Followers

Thursday, December 26, 2024

जाड़

 [12/19, 4:23 PM] मुकेश 16: जाड़- जयकारी छंद


गोड़-हाथ अउ काँपय हाड़।

बाढ़े हावय बिक्कट जाड़।। 

एकर बर कुछु करव उपाय।

नइतो अब गा जाड़ सहाय।। 


कुनकुन लागय देखव घाम।

रोज बिहनिया सेंकव चाम।। 

कथरी कमरा बने सुहाय।

आगी अँगरा सब ला भाय।।


लकड़ी छेना लेवव जोर।

झन देखव गा दाँत निपोर।। 

जड़काला बइरी हा आय।

लटपट मा अब रात पहाय।। 


बिगड़े हावय सबके हाल।

जड़काला हा बनगे काल।। 

अलकरहा गा जाड़ भराय।

कोन नहाये खोरे जाय।। 


लइका पिचका संग सियान।

जाड़ करय सब ला हलकान।। 

सुरुर-सुरुर पुरवा हा आय।

नाक घलो अब्बड़ बोहाय।। 


छेरी पथरू पावय जाड़।

उँकरो बर गा करव जुगाड़।। 

गरुवा बइला बड़ नरियाय।

पैरा भूसा नइतो खाय।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

[12/19, 5:56 PM] राज निषाद: *विषय - जाड़ दोहा छंद*


जड़काला मा गोरसी, अँगरा आगी ताप।

बइठे-बइठे राम के,  करत रहौ सब जाप।।


बइठे दाई डोकरी, बने रौनिया ताप।

संग म हावय डोकरा, करत राम के जाप।।


जगह-जगह भुर्री बरय, लकड़ी छेना डार।

कुनकुन-कुनकुन ताप ले, अँगरा आगी बार।।


हाथ गोड़ हा काँपगे, सब झन हे थर्राय।

जाड़ सीत ला देख के, बुढ़वा मन डर्राय।


अबड़ करत हे जाड़ जी, कंबल कथरी लान।

सुत जा सुग्घर ओढ़ के, हाथ गोड़ मुँह कान।।


राजकुमार निषाद"राज"

बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग

7898837338

[12/19, 6:17 PM] S K Miree: जाड़ *(सरसी छंद)*


देख असो के ठंडा मौसम, लानिस हे बड़ जाड़।

हाथ गोड़ हर सफ्फा ठरगे, ठण्डा भेदिस हाड़।।


स्वेटर पहिरे कथरी ओढ़े, गरमी तभो उछींद।

धरे कँपकपी दाँत बजत हे, आवत नइ हे नींद।।


करा सही पानी हा ठरथे, कइसे हाथ लगाव।

नरी घलो ठंडा पर जाथे, पीयत देख डराँव।।


हिम्मत नइ होवत हे संगी, कइसे रोज नहाँव।

गुनत हवँव अतका ठंडा मा, कइसे बूता जाँव।।


सूरज दादा घलो लुकाये, उग जा कहँव बुलाँव।

भुर्री तापत बइठे मैं हर, दिन ला रोज पहाँव।।


सरसर-सरसर पवन चलत हे, अउ बाढ़त हे जाड़।

कान नाक ला बिन बाँधे तैं, होय सकस नइ ठाड़।।


जाड़ बाढ़ के देख दिनों दिन, जिनगी देत उजाड़।

जीव जंतु अउ सब मनखे के, जीना होगिस काड़।।


लोको पायलट -संतोष मिरी 'हेम'

       कोरबा (छत्तीसगढ़)

************************************

[12/23, 3:01 PM] +91 84358 44508: कुंडलिया छंद


थरथर काँपत जाड़ मा, सोचत हवय किसान। 

मंडी मा अब पहुँच गे, कट्टा - कट्टा धान।।

कट्टा- कट्टा धान, बेच के पइसा पाबो।

गर्मी फसल उधार, पटा के फेर कमाबो।

भगा जाहि  जी जाड़, पसीना गिरही तरतर।

श्रम के गजब प्रभाव, हाड़ नी  काँपे  थरथर।।


अमितारवि दुबे©®

No comments:

Post a Comment