जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला विनम्र भावांजलि
*शब्द शब्द जेकर गीता हे, गीत गीत गंगा धारा।*
*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।।*
*कोन हवय जी मस्तुरिहा कस, साहित के चमकत हीरा।*
*जेकर कलम लिखै अउ गावै, दीन दुखी मन के पीरा।*
*देख दसा धरती मइयाँ के, दहकै अंतस अंगारा ।*
*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*
*मन के उज्जर छत्तीसगढ़िहा, मँदुरस कस गुत्तुर बोली।*
*छत्तीसगढ़ के पावन धुर्रा, जेकर माथा के रोली।*
*खँड़िच नहीं वो जात पाँत मा, बाँटे हे भाई चारा।*
*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*
*छत्तीसगढ़ी रीत नीत के, जेकर हे कंठ खजाना।*
*करमा सुवा ददरिया पंथी, लोकगीत जेकर गाना।*
*चरन कमल मा माथ नवाववँ,जे हे जन-जन ला प्यारा।*
*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद
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छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।
तोर गीत अउ तोर बानगी, हम ला सुरता आथे।।
तन-मन मा धधकत चिंगारी, शेर सहीं हुंकार भरे।
ये माटी के महिमा गाये, धरती के सिंगार करे।।
दीन दुखी के बोल बने तँय, लोग सबो सँहराथे।
छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।।
नारी के सम्मान जगाये, करे उजागर दुख पीरा।
दया मया के गीत ल गाये, चमके बन के तँय हीरा।।
रीति-नीति संस्कार भरे जी, बैना तोर सुहाथे।
छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।।
महानदी के धारा जइसे, पावन बिचार ला राखे।
बगराये तँय भाईचारा, गोठ सुमत के नित भाखे।।
तोर खिलाये फूल मया के, मन बगिया महकाथे।
छत्तीसगढ़ के दरद लिखइया, मस्तुरिहा कहिलाथे।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 07/06/2025
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: जनकवि मस्तुरिया जी ला काव्याजंलि
कुकुभ छंद
कहाँ लुकाये दिखय नही अब, गिरे परे के सँगवारी।
अलख जगाये ज्ञान दीप के, मेटे बर वो अँधियारी।।
दया मया अउ करम धरम के, गीत रोज के उन गावै।
सुनके अंतस हिलोर मारय, दुख पीरा बिसरा जावै।।
करय रातदिन बेटा हितवा, भाखा माटी के सेवा।
जनकवि तब वो नाम धराये, मिलगे जीते जी मेवा।।
ढोंग धतूरा आडंबर के, रहय विरोघी वो भारी।
देख नैन ले आँसू छलके, दीन दुखी अउ लाचारी।।
अमर नाम होगे दुनियाँ मा, हे लक्ष्मण मस्तुरिया जी।
आज कहाँ तँय पाबे अइसन, छत्तीसगढ़िया बढ़िया जी।।
ज्ञानु
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सोरठा छंद
दुनिया भर मा शोर, उड़त हवय चारों डहर।
अमर नाम हे तोर, शत शत सादर हे नमन।।
जन जन के आवाज, बनके बोलस रोज तँय।
सबके हिरदै राज, करथस तैहा आज भी।।
मैं साथी हव तोर, गिरे परे मनखे तुँहर।
चलव संग मा मोर, दया मया बाँटत कहै।।
छत्तीसगढ़ के शान, दुनिया भर बगराय तँय।
सेवा अउ गुनगान, माटी के सेवा करे।।
रखे जिहाँ तँय पाँव, सात जून उनचास के।
ओ मस्तूरी गाँव, भाग अपन सहरात हे।।
मस्तुरिया के नाम, सबके हिरदै मा बसे।
सादर मोर प्रणाम, अइसन जनकवि ला हवै।।
ज्ञानु
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सब ला लेके संग चलइया, गिरे परे के संगवारी।
छत्तीसगढ़ दुलरवा बेटा, तोर हवन गा आभारी।।
तुमा नार बखरी मा झूमे, घुनही बसुरिसा बाजे।
हमर गंवई गंगा बनके, चिटिक अँजोरी साजे।।
मै छत्तीसगढ़िया अंब रे, बेटा हमू भुंइया के।
सिर्फ सत्य के लिए गढ़े अउ, सेवा करे मइंया के।।
माटी कहिगे कुम्हार से जी, जुलुम तोर हे नैना।
पीरा के पहार हे जाने मा, जगत मोर पड़की मैना।।
शहर डहर के जेन जवइया, आँखी मा कजरा आंजे।
संगी के मया जुलुम होगे, दिन रात बिहनिया सांझे।।
कइसे दिखत नाच ये नचनी, सुन हमका घेरी बेरी।
कहिथे बाज पता दे ले जा, छुनुर छुनुर पाँवे पैरी।।
जन जन के मन तँही समा के, अउ होय स्वर्गवासी।
लोक कला छत्तीसगढ़ के, रही तोर जुग जुग दासी।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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छप्पय छंद
भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।
रइही दिल के पास,कभू नइ जावय दुरिहा।
कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।
लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।
हमर राज के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।
जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।(१)
दया मया के गीत,लिखय अउ गावय बढ़िया।
अमर हवय गा नाँव,हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।
परे डरे ला संग,लगाये बनके दानी।
ए माटी के लाल,अमर हे तोर कहानी।
जन मानस मा गीत हा,गूँजत रहिथे तोर गा।
जल्दी आजा अब इहाँ,तोर लेत सब सोर गा।।(२)
गुत्तुर तोर अवाज,गीत मा सुमता लाये।
सदा नीत के गोठ,तोर अंतस ला भाये।
भारत माँ के लाल,रोज तोला हे वंदन।
लक्ष्मन हवस महान,तोर पवरी हे चंदन।
श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब,मिलके बारंबार जी।
हमर गाँव ए राज मा,अउ ले ले अवतार जी।।(३)
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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*लक्ष्मण मस्तुरिया*
गहिरा उॅंचहा भाव शबद हा, अंतस तरी हमाही।
लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।
रोज बिहनहा मोर किसनहा, सुरुज सॅंघाती जागय।
धरा धाम धरती मइया के, सुत उठ पइयॉं लागय।
रुमझुम खेती खार किंजर के, मस्तुरिया जब आवय ।
झूम-झूम के मन भॅंवरा हा, धुन मा नाचय गावय।
धरती के ॲंगना के फुलवा, दुरिहा ले ममहाही।
लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।
चौंरा मा गोंदा रसिया बर, हे पताल बारी मा।
मया छोड़ नइ जाये सकबे, फॅंसबे सॅंगवारी मा।
झुमरे लगही तुमा नार कस, मन बखरी बारी मा।
मया परोसे हे मस्तुरिया हर बटकी थारी मा।
फिटिक ॲंजोरी निर्मल छइहॉं, मन ला गजबे भाही।
लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।
कॉंटा खूॅंटी के रेंगइया, भूती बनी करइया।
अपन गॉंव ले हाथ दया के, मान मया भेजइया।
गिरे परे हपटे मनखे ला, संग चलव जे कहिथे।
लकठे मा पापी तारे बर, बनके गंगा बहिथे।
मीठ मया मॅंगनी मॉंगे मा, कहॉं भला मिल पाही।
लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।
छत्तीसगढ़ के राज रतन तैं, धन्य धनइया माटी।
करिया सोना के खदान तैं, धन-धन बस्तर घाटी।
तोर लहर लहरे ओन्हारी, सरसे संग सियारी।
घुनही बॅंसुरी माघ फगुनवा, कबिरा के सॅंगवारी।
लोक दुलरुवा लोकतंत्र बर, कुछ ना कुछ अलखाही।
लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरसाही।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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[लावणी छंद गीत- मोहन लाल वर्मा
*लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता*
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।
जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।1।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------
ये माटी के स्वाभिमान के, गीत सदा जे गाइन हें।
मँय छत्तीसगढ़िया अँव कहिके, जग मा अलख जगाइन हें।।2।
दया-मया के परवा छानी, सुरता मा ओकर छाबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------
बन गरीब के हितवा-मितवा, संग चले बर जे बोलँय ।
माघ-फगुनवा मा सतरंगी, मया- रंग ला जे घोरँय ।।3।
देश मया के भारत गीता, संदेशा ला बगराबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,-----
महानदी-अरपा-पइरी मा, जब- तक पानी हा रइही ।
अपन दुलरवा ये बेटा के, अमर कहानी ला कइही ।।4।
परके सेवा मोर सिखानी, बात कहे ला दुहराबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------
सुवा-ददरिया-करमा-पंथी, गुरतुर सुर मा जे गावैं ।
सुरुज-जोत मा करय आरती, छइयाँ भुइँया दुलरावैं ।।5।
अइसन जनकवि के चरनन मा, श्रद्धा के फूल चढ़ाबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।
जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।
छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता:- ग्राम-अल्दा,तिल्दा,रायपुर
(छत्तीसगढ़)
मोबाइल नं.-9617247078
9340183624
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*(लावणी छंद)
सुरता
मस्तुरिया मस्तुरिया कहिके, सुरता सबो करत हावैं।
सुर लहरी के तान गान ला , पाँच तत्व मन बग रावैं।।
कोन भुलाही मस्तुरिया ला,जेन बसे हे जन जन मा।
सोन रतन बेटा बैठे हे ,ये माटी के कण कण मा।
गुत्तुर भाखा बोली बगरे, पेड़ डाल झूमे गावैं।
सुर लहरी के तान गान ला ,पांच जिनिस मन बगरावैं।
गिरे परे हपटे मन के ये , संग चलय बनके संगी।
मन के राजा सबो बनव जी , नइहे अब कोनो तंगी।।
धान कटोरा भरे लबालब ,मिल जुल बांट सबो खावैं।।
सिधवा बर निच्चट सिधवा अउ बैरी बर डोमी करिया।
खेती खार गाय रुनझुन,दिखे नहीं बंजर परिया।।
मया प्रीत के पबरित नाता ,तुमा नार मन फैलावैं।।
सुर लहरी के तान गान ला,पांच जिनिस मन बगरावैं।
अमर गीत रच दिन मस्तुरिया , अमरित ऊंखर बानी मा।
गंगा के लहरा कस आवय ,महानदी के पानी मा।।
ये भुइयॉ में जनम धरिन सब ,अपन भाग ला सहरावैं।।
सुर लहरी के तान गान ला ,पांच जिनिस मन बगरावैं ।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा💐💐💐💐