Followers

Thursday, December 26, 2024

किसान--- दोहा छंद

 आज किसान दिवस मा जम्मों किसान मन ला अउ पूर्व प्रधानमंत्री आद0 चौधरी चरण सिंह जी ला सुरता करत मोर ये रचना🙏🙏🙏



किसान--- दोहा छंद  



सबके मीत किसान तँय, बोथस गेहूँ धान।

धुर्रा  माटी  तन  लगे,  इही हावय पहिचान।।


लकर- धकर बूता करै,  धूप रहय या छाँव।

महिनत हावय संग मा, कभू थकय ना पाँव।।


पागा कलगी शान हे,  माटी तोर मितान।

नाँगर बइला संग मा, जावय खेत किसान।।


भूख-प्यास तैंहा सहे, अउ सहथस जी घाम।

धनहा- डोली खेत हे,  करथस खेती काम।।


कहिथें तोला सब इहाँ, भुइयाँ के भगवान।

हे किसान मन के सदा, करथे जग गुणगान।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

जाड़

 [12/19, 4:23 PM] मुकेश 16: जाड़- जयकारी छंद


गोड़-हाथ अउ काँपय हाड़।

बाढ़े हावय बिक्कट जाड़।। 

एकर बर कुछु करव उपाय।

नइतो अब गा जाड़ सहाय।। 


कुनकुन लागय देखव घाम।

रोज बिहनिया सेंकव चाम।। 

कथरी कमरा बने सुहाय।

आगी अँगरा सब ला भाय।।


लकड़ी छेना लेवव जोर।

झन देखव गा दाँत निपोर।। 

जड़काला बइरी हा आय।

लटपट मा अब रात पहाय।। 


बिगड़े हावय सबके हाल।

जड़काला हा बनगे काल।। 

अलकरहा गा जाड़ भराय।

कोन नहाये खोरे जाय।। 


लइका पिचका संग सियान।

जाड़ करय सब ला हलकान।। 

सुरुर-सुरुर पुरवा हा आय।

नाक घलो अब्बड़ बोहाय।। 


छेरी पथरू पावय जाड़।

उँकरो बर गा करव जुगाड़।। 

गरुवा बइला बड़ नरियाय।

पैरा भूसा नइतो खाय।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

[12/19, 5:56 PM] राज निषाद: *विषय - जाड़ दोहा छंद*


जड़काला मा गोरसी, अँगरा आगी ताप।

बइठे-बइठे राम के,  करत रहौ सब जाप।।


बइठे दाई डोकरी, बने रौनिया ताप।

संग म हावय डोकरा, करत राम के जाप।।


जगह-जगह भुर्री बरय, लकड़ी छेना डार।

कुनकुन-कुनकुन ताप ले, अँगरा आगी बार।।


हाथ गोड़ हा काँपगे, सब झन हे थर्राय।

जाड़ सीत ला देख के, बुढ़वा मन डर्राय।


अबड़ करत हे जाड़ जी, कंबल कथरी लान।

सुत जा सुग्घर ओढ़ के, हाथ गोड़ मुँह कान।।


राजकुमार निषाद"राज"

बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग

7898837338

[12/19, 6:17 PM] S K Miree: जाड़ *(सरसी छंद)*


देख असो के ठंडा मौसम, लानिस हे बड़ जाड़।

हाथ गोड़ हर सफ्फा ठरगे, ठण्डा भेदिस हाड़।।


स्वेटर पहिरे कथरी ओढ़े, गरमी तभो उछींद।

धरे कँपकपी दाँत बजत हे, आवत नइ हे नींद।।


करा सही पानी हा ठरथे, कइसे हाथ लगाव।

नरी घलो ठंडा पर जाथे, पीयत देख डराँव।।


हिम्मत नइ होवत हे संगी, कइसे रोज नहाँव।

गुनत हवँव अतका ठंडा मा, कइसे बूता जाँव।।


सूरज दादा घलो लुकाये, उग जा कहँव बुलाँव।

भुर्री तापत बइठे मैं हर, दिन ला रोज पहाँव।।


सरसर-सरसर पवन चलत हे, अउ बाढ़त हे जाड़।

कान नाक ला बिन बाँधे तैं, होय सकस नइ ठाड़।।


जाड़ बाढ़ के देख दिनों दिन, जिनगी देत उजाड़।

जीव जंतु अउ सब मनखे के, जीना होगिस काड़।।


लोको पायलट -संतोष मिरी 'हेम'

       कोरबा (छत्तीसगढ़)

************************************

[12/23, 3:01 PM] +91 84358 44508: कुंडलिया छंद


थरथर काँपत जाड़ मा, सोचत हवय किसान। 

मंडी मा अब पहुँच गे, कट्टा - कट्टा धान।।

कट्टा- कट्टा धान, बेच के पइसा पाबो।

गर्मी फसल उधार, पटा के फेर कमाबो।

भगा जाहि  जी जाड़, पसीना गिरही तरतर।

श्रम के गजब प्रभाव, हाड़ नी  काँपे  थरथर।।


अमितारवि दुबे©®

Thursday, December 19, 2024

गुरु घासीदास जयंती विशेषांक*



: दोहा छंद- *सतगुरु घासीदास*


..........................*.........................

पावन धाम गिरौदपुर, माह दिसंबर खास।

सत्य रूप मा अवतरे, सतगुरु घासीदास।।


अमरौतिन के कोख अउ, महँगू दास दुलार।

सत्रह सौ छप्पन रहिस, लेइस गुरु अवतार।।


छागे अँगना मा खुशी, बाजय मंगल गीत।

गुरु दर्शन बर आय सब, सगा सहोदर मीत।।


मांदर झाँझ मृदंग सँग, सजे आरती थाल।

आये जग उद्धार बर, अमरौतिन के लाल।।


देवँय आशीर्वाद ला, नर नारी सब लोग।

सत्यपुरुष अवतार ये, करही सत के जोग।।


मातु पिता गुरु नाम ला, राखिस घासीदास।

बनही संत महान गुरु, हरही जग जन त्रास।।


जतन करे लइका बढ़े, पानी पाये धान।

बाढ़े उही प्रकार ले, गुरु जी धारत ज्ञान।।


नानपना ले ही करिस, गुरु जी सत के काम।

महिमा गजब दिखाय हे, नाम जपत सतनाम।।


सखा बुधारू ला दिये, गुरु जी जीवन दान।

तारिस गौ माता घलो, लगा सत्य के ध्यान।।


बिना अन्न पानी बिना, जेवन दिये बनाय।

बिना सुरूज प्रकाश के, कपड़ा घलो सुखाय।।


भाटा बारी ले बबा, लानिस मिरचा टोर।

जोतिस नाँगर ला अधर, होगे महिमा शोर।।


वैज्ञानिकता तर्क ले, सत के करिस प्रचार।

गुरु के दे सिद्धांत ले, आज चलत संसार।।


शादी घासीदास गुरु, माता सफुरा साथ।

हँसी खुशी जिनगी जिये, थाम हाथ मा हाथ।।


चार पुत्र के संग मा, होइस पुत्री एक।

बेटा सब ज्ञानी गुनी, बेटी सुशील नेक।।


अमरदास बेटा बड़े, मझला बालकदास।

तीसर आगरदास गुरु, अउ अड़गड़िहा खास।।


सहोदरा बेटी सुघर, बहुत चतुर हुशियार।

मातु पिता के लाड़ली, पाये मया दुलार।।


सपना देइस एक दिन, पुरुषपिता सतनाम।

कइसे माया मा गे भुला, घासी तँय सतकाम।।


दुनिया के उद्धार बर, लिये हवस अवतार।

घासी तँय तो हस फँसे, मोह मया परिवार।।


सपना ले झकना उठिस, बाबा घासीदास।

पुरुषपिता गुरु माफ कर, तोड़े हँव विश्वास।।


फेर वचन हँव देत मँय, करहूँ जग उद्धार।

जावत हँव सत खोज बर, छोड़ आज घर द्वार।।


सत खोजन बर गे निकल, गुरु जी छात पहाड़।

जिहाँ शेर भालू रहय, कटकट जंगल झाड़।।


धुनी रमाये बैठ गे, ध्यान लगा सतनाम।

पाये जी गुरु ज्ञान ला, बना हृदय सत धाम।।


छै महिना ले तप करिस, पाये बर सत ज्ञान।

जोग साधना से बनिस, गुरु जी संत महान।।


सफुरा पुत्र वियोग मा, तज दे राहय प्रान।

आके घासीदास गुरु, देइस जीवन दान।।


आंदोलन सतनाम के, करिस जोर शुरुआत।

जाति- पाति के बँध मा, फँसे रहिन सब जात।।


मनखे ले मनखे छुआ, छूत करे कुछ लोग।

रूढ़िवाद पाखण्ड के, छाये राहय रोग।।


बोले घासीदास गुरु, मनखे-मनखे एक।

एक खून तन चाम हे, राह चलौ सत नेक।।


मानवता के पाठ पढ़, लौ सब संत सुजान।

आही सुमत समाज मा, बोले संत महान।।


जगह-जगह सत रावटी, होवय गुरु जी तोर।

जोड़े सबो समाज ला, बाँध दया के डोर।।


ढोंग रूढ़ि पाखण्ड के, छाय रहय अँधियार।

मुक्ति दिलाइस संत गुरु, करके सत्य प्रहार।।


सत रद्दा चलिहौ कहिस, बानी रखिहौ नेक।

लोभ मोह अभिमान ला, देहव संतो फेक।।


मनखे जग कल्यान बर, देइस सत संदेश।

कर लौ पालन संत जन, मिट जाही सब क्लेश।।।


दिये सात संदेश गुरु, ब्यालिस अमरित बोल।

अमल करौ सब संत हो, हिरदे के पट खोल।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/12/2024

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

[12/18, 8:44 AM] मनोज वर्मा:

 सत के राह बताय हस, बाबा घासीदास।

सद्गुरु परमात्मा तँही, टोरे भव के फाँस।।


सादा झंडा सत्य के, जैतखाम पहिचान।

लहर लहर लहरात हे, धरती अउ असमान।।


सत्य अहिंसा अउ शांति के, संग सात संदेश।

मानवता बड़का गढ़े, मेटे सबो कलेश।।


सत मा रख बिसवास बड़, कर्म हवै परधान।

जपत रहौ सतनाम ला, सार इही जग जान।। 


फोकट गढ़े प्रपंच जन, जात पात तज भेद। 

मनखे मनखे एक सब, ऊँच नीच दव खेद।। 


जीव बराबर हे सबो, करव नहीं संघार। 

प्रीत जीव ले हो सदा, छोड़व मांसाहार।। 


पर धन नजर लगाव झन, दूसर हक झन खाव। 

रहव जुआ ले दूर तुम, घिनही जानौ घाव।। 


नशा नाश करथे सकल, धन आदर परिवार। 

रख एकर ले बैर नित, तन मन लेवय मार।। 


रद्दा सत के रेंग चल, भक्ति भाव धर पास। 

कहे सात संदेश शुचि, बाबा घासीदास।। 


मनोज कुमार वर्मा 

बरदा लवन बलौदा बाजार 



💐💐💐💐💐💐💐💐


 ₹

[12/18, 9:45 AM] मुकेश 16: बाबा गुरु घासीदास-- बरवै छंद



महँगू के लाला हे,  घासीदास।

तोर नाँव ले मन मा, भरे उजास।।


पेड़ तरी धौंरा के, ध्यान लगाय।

पोठ तपस्या करके, सत ला पाय।।


जन मानस मा जाके, अलख जगाय।

मानवता के सब ला, पाठ पढ़ाय।।


मनखे-मनखे जानव, एक समान।

देइस सुग्घर सब ला, सत के ज्ञान।।


स्वेत ध्वजा हा तोरे, सुमता लाय।

जैतखाम हा सत के, राह बताय।।


करव कभू झन संगी, मदिरा पान।

सत्य नाम ला जपलव, पाहव मान।।


छुआछूत ला बाबा, दूर भगाय।

दीन-दुखी के तँय हा, बने सहाय।।


परनारी ला जानव, मातु समान।

नारी ले ही होथे,  जग कल्यान।।


सादा जिनगी सब झन, करव गुजार।

पाप हवय जी करना,  मांसाहार।।


सबो धरम ला देवव, गा सम्मान।

जात-पात ला छोड़व, बनव महान।।


काम-क्रोध ला टारव, सोंच विचार।

सदा लगाथे गुरु हा, भव ले पार।।


छोड़व अंधविश्वास, मन मा ठान।

हवय जीव हत्या हा, पाप समान।।


सत्य अहिंसा के तँय, दे संदेश।

लोगन के जिनगी ले, काटे क्लेश।।


दूर  रहव  चोरी  ले,  जाथे मान।

जुआ घलो मा होथे, बड़ नुकसान।।


मूर्ति कभू झन पूजव, मोर मितान।

सत मा हावय ईश्वर, लेवव जान।।


मन मा विश्वास रखव, जय सतनाम।

तुरते बनही सबके,  बिगड़े काम।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐

[12/18, 9:54 AM] विजेन्द्र: बाबा घासीदास के संदेश - चौपई छंद


सादा जीवन उच्च विचार Iपरहित सेवा सद व्यवहार II

खुदे बनाये गा पहचान I तभे मिलत हावय सम्मान II


छुआ-छूत ला माने रोग I विधवा मन के सुने बियोगII

जात-पात के भेद मिटाय।सत्यनाम के अलख जगाय II


मनखे-मनखे एक बताय I सत के रद्दा उही दिखाय II

नशा-पान होथे जी काल I जीवन मा झन येला पाल II


पर के धन ला पथरा जान Iपर नारी महतारी मान II

अइसन देवय वो हर सीख I करम करव झन माँगव भीख II


नोनी बाबू एके जान Iदूनों मा बसथे गा प्रान II

सत मा राखव गा विश्वास I होही तब कुमता के नास II

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *रूप घनाक्षरी*

विषय: *सतनामी*


सतनामी कोन हरै, काहीं ले जे नइ डरै,

करै सदा सत बात, जपै नित सतनाम।

माॅंस कभू खाय नइ, दारु भट्ठी जाय नइ,

देवै नइ गारी कभू, करै नेक हर काम।

रखै नइ छल द्वेष, जेकर हे सादा भेष,

एक मानै मनखे ला, गिरौदपुरी ला धाम।

चंदन लगाय सादा, ताम-झाम नइ जादा,

अपन निभाय वादा,पूजै जोड़ा जैतखाम।।


*तुषार शर्मा "नादान"* 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐// 

हिनमान के आँसू पोंछाईस //

गिरौदपुरी के सुरुज हा संगी, सत के सुरुज परघाईस।

धरम- करम जग जीव मरम,गुरु घासीदास बताईस।।

पान- सुपारी नरियर-भेला, चंदन-बन्दन स्वारथ खेला।

सतनाम रमे हे घट - घट मा ,सुजानिक मन पतियाईस।।


कोन्हो मनखे होय न हीनहर,जग ल जग जग ले परखाईस।

असत के हीरा कीरा बरोबर, बीमारी रहिस दूरि- हाईस।।

जनम ले कोन्हो न निचहा ऊंचहा,करम ले मिले पीढ़ा ऊंचहा।

सत बल ले धरती अगास हावय,भरम के बादर चटकाईस।।


जुग-जुग ले तोपे ढांपे सत उघरिस,जग अंजोर बगराईस।

मुँह लुकाय उनला परगे,जेन मन सत के सुरुज लुकाईस ।।

मनखे-मनखे बरोबर होथे, पापी अधरमी काँटा बोथें।

छुआछूत अउ ऊँच-नीच,हिनमान के आँसू पोंछाईस।।


सत के जोत मिलिस तेनला,जग म बांट-बांट बगराईस।

बंटईया बर तो कभू खंगय नही,देवईया घलो सँहराईस।।

दुख-सुख के सबो बरोबर बांटा,संग संगिनी सफुरा माता ।

अमरौतिन महंगू के ललना, सुग्घर सत धजा फहराईस।।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏

             रोशन साहू 'मोखला' राजनांदगांव

                        7999840942

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

[ *गुरु बाबा घासीदास जयंती के शुभकामना अउ बधाई*


(1)

मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर

जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर

बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन

जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।

(2)

जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ

दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।

जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ

बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।

(3)

काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई

मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई

सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव

गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।


*अरुण कुमार निगम*

💐💐💐💐💐💐💐💐




*गुरु घासीदास जयंती विशेषांक*


*बरवै छंद*


गुरू महिमा


अमरौतिन के कोरा ,खेले लाल।

महँगू के जिनगी ला ,करे निहाल।1।


सत हा जइसे चोला ,धरके आय।

ये जग मा गुरु घासी ,नाम कहाय।2।


सत्य नाम धारी गुरु ,घासीदास।

आज जनम दिन आये ,हे उल्लास।3।


मनखे मनखे हावय ,एक समान।

ये सन्देश दिए हे, गुरु गुनखान।4।


देव लोक कस पावन ,पुरी गिरौद।

सत्य समाधि लगावय ,धरती गोद।5।


जैतखाम  के महिमा ,काय बताँव।

येला जानव भैया ,सत के ठाँव।6।


निर्मल रखव आचरण ,नम व्यवहार।

जीवन हो सादा अउ ,उच्च विचार।7।


बिन दीया बिन बाती ,जोत जलाय।

गुरु अंतस अँंधियारी ,दूर भगाय।8।


अंतस करथे उज्जर ,गुरु के नाम।

पावन पबरित सुघ्घर ,गुरु के धाम।9।


आशा देशमुख

💐88889889

[

हाथ जोड़ विनती करॅंव , बाबा घासीदास ।

दया मया ला राखहूॅं , अतके हाबय आस।।


सत् के रद्दा मा चलव , अइसन दे गुरु ज्ञान।

 पबरित राहय मन सदा , करॅंव तोर बस ध्यान।।


 संजय देवांगन सिमगा 

💐💐💐💐💐💐💐💐


परमपूज्य संत गुरु घासीदास जी

----------------------------------

(रोला छंद)


गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।

 सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।

 पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।

 धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1


 सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।

 सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी। 

ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।

 मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2

तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।

समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।

 छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।

 जात पात हे व्यर्थ, कहे सब करौ किनारा। 3


मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।

 सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।

 गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।

 सत मारग मा रेंग, बने हन सब ले बढ़िया।4


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐

[ रूप घनाक्षरी - बोल हे सतनाम (१८/१२/२०२४)

(८,८,८,८)४ , अंत - गुरु लघु



बोल जय सतनाम , बनही बिगड़े काम ,

सत के पुजारी कहे , गुरु बाबा घासीदास ।

गुरतुर बोली बोल , जिनगी मा रस घोल ,

दया - मया कर लेना , जब तक हवै साॅंस ।

छोड़ दे इरखा द्वेष , कट जाही सबो क्लेश ,

सुख - चैन घर आही , मन मा रख ले आस ।

माया के फइले जाल , जे बने जीव के काल ,

बच के रहिबे तॅंय , घूमत हे आस - पास ।



✍️ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '🙏

💐💐💐💐💐💐💐💐

[


जय बाबा गुरू घासीदास 

        (सार छंद)

----------------------------------

छत्तीसगढ़ के सुरुज बरोबर, सत अँजोर बगरइया। 

जन जन मा भाईचारा अउ, सुम्मत भाव जगइया। ।

मनखे सबो समान बताके, सत्यनाम गुन गाइन। 

मानवता के सुघ्घर रस्ता, दुनिया ला देखाइन। ।

अइसन संत सुजानी के हर, करम बचन हें पावन। 

बाबा घासीदास गुरु ला, जन जन करथें बंदन। ।

       जय सतनाम!!

दीपक निषाद -लाटा (बेमेतरा)

💐💐💐💐💐💐

[12/18, 4:13 PM] +91 84358 44508: *कुंडलिया छंद*


*बाबा घासीदास के,महिमा गजब महान।*

*मछरी- मास शराब ला ,त्याग तभे  पा ज्ञान।।*

*त्याग तभे पा ज्ञान,करम जस गावत जाबे।*

*मनखे  - मनखे एक,नाम सत के गुन गाबे।*

*रद्दा  रेंगव नेक, मया भर काबा- काबा।*

*हिंसा - हत्या पाप, करव झन  कहिथे बाबा।।*



*अमितारविदुबे©®*

*छत्तीसगढ़*

💐💐💐💐💐💐💐


मैंहा बदना बदथौं तोर नाम के हों गुरुबाबा 

पंइया परत हों जैतखाम के

तै बिराजे गिरौदपुरी धाम में हो गुरुबाबा 

दीया जलाये सतनाम के

 

दाई अमरौतिन बाबा ददा मंहगू दास हो

तोला पाये खातिर बाबा करिन हे उपास हो

बनके दीया हो बाबा अंगना मा आये हो 

जगमग जगमग जग जगमगाये हो

बनके सुरुज तैहा छाये हो गुरुबाबा 

महिमा बढ़ाये गिरौद धाम के...


धरम करम सत नियम बताये हो

सादा रंग झंडा सादा जीवन सिखाये हो

बांटे सदज्ञान बाबा जग हरसाये हो

तोर दिये ज्ञान आज जग गुन गाये हो

ऊंचनीच भेद ला मिटाये हो गुरुबाबा 

सुमता जगाये सरेआम मे...


रचनाकार 

तोषण चुरेन्द्र 'दिनकर' 

धनगाँव डौंडी लोहारा बालोद छत्तीसगढ़

Monday, December 16, 2024

कुर्सी महिमा-चौपई छंद

 कुर्सी महिमा-चौपई छंद


दागी मन के धोथे दाग।समझव येला तीर्थ प्रयाग।।

मूरख बाँचे कथा पुरान।कहाँ उँखर बर बने विधान।।


कुर्सी के जब चढ़े बुखार।नीत नियम होवय लाचार।।

पद रुतबा के जय जयकार। कुर्सी ले चलथे सरकार।।


रंग बदलथे बारंबार। कुर्सी बर गिरगिट अवतार।।

कुर्सी सहिथे कतको भार।लेन- देन चलथे व्यापार।।


पद पाये बर लगे कतार।लोग भुलाके शिष्टाचार।।

कहूँ मचे हे चीख पुकार।कहूँ सजे हावय दरबार।।


कुर्सी के सब पूछन हार।बिन कुर्सी जीवन बेकार।।

अइसन करथे खेल कमाल।इँखर कृपा ले गलथे दाल।।


कुर्सी पा के गंग नहाय।सात पुस्त वोकर तर जाय।।

नाता-गोता मन बउराय।छप्पन भोग रोज के खाय।।


कुर्सी ला समझव भगवान।घर बन निक गा सरग समान।।

हावय कतका येकर ताप।धुल जाथे कतको गा पाप।।


लबरा बाँटे सुग्घर ज्ञान।होय देख के जन हैरान।।

ज्ञान बाँट के माल डकार।मारय पर के हक अधिकार।।


जल जंगल अउ भुईं पहाड़। कुर्सी के बल होय उजाड़।।

सांसत मा सबके हे जान।बचा तहीं हर अब भगवान।।


सत्ता लोभी मन हर आज।झन बइठे कुर्सी ला साज।।

अइसे मन हा शोभित होय।बीज करम के जे मन बोय।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)

Thursday, December 12, 2024

अमर शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस मा तीन पीढ़ी के कलमकार मन के कविता के संग्रह - 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

 अमर शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस मा तीन पीढ़ी के कलमकार मन के कविता के संग्रह -

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


क्रान्तिकारी कवि लक्ष्मण मस्तुरिया के वीर काव्य *सोनाखान के आगी* के कुछ अंश


भाई-भाई म फूट डार दिन, मनखे-मनखे ल देइन लड़ाय

करजा बाँट करेजा काटिन, धरमी धरम सबो सर जाय।


किस्सा बड़े-बड़े कतको हे, ये भुइयाँ के सोसन के

जयचंद अउ मिरजाफर जतका, मुखिया होथे लोकखन के।


जोर जुल्म के उही समे मा, सभिमानी मन करिन विचार

परन ठान के कफन बाँध के, म्यान ले लिन तलवार निकाल।


फूँकिन संख सन सन्तावन म, कापिन बइरी गे घबराय

साह बहादुर लक्ष्मीबाई अउ, नाना टोपे सुरेन्दर साय।


मंदसौर ले खान फिरोजा, ग्वालियर के बैजा रानी

सहीद कुँअर सिंह आरा वाले, बानपुर के मर्दन बागी।


राहतगढ़ के आदिल मोहम्मद, अमझेर  ले बख्तावर सिंग

सादत खाँ इंदौर ले गरजिस, देस धरम बर जीव दे दिन।


उही समे म छत्तीसगढ़ के, गरजिस वीर नारायेन सिंग

रामराय के बघवा बेटा, सोनाखान धरती के धीर। 


सन छप्पन के परे दुकाल, कंद मूल घलो मिलै न पान

जंगल छोड़ पसु-पंछी परागै, भूख म परजा तजै परान।


निरमोही बयपारी आगू, वीर नारायेन जोरिस हाथ

परजा भूख मरत हे ठाढ़े, दे दौ करजा अन्न धन बाँट।


बड़े मुनाफा के लालच म, बयपारी बइठिन कठुवाय।

कोनो मरै जियै का हम ला, नइ कुछ देवौ बात सुनाय।


अन्यायी के आगू आके, अन्न धन लूट देइस बँटवाय

बनवासी जैकार करिन सब, जै-जै वीर नारायेन राय।


अँगरेजिया संग मिल बयपारी, नारायेन ल दिन बेड़वाय

चोरी डाका दफा लगाके, रइपुर जेल म दिन बँधवाय।


जमींदार मैं सोनाखान के, सोना उपजे मोर माटी म

जिहाँ के भुइँधर भूख मरत हे, आग बरै मोर छाती म।


आगी लगगे सोनाखान म, दहकिस सोना अँगरा कस

जेल टोर के बागी भागगे, इलियट भइगे अँधरा कस।


देवरी के जमींदार दोगला, बहनोई वीर नारायेन के

दगा दिहिस बाढ़े विपत म, काम करिस कुकटायन के।


अँगरेजिया स्मिथ बड़ कपटी,उही गद्दार ल लिस मिलाय

बेलासपुर भटगांव बिलइगढ़, घलो के सेना संग लेवाय।


अनियायी के अनिया सहना, सबले बड़े होवै अनियाय

काट के पापी ल खुद कट जावै, धरम करम गीता गुन गाय।


बिना सुराजी के जिनगानी, मुरदा हे तन मरे समान

बिना मान सभिमान के मनखे, गाय गरु अउ कुकुर समान।


पाए बर अधिकार परन धर, एक बेर तो निकल परौ

टंगिया रापा गैंती धर के, एक बेर तो बिफर परौ।


एक गिरौ दस मार मरौ तुम, एक जुझौ सौ देवौ जुझाय

कफन बाँध रन कूद परौ तुम, भागे बइरी प्रान बचाय।


भुईं महतारी के रक्षा बर, असली मनखे प्रान गँवाय

कायर फँसथे सुख सुविधा बर, नकली चकली साज सजाय।


अन्यायी कट कचरा होथे, न्यायी खप के सोन समान

धरमी जागै अलख जगावै, पापी के मुँह कसे लगाम।


तप तप तन-मन बज्जुरा बनथे, खप खप देह भभूत समान

जनम जनम के जंग जुझारू, होथे वीर सपूत महान।


तप बिन तन-मन तलमलतइया, प्रन बिन प्रानी पसु पछार।

त्याग बिना जीव तनानना के, दया धरम बिन गरु गँवार।


हर हर महादेव कहि कहि के, सरदारन के जोस बढ़ाय

मार मार के काट काट कहि, नारायेन गरजै गुर्राय।


चारों खूंट ले जंगल मंझ म, घिरगे वीर नारायेन फेर

सेना खपगै गोली खंगगै, घायल भइगे घायल सेर।


मनेमन गुनिस वीर नारायेन, अब तो लड़े अकारथ हे

बन-कांदी कस लोग कटत हें, मरना मोर सकारथ हे।


आ स्मिथ अब बाँध मोला, मत मार निहत्था रइयत ल

गरज के बोलिस बागी वीर ले, रोक ले सांग सिपहियन ल।


कबरा घोड़ा करेलिया म बइठे, बेधड़क चलिस नारायेन राय

पाछू पाछू अंगरेज स्मिथ, आजू बाजू सेना सजाय।


सरेआम चौरास्ता मंझ म, सभा भरे डंका बजवाय

सावधान नारायेन सिंग ल, तोप दाग देहैं उड़वाय।


जै सुराज जै जनम भूमि के, गरजिस वीर उठाके हाथ

सुरुज देव के नमन करिस अउ, धुर्रा उठा चढ़ा लिस माथ।


तान के छाती खड़े वीरसिंग, बेधड़क देख रहे मुस्काय

आर्डर होत भये सन्नाटा, छूटिस तोप गरज गर्राय।


चंदन बनगे तन बागी के, माटी लहू मिले ललियाय

धर धर आँसू धरती रोइस, चहुंदिस अँधियारी घिर आय।


हाय रे माटी तोरो करम ल, ठाढ़ दरक गे तोरो भाग

सोन गँवा गे सोनाखान के, कायर कपटी मन के राज।


मनखे संग गद्दारी करके, माफी पा जाही बेईमान

माटी संग गद्दारी करही, वोला नइ बकसै भगवान।


असने कतको वीर खपे हें, छत्तीसगढ़ के माटी म

काँध ले काँध मिलाके रेंगैं, देस के सुख दुख पाती म।


कोन कथे माटी के मनखे, जागे नइये सूते हे

जब जब जुलमी मूड़ उठाथें, तब तब बारूद फूटे हे।


वीर नारायेन के सपना ह, टूटत हवै अधूरा हे

धधके छाती छत्तीसगढ़ के, दुख के बढ़ती पूरा हे। 


अरे नाग तैं काट नहीं त, जी भर के फुंफकार तो रे

अरे बाघ तैं मार नहीं त, गरज गरज धुत्तकार तो रे।


एक न एक दिन ए माटी के, पीरा रार मचाही रे

नरी कटाही बइरी मन के, नवा सुरुज फेर आही रे।


रचनाकार - लक्ष्मण मस्तुरिया

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


कवि हरि ठाकुर जी के खंडकाव्य "अमर शहीद वीर नारायणसिंह" पढ़े के सौभाग्य नइ मिलिस फेर एक लेख म दू पंक्ति मिलिस जेला खंडकाव्य के अंश के रूप म प्रस्तुत करत हँव -  


कोनहा म खड़े हनुमान सिंह देखत हे ये कुरबानी ला

परतिज्ञा आज करत हौं मैं, बदला एकर ले के रइहौं

जब हो जाही प्रण पूरा तब, तलवार म्यान म धरिहौं।


रचनाकार - कवि हरि ठाकुर 

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


वीर नारायण सिंह के बलिदान गाथा कवि केयूर भूषण अउ निरुपमा शर्मा जी अपन अपन कविता म करिन हें। इन मन के कविता पढ़े के भी सौभाग्य मोला नइ मिल पाइस। 

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


अमर शहीद वीर नारायण सिंह ला छन्द के छ परिवार के श्रद्धा - सुमन


(1) आल्हा छन्द - कमलेश वर्मा

"सोनाखान के वीर"


सत्रह सौ पंचनबे सन मा, झूम उठिस बड़ सोनाखान।

रामराय घर जनम धरिन जी, हमर राज के बड़का शान।1।


मातु पिता मन खुशी मनावत, नारायण सिंह धर लिन नाम।

निडर साहसी बचपन ले वो, पूजय देवता बिहना शाम।2।


जमींदार बन वो हा आघू, बिकट करिस जी जनकल्यान।

पूरा कोशिश सदा करिस वो, झन राहय कोनो परशान ।3।


जब अकाल अउ सूखा पड़ गिस,सन छप्पन के घटना जान।

तब जनता मा  बँटवा दिस वो, अपन सबो कोठी के धान।4।


तभो बहुत झन भूख-प्यास ले, करत रिहिन हे चीख-पुकार।

लोगन संगे नारायण तब, गिस व्यापारी माखन- द्वार।5।

 

फेर सेठ के दिल नइ पिघलिस, नइ दिस वोहर धान उधार।

तब नारायण सिंह हा बोलिस, सबो लूट लेवव भंडार।6।


घटना पाछू माखन पहुँचिस, अंगरेज इलियट के तीर।

मोर लूट लिन कोठी साहब, मनखे अउ नारायण वीर।7।


फेर पकड़ के नारायण ला, अंगरेज मन भेजिन जेल।

तोड़ जेल ला वोहर निकलिस, करके बड़का सुग्घर खेल।8।


वापिस सोनाखान पहुँच के, कर लिस वो सेना तैयार।

अंगरेज मन संग युद्ध मा, सेना भारी करिस प्रहार।9।


चलिस सरासर बान धनुष ले, अउ होइस भाला ले वार।

कैप्टन स्मिथ के दल कोती जी, मच गिस बिक्कट हाहाकार।10।


फेर अंत मा घमासान के, बंदी बनगे वीर महान।

चलिस मुकदमा झूठ-कपट ले, देशद्रोह ला कारन मान।11।


नारायण ला सजा सुना दिस, फाँसी दे के ले बर जान।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा, दे दिस योद्धा हा बलिदान।12।


अपन प्रान ला देके वोहर, रख लिस बड़ माटी के मान।

जुग-जुग बर अम्मर होगे जी, लाँघन-भूखन के भगवान।13।


सन संतावन के ये घटना, छागे पूरा हिन्दुस्तान।

जनता मन हा जागिन भारी, आजादी बर दिन सब ध्यान।14।


नारायण सिंह के भुइँया ला, सरग सँही देवव सम्मान।

बार-बार मैं मूड़ नवावँव,पावन माटी सोनाखान।15।


रचना - कमलेश कुमार वर्मा

व्याख्याता, भिम्भौरी

बेरला,बेमेतरा (छत्तीसगढ़)

मो.-9009110792

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(2) आल्हा छन्द - नमेंद्र कुमार गजेंद्र

      "वीर नारायण सिंह"


रामराय के घर मा जन्मे , बालक संतावन मा एक।

नारायण बिंझवार नाम के , सुन लव सुग्घर गाथा नेक ।।


अंग्रेजन सन लोहा लेवत , मन मा राखिस भारी धीर।

माटी के नारायण बेटा , माटी बर लड़ बनगे वीर ।।


वो सिंघगढ़ के राजा बेटा , जेखर नाम रहिस बिंझवार।

परजा बर बघवा सन लड़गे, हाथ बनिस वोकर तलवार ।।


बहादुरी के सुन के गाथा , अंग्रेजन दे नामे वीर।

वीर लगे जे नारायण तब , फैले गाथा जमुना तीर ।।


जमाखोर के अन्न लूट के, जनता ला दे दिस वो बाँट।

लोगन कोनो भूख मरे झन, बइठे सोचे घर के आँट ।।


बस्तर के जब नरनारी ला , नारायण दे रहिस सकेल।

अंग्रेजन मन के माथा ले , रहिस बोहाये भारी तेल ।।


हँसिया साबर धर के परजा , नारायण सँग हो तैयार।

माटी के खातिर सब लड़गें , भेजिन सब गोरा यम द्वार ।।


बना आदिवासी के सेना , खड़े रहिस बघवा कस वीर।

एक झपट्टा भर वो मारे , छाती सबके देवय चीर ।।


आजादी के बन वो नायक , भरे रहिस भारी हुंकार।

कुकुर बिलइ कस अंग्रेजन मन , भागन लागिन सुन चित्कार ।।


शेर गोंडवाना बस्तर के , आजादी के योद्धा आय।

काँट भोंग के अंग्रेजन ला , अपन राज ले हवय भगाय ।।


बघवा ला पहिना के बेंड़ी ,  अंग्रेजन चौड़ा कर माथ।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा , फाँसी दे दिस बाँधे हाथ ।।


रचनाकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

ग्राम-हल्दी(गुंडरदेही) जिला-बालोद

मोबा.8225912350

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(3) आल्हा छन्द -  विरेन्द्र कुमार साहू


     "वीर नारायण सिंह"


नारायण सिंह धाकड़ चेलिक , बइरी बर सँउहे यमदूत।

लड़िस लड़ाई स्वतंत्रता के , माटी हितवा वीर सपूत।1।


जब जब बइरी मन आ-आके , करे रहिन भारी अतलंग।

पानी पसिया देके भिड़गे , रन मा वोहर बइरी संग।2।


रामसाय के बघवा बेटा , लइका रहय घात के ऊँच।

पोटा काँपय बइरी मनके , रेंगय बीस हाथ ले घूँच।3।


बाँधे पागा लाली फेंटा , सादा धोती उनकर शान।

हाथ म पहिरे चाँदी चूरा , सोना-बारी सोहे कान।4।


रहय रोठ बंदूक पीठ मा , कनिहा मा धरहा तलवार।

बउरे इनला सदा वीर हा ,केवल खातिर पर उपकार।5।


छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम -.बोड़राबाँधा (राजिम), जिला - गरियाबंद (छ.ग.) 9993690899

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(4) आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर


     "वीर नारायण सिंह"


महावीर नारायण सिंह ला, रिहिस देश ले अब्बड़ प्यार।

लड़िस लड़ाई आजादी के, आँखी मा भरके अंगार।।


जन के हक मारय अँगरेजन, अपन भरयँ जी उन गोदाम।

काम करावँय घात रात दिन, अउ देवँय गा कमती दाम।


दिन-दिन जब अँगरेजन मन के, बढ़त रिहिस हे अत्याचार।

तब विरोध मा आघू आइस, नारायण हा धर तलवार।।


कभू गुलामी के जिनगी हा, उन ला गा नइ आइस रास।

सबो आदिवासी ल सकेलिन, अपन बनाइन सेना खास।।


नारायण हुंकार भरिस हे, सबो उठाइस तब हथियार।

लड़िस हवँय गोरा मन सन जी, ओमन माँगे बर अधिकार।।


जुलुम देख के मनखे ऊपर, अब्बड़ खउलय सिंह के खून।

देख वीर ला गोरा मन के, गिल्ला हो जावँय पतलून।।


रिहिस हवय नारायण सिंह हा, ऊँचा-पूरा धाकड़ वीर।

उठा-उठा के ठाढ़ पटक के, बैरी मन ला देवय चीर।।


जब दहाड़ बघवा कस मारय, बने-बने के जी थर्राय।

प्रान बचाये बर बैरी मन, रुखराई के बीच लुकाय।।


खच खच खच तलवार चलावय, मारय सर सर गा ओ तीर।

अँगरेजन के सैनिक मन हा, उनकर आघू माँगय नीर।।


रिहिन वीर नारायण सच्चा, भारत माता के जी लाल।

करे रिहिन सन संतावन मा, अँगरेजन के बाराहाल।।


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,

पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(5) आल्हा छंद  - महेन्द्र देवांगन माटी


           "वीर नारायण सिंह"


रामराय के घर मा आइस , भारत माता के वो लाल।

ढोल नँगाड़ा ताँसा बाजे , अँगरेजन के बनगे काल।।


लइका मन सँग खेलय कूदे , कभू नहीं  मानिस वो हार।

भाला बरछी तीर चलावै , कोनों नइ पावय गा पार।।


जंगल झाड़ी पर्वत घाटी  , घोड़ा चढ़ के वोहर जाय।

वोकर रहय अचूक निशाना , बैरी मन ला मार गिराय।।


नारायण सिंह नाम ल सुन के , अँगरेजन मन बड़ थर्रांय।

पोटा काँपय गोरा मन के , जंगल झाड़ी भाग लुकाँय।।


जब जब अत्याचार बढ़य जी , निकल जाय ले के तलवार ।

गाजर मूली जइसे काटे , मच जाये गा हाहाकार ।।


खटखट खट तलवार चलाये , सर सर सर सर तीर कमान ।

लाश उपर गा लाश गिराये , बैरी के नइ बाँचे जान ।।


सन छप्पन अंकाल परिस तब , जनता बर माँगीस अनाज ।

जमाखोर माखन बैपारी  , नइ राखिस गा वोकर लाज ।।


आगी कस बरगे नारायण , लूट डरिस जम्मो गोदाम ।

सब जनता मा बाँटिस वोहर , कर दिस ओकर काम तमाम।।


चालाकी ले अँगरेजन मन , नारायण ला डारिस जेल।

देश द्रोह आरोप लगा के , खेलिस हावय घातक खेल।।


दस दिसम्बर संतावन मा , बीच रायपुर चौंरा तीर।

हाँसत हाँसत फँदा चूम के , झुलगे फाँसी माटी वीर ।।


छंदकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"

पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(6) कुकुभ छंद गीत-श्रीमती आशा आजाद


छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा, वीर नरायण कहलावै।

सच्चा सेनानी ओ राहिन,भारत मा गुन ला गावै।।


अंग्रेज़ी सासन ले जूझिन,अबड़ रहिन जी ओ दानी।

कुर्रूपाट मा जनम लिहिन जी,करिन देश बर अगवानी।

बिंझवार परिवार के बेटा,आज माथ ला चमकावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


नरभक्षी ओ शेर ल मारिन,ओखर पढ़लौ सब गाथा ।

अमर वीर के कुर्बानी ले,भारत के चमकिस माथा।

डरिस नही अंतस मन ले ओ,साहस सबके मन भावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


बहादुरी के अब्बड़ किस्सा,देश प्रेम अउ कुर्बानी।

ब्रिटिश राज हा मान बढ़ाइस,पदवी दिन आनी बानी।

जयस्तंभ के चौक म फाँसी,तोप तान के उड़वावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


बनिन स्वतंत्रता संग्रामी,याद रही ये बलिदानी।

छत्तीसगढ़ म अमर नाव हे,आज दिवस ला सब मानी।

हिरदे ले परनाम करौ जी,अइसन हीरा नइ आवै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


छंदकार-श्रीमती आशा आजाद

पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(7) सरसी छंद - बोधन राम निषाद


वीर नरायन जनम धरिन हे, माटी सोना खान।

जंगल झाड़ी लड़िन लड़ाई, होके बड़े सुजान।।


जमीदारी के बोझा बोहे, जनता ला सुख देय।

ओखर हक बर काम करे वो, बैरी लोहा लेय।।


अठरा सौ सन् सन्तावन मा, लड़े शहीद कहाय।

वीर नरायन बेटा माँ के, छत्तीसगढ़ ल भाय।।


छंदकार-बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(8) आत्मा वीर नारायण के (लावणी छंद)


दुख पीरा हा हमर राज मा,जस के तस हे जन जन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


जे मन के खातिर लड़ मरगे,ते मन बुड़गे स्वारथ मा।

तोर मोर कहि लड़त मरत हे, काँटा बोवत हे पथ मा।

कोन करे अब सेवा पर के,माटी के खाँटी बनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


अधमी सँग मा अधमी बनके,माई पिला सिरावत हे।

पइसा आघू घुटना टेकत,गरब गुमान गिरावत हे।

परदेशी के पाँव पखारय,अपने बर ठाढ़े तन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


बाप नाँव ला बेटा बोरे, महतारी तक ला छोड़े।

राज धरम बर का लड़ही जे,भाई बर खँचका कोड़े।

गुन गियान के अता पता नइ, गरब करत हे वो धन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


लाँघन ला लोटा भर पानी,लटपट मा मिल पावत हे।

कइसे जिनगी जिये बिचारा,रो रो पेट ठठावत हे।

अपने होगे अत्याचारी,मुटका मारत हे हनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


नेता बयपारी मन गरजे,अँगरेजन जइसन भारी।

कोन बने बेटा बलिदानी,दुख के बोहय अब धारी।

गद्दी ला गद्दार पोटारे, करत हवय कारज मनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(9) लावणी छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'*


''बीर नरायण सोनाखनिहा''


सुरता आ गे तोर ग मोला,आँखी मा आ गे पानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


बछर सत्तरह सौ पन्चनवे,जनम भइस मुँधराहा के।

छत्तीसगढ़ भुँइया खुश होइस,हीरा बेटा ला पा के।


नारायण आँखी के तारा,रामकुँवर महतारी के।

रामसाय के राज दुलरुवा,दीया डीह दुवारी के।


सत रद्दा मा रेंगस धर के,संत गुरू मनके बानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


सन अठ्ठारह सौ छप्पन मा,घोर अकाल परे राहय।

जनता के दुख भूख प्यास ला,तोर प्रयास हरे राहय।


विनत निवेदन नइ समझिस ता,बँटवा देये राशन ला।

अपरिद्धा माखन ब्यापारी,लिगरी करदिस शासन ला।


झूठा केस चलावन लागिस,ओ अँगरेजी अहमानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


माह दिसम्बर तारिक दस के,अठ्ठारह सौ सन्तावन।

फाँसी दे दिन तोला हीरा,गला भरत हे का गावन?


छत्तीसगढ़ के गाँव गली मा,तुरत पसरगे सन्नाटा।

जनता के हिस्सा मा जइसे,अँधियारी आ गे बाँटा।


तोर शहादत आँखी देखिस,रोइस रयपुर रजधानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


छन्दकार - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳


(10) छन्द के छ परिवार के कवि मनीराम साहू मितान जी के वीर काव्य के किताब "हीरा सोनाखान के" 3 बछर पहिली प्रकाशित होइस। 


ये किताब मा आल्हा छन्द के 251 पद हें। शुरू के 28 पद मा वंदना हे। आल्हा के 29  ले  65 पद मा गुलामी के पहिली के भारत के वैभव,  कोन-कोन विदेशी मन कब अउ कइसे आइन अउ हमर देश कइसे गुलाम होगे तेखर छन्दमय इतिहास बताये गेहे। आल्हा के पद संख्या 66 ले 75 तक देश मा कहाँ कहाँ अउ कोन कोन क्रांतिकारी मन आजादी बर आंदोलन चलाइन एखर बरनन हे। आल्हा के पद संख्या 76  ले 251 तक वीर नारायण सिंह के छन्दमय कथानक चले हे। बीच बीच मा उल्लाला, हरिगीतिका, बरवै, सरसी, शक्ति, चौपाई, मनहरण घनाक्षरी, शंकर, सार छन्द के प्रयोग एकरसता के दोष ले ये किताब ला मुक्त करत हे। मनहरण घनाक्षरी मा युद्धभूमि के वर्णन मा मनीराम साहू जी के काव्य कौशल देखते बनत हे। शब्द चुने के क्षमता कोनो कवि के श्रेष्ठता के पैमाना होथे। मनीराम साहू जी के शब्द चयन देखव - रिबी रिबी, घोंटो दर्रा, टकोली, अलथी कलथी,केलवली, तालाबेली, कुलकुला अइसन-अइसन ठेठ अउ दुर्लभ शब्द के प्रयोग उही कर सकथे जउन कवि हर नान्हेंपन ले  भुइयाँ  संग जुड़े रहिथे। ये किताब मा हाना के सुग्घर प्रयोग देखे बर मिलही। अलंकार प्रयोग के बात करे जाय त आल्हा छन्द, बिना अतिश्योक्ति अलंकार के नइ लिखे जाय। अतिश्योक्ति अलंकार के प्रयोग मनीराम साहू जी के विलक्षण काव्य क्षमता के गवाही देवत हे। 


आग बरन गा ओकर आँखी, टक्क लगा के देखय घूर।

बइरी तुरते भँग ले बर जय, हाड़ा गोड़ा जावय चूर।।


सिंह के खाँडा लहरत देखयँ, बइरी सिर मन कट जयँ आप।

लादा पोटा बाहिर आ जयँ, लहू निथर जय गा चुपचाप।।


हीरा सोनाखान के, ये किताब मा 21 प्रकार के छन्द के प्रयोग होय हे। मुख्य छन्द आल्हा आय जेखर 251 पद इहाँ पढ़े बर मिलही। इतिहास आधारित ये किताब मा तारीख अउ सन् के उल्लेख घलो करे गेहे।


सन् अट्ठारह सौ छप्पन मा, परय राज मा घोर दुकाल ।

बादर देवय धोखा संगी, मनखे मन के निछदिस खाल ।।


रहिस नवंबर सन्तावन मा, परे रहिस गा तारिक बीस 

सैनिक धरे चलिस इसमिथ हा, तइयारी कर दिन इक्कीस ।।


किताब के आखिर मा मनीराम साहू जी विष्णुपद अउ छप्पय छन्द मा कथानक के सीख अउ संदेश ला पाठक तक पहुँचावत,सोरठा छन्द ले समापन करिन हें।


पढ़े अउ जाने बिना चिंतन नइ हो सके। बिना चिंतन के कविता नइ हो सके अउ कविता ला छन्द मा बाँधे बर अभ्यास अउ साधना जरूरी होथे। हीरा सोनाखान के, एमा कवि के ज्ञान, चिंतन अउ साधना के दर्शन होवत हे। वइसे त ये कृति हर मनीराम साहू जी के आय फेर अब छत्तीसगढ़ी साहित्य के धरोहर बन जाही। जउन मन आजादी के इतिहास नइ जानत हें वहू मन ये किताब ला पढ़ के आजादी के इतिहास अउ वीर नारायण के त्याग ला जान जाहीं। ये किताब नवा कवि  मन ला नवा रद्दा देखाही कि छत्तीसगढ़ी मा सुग्घर कविता कइसे लिखे जाथे।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

प्रस्तुतकर्ता - अरुण कुमार निगम

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳