: दोहा छंद- *सतगुरु घासीदास*
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पावन धाम गिरौदपुर, माह दिसंबर खास।
सत्य रूप मा अवतरे, सतगुरु घासीदास।।
अमरौतिन के कोख अउ, महँगू दास दुलार।
सत्रह सौ छप्पन रहिस, लेइस गुरु अवतार।।
छागे अँगना मा खुशी, बाजय मंगल गीत।
गुरु दर्शन बर आय सब, सगा सहोदर मीत।।
मांदर झाँझ मृदंग सँग, सजे आरती थाल।
आये जग उद्धार बर, अमरौतिन के लाल।।
देवँय आशीर्वाद ला, नर नारी सब लोग।
सत्यपुरुष अवतार ये, करही सत के जोग।।
मातु पिता गुरु नाम ला, राखिस घासीदास।
बनही संत महान गुरु, हरही जग जन त्रास।।
जतन करे लइका बढ़े, पानी पाये धान।
बाढ़े उही प्रकार ले, गुरु जी धारत ज्ञान।।
नानपना ले ही करिस, गुरु जी सत के काम।
महिमा गजब दिखाय हे, नाम जपत सतनाम।।
सखा बुधारू ला दिये, गुरु जी जीवन दान।
तारिस गौ माता घलो, लगा सत्य के ध्यान।।
बिना अन्न पानी बिना, जेवन दिये बनाय।
बिना सुरूज प्रकाश के, कपड़ा घलो सुखाय।।
भाटा बारी ले बबा, लानिस मिरचा टोर।
जोतिस नाँगर ला अधर, होगे महिमा शोर।।
वैज्ञानिकता तर्क ले, सत के करिस प्रचार।
गुरु के दे सिद्धांत ले, आज चलत संसार।।
शादी घासीदास गुरु, माता सफुरा साथ।
हँसी खुशी जिनगी जिये, थाम हाथ मा हाथ।।
चार पुत्र के संग मा, होइस पुत्री एक।
बेटा सब ज्ञानी गुनी, बेटी सुशील नेक।।
अमरदास बेटा बड़े, मझला बालकदास।
तीसर आगरदास गुरु, अउ अड़गड़िहा खास।।
सहोदरा बेटी सुघर, बहुत चतुर हुशियार।
मातु पिता के लाड़ली, पाये मया दुलार।।
सपना देइस एक दिन, पुरुषपिता सतनाम।
कइसे माया मा गे भुला, घासी तँय सतकाम।।
दुनिया के उद्धार बर, लिये हवस अवतार।
घासी तँय तो हस फँसे, मोह मया परिवार।।
सपना ले झकना उठिस, बाबा घासीदास।
पुरुषपिता गुरु माफ कर, तोड़े हँव विश्वास।।
फेर वचन हँव देत मँय, करहूँ जग उद्धार।
जावत हँव सत खोज बर, छोड़ आज घर द्वार।।
सत खोजन बर गे निकल, गुरु जी छात पहाड़।
जिहाँ शेर भालू रहय, कटकट जंगल झाड़।।
धुनी रमाये बैठ गे, ध्यान लगा सतनाम।
पाये जी गुरु ज्ञान ला, बना हृदय सत धाम।।
छै महिना ले तप करिस, पाये बर सत ज्ञान।
जोग साधना से बनिस, गुरु जी संत महान।।
सफुरा पुत्र वियोग मा, तज दे राहय प्रान।
आके घासीदास गुरु, देइस जीवन दान।।
आंदोलन सतनाम के, करिस जोर शुरुआत।
जाति- पाति के बँध मा, फँसे रहिन सब जात।।
मनखे ले मनखे छुआ, छूत करे कुछ लोग।
रूढ़िवाद पाखण्ड के, छाये राहय रोग।।
बोले घासीदास गुरु, मनखे-मनखे एक।
एक खून तन चाम हे, राह चलौ सत नेक।।
मानवता के पाठ पढ़, लौ सब संत सुजान।
आही सुमत समाज मा, बोले संत महान।।
जगह-जगह सत रावटी, होवय गुरु जी तोर।
जोड़े सबो समाज ला, बाँध दया के डोर।।
ढोंग रूढ़ि पाखण्ड के, छाय रहय अँधियार।
मुक्ति दिलाइस संत गुरु, करके सत्य प्रहार।।
सत रद्दा चलिहौ कहिस, बानी रखिहौ नेक।
लोभ मोह अभिमान ला, देहव संतो फेक।।
मनखे जग कल्यान बर, देइस सत संदेश।
कर लौ पालन संत जन, मिट जाही सब क्लेश।।।
दिये सात संदेश गुरु, ब्यालिस अमरित बोल।
अमल करौ सब संत हो, हिरदे के पट खोल।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 18/12/2024
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[12/18, 8:44 AM] मनोज वर्मा:
सत के राह बताय हस, बाबा घासीदास।
सद्गुरु परमात्मा तँही, टोरे भव के फाँस।।
सादा झंडा सत्य के, जैतखाम पहिचान।
लहर लहर लहरात हे, धरती अउ असमान।।
सत्य अहिंसा अउ शांति के, संग सात संदेश।
मानवता बड़का गढ़े, मेटे सबो कलेश।।
सत मा रख बिसवास बड़, कर्म हवै परधान।
जपत रहौ सतनाम ला, सार इही जग जान।।
फोकट गढ़े प्रपंच जन, जात पात तज भेद।
मनखे मनखे एक सब, ऊँच नीच दव खेद।।
जीव बराबर हे सबो, करव नहीं संघार।
प्रीत जीव ले हो सदा, छोड़व मांसाहार।।
पर धन नजर लगाव झन, दूसर हक झन खाव।
रहव जुआ ले दूर तुम, घिनही जानौ घाव।।
नशा नाश करथे सकल, धन आदर परिवार।
रख एकर ले बैर नित, तन मन लेवय मार।।
रद्दा सत के रेंग चल, भक्ति भाव धर पास।
कहे सात संदेश शुचि, बाबा घासीदास।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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[12/18, 9:45 AM] मुकेश 16: बाबा गुरु घासीदास-- बरवै छंद
महँगू के लाला हे, घासीदास।
तोर नाँव ले मन मा, भरे उजास।।
पेड़ तरी धौंरा के, ध्यान लगाय।
पोठ तपस्या करके, सत ला पाय।।
जन मानस मा जाके, अलख जगाय।
मानवता के सब ला, पाठ पढ़ाय।।
मनखे-मनखे जानव, एक समान।
देइस सुग्घर सब ला, सत के ज्ञान।।
स्वेत ध्वजा हा तोरे, सुमता लाय।
जैतखाम हा सत के, राह बताय।।
करव कभू झन संगी, मदिरा पान।
सत्य नाम ला जपलव, पाहव मान।।
छुआछूत ला बाबा, दूर भगाय।
दीन-दुखी के तँय हा, बने सहाय।।
परनारी ला जानव, मातु समान।
नारी ले ही होथे, जग कल्यान।।
सादा जिनगी सब झन, करव गुजार।
पाप हवय जी करना, मांसाहार।।
सबो धरम ला देवव, गा सम्मान।
जात-पात ला छोड़व, बनव महान।।
काम-क्रोध ला टारव, सोंच विचार।
सदा लगाथे गुरु हा, भव ले पार।।
छोड़व अंधविश्वास, मन मा ठान।
हवय जीव हत्या हा, पाप समान।।
सत्य अहिंसा के तँय, दे संदेश।
लोगन के जिनगी ले, काटे क्लेश।।
दूर रहव चोरी ले, जाथे मान।
जुआ घलो मा होथे, बड़ नुकसान।।
मूर्ति कभू झन पूजव, मोर मितान।
सत मा हावय ईश्वर, लेवव जान।।
मन मा विश्वास रखव, जय सतनाम।
तुरते बनही सबके, बिगड़े काम।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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[12/18, 9:54 AM] विजेन्द्र: बाबा घासीदास के संदेश - चौपई छंद
सादा जीवन उच्च विचार Iपरहित सेवा सद व्यवहार II
खुदे बनाये गा पहचान I तभे मिलत हावय सम्मान II
छुआ-छूत ला माने रोग I विधवा मन के सुने बियोगII
जात-पात के भेद मिटाय।सत्यनाम के अलख जगाय II
मनखे-मनखे एक बताय I सत के रद्दा उही दिखाय II
नशा-पान होथे जी काल I जीवन मा झन येला पाल II
पर के धन ला पथरा जान Iपर नारी महतारी मान II
अइसन देवय वो हर सीख I करम करव झन माँगव भीख II
नोनी बाबू एके जान Iदूनों मा बसथे गा प्रान II
सत मा राखव गा विश्वास I होही तब कुमता के नास II
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
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: *रूप घनाक्षरी*
विषय: *सतनामी*
सतनामी कोन हरै, काहीं ले जे नइ डरै,
करै सदा सत बात, जपै नित सतनाम।
माॅंस कभू खाय नइ, दारु भट्ठी जाय नइ,
देवै नइ गारी कभू, करै नेक हर काम।
रखै नइ छल द्वेष, जेकर हे सादा भेष,
एक मानै मनखे ला, गिरौदपुरी ला धाम।
चंदन लगाय सादा, ताम-झाम नइ जादा,
अपन निभाय वादा,पूजै जोड़ा जैतखाम।।
*तुषार शर्मा "नादान"*
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हिनमान के आँसू पोंछाईस //
गिरौदपुरी के सुरुज हा संगी, सत के सुरुज परघाईस।
धरम- करम जग जीव मरम,गुरु घासीदास बताईस।।
पान- सुपारी नरियर-भेला, चंदन-बन्दन स्वारथ खेला।
सतनाम रमे हे घट - घट मा ,सुजानिक मन पतियाईस।।
कोन्हो मनखे होय न हीनहर,जग ल जग जग ले परखाईस।
असत के हीरा कीरा बरोबर, बीमारी रहिस दूरि- हाईस।।
जनम ले कोन्हो न निचहा ऊंचहा,करम ले मिले पीढ़ा ऊंचहा।
सत बल ले धरती अगास हावय,भरम के बादर चटकाईस।।
जुग-जुग ले तोपे ढांपे सत उघरिस,जग अंजोर बगराईस।
मुँह लुकाय उनला परगे,जेन मन सत के सुरुज लुकाईस ।।
मनखे-मनखे बरोबर होथे, पापी अधरमी काँटा बोथें।
छुआछूत अउ ऊँच-नीच,हिनमान के आँसू पोंछाईस।।
सत के जोत मिलिस तेनला,जग म बांट-बांट बगराईस।
बंटईया बर तो कभू खंगय नही,देवईया घलो सँहराईस।।
दुख-सुख के सबो बरोबर बांटा,संग संगिनी सफुरा माता ।
अमरौतिन महंगू के ललना, सुग्घर सत धजा फहराईस।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
रोशन साहू 'मोखला' राजनांदगांव
7999840942
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[ *गुरु बाबा घासीदास जयंती के शुभकामना अउ बधाई*
(1)
मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर
जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर
बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन
जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।
(2)
जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ
दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।
जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ
बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।
(3)
काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई
मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई
सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव
गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।
*अरुण कुमार निगम*
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*गुरु घासीदास जयंती विशेषांक*
*बरवै छंद*
गुरू महिमा
अमरौतिन के कोरा ,खेले लाल।
महँगू के जिनगी ला ,करे निहाल।1।
सत हा जइसे चोला ,धरके आय।
ये जग मा गुरु घासी ,नाम कहाय।2।
सत्य नाम धारी गुरु ,घासीदास।
आज जनम दिन आये ,हे उल्लास।3।
मनखे मनखे हावय ,एक समान।
ये सन्देश दिए हे, गुरु गुनखान।4।
देव लोक कस पावन ,पुरी गिरौद।
सत्य समाधि लगावय ,धरती गोद।5।
जैतखाम के महिमा ,काय बताँव।
येला जानव भैया ,सत के ठाँव।6।
निर्मल रखव आचरण ,नम व्यवहार।
जीवन हो सादा अउ ,उच्च विचार।7।
बिन दीया बिन बाती ,जोत जलाय।
गुरु अंतस अँंधियारी ,दूर भगाय।8।
अंतस करथे उज्जर ,गुरु के नाम।
पावन पबरित सुघ्घर ,गुरु के धाम।9।
आशा देशमुख
💐88889889
[
हाथ जोड़ विनती करॅंव , बाबा घासीदास ।
दया मया ला राखहूॅं , अतके हाबय आस।।
सत् के रद्दा मा चलव , अइसन दे गुरु ज्ञान।
पबरित राहय मन सदा , करॅंव तोर बस ध्यान।।
संजय देवांगन सिमगा
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परमपूज्य संत गुरु घासीदास जी
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(रोला छंद)
गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।
सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।
पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।
धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1
सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।
सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी।
ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।
मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2
तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।
समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।
छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।
जात पात हे व्यर्थ, कहे सब करौ किनारा। 3
मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।
सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।
गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।
सत मारग मा रेंग, बने हन सब ले बढ़िया।4
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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[ रूप घनाक्षरी - बोल हे सतनाम (१८/१२/२०२४)
(८,८,८,८)४ , अंत - गुरु लघु
बोल जय सतनाम , बनही बिगड़े काम ,
सत के पुजारी कहे , गुरु बाबा घासीदास ।
गुरतुर बोली बोल , जिनगी मा रस घोल ,
दया - मया कर लेना , जब तक हवै साॅंस ।
छोड़ दे इरखा द्वेष , कट जाही सबो क्लेश ,
सुख - चैन घर आही , मन मा रख ले आस ।
माया के फइले जाल , जे बने जीव के काल ,
बच के रहिबे तॅंय , घूमत हे आस - पास ।
✍️ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '🙏
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[
जय बाबा गुरू घासीदास
(सार छंद)
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छत्तीसगढ़ के सुरुज बरोबर, सत अँजोर बगरइया।
जन जन मा भाईचारा अउ, सुम्मत भाव जगइया। ।
मनखे सबो समान बताके, सत्यनाम गुन गाइन।
मानवता के सुघ्घर रस्ता, दुनिया ला देखाइन। ।
अइसन संत सुजानी के हर, करम बचन हें पावन।
बाबा घासीदास गुरु ला, जन जन करथें बंदन। ।
जय सतनाम!!
दीपक निषाद -लाटा (बेमेतरा)
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[12/18, 4:13 PM] +91 84358 44508: *कुंडलिया छंद*
*बाबा घासीदास के,महिमा गजब महान।*
*मछरी- मास शराब ला ,त्याग तभे पा ज्ञान।।*
*त्याग तभे पा ज्ञान,करम जस गावत जाबे।*
*मनखे - मनखे एक,नाम सत के गुन गाबे।*
*रद्दा रेंगव नेक, मया भर काबा- काबा।*
*हिंसा - हत्या पाप, करव झन कहिथे बाबा।।*
*अमितारविदुबे©®*
*छत्तीसगढ़*
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मैंहा बदना बदथौं तोर नाम के हों गुरुबाबा
पंइया परत हों जैतखाम के
तै बिराजे गिरौदपुरी धाम में हो गुरुबाबा
दीया जलाये सतनाम के
दाई अमरौतिन बाबा ददा मंहगू दास हो
तोला पाये खातिर बाबा करिन हे उपास हो
बनके दीया हो बाबा अंगना मा आये हो
जगमग जगमग जग जगमगाये हो
बनके सुरुज तैहा छाये हो गुरुबाबा
महिमा बढ़ाये गिरौद धाम के...
धरम करम सत नियम बताये हो
सादा रंग झंडा सादा जीवन सिखाये हो
बांटे सदज्ञान बाबा जग हरसाये हो
तोर दिये ज्ञान आज जग गुन गाये हो
ऊंचनीच भेद ला मिटाये हो गुरुबाबा
सुमता जगाये सरेआम मे...
रचनाकार
तोषण चुरेन्द्र 'दिनकर'
धनगाँव डौंडी लोहारा बालोद छत्तीसगढ़
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