गुरु पइयाॅ लागव,माथ लमावव,

हाथ जोड़ परनाम करू।

सदा नाम लेवव,मन मा जपवव,

रोजे गुरु के, ध्यान धरू।

छंद ज्ञान पावव,महिमा गावव,

मोरे बर गुरु धाम शुरू।

गुरु नाम सुमरके, आस लगाके

करथवॅ मय हा ,काम शुरू।।


ॲधियार मिटा के,सुरुज बनके,मन मा गुरु तॅय,ज्ञान भरे।

गुरु हाथे धरके,भेद छोड़ के, 

गुरु वर शिक्षा,दान करे।।

गुरु देव छांव मा,कमल पांव मा ज्ञान भक्ति रसपान मिले।

गुरु दीक्षा पाके,मन हा चमके,ज्ञान ज्योति बन,फूल खिले।।


लिलेश्वर देवांगन

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*रोला छंद*:- 

 (1) 

जे देथे जी ज्ञान, जगत मा गुरू कहाथे ।

हरथे मन अज्ञान, मान ला सबके पाथे ।

करथे गा उजियार, बरय जस दियना बाती ।

मेटय सब अँधियार, भरम के जे दिन- राती ।।


(2)

सदा नवावँव माथ, चरण मा तोरे गुरुवर ।

धरती के सम्मान, झुकय जस फर के तरुवर ।

अंतस ले कर जोर, तोर मँय महिमा गावँव ।

"मोहन " तन मा साँस, रहत ले नइ बिसरावँव ।।


*सरसी छंद*:- 

माथ नवावँव गुरु चरनन मा, महिमा करँव बखान ।

जेकर किरपा ले पाये हँव, ये जिनगी के ज्ञान ।।1।


जब-तक सूरज-चंदा रइही, अउ ये धरा-अगास ।

अंतस मा गुरु मोर समाके, पूरा करही आस ।।2।।


करँव वंदना मँय कर जोरे, पावँव आशिर्वाद ।

छाहित रहिके देवव गुरुवर, अपने ज्ञान- प्रसाद ।।3।।


छंदकार-  मोहन लाल वर्मा 

पता :- ग्राम- अल्दा,वि.खं.तिल्दा, 

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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 जीतेन्द्र निषाद : सरसी छंद-गुरु


सदगुरु बिन नइ मिलै ज्ञान हा,कइथें वेद पुरान।

फेर कार कलजुग मा गुरु मन,बनत हवयँ शैतान।


कोनो जग मा बापू बनके,कोनो भैयाराम।

करत हवयँ गुरु सदगुरु बनके,फकत नाँव बदनाम।


स्वार्थी गुरु संगत ले होही,कइसे बेड़ापार।

चिटिको गुनव मोर हाँका ला,रोज्जे तीन जुवार।


हमरो भीतर घलो समाहे,राग-द्वेष अभिमान।

इंँकर संग मा रहिके गुरु के,कइसे करन बखान।


मानवता के गुण मनखे मा,जे गुरु भरय अपार।

अइसन गुरु परबुधिया चेला,खोजे बारंबार।


बने करम ले जीव-जगत के,करही गुरु उद्धार।

गुरु के महिमा मनखे गावत,करही जय-जयकार।


जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'

सांगली,जिला-बालोद

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 इंद्राणी साहू: *गुरुपूर्णिमा के पावन परब मा*

*गुरु वंदना*

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चरन पूजा करव गुरु के परब गुरुपूर्णिमा आये।

नवा लव माथ आगू मा सबो दुख कष्ट हर जाये।।


रमायन राम के महिमा रचे गीता महाभारत।

बताये मुक्ति के मारग धरे अँगरी हवय तारत।

सुपथ मा पाँव रख लव ये सदा गुरुदेव समझाये।

चरन पूजा करव गुरु के परब गुरुपूर्णिमा आये।।


हवय बड़ भागमानी ते सुघर आसीस ला पाथे।

सहारा जब मिलय गुरु के सुफल हर काज हो जाथे।

भुला के दोष दुरगुन ला सतत गुरु ग्यान बरसाये।

चरन पूजा करव गुरु के परब गुरुपूर्णिमा आये।।


निसैनी मा सुमत चढ़ लव बनव बिरथा न अभिमानी।

इही अमरित सही गुरतुर सिखौना ज्ञान के बानी।

बनाथे नेक मनखे अउ अँजोरी ज्ञान बगराये।

चरन पूजा करव गुरु के परब गुरुपूर्णिमा आये।।


        *इन्द्राणी साहू "साँची"*

       भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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] ज्ञानू कवि: 

चरन नवावँव माथ, कृपा बनाये राखहू।

अपन हाथ मा हाथ, चलहू धरके हाथ गुरु।।


महिमा अगम अपार, कोनो पावय पार नइ। 

लेहू मोला तार, अतके बिनती मोर हे।।


सोरठा छंद


गावय बेद पुरान, ऋषि मुनि ज्ञानी संत जन।

भरे ज्ञान के खान, महिमा गुरुके हे अबड़।।


पूजय अउ भगवान, जग मा सबले गुरु बड़े।।

हे गुरु नाम महान, अँधियारा मन के मिटय।।


जिनगी के आधार, पाए जें भागी बड़े। 

करथे भव ले पार, तारनहारी नाम गुरु।।


ज्ञानु

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ज्ञानू कवि:

 बड़े राम अउ कृष्ण खुदा ले, जग मा गुरुवर हे।

मोर इही साक्षात इहाँ हे, गुरु हा ईश्वर हे।।


बिन गुरु किरपा भवसागर ले, कोन इहाँ तरथे।

जे नइ जानय गुरु के महिमा, घूँट घूँट मरथे।।


रूठ कहूँ गे गुरु हा जग मा, नइये जान ठिहाँ।

रूठे ईश्वर ता गुरु करथे , नइया पार इहाँ।।


शीतल छइहाँ सब ला देथे, जइसे तरुवर हा।

सबो शिष्य ला ज्ञान बरोबर, देथे गुरुवर हा।।


 मोर उपर गुरु सदा बनाये, अपन कृपा रखहू।

मँय मूरख सेवा नइ जानँव, क्षमा सदा करहू।।


 बरनन  कोन करै गुरु महिमा, अगम अनंत हवै।

बेद पुरान सदा गावत अउ, ऋषि-मुनि संत हवै।।


ज्ञानु

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 🙏रोला छंद 🙏


सद्गुरु के सनमान,झुके हे सबके माथा।

गूँजत हे सब ओर,छोर मा सद्गुरु गाथा।।

टोर अहम के गाँठ, जोड़ ले गुरु सँग नाता।

जाग जही गा भाग, पुन्य के खुलही खाता।।


गुरुवर के अभियान, चलो हम सुफल बनाबो ।

नाव अमर हो जाय ,काज अइसन कर जाबो।।

बनके कउनो हाथ,गोड़ बन कउनो जावौ।

घर घर मा हे जाय, जागरण गीत बजावौ ।।

तातूराम धीवर

🙏💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

अमृतदास साहू 12: *दोहा*

अरझे माया मोह मा,जिनगी के सब तार।

गुरू तोर आशीष बिन,फँसे नाव मझधार।१।


जनम मरण के पार ला,कोनो हा नइ पाय।

जिनगी के उद्धार बर, रद्दा गुरू बताय।२।


प्रथम गुरु माँ-बाप हे,दूसर शिक्षक होय।

शिक्षा अउ संस्कार के,सदा बीज ये बोय।३।


मनखे जनम अमोल हे,बिरथा ये झन जाय।

गुरू तोर उपकार ले, मनुज मुक्ति ला पाय।४।


गुरू समर्पण भाव ले ,देवय हमला ज्ञान।

ऊँखर जम्मो सीख हा,लागय जस वरदान।५।


गुरू ज्ञान परताप ले,अइसे होय अँजोर ।

अँधियारी ला चीर के,जइसे निकलय भोर।६।


अहंकार ला त्याग के,कर सबके उपकार।

बात गुरु के मान ले,हो जाही उद्धार।७।


अमृत दास साहू

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*अरविंद सवैया छंंद*

*विषय-गुरुजी*


कतको पढ़लौ गुनलौ मन के, नइ होवय गा गुरु के बिन ज्ञान।

बिन स्वारथ के जिनगी गढ़थें, तब आज हवे गुरुजी भगवान।

बिन भेद करे गुरु देत रथें, सब ज्ञान बराबर एक समान।

कतको अड़हा अउ अप्पढ़ ला, सबला करथें दिन-रात सुजान।  


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

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कुकुभ-छंद 🌹🌹



जेखर ऊपर गुरुकृपा बने, सँवरे वोखर जिनगानी |

राह दिखाथे गुरुवर सब ला, दूर भगाथे परशानी ||


जिनगी के रद्दा लम्बा हे, आथे-जाथे दुख पीरा |

चेला के हर भार हरे हे, बनगे लोहा मन हीरा ||


जतके जादा साधन करबे, बनबे पक्का तँय चेला |

वरना तँय खो जाबे संगी, माया के हे सब मेला ||


सावधान जी शरमाबाबू, छान-छान पीयव पानी |

सहीं बनावव गुरुवर सबझन, जेन सँवारय जिनगानी ||


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

 कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी 

सत्र-20

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: दोहा छंद - गुरु महिमा


बिना गुरू संसार मा, कभू मिलय नइ ज्ञान।

मन के शंका छोड़ के, ब्रम्ह गुरू ला मान।।1।।

कहाँ चले भगवान बर, गुरु ला अंतस जान।

शरणागत होके बने, ईश्वर गुरु ला मान।।2।।

गुरू शरण मा जाय के, भक्ति करव गा पोठ।

ज्ञान मुक्ति देथे घलो, वेद कहे हे गोठ।।3।।।

सुमिरन गुरु के कर बने, दूसर ला मत मान।

मन मा शंका झन करव, उही हरय भगवान।।4।।

गुरु ला पूजय गुरुमुखी, खोजय नइ भगवान।

मनमुख निगुरा का करँय, खोजत फिरय जहान।।5।।

राम नाम भजते रहव, गुरु के धर नित ध्यान।

ढाई आखर प्रेम ला, सुख के रद्दा जान।।6।।

गुरू ज्ञान दाता हरय, सब ला राह दिखाय।

जिनगी मा ओखर बिना, कोनो पार न पाय।।7।।

बिना गुरू के कोन हा, पाय ज्ञान अउ सीख।

जेन गुरू ला त्यागथे, वोहा मँगथे भीख।।8।।



छंद साधक - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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: दोहा छंद - गुरु वंदना 


हाथ जोड़ पवँरी परँव, गुरुजन माथ नवॉंव।

देके ज्ञान अंजोर ला,जिनगी मोर बनाव।


गुरु कुम्हार के रूप हव,मँय माटी नादान ।

दे मूरत भगवान के,या गढ़ दे इंसान।


देहू आशीर्वाद ला ,हे गुरुवर भगवान ।

माथ नवाँ पवँरी परँव,हाथ जोड़ नादान ।


गलती सबो सुधार के ,देथे ज्ञान अपार ।

दू झन गुरुजी हे हमर ,मधु अउ रामकुमार ।


साधक नंदकुमार साहू सत्र -12  

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: हरिगीतिका छंद---- गुरु महिमा


अज्ञानता ला दूर कर,  देथे बने गुरु ज्ञान जी ।

जिनगी बनाथे गुरु हमर, देवव सबो झिन मान जी ।।

आखर सिखाके सब इहाँ, भेदे जगत अँधियार ला ।

लाथे नवा उजियार गुरु,  देके सुघर संस्कार ला ।।


हे ज्ञान के भंडार गुरु, जानत हवय संसार गा ।

सत के सुघर रद्दा गढ़े, माँ- बाप कस दे प्यार गा ।।

दीया सहीं जलके सदा, तँय दूर कर अज्ञान ला ।

सेवा करव गुरु के सबो, पाहव बने वरदान ला ।।


मुकेश उइके "मयारू" 

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

छंद साधक सत्र- 17

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*नवे रहै गुरु के चरण,'बादल' मोरे माथ।*

*मोर मूँड़ मा तो सदा,राखै गुरु हा हाथ।।*


*पूज्य अरुण जी नाम हे,गुरुवर श्री के मोर।*

*जेकर देये ज्ञान ले,हिरदे भरिस अँजोर।।*


*छंद लिखे बर जेन हा, देइस मोला ज्ञान।*

*जेकर आशीर्वाद हा, होइस बड़ फुरमान।।*


*लइका कस मड़ियाय हँव, जेकर अँगरी थाम।*

*जाने हँव साहित्य ला, झोंकै मोर  प्रणाम।।*

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चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद ,छत्तीसगढ़

साधक छंद के छ 2

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: छंंद दोहा 

पोखन लाल जायसवाल



गुरु मेटँय अँधियार ला, देके ज्ञान अँजोर।

ठोंक-पीट-आशीष दे, लेथें हरदम सोर।।


छंद-ज्ञान दे गुरु अरुण, करिन बहुत उपकार ।

पावन पबरित गुरु चरण , बंदँव बारम्बार ।।


गुरु वाणी अनमोल हे, हर आखर मा सीख ।

गुरु-गियान तो नइ मिलय, माँगे कोनो भीख ।। 


रस्ता नित चतवारथें, लिखत सियानी गोठ।

होवय गुरुवर चाहथें, शिष्य मोर ले पोठ।।


बरसय जब-जब गुरु कृपा,

खुले भाग के द्वार।

घेरे जिनगी दुख-बिपत, नइतो लागे भार।।


पोखन लाल जायसवाल

कक्षा- 4

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गुरु महिमा (विष्णु पद छंद)

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अंतस के औगुन अँधियारी,गुरुवर हर लेथे।

जला ज्ञान दीया हिरदय ला,जगमग कर देथे।।

बाहिर परखै चोट मार के,थामै भीतर ले।

जेमा जूझ सकै चेला हर,दुख बिपदा डर ले।।

आगी मा तप के कुंदन कस,बनै शिष्य चोखा।

इही सोच के सदा मड़ाथे,गुरुवर हा जोखा।।

गुरु गुड़ रहै कहूँ अउ चेला,शक्कर बन जाथे।

अपन सीख ला फलित देख के,गुरु बड़ सुख पाथे।।

चेला उन्नति करै निरंतर,गुरुवर नित माँगै।

अइसन गुरु के सरलग वंदन,खातिर मन लागै।।

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दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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] गुरु निगम सर: *सियानी गोठ*


गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरुरसाक्षात परब्रम्ह, तस्मै श्री गुरुवै नमः।।


गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।

बलिहारी गुरु आपनो,गोविंद दियो बताय।।


गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान |

बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान ||


गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त |

वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त ||


कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय |

जनम – जनम का मोरचा, पल में डारे धोया ||


गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट |

अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ||


गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान |

तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान ||


गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं |

कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं ||


गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत |

प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत ||


गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर |

आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर ||


सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय |

सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय ||



पहिली संस्कृत के श्लोक के अलावा बाकी सब दोहा कबीरदास जी के आय। कबीरदास जी, आडम्बर के विरोधी रहिन तेपाय के उँकर दोहा मा यथार्थ दिखथे, आडम्बर नइ। कबीर असन दोहा लिखे के क्षमता मोर मा रत्तीभर घलो नइये फेर ये दोहा ला गुने के बाद अपन मन के विचार जरूर व्यक्त कर सकथंव। 


गुरु बिन ज्ञान नहीं…...ये बात सोला आना सही हे। गुरु मनखे नोहय, गुरु श्रद्धा आय। गुरु आस्था आय। एकलव्य, द्रोणाचार्य के मूर्ति बना के साधन करे रहिस। द्रोणाचार्य ओला ज्ञान नइ दे रहिस। स्थापित मूर्ति के श्रद्धा अउ आस्था, गुरु बन के एकलव्य ला ज्ञान दिस अउ वोहर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बने रहिस। द्रोणाचार्य, गुरु दक्षिणा मा एकलव्य के अंगूठा मांगे रहिस अउ बिना कोनो तर्क करे एकलव्य अपन अंगूठा काट के गुरु दक्षिणा दे रहिस। कर्ण, झूठ बोल के ज्ञान ग्रहण करे रहिस अउ गुरु के श्राप ला भोगिस। ये घटना के सच्चाई ला नजरअंदाज करके संदेश ला देखना चाही। 


छन्द के छ परिवार मा गुरु-शिष्य के परम्परा के पालन होथे। जउन ज्ञान देवत हे, तउन गुरु अउ जउन ज्ञान पावत हे, तउन शिष्य। जब राजा के बेटा मन गुरुकुल मा ज्ञान पाए बर जावत रहिन तब उँकर भूमिका राजकुमार के नइ बल्कि शिष्य के रहिस। छन्द के छ,अइसने गुरुकुल आय। इहाँ शिष्य बनके रहे ले ज्ञान मिल पाही, राजकुमार बने ले ज्ञान के प्राप्ति असंभव हे। 

काबर असंभव हे ? एखरो कारण बता देथंव - राजकुमार मा राजा पुत्र होए के अहंकार होथे। अहंकार एक अइसन कीड़ा आय जो ज्ञान के फर ला खराब कर देथे। कीड़ा लगे फर, बीमार कर देथे। ये कीड़ा के नाश कर बर अभी तक कोनो कीटनाशक नइ बने हे। अपन मन के संकल्प ले अहंकार के कीड़ा के नाश करे जा सकथे। 


नान नान जीव-जंतु के बीच मा रहिके ऊँट ला अपन ऊंचाई के अहंकार रहिथे। जब तक वो पहाड़ ला नइ देखे, अहंकार नइ जावय। आकार के ऊँचाई कोनो काम के नइ रहे। भगवान के मूर्ति छोटे हो कि बड़े हो, समान श्रद्धा ले पूजे जाथे। वइसने गुरु चाहे जाति, आर्थिक स्थिति या उमर मा कतको छोटे रहे, समान श्रद्धा मा जब तक नइ पूजे जाही, ज्ञान के प्राप्ति असंभव रही।

ककरो कहे ले श्रद्धा नइ उपजे, श्रद्धा मन से उपजथे। 


बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।


कई झन तथाकथित अउ स्वयंभू खजूर के झाड़ मन अपन ऊँचाई ला लेके रद्दा-रद्दा मा ठाढ़े हें। मनखे ला अपन विवेक के प्रयोग करना चाही।


*अरुण कुमार निगम*

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अश्वनी कोसरे 9: चौपाई छंद- अश्वनी कोसरे

गुरु पूर्णिमा 


गुरु महिमा जस अमृत धारा।पोहय तनमन ज्ञान सहारा।  

मन के दुर्गुण झार हँटावय। जिनगी जोनी सफल बनावय।।1


मातु  - पिता अउ गुरु के बानी।देवत रहिथें पीयुष पानी।

वंदन हे नित गुरु चरनन मा। हँसा दौड़ लगावय रन मा ।।2


गुरुगुढ़ ज्ञानी ध्यान लगावँय। गीता के सम ज्ञान लखावँय।

धर्म ज्ञान ले हे मर्यादा। वइसे ही गुरु करथें वादा।।3


निर्मल रहिथे गुरु के बानी। सदगुरु के सम चेला ज्ञानी। 

शरनागत हँव ध्यान लगावँव।गुरु पँउरी मा शीस झुकावँव।।4


गा ले मनुवा गुरु के महिमा।दूर करैं उन घपटे अणिमा।

जिनिगी भर तँय नाम सुमरले। जाके आसन दर्शन करले ।।5


अश्वनी कोसरे 

रहँगिया कवर्धा

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दोहा छंद

विषय - गुरु पूर्णिमा


ज्ञान दीप ला बार के, बगराथें उजियार।

गुरु के महिमा ला तभे, गाथे ये संसार।।


गुरु ईश्वर के रूप हे, तँय येला स्वीकार।

छोड़ अपन अभिमान ला, उनकर पाँव पखार।।


गुरु के सुग्घर गोठ मा, हे जिनगी के सार।

चेत लगा के सुन बने, कर खुद के उद्धार।।


उगय हताशा के कहूँ, मन मा खरपतवार।

गुरु ओला चतवार के, भरथें जोश अपार।।


गुरुवर हा देथें बने, शिक्षा अउ संस्कार।

मान बढ़ा के तँय उखँर, मान सदा आभार।।


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर

पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद(छ.ग.)

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श्री गुरुवैः नमः


पहली गुरु दाई ददा, दूसर ज्ञान अधार।

सीख देय गुरु तीसरा, हें सबला जोहार।।

खैरझिटिया


जड़ चेतन जेखर ले भी मोला सीखे समझे ल मिलत हे, सब ला गुरु मान, गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर मा बारम्बार प्रणाम।।

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।

नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।

जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।

दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।

सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।

गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।


जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।

गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नँवाय।

देवन माथ नँवाय, गुरू के सुमिरन करके।

अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।

गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।

जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।


डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।

रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।

आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।

खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।

डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।

गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा (छग)

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सरसी छन्द - गुरू महिमा


गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।


छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।

उजियारा करथे जिनगी ला,बन सूरज के तेज।

जल जाथे जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।

भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।

ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।

मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।

गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।

महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।

ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


गुरू बना जीवन मा बढ़िया,कर कारज नित हाँस।

गुरू सहारा जब तक रहही,गड़े कभू नइ फाँस।

नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू सदा दब जाय।

यश जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।

गावै गुण सब लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


खैरझिटिया


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रूपमाला छंद


गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।

हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।

घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।

वो चरण मा मैं नँवावों,माथ बारम्बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

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4 comments:

  1. बहुत सुंदर संकलन

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  2. गुरु परब गुरु पूर्णिमा मा श्रद्धेय गुरुदेव ला सुग्घर भाव पूर्ण छंद

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  3. बहुत सुंदर रचना के संग्रह

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  4. बहुत सुग्घर संग्रह

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