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Saturday, June 7, 2025

जनम जयंती के बेरा,जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला विनम्र भावांजलि

 

जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला विनम्र भावांजलि


*शब्द शब्द जेकर गीता हे, गीत गीत गंगा धारा।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।।*


*कोन हवय जी मस्तुरिहा कस, साहित के चमकत हीरा।*

*जेकर कलम लिखै अउ गावै, दीन दुखी मन के पीरा।*

*देख दसा धरती मइयाँ के, दहकै अंतस  अंगारा ।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*


*मन के उज्जर छत्तीसगढ़िहा, मँदुरस कस गुत्तुर बोली।*

*छत्तीसगढ़ के पावन धुर्रा, जेकर माथा के रोली।*

*खँड़िच नहीं वो जात पाँत मा, बाँटे हे भाई चारा।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*



*छत्तीसगढ़ी रीत नीत के, जेकर हे कंठ खजाना।*

*करमा सुवा ददरिया पंथी, लोकगीत जेकर गाना।*

*चरन कमल मा माथ नवाववँ,जे हे जन-जन ला प्यारा।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद

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छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।

तोर गीत अउ तोर बानगी, हम ला सुरता आथे।।


तन-मन मा धधकत चिंगारी, शेर सहीं हुंकार भरे।

ये माटी के महिमा गाये, धरती के सिंगार करे।।

दीन दुखी के बोल बने तँय, लोग सबो सँहराथे।

छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।।


नारी के सम्मान जगाये, करे उजागर दुख पीरा।

दया मया के गीत ल गाये, चमके बन के तँय हीरा।।

रीति-नीति संस्कार भरे जी, बैना तोर सुहाथे।

छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।।


महानदी के धारा जइसे, पावन बिचार ला राखे।

बगराये तँय भाईचारा, गोठ सुमत के नित भाखे।।

तोर खिलाये फूल मया के, मन बगिया महकाथे।

छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 07/06/2025

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: जनकवि मस्तुरिया जी ला काव्याजंलि


कुकुभ छंद


कहाँ लुकाये दिखय नही अब, गिरे परे के सँगवारी।

अलख जगाये ज्ञान दीप के, मेटे बर वो अँधियारी।।


दया मया अउ करम धरम के, गीत रोज के उन गावै।

सुनके अंतस हिलोर मारय, दुख पीरा बिसरा जावै।।


करय रातदिन बेटा हितवा, भाखा माटी के सेवा।

जनकवि तब वो नाम धराये, मिलगे जीते जी मेवा।।


ढोंग धतूरा आडंबर के, रहय विरोघी वो भारी।

देख नैन ले आँसू छलके, दीन दुखी अउ लाचारी।।


अमर नाम होगे दुनियाँ मा, हे लक्ष्मण मस्तुरिया जी।

आज कहाँ तँय पाबे अइसन, छत्तीसगढ़िया बढ़िया जी।।


ज्ञानु

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सोरठा छंद


दुनिया भर मा शोर, उड़त हवय चारों डहर।

अमर नाम हे तोर, शत शत सादर हे नमन।।


जन जन के आवाज, बनके बोलस रोज तँय।

सबके हिरदै राज, करथस तैहा आज भी।।


मैं साथी हव तोर, गिरे परे मनखे तुँहर।

चलव संग मा मोर, दया मया बाँटत कहै।।


छत्तीसगढ़ के शान, दुनिया भर बगराय तँय।

सेवा अउ गुनगान, माटी के सेवा करे।।


रखे जिहाँ तँय पाँव, सात जून उनचास के।

ओ मस्तूरी गाँव, भाग अपन सहरात हे।।


मस्तुरिया के नाम, सबके हिरदै मा बसे।

सादर मोर प्रणाम, अइसन जनकवि ला हवै।।


ज्ञानु

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सब ला लेके संग चलइया, गिरे परे के संगवारी।

छत्तीसगढ़ दुलरवा बेटा,  तोर हवन गा आभारी।।


तुमा नार बखरी मा झूमे, घुनही बसुरिसा बाजे।

हमर गंवई गंगा बनके, चिटिक अँजोरी साजे।।


मै छत्तीसगढ़िया अंब रे, बेटा हमू भुंइया के।

सिर्फ सत्य के लिए गढ़े अउ, सेवा करे मइंया के।।


माटी कहिगे कुम्हार से जी, जुलुम तोर हे नैना।

पीरा के पहार हे जाने मा, जगत मोर पड़की मैना।।


शहर डहर के जेन जवइया, आँखी मा कजरा आंजे।

संगी के मया जुलुम होगे, दिन रात बिहनिया सांझे।।


कइसे दिखत नाच ये नचनी, सुन हमका घेरी बेरी।

कहिथे बाज पता दे ले जा, छुनुर छुनुर पाँवे पैरी।।


जन जन के मन तँही समा के, अउ होय स्वर्गवासी।

लोक कला छत्तीसगढ़ के, रही तोर जुग जुग दासी।।




मनोज कुमार वर्मा 

बरदा लवन बलौदा बाजार

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छप्पय छंद


भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।

रइही दिल के पास,कभू नइ जावय दुरिहा।

कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।

लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।

हमर राज के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।

जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।(१)


दया मया के गीत,लिखय अउ गावय बढ़िया।

अमर हवय गा नाँव,हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।

परे डरे ला संग,लगाये बनके दानी।

ए माटी के लाल,अमर हे तोर कहानी।

जन मानस मा गीत हा,गूँजत रहिथे तोर गा।

जल्दी आजा अब इहाँ,तोर लेत सब सोर गा।।(२)


गुत्तुर तोर अवाज,गीत मा सुमता लाये।

सदा नीत के गोठ,तोर अंतस ला भाये।

भारत माँ के लाल,रोज तोला हे वंदन।

लक्ष्मन हवस महान,तोर पवरी हे चंदन।

श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब,मिलके बारंबार जी।

हमर गाँव ए राज मा,अउ ले ले अवतार जी।।(३)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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                  *लक्ष्मण मस्तुरिया*


गहिरा उॅंचहा भाव शबद हा, अंतस तरी हमाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।


रोज बिहनहा मोर किसनहा, सुरुज सॅंघाती जागय।

धरा धाम धरती मइया के, सुत उठ पइयॉं लागय।


रुमझुम खेती खार किंजर के, मस्तुरिया जब आवय ।

झूम-झूम के मन भॅंवरा हा, धुन मा नाचय गावय।


धरती के ॲंगना के फुलवा, दुरिहा ले ममहाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।


चौंरा मा गोंदा रसिया बर, हे पताल बारी मा।

मया छोड़ नइ जाये सकबे, फॅंसबे सॅंगवारी मा।


झुमरे लगही तुमा नार कस, मन बखरी बारी मा।

मया परोसे हे मस्तुरिया हर बटकी थारी मा।


फिटिक ॲंजोरी निर्मल छइहॉं, मन ला गजबे भाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।


कॉंटा खूॅंटी के रेंगइया, भूती बनी करइया।

अपन गॉंव ले हाथ दया के, मान मया भेजइया।


गिरे परे हपटे मनखे ला, संग चलव जे कहिथे।

लकठे मा पापी तारे बर, बनके गंगा बहिथे।


मीठ मया मॅंगनी मॉंगे मा, कहॉं भला मिल पाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।


छत्तीसगढ़ के राज रतन तैं, धन्य धनइया माटी।

करिया सोना के खदान तैं, धन-धन बस्तर घाटी।


तोर लहर लहरे ओन्हारी, सरसे संग सियारी।

घुनही बॅंसुरी माघ फगुनवा, कबिरा के सॅंगवारी।


लोक दुलरुवा लोकतंत्र बर, कुछ ना कुछ अलखाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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[लावणी छंद गीत- मोहन लाल वर्मा 

*लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता*


लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।1।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


ये माटी के स्वाभिमान के, गीत सदा जे गाइन हें।

मँय छत्तीसगढ़िया अँव कहिके, जग मा अलख जगाइन हें।।2।

दया-मया के परवा छानी, सुरता मा ओकर छाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


बन गरीब के हितवा-मितवा, संग चले बर जे बोलँय ।

माघ-फगुनवा मा सतरंगी, मया- रंग ला जे घोरँय ।।3।

देश मया के भारत गीता, संदेशा ला बगराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,-----


महानदी-अरपा-पइरी मा, जब- तक पानी हा रइही ।

अपन दुलरवा ये बेटा के, अमर कहानी ला कइही ।।4।

परके सेवा मोर सिखानी, बात कहे ला दुहराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


सुवा-ददरिया-करमा-पंथी, गुरतुर सुर मा जे गावैं ।

सुरुज-जोत मा करय आरती, छइयाँ भुइँया दुलरावैं ।।5।

अइसन जनकवि के चरनन मा, श्रद्धा के फूल चढ़ाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।


छंदकार- मोहन लाल वर्मा 

पता:- ग्राम-अल्दा,तिल्दा,रायपुर 

(छत्तीसगढ़)

मोबाइल नं.-9617247078

                9340183624

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*(लावणी छंद)


सुरता



मस्तुरिया मस्तुरिया कहिके, सुरता सबो करत हावैं।

सुर लहरी के तान गान ला , पाँच तत्व मन बग रावैं।।




कोन भुलाही मस्तुरिया ला,जेन बसे हे जन जन मा।

सोन  रतन बेटा बैठे हे ,ये माटी के कण कण मा।

गुत्तुर भाखा बोली बगरे, पेड़ डाल झूमे गावैं।

सुर लहरी के तान गान ला ,पांच जिनिस मन बगरावैं।


गिरे परे हपटे मन के ये , संग चलय बनके संगी।

मन के राजा सबो बनव जी , नइहे अब कोनो तंगी।।

धान कटोरा भरे लबालब ,मिल जुल बांट सबो खावैं।।


सिधवा बर निच्चट सिधवा अउ बैरी बर डोमी करिया।

खेती खार गाय रुनझुन,दिखे नहीं बंजर परिया।।

मया प्रीत के पबरित नाता ,तुमा नार मन फैलावैं।।

सुर लहरी के तान गान ला,पांच जिनिस मन बगरावैं।




अमर गीत रच दिन मस्तुरिया , अमरित ऊंखर बानी मा।

गंगा के लहरा कस आवय ,महानदी के पानी मा।।

ये भुइयॉ में जनम धरिन सब ,अपन भाग ला सहरावैं।।

सुर लहरी के तान गान ला ,पांच जिनिस मन बगरावैं ।।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा💐💐💐💐

कुंडलिया छंद

 कुंडलिया छंद 


काटो झन गा पेड़ ला,मिलही शीतल छाँव। 

पेड़ लगा दू चार तँय,हरियर रहिही गाँव। 

हरियर रहिही गाँव,गीत पंछी मन गाही।

जाहीं खेती खार,बइठ थोकिन सुरताही।

मातु पिता के नाम,लगा के छँइहा बाँटो।

कह मीरा कर जोर,पेड़ ला झन तुम काटो।।

2

 बरगद पीपर दे लगा,आही अब्बड काम।

सुरताबे तँय बइठ के, जब-जब लगही घाम।

जब-जब लगही घाम,छाँव मा बइठ थिराहीं।

तोता मैना बइठ, रोज दिन गाना गाही।

रही अमर गा नाम,तोर मन होही गदगद।

कहिहँव साँची बात,लगालौ पीपर बरगद।।

3

पावन पुन मिलही चलो,करलो पर उपकार। बिगड़े  झन पर्यावरण, सुखी रही परिवार।

सुखी रही परिवार,पेड़ दू चार लगालौ।

होय प्रदूषण रोक,हवा तुम निछमल पालौ।

घिरे घटा घनघोर, झमाझम बरसे सावन।

पेड़ लगा ले चार, काम होथे बड़ पावन।।


केवरा यदु"मीरा"

खेती किसानी के जोरा

: कुकुभ छन्द- *दिन आगे खेति किसानी*


चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।

रदबिद-रदबिद पानी गिरही, बन किसान के जिनगानी।।


लगही आसाढ़ महीना अब, चतवारव खेत बियारा ला।

काँटा खूंटी बन बाखर अउ, काँदी दूबी डारा ला।।

खातू माटी रखौ सकेले, सँग बिजहा धान बुवानी।।

चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।।


छेना लकड़ी ला कुरिया मा, रखलौ जी बने सकेले।

रखौ बना के झीपारी ला, झन पानी परछी पेले।।

कालकूत झन होवय भाई, छा लौ अब परवा छानी।

चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।।


नाँगर बइला वाले सुन लौ, अउ सुन लौ ट्रेक्टर वाले।

खेती के औजार सजा लौ, झन बाद म दुःख म घाले।।

जाँगर ला भी ठाँगुर राखव, सुन गजानंद के बानी।

चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/06/2025

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: खेती किसानी-- गंगोदक सवैया


देख आगे किसानी चलै जी बने काम बूता इहाँ बोय हे धान गा। 

खेत बारी लगावै सबो जोतके ये किसानी हवै ओखरे जान गा।।

रोज के खेत जाके करै गा किसानी इही हा हवै देख ईमान गा।

आस ला जोर के धान कोदो उगावै गहूँ सोनहा देश के शान गा।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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सरसी छन्द- खेती के दिन आगे


खेती के दिन आगे भैया, नांगर तोर सुधार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


बंबुर के तैं नांगर करले, जुड़ा बोइर सार।

डाँड़ी ला सैगोना के गा, होथे हल्का भार।

धँवरा के पंचारी करके, खीला ओमा मार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


कोप्पर झटले तैं पटियाले, दंतारी बर दाँत।

परहा बर गा बनेच बनही, जाही पाँते-पाँत।

नांगर लोहा ला फरगाले, करवा लेना धार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


मोरा,खुमरी,छत्ता,झिल्ली, सबके जोरा-जोर।

माई-कोठी बिजहा के तैं , छबना ला अब फोर।

का-का धान बोय बर हावे, करले बने बिचार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


हेमलाल सहारे

   सत्र-20

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कौशल साहू: आल्हा छंद

     *खेती-किसानी*


खेती के बेरा दिन आगे ,झन राहय जी परिया खेत।

बन कचरा अउ काँटा खूँटी,चतवारव सब करके  चेत।।


खातू माटी तोप ढाँक के, घर मा राखव उन्नत बीज।

हाथ पसारे झन लागय जी, मँगनी मा नहीं मिलै चीज।।


गोबर खातू गाड़ा -गाड़ा,ओरी -ओरी कुढ़हा पाल।

दांदर -भरका झन राहय जी, खेत बरोबर ढेला चाल।।


नाँगर जूँड़ा अरइ तुतारी, पंचारी के कर ले सोर ।

खिली नाहना जोंता डोरी, कोन पठेरा माढ़े तोर।।


आगर पैदावारी खातिर, अँकरस नाँगर  दूना जोंत।

एक नेत के बीज जामही, घना होय झन बिजहा बोंत।।


कविवर कौशल कहना मानौ,छोल फेंक दौ दूबी काँद।

नाँगर जोंतइया मिलै नहीं ,खोजे मा घरजिंया दमाँद।।


कौशल कुमार साहू

फरहदा (सुहेला)

जिला -ब.बा.भाटापारा (छ.ग)

06/06/2025

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 ज्ञानू कवि: गीत 


बेरा कहाँ थिराये के हे, हावय करे सियानी के

अपन तियारी करलौ संगी, आगे बखत किसानी के


- खातू-कचरा घलो पाल लव, मेड़पार चतवार डरौ।

  मुही पार फूटे होही ता, बने उहू ल तियार करौ।।


सावचेत हो जावव भइया, नइये समय नदानी के

अपन तियारी......


- बीजभात खातू माटी के, जोरा जोरी  करलौ जी।

   नाँगर-जूड़ा, नहना-जोता, हाथ अपन अब धरलौ जी।।


अर-तता तुतारी बइला ले, बेरा अभी मितानी के

अपन तियारी....


- बारी-बखरी रुँधना-बंधना, देदव घलो पलानी जी

बाँधव घलो झिपारी संगी, छालव परवा छानी जी


हवा गरेरा धूंका आँधी, बेरा बादर पानी के

अपन तियारी.....


ज्ञानु

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 डी पी लहरे: ताटंक छन्द


गड़ गड़ गरजै करिया बादर,

अब्बड़ गिरही पानी जी।

नाँगर बख्खर जोरव संगी,

आगे हवय किसानी जी।।1


खेत खार के काँटा खूँटी,

सबो बिने ला जावौ जी।

सरलग बूता काम करव गा,

खेती ला सुघरावौ जी।।2


ठलहा बइठे अब झन राहव,

जाँगर बने चलावौ जी।

धरव तुतारी हाँकव बइला,

धान बीज बों जावौ जी।।3


बन कचरा ला फेंकव संगी,

गोबर खातू डारौ जी।

बने उपजही धान सोनहा,

रसायनिक ला टारौ जी।।4


खेत खार के जतन करौ गा,

खेती ले तुहँर मितानी जी।

छाती पेरव जाँगर टोरव,

येही तुहँर कहानी जी।।5


छंदकार 

डी.पी.लहरे कवर्धा 'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

Friday, June 6, 2025

रूपमाला छन्द- *चल लगाबो पेड़ संगी*

 रूपमाला छन्द- *चल लगाबो पेड़ संगी*


चल लगाबो पेड़ संगी, माँ पिता के नाम।

जान ले संसार मा तो, नेक ये हा काम।।

छाँव देथे फूल देथे, अउ गिराथे नीर।

फेर समझत नइ मनुज हे, पेड़ के तो पीर।।


आम बरगद नीम पीपर, साल अउ सागोन।

पेड़ काटत हें सबो पर, हे लगावत कोन।।

गाँठ बाँधे बात धर लौ, दौ सुवारथ छोड़।

पेड़ के रक्षा करे बर, पाँव ला अब मोड़।।


हे तिपावत ताप तन ला, हे जरावत चाम।

पेड़ काटे ले बढ़त हे, बड़ दिनोंदिन घाम।।

जल सतह नीचे गिरत हे, हे सुखावत ताल।

नल नदी सुक्खा कुआँ हे, लोग हें बेहाल।।


आज जल पर्यावरण के, रोक लौ जी नाश।

रुक जही नइतो सुनव जी, तोर तन ले श्वांस।।

पेड़ हे आधार जिनगी, पेड़ ले संसार।

सुन गजानन पेड़ बिन तो, ब्यर्थ हे सुख सार।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/06/2025


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विश्व पर्यावरण दिवस विशेष-

 अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस विशेष-कुंडलियाँ छंद


विश्व पर्यावरण दिवस विशेष-

कुण्डलिया छंद- *जंगल पेड़ बचाव*


आवव संगी मिल सबो, जंगल पेड़ बचाव।

पाँच जून पर्यावरण, उत्सव फेर मनाव।।

उत्सव फेर मनाव, छोड़ के सबो दिखावा।

जीवन के आधार, पेड़ हे बात बतावा।।

गजानंद सुख सांस, फूल फल औषध पावव।

करिन जतन मिल आज, पेड़ जंगल के आवव।।1


होथे बड़ तकलीफ जी, कटथे जब-जब पेड़।

निज स्वारथ मा पड़ मनुज, आज उजाड़त मेड़।।

आज उजाड़त मेड़, कहाँ अब पेड़ लगाथें।

पाये जग मा नाम, गजब फोटू खिंचवाथें।।

करके पेड़ विनाश, खुदे बर काँटा बोथे।

गजानंद बिन पेड़, कहाँ सुख जीवन होथे।।2


हरियाली हे पेड़ से, पेड़ करे बरसात।

फेर कोंन समझत इहाँ, गजानंद के बात।।

गजानंद के बात, पेड़ हे पुत्र समाना।

आथे बहुते काम, फूल फल जड़ अउ पाना।।

करिन सुरक्षा आज, तभे सुख मिलही काली।

अरजी हे कर जोर, बचा लिंन हम हरियाली।।3


रोवत हे हसदेव हा, आँख भरे दुख नीर।

छत्तीसगढ़ के गोद मा, कोंन भरत हे पीर।।

कोंन भरत हे पीर, आज समझे ला परही।

कतका दिन ला फेर, हमर सुख अँगरा जरही।।

गजानंद धर ध्यान, पड़े रह झन तँय सोवत।

देख आज हसदेव, पुकारत हे जी रोवत।।4


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


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 कौशल साहू: कुंडलियाँ छंद


          *टँगिया मा झन काट*


हरियर रुखवा ला कभू ,टँगिया मा झन काट।

देही छंइहा एक दिन , कभू रेंगबे बाट ।।

कभू रेंगबे बाट ,  घाम मा बइठ थिराबे ।

सुग्घर फर अउ फूल ,टोर के मन भर खाबे।।

बिना हवा के फेर , नीर नइ होवय फरियर।

कौशल करे पुकार ,काट झन रुखवा हरियर।।



जंगल उजरत जात हे, खिरत जात हे मेड़।

काटे बर हुशियार सबो , कोन लगाही पेड़ ।।

कोन लगाही पेड़ , लीम बर आमा अमली ।

हाँसय दाँत निपोर, खोभ के  पौधा नकली ।।

मिलय नहीं सुख चैन , दिनों दिन होय अमंगल।

कौशल कहना मान ,बचालवँ रुखवा जंगल।।



काबर अइसन होत हे, बरसा कमसल होय।

महानदी सुक्खा परे, हैण्डपम्प मन रोय।।

हैण्डपम्प मन रोय, प्यास मा हँउला बाँगा।

तरिया तरसय रोज ,भुँजावय डारा ठाँगा ।।

बिना पेड़ घनघोर , कभू नइ बरसय बादर।

कवि कौशल सँग सोंच, होत हे अइसन काबर।।



रुख राई दाई ददा , जिनगी के आधार ।

सुख देथे हम ला सदा , करय नहीं निरवार।।

करय नहीं निरवार, सबो ला अपने मानय ।

करथे मया दुलार , घाम मा छाता तानय ।।

कवि कौशल के बात, मान लौ जुरमिल भाई।

भुइयाँ के सिंगार ,  लगा लौ सब रुख राई ।।


    कौशल कुमार साहू

     फरहदा (सुहेला)

     जिला - बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)


    05/06/2025

Thursday, June 5, 2025

स्वामी आत्मानंद ***** (आल्हा छंद - कमलेश वर्मा )

 ****स्वामी आत्मानंद *****

(आल्हा छंद - कमलेश वर्मा )


जिला रायपुर के बरबंदा,हाबै जी बड़ पावन गाँव।

जिहाँ अवतरिन बड़का संतन,  जिनकर बगरिस जग भर नाँव।।

लोगन कहिथें अति श्रद्धा ले, उन ला स्वामी आत्मानंद।

जउन धर्म- शिक्षा- सेवा ला, पूरा जिनगी करिन पसंद।।

भाग्यवती अउ धनीराम घर, छै अक्टूबर सन उन्तीस।

उन किसान परिवार मा आके,ऊँचा कर दिन सबके शीश।। 

गांधीवादी घर के लइका,ननपन के जी नाँव तुलेन्द्र।

घरवाले सँग चल दिन उन हा,वर्धा आश्रम सेवा केंद्र।।


आश्रम मा स्वामी जी पाइन, गांधी जी के किरपा छाँव।

जिनगी के सब मर्म सीख के, वापस आइन अपने ठाँव।।

ऊँचा शिक्षा पाये खातिर,करिन नागपुर उन प्रस्थान।

रामकृष्ण आश्रम मा रहिके,करिन पढ़ाई-पूजा-ध्यान।।

एम. एस. सी. टॉपर बनके, कर दिन उन हा बड़का काम।

सिविल परीक्षा मा जब बइठिन, पहला दस मा आइस नाम।।

फेर नौकरी ला ठुकरा के, छोड़ अपन सब घर-परिवार,

त्याग-साधना रसता धर गिन, शहर नागपुर आश्रम द्वार।।


प्रवचन-चिंतन-मनन-अध्ययन, नाँव धरागे अब चैतन्य।

पहुँच हिमालय तेज युवा हा, कर दिन अपने जिनगी धन्य।।

ले दीक्षा सन्यास बनिन हे,उन हा स्वामी आत्मानंद।

लहुटिन अपने जन्मभूमि मा, काट अपन जम्मो भव फंद।।

आश्रम विवेकानंद सुग्घर,करिन रायपुर मा साकार।

चलैं भजन व्याख्यान उहाँ नित, दीन-दुखी के सेवा सार।।

घन जंगल नारायणपुर मा, एक नवा खोलिन संस्थान।।

आश्रम के माध्यम ले होवत, वनवासी मन के कल्याण।।

दुर्घटना हा कारण बनगे, पाइन स्वामी जी निर्वाण।

साठ बछर के जिनगी जी के, करिन काम उन बिकट महान।।


🙏🏾 स्वामी आत्मानंद महाराज की-जय 🙏🏾

काल कस तरिया (दोहा चौपाई)

 काल कस तरिया (दोहा चौपाई)


*तरिया के गत देख के, देथँव मुँह ला फार|*

*एक समय सबझन जिहाँ, लगर नहावै मार|*


*आज हाल बेहाल हे, लिख के काय बताँव।*

*जिवरा थरथर काँपथे, सुन तरिया के नाँव।*


कोन जनी काखर हे बद्दी। तरिया भीतर बड़ हे लद्दी।

सुते ढ़ोड़िहा लामा लामी। धँसे मोंगरी रुदवा बामी।।


तुलमुलाय बड़ मेंढक मछरी। काई मा रचगे हे पचरी।

घोंघा घोंघी जोक जमे हे। सुँतई भीतर जीव रमे हे।


कमल सिंघाड़ा जलकुंभी जड़। पानी उप्पर फइले हे बड़।

उरइ ओगला कुकरी काँदा। लामे हावै जइसे फाँदा।।


टूट गिरे हे बम्हरी डाला। पुरे मेकरा जेमा जाला।

सड़ सड़ मरगे थूहा फुड़हर। सांस आखरी लेय कई जर।


गाद ढेंस चीला हे भारी। नरम कई ता कुछ जस आरी।

जड़ उपजे हे कई किसम के। थकगे हावै पानी थमके।


घाट घठौंदा काँपत हावय। जघा केकड़ा नापत हावय।

तुलमुल तुलमुल करे तलबिया। उफले हे मंजन के डबिया।


भैंसा भैंसी तँउरे नइ अब। मनुष कमल बर दँउड़े नइ अब।

कोन पोखरा जरी निकाले। कोन फोकटे आफत पाले।।


किचकिच किचकिच करे केचुआ। पेट गपागप भरे केछुवा।

चले नाँव कस कीरा करिया। रदखद लागै अब्बड़ तरिया।


बतख कोकडा अउ बनकुकरी। दिखय काखरो नइ अब टुकड़ी।

चिरई चिरगुन डर मा काँपे। मनुष तको कोई नइ झाँके।


*दहरा हे लहरा नही, पानी हे जलरंग।*

*जड़ अउ जल के बीच मा, छिड़े हवै बड़ जंग।।*


*पानी के जस हाल हे, तस फँसगे हे पार।*

*कीरा काँटा काँद धर, पारत हे गोहार।।*


पार तको के हालत बद हे। काँटा काँद उगे रदखद हे।

खजुर केकड़ा चाँटा चाँटी। पार उपर पइधे हे खाँटी।।


बम्हरी बोइर अमली बिरवा। बेला मा ढँकगे हे निरवा।

हवै मोखला गुखरू काँटा। चारो कोती हे बन भाँटा।


सोये जागे आड़ा आड़ी। हवै बेसरम अब्बड़ भारी।

झुँझकुर छँइहा बर पीपर के। सुरुज देव तक भागे डरके।


हले हवा मा झूला बर के। फंदा जइसे सर सर सरके।

मटका पीपर मा झूलत हे। पासा जइसे फर ढूलत हे।


बिच्छी रेंगे डाढ़ा टाँगे। चाबे ते पानी नइ माँगे।।

घिरिया झींगुर उद बनबिल्ली। करे रात दिन चिल्लम चिल्ली।


बिखहर नागिन बिरवा नाँपे। देख नेवला थरथर काँपे।

हे दिंयार मन के घरघुँदिया। सरपट दौड़त हे छैबुँदिया।


घउदे हे बड़ निमवा बुचुवा। भिदभिद भिदभिद भागे मुसुवा।

फाँफा चिटरा मुड़ी हलाये। घर खुसरा घुघवा नरियाये।।


भूत प्रेत के लागे माड़ा। कुकुर कोलिहा चुँहके हाड़ा।

डर मा कतको मनुष मरे हे। कतको कइथे जीव परे हे।


देख जुड़ा जावै नस नाड़ी। पार उपर के झुँझकुर झाड़ी।

काल ताल मा डारे डेरा। नइ लगाय मनखे मन फेरा।


*मन्दिर तरिया पार के, हे खँडहर वीरान।*

*पानी बिन भोला घलो, होगे हे हलकान।*


*तरिया आना छोड़ दिस, जबले मनखे जात।*

*तबले खुशी मनात हे, जींव जंतु जर पात।।*


मनखे के नइ पाँव पड़त हे। जींव जंतु जर पेड़ बढ़त हे।

मछरी मेढक बड़ मोटावै। कछुवा पथरा तरी उँघावै।।


करे साँप हा सलमिल सलमिल। हांसे कमल बिहनिया ले खिल।

पेड़ पात घउदत हे भारी। पटय सबे के सब सँग तारी।


रंग रंग के फुलवा महके। चिरई चिरगुन चिंव चिंव चहके।

खड़े पेड़ सब मुड़ी नँवाके, गूँजै सरसर गीत हवा के।


तिरथ बरोबर राहय तरिया। नाहै जिहाँ गोरिया करिया।

बइला भैसा मनखे बूड़े। दया मया सब उप्पर घूरे।।


दार चुरे तरिया पानी मा। राहै शामिल जिनगानी मा।

करे सबो झन दतुन मुखारी। नाहै धोवै ओरी पारी।


घाम घरी दुबला हो जावै। बरसा पानी पी मोटावै।

लहरा गावै गुरतुर गाना। मछरी कस तँउरे बर पाना।


सुबे शाम डुबके लइका मन। तन सँग मन तक होवै पावन।

छोटे बड़े सबे झन नाहै। तरिया के सुख सब झन चाहै।


अब होगे घर मा बोरिंग नल। चौबिस घण्टा निकलत हे जल।

आगे हे अब नवा जमाना। नाहै घर मा दादा नाना।


हाँसय सब सुख सुविधा धरके। मनखे मन अब होगे घर के।

शहर लहुटगे गाँव जिहाँ के। हाल अइसने हवै तिहाँ के।।


*नेता मन जुरियाय हें, देख ताल के हाल।*

*तरिया ला सुघराय बर, फेकत हावै जाल।*


*जीव जंतु मरही गजब, कटही कतको पेड़।*

*हो जाही क्रांकीट के, घाट घठौदा मेड।।*


*सुंदरता जब बाढ़ही, मनखे करही राज।*

*जीव जंतु झूमत हवै,पेड़ पात सँग आज।*


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Monday, June 2, 2025

गरमी मा ताल नदी स्नान-सार छंद

 गरमी मा ताल नदी स्नान-सार छंद


देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।

चटचट जरथे चारो कोती, जुड़ जल जिया लुभाथे।।


पार पाय नइ नल अउ बोरिंग, नदिया अउ तरिया के।

भेदभाव नइ करे ताल नद, गुरिया अउ करिया के।।

का जवान लइका सियान सब, डुबकी मार नहाथें।

देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।।


कोनो कूदे कानों तँउरे, कोनो डुबकी मारे।

तन के कतको रोग रई हा, डुबकत तँउरत हारे।

बुड़े बुड़े पानी के भीतर, कतको बेर पहाथे।

देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।


लहरा होथे गहरा होथे, डर तक रहिथे भारी।

नइ जाने तँउरें बर तउने, मारे झन हुशियारी॥ 

जीव जंतु तक के ये डेरा, काम सबे के आथे।

देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)