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Thursday, December 12, 2024

अमर शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस मा तीन पीढ़ी के कलमकार मन के कविता के संग्रह - 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

 अमर शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस मा तीन पीढ़ी के कलमकार मन के कविता के संग्रह -

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क्रान्तिकारी कवि लक्ष्मण मस्तुरिया के वीर काव्य *सोनाखान के आगी* के कुछ अंश


भाई-भाई म फूट डार दिन, मनखे-मनखे ल देइन लड़ाय

करजा बाँट करेजा काटिन, धरमी धरम सबो सर जाय।


किस्सा बड़े-बड़े कतको हे, ये भुइयाँ के सोसन के

जयचंद अउ मिरजाफर जतका, मुखिया होथे लोकखन के।


जोर जुल्म के उही समे मा, सभिमानी मन करिन विचार

परन ठान के कफन बाँध के, म्यान ले लिन तलवार निकाल।


फूँकिन संख सन सन्तावन म, कापिन बइरी गे घबराय

साह बहादुर लक्ष्मीबाई अउ, नाना टोपे सुरेन्दर साय।


मंदसौर ले खान फिरोजा, ग्वालियर के बैजा रानी

सहीद कुँअर सिंह आरा वाले, बानपुर के मर्दन बागी।


राहतगढ़ के आदिल मोहम्मद, अमझेर  ले बख्तावर सिंग

सादत खाँ इंदौर ले गरजिस, देस धरम बर जीव दे दिन।


उही समे म छत्तीसगढ़ के, गरजिस वीर नारायेन सिंग

रामराय के बघवा बेटा, सोनाखान धरती के धीर। 


सन छप्पन के परे दुकाल, कंद मूल घलो मिलै न पान

जंगल छोड़ पसु-पंछी परागै, भूख म परजा तजै परान।


निरमोही बयपारी आगू, वीर नारायेन जोरिस हाथ

परजा भूख मरत हे ठाढ़े, दे दौ करजा अन्न धन बाँट।


बड़े मुनाफा के लालच म, बयपारी बइठिन कठुवाय।

कोनो मरै जियै का हम ला, नइ कुछ देवौ बात सुनाय।


अन्यायी के आगू आके, अन्न धन लूट देइस बँटवाय

बनवासी जैकार करिन सब, जै-जै वीर नारायेन राय।


अँगरेजिया संग मिल बयपारी, नारायेन ल दिन बेड़वाय

चोरी डाका दफा लगाके, रइपुर जेल म दिन बँधवाय।


जमींदार मैं सोनाखान के, सोना उपजे मोर माटी म

जिहाँ के भुइँधर भूख मरत हे, आग बरै मोर छाती म।


आगी लगगे सोनाखान म, दहकिस सोना अँगरा कस

जेल टोर के बागी भागगे, इलियट भइगे अँधरा कस।


देवरी के जमींदार दोगला, बहनोई वीर नारायेन के

दगा दिहिस बाढ़े विपत म, काम करिस कुकटायन के।


अँगरेजिया स्मिथ बड़ कपटी,उही गद्दार ल लिस मिलाय

बेलासपुर भटगांव बिलइगढ़, घलो के सेना संग लेवाय।


अनियायी के अनिया सहना, सबले बड़े होवै अनियाय

काट के पापी ल खुद कट जावै, धरम करम गीता गुन गाय।


बिना सुराजी के जिनगानी, मुरदा हे तन मरे समान

बिना मान सभिमान के मनखे, गाय गरु अउ कुकुर समान।


पाए बर अधिकार परन धर, एक बेर तो निकल परौ

टंगिया रापा गैंती धर के, एक बेर तो बिफर परौ।


एक गिरौ दस मार मरौ तुम, एक जुझौ सौ देवौ जुझाय

कफन बाँध रन कूद परौ तुम, भागे बइरी प्रान बचाय।


भुईं महतारी के रक्षा बर, असली मनखे प्रान गँवाय

कायर फँसथे सुख सुविधा बर, नकली चकली साज सजाय।


अन्यायी कट कचरा होथे, न्यायी खप के सोन समान

धरमी जागै अलख जगावै, पापी के मुँह कसे लगाम।


तप तप तन-मन बज्जुरा बनथे, खप खप देह भभूत समान

जनम जनम के जंग जुझारू, होथे वीर सपूत महान।


तप बिन तन-मन तलमलतइया, प्रन बिन प्रानी पसु पछार।

त्याग बिना जीव तनानना के, दया धरम बिन गरु गँवार।


हर हर महादेव कहि कहि के, सरदारन के जोस बढ़ाय

मार मार के काट काट कहि, नारायेन गरजै गुर्राय।


चारों खूंट ले जंगल मंझ म, घिरगे वीर नारायेन फेर

सेना खपगै गोली खंगगै, घायल भइगे घायल सेर।


मनेमन गुनिस वीर नारायेन, अब तो लड़े अकारथ हे

बन-कांदी कस लोग कटत हें, मरना मोर सकारथ हे।


आ स्मिथ अब बाँध मोला, मत मार निहत्था रइयत ल

गरज के बोलिस बागी वीर ले, रोक ले सांग सिपहियन ल।


कबरा घोड़ा करेलिया म बइठे, बेधड़क चलिस नारायेन राय

पाछू पाछू अंगरेज स्मिथ, आजू बाजू सेना सजाय।


सरेआम चौरास्ता मंझ म, सभा भरे डंका बजवाय

सावधान नारायेन सिंग ल, तोप दाग देहैं उड़वाय।


जै सुराज जै जनम भूमि के, गरजिस वीर उठाके हाथ

सुरुज देव के नमन करिस अउ, धुर्रा उठा चढ़ा लिस माथ।


तान के छाती खड़े वीरसिंग, बेधड़क देख रहे मुस्काय

आर्डर होत भये सन्नाटा, छूटिस तोप गरज गर्राय।


चंदन बनगे तन बागी के, माटी लहू मिले ललियाय

धर धर आँसू धरती रोइस, चहुंदिस अँधियारी घिर आय।


हाय रे माटी तोरो करम ल, ठाढ़ दरक गे तोरो भाग

सोन गँवा गे सोनाखान के, कायर कपटी मन के राज।


मनखे संग गद्दारी करके, माफी पा जाही बेईमान

माटी संग गद्दारी करही, वोला नइ बकसै भगवान।


असने कतको वीर खपे हें, छत्तीसगढ़ के माटी म

काँध ले काँध मिलाके रेंगैं, देस के सुख दुख पाती म।


कोन कथे माटी के मनखे, जागे नइये सूते हे

जब जब जुलमी मूड़ उठाथें, तब तब बारूद फूटे हे।


वीर नारायेन के सपना ह, टूटत हवै अधूरा हे

धधके छाती छत्तीसगढ़ के, दुख के बढ़ती पूरा हे। 


अरे नाग तैं काट नहीं त, जी भर के फुंफकार तो रे

अरे बाघ तैं मार नहीं त, गरज गरज धुत्तकार तो रे।


एक न एक दिन ए माटी के, पीरा रार मचाही रे

नरी कटाही बइरी मन के, नवा सुरुज फेर आही रे।


रचनाकार - लक्ष्मण मस्तुरिया

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कवि हरि ठाकुर जी के खंडकाव्य "अमर शहीद वीर नारायणसिंह" पढ़े के सौभाग्य नइ मिलिस फेर एक लेख म दू पंक्ति मिलिस जेला खंडकाव्य के अंश के रूप म प्रस्तुत करत हँव -  


कोनहा म खड़े हनुमान सिंह देखत हे ये कुरबानी ला

परतिज्ञा आज करत हौं मैं, बदला एकर ले के रइहौं

जब हो जाही प्रण पूरा तब, तलवार म्यान म धरिहौं।


रचनाकार - कवि हरि ठाकुर 

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वीर नारायण सिंह के बलिदान गाथा कवि केयूर भूषण अउ निरुपमा शर्मा जी अपन अपन कविता म करिन हें। इन मन के कविता पढ़े के भी सौभाग्य मोला नइ मिल पाइस। 

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अमर शहीद वीर नारायण सिंह ला छन्द के छ परिवार के श्रद्धा - सुमन


(1) आल्हा छन्द - कमलेश वर्मा

"सोनाखान के वीर"


सत्रह सौ पंचनबे सन मा, झूम उठिस बड़ सोनाखान।

रामराय घर जनम धरिन जी, हमर राज के बड़का शान।1।


मातु पिता मन खुशी मनावत, नारायण सिंह धर लिन नाम।

निडर साहसी बचपन ले वो, पूजय देवता बिहना शाम।2।


जमींदार बन वो हा आघू, बिकट करिस जी जनकल्यान।

पूरा कोशिश सदा करिस वो, झन राहय कोनो परशान ।3।


जब अकाल अउ सूखा पड़ गिस,सन छप्पन के घटना जान।

तब जनता मा  बँटवा दिस वो, अपन सबो कोठी के धान।4।


तभो बहुत झन भूख-प्यास ले, करत रिहिन हे चीख-पुकार।

लोगन संगे नारायण तब, गिस व्यापारी माखन- द्वार।5।

 

फेर सेठ के दिल नइ पिघलिस, नइ दिस वोहर धान उधार।

तब नारायण सिंह हा बोलिस, सबो लूट लेवव भंडार।6।


घटना पाछू माखन पहुँचिस, अंगरेज इलियट के तीर।

मोर लूट लिन कोठी साहब, मनखे अउ नारायण वीर।7।


फेर पकड़ के नारायण ला, अंगरेज मन भेजिन जेल।

तोड़ जेल ला वोहर निकलिस, करके बड़का सुग्घर खेल।8।


वापिस सोनाखान पहुँच के, कर लिस वो सेना तैयार।

अंगरेज मन संग युद्ध मा, सेना भारी करिस प्रहार।9।


चलिस सरासर बान धनुष ले, अउ होइस भाला ले वार।

कैप्टन स्मिथ के दल कोती जी, मच गिस बिक्कट हाहाकार।10।


फेर अंत मा घमासान के, बंदी बनगे वीर महान।

चलिस मुकदमा झूठ-कपट ले, देशद्रोह ला कारन मान।11।


नारायण ला सजा सुना दिस, फाँसी दे के ले बर जान।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा, दे दिस योद्धा हा बलिदान।12।


अपन प्रान ला देके वोहर, रख लिस बड़ माटी के मान।

जुग-जुग बर अम्मर होगे जी, लाँघन-भूखन के भगवान।13।


सन संतावन के ये घटना, छागे पूरा हिन्दुस्तान।

जनता मन हा जागिन भारी, आजादी बर दिन सब ध्यान।14।


नारायण सिंह के भुइँया ला, सरग सँही देवव सम्मान।

बार-बार मैं मूड़ नवावँव,पावन माटी सोनाखान।15।


रचना - कमलेश कुमार वर्मा

व्याख्याता, भिम्भौरी

बेरला,बेमेतरा (छत्तीसगढ़)

मो.-9009110792

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(2) आल्हा छन्द - नमेंद्र कुमार गजेंद्र

      "वीर नारायण सिंह"


रामराय के घर मा जन्मे , बालक संतावन मा एक।

नारायण बिंझवार नाम के , सुन लव सुग्घर गाथा नेक ।।


अंग्रेजन सन लोहा लेवत , मन मा राखिस भारी धीर।

माटी के नारायण बेटा , माटी बर लड़ बनगे वीर ।।


वो सिंघगढ़ के राजा बेटा , जेखर नाम रहिस बिंझवार।

परजा बर बघवा सन लड़गे, हाथ बनिस वोकर तलवार ।।


बहादुरी के सुन के गाथा , अंग्रेजन दे नामे वीर।

वीर लगे जे नारायण तब , फैले गाथा जमुना तीर ।।


जमाखोर के अन्न लूट के, जनता ला दे दिस वो बाँट।

लोगन कोनो भूख मरे झन, बइठे सोचे घर के आँट ।।


बस्तर के जब नरनारी ला , नारायण दे रहिस सकेल।

अंग्रेजन मन के माथा ले , रहिस बोहाये भारी तेल ।।


हँसिया साबर धर के परजा , नारायण सँग हो तैयार।

माटी के खातिर सब लड़गें , भेजिन सब गोरा यम द्वार ।।


बना आदिवासी के सेना , खड़े रहिस बघवा कस वीर।

एक झपट्टा भर वो मारे , छाती सबके देवय चीर ।।


आजादी के बन वो नायक , भरे रहिस भारी हुंकार।

कुकुर बिलइ कस अंग्रेजन मन , भागन लागिन सुन चित्कार ।।


शेर गोंडवाना बस्तर के , आजादी के योद्धा आय।

काँट भोंग के अंग्रेजन ला , अपन राज ले हवय भगाय ।।


बघवा ला पहिना के बेंड़ी ,  अंग्रेजन चौड़ा कर माथ।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा , फाँसी दे दिस बाँधे हाथ ।।


रचनाकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

ग्राम-हल्दी(गुंडरदेही) जिला-बालोद

मोबा.8225912350

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(3) आल्हा छन्द -  विरेन्द्र कुमार साहू


     "वीर नारायण सिंह"


नारायण सिंह धाकड़ चेलिक , बइरी बर सँउहे यमदूत।

लड़िस लड़ाई स्वतंत्रता के , माटी हितवा वीर सपूत।1।


जब जब बइरी मन आ-आके , करे रहिन भारी अतलंग।

पानी पसिया देके भिड़गे , रन मा वोहर बइरी संग।2।


रामसाय के बघवा बेटा , लइका रहय घात के ऊँच।

पोटा काँपय बइरी मनके , रेंगय बीस हाथ ले घूँच।3।


बाँधे पागा लाली फेंटा , सादा धोती उनकर शान।

हाथ म पहिरे चाँदी चूरा , सोना-बारी सोहे कान।4।


रहय रोठ बंदूक पीठ मा , कनिहा मा धरहा तलवार।

बउरे इनला सदा वीर हा ,केवल खातिर पर उपकार।5।


छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम -.बोड़राबाँधा (राजिम), जिला - गरियाबंद (छ.ग.) 9993690899

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(4) आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर


     "वीर नारायण सिंह"


महावीर नारायण सिंह ला, रिहिस देश ले अब्बड़ प्यार।

लड़िस लड़ाई आजादी के, आँखी मा भरके अंगार।।


जन के हक मारय अँगरेजन, अपन भरयँ जी उन गोदाम।

काम करावँय घात रात दिन, अउ देवँय गा कमती दाम।


दिन-दिन जब अँगरेजन मन के, बढ़त रिहिस हे अत्याचार।

तब विरोध मा आघू आइस, नारायण हा धर तलवार।।


कभू गुलामी के जिनगी हा, उन ला गा नइ आइस रास।

सबो आदिवासी ल सकेलिन, अपन बनाइन सेना खास।।


नारायण हुंकार भरिस हे, सबो उठाइस तब हथियार।

लड़िस हवँय गोरा मन सन जी, ओमन माँगे बर अधिकार।।


जुलुम देख के मनखे ऊपर, अब्बड़ खउलय सिंह के खून।

देख वीर ला गोरा मन के, गिल्ला हो जावँय पतलून।।


रिहिस हवय नारायण सिंह हा, ऊँचा-पूरा धाकड़ वीर।

उठा-उठा के ठाढ़ पटक के, बैरी मन ला देवय चीर।।


जब दहाड़ बघवा कस मारय, बने-बने के जी थर्राय।

प्रान बचाये बर बैरी मन, रुखराई के बीच लुकाय।।


खच खच खच तलवार चलावय, मारय सर सर गा ओ तीर।

अँगरेजन के सैनिक मन हा, उनकर आघू माँगय नीर।।


रिहिन वीर नारायण सच्चा, भारत माता के जी लाल।

करे रिहिन सन संतावन मा, अँगरेजन के बाराहाल।।


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,

पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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(5) आल्हा छंद  - महेन्द्र देवांगन माटी


           "वीर नारायण सिंह"


रामराय के घर मा आइस , भारत माता के वो लाल।

ढोल नँगाड़ा ताँसा बाजे , अँगरेजन के बनगे काल।।


लइका मन सँग खेलय कूदे , कभू नहीं  मानिस वो हार।

भाला बरछी तीर चलावै , कोनों नइ पावय गा पार।।


जंगल झाड़ी पर्वत घाटी  , घोड़ा चढ़ के वोहर जाय।

वोकर रहय अचूक निशाना , बैरी मन ला मार गिराय।।


नारायण सिंह नाम ल सुन के , अँगरेजन मन बड़ थर्रांय।

पोटा काँपय गोरा मन के , जंगल झाड़ी भाग लुकाँय।।


जब जब अत्याचार बढ़य जी , निकल जाय ले के तलवार ।

गाजर मूली जइसे काटे , मच जाये गा हाहाकार ।।


खटखट खट तलवार चलाये , सर सर सर सर तीर कमान ।

लाश उपर गा लाश गिराये , बैरी के नइ बाँचे जान ।।


सन छप्पन अंकाल परिस तब , जनता बर माँगीस अनाज ।

जमाखोर माखन बैपारी  , नइ राखिस गा वोकर लाज ।।


आगी कस बरगे नारायण , लूट डरिस जम्मो गोदाम ।

सब जनता मा बाँटिस वोहर , कर दिस ओकर काम तमाम।।


चालाकी ले अँगरेजन मन , नारायण ला डारिस जेल।

देश द्रोह आरोप लगा के , खेलिस हावय घातक खेल।।


दस दिसम्बर संतावन मा , बीच रायपुर चौंरा तीर।

हाँसत हाँसत फँदा चूम के , झुलगे फाँसी माटी वीर ।।


छंदकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"

पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़

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(6) कुकुभ छंद गीत-श्रीमती आशा आजाद


छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा, वीर नरायण कहलावै।

सच्चा सेनानी ओ राहिन,भारत मा गुन ला गावै।।


अंग्रेज़ी सासन ले जूझिन,अबड़ रहिन जी ओ दानी।

कुर्रूपाट मा जनम लिहिन जी,करिन देश बर अगवानी।

बिंझवार परिवार के बेटा,आज माथ ला चमकावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


नरभक्षी ओ शेर ल मारिन,ओखर पढ़लौ सब गाथा ।

अमर वीर के कुर्बानी ले,भारत के चमकिस माथा।

डरिस नही अंतस मन ले ओ,साहस सबके मन भावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


बहादुरी के अब्बड़ किस्सा,देश प्रेम अउ कुर्बानी।

ब्रिटिश राज हा मान बढ़ाइस,पदवी दिन आनी बानी।

जयस्तंभ के चौक म फाँसी,तोप तान के उड़वावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


बनिन स्वतंत्रता संग्रामी,याद रही ये बलिदानी।

छत्तीसगढ़ म अमर नाव हे,आज दिवस ला सब मानी।

हिरदे ले परनाम करौ जी,अइसन हीरा नइ आवै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


छंदकार-श्रीमती आशा आजाद

पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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(7) सरसी छंद - बोधन राम निषाद


वीर नरायन जनम धरिन हे, माटी सोना खान।

जंगल झाड़ी लड़िन लड़ाई, होके बड़े सुजान।।


जमीदारी के बोझा बोहे, जनता ला सुख देय।

ओखर हक बर काम करे वो, बैरी लोहा लेय।।


अठरा सौ सन् सन्तावन मा, लड़े शहीद कहाय।

वीर नरायन बेटा माँ के, छत्तीसगढ़ ल भाय।।


छंदकार-बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

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(8) आत्मा वीर नारायण के (लावणी छंद)


दुख पीरा हा हमर राज मा,जस के तस हे जन जन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


जे मन के खातिर लड़ मरगे,ते मन बुड़गे स्वारथ मा।

तोर मोर कहि लड़त मरत हे, काँटा बोवत हे पथ मा।

कोन करे अब सेवा पर के,माटी के खाँटी बनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


अधमी सँग मा अधमी बनके,माई पिला सिरावत हे।

पइसा आघू घुटना टेकत,गरब गुमान गिरावत हे।

परदेशी के पाँव पखारय,अपने बर ठाढ़े तन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


बाप नाँव ला बेटा बोरे, महतारी तक ला छोड़े।

राज धरम बर का लड़ही जे,भाई बर खँचका कोड़े।

गुन गियान के अता पता नइ, गरब करत हे वो धन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


लाँघन ला लोटा भर पानी,लटपट मा मिल पावत हे।

कइसे जिनगी जिये बिचारा,रो रो पेट ठठावत हे।

अपने होगे अत्याचारी,मुटका मारत हे हनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


नेता बयपारी मन गरजे,अँगरेजन जइसन भारी।

कोन बने बेटा बलिदानी,दुख के बोहय अब धारी।

गद्दी ला गद्दार पोटारे, करत हवय कारज मनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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(9) लावणी छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'*


''बीर नरायण सोनाखनिहा''


सुरता आ गे तोर ग मोला,आँखी मा आ गे पानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


बछर सत्तरह सौ पन्चनवे,जनम भइस मुँधराहा के।

छत्तीसगढ़ भुँइया खुश होइस,हीरा बेटा ला पा के।


नारायण आँखी के तारा,रामकुँवर महतारी के।

रामसाय के राज दुलरुवा,दीया डीह दुवारी के।


सत रद्दा मा रेंगस धर के,संत गुरू मनके बानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


सन अठ्ठारह सौ छप्पन मा,घोर अकाल परे राहय।

जनता के दुख भूख प्यास ला,तोर प्रयास हरे राहय।


विनत निवेदन नइ समझिस ता,बँटवा देये राशन ला।

अपरिद्धा माखन ब्यापारी,लिगरी करदिस शासन ला।


झूठा केस चलावन लागिस,ओ अँगरेजी अहमानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


माह दिसम्बर तारिक दस के,अठ्ठारह सौ सन्तावन।

फाँसी दे दिन तोला हीरा,गला भरत हे का गावन?


छत्तीसगढ़ के गाँव गली मा,तुरत पसरगे सन्नाटा।

जनता के हिस्सा मा जइसे,अँधियारी आ गे बाँटा।


तोर शहादत आँखी देखिस,रोइस रयपुर रजधानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


छन्दकार - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

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(10) छन्द के छ परिवार के कवि मनीराम साहू मितान जी के वीर काव्य के किताब "हीरा सोनाखान के" 3 बछर पहिली प्रकाशित होइस। 


ये किताब मा आल्हा छन्द के 251 पद हें। शुरू के 28 पद मा वंदना हे। आल्हा के 29  ले  65 पद मा गुलामी के पहिली के भारत के वैभव,  कोन-कोन विदेशी मन कब अउ कइसे आइन अउ हमर देश कइसे गुलाम होगे तेखर छन्दमय इतिहास बताये गेहे। आल्हा के पद संख्या 66 ले 75 तक देश मा कहाँ कहाँ अउ कोन कोन क्रांतिकारी मन आजादी बर आंदोलन चलाइन एखर बरनन हे। आल्हा के पद संख्या 76  ले 251 तक वीर नारायण सिंह के छन्दमय कथानक चले हे। बीच बीच मा उल्लाला, हरिगीतिका, बरवै, सरसी, शक्ति, चौपाई, मनहरण घनाक्षरी, शंकर, सार छन्द के प्रयोग एकरसता के दोष ले ये किताब ला मुक्त करत हे। मनहरण घनाक्षरी मा युद्धभूमि के वर्णन मा मनीराम साहू जी के काव्य कौशल देखते बनत हे। शब्द चुने के क्षमता कोनो कवि के श्रेष्ठता के पैमाना होथे। मनीराम साहू जी के शब्द चयन देखव - रिबी रिबी, घोंटो दर्रा, टकोली, अलथी कलथी,केलवली, तालाबेली, कुलकुला अइसन-अइसन ठेठ अउ दुर्लभ शब्द के प्रयोग उही कर सकथे जउन कवि हर नान्हेंपन ले  भुइयाँ  संग जुड़े रहिथे। ये किताब मा हाना के सुग्घर प्रयोग देखे बर मिलही। अलंकार प्रयोग के बात करे जाय त आल्हा छन्द, बिना अतिश्योक्ति अलंकार के नइ लिखे जाय। अतिश्योक्ति अलंकार के प्रयोग मनीराम साहू जी के विलक्षण काव्य क्षमता के गवाही देवत हे। 


आग बरन गा ओकर आँखी, टक्क लगा के देखय घूर।

बइरी तुरते भँग ले बर जय, हाड़ा गोड़ा जावय चूर।।


सिंह के खाँडा लहरत देखयँ, बइरी सिर मन कट जयँ आप।

लादा पोटा बाहिर आ जयँ, लहू निथर जय गा चुपचाप।।


हीरा सोनाखान के, ये किताब मा 21 प्रकार के छन्द के प्रयोग होय हे। मुख्य छन्द आल्हा आय जेखर 251 पद इहाँ पढ़े बर मिलही। इतिहास आधारित ये किताब मा तारीख अउ सन् के उल्लेख घलो करे गेहे।


सन् अट्ठारह सौ छप्पन मा, परय राज मा घोर दुकाल ।

बादर देवय धोखा संगी, मनखे मन के निछदिस खाल ।।


रहिस नवंबर सन्तावन मा, परे रहिस गा तारिक बीस 

सैनिक धरे चलिस इसमिथ हा, तइयारी कर दिन इक्कीस ।।


किताब के आखिर मा मनीराम साहू जी विष्णुपद अउ छप्पय छन्द मा कथानक के सीख अउ संदेश ला पाठक तक पहुँचावत,सोरठा छन्द ले समापन करिन हें।


पढ़े अउ जाने बिना चिंतन नइ हो सके। बिना चिंतन के कविता नइ हो सके अउ कविता ला छन्द मा बाँधे बर अभ्यास अउ साधना जरूरी होथे। हीरा सोनाखान के, एमा कवि के ज्ञान, चिंतन अउ साधना के दर्शन होवत हे। वइसे त ये कृति हर मनीराम साहू जी के आय फेर अब छत्तीसगढ़ी साहित्य के धरोहर बन जाही। जउन मन आजादी के इतिहास नइ जानत हें वहू मन ये किताब ला पढ़ के आजादी के इतिहास अउ वीर नारायण के त्याग ला जान जाहीं। ये किताब नवा कवि  मन ला नवा रद्दा देखाही कि छत्तीसगढ़ी मा सुग्घर कविता कइसे लिखे जाथे।

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प्रस्तुतकर्ता - अरुण कुमार निगम

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