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Saturday, June 7, 2025

कुंडलिया छंद

 कुंडलिया छंद 


काटो झन गा पेड़ ला,मिलही शीतल छाँव। 

पेड़ लगा दू चार तँय,हरियर रहिही गाँव। 

हरियर रहिही गाँव,गीत पंछी मन गाही।

जाहीं खेती खार,बइठ थोकिन सुरताही।

मातु पिता के नाम,लगा के छँइहा बाँटो।

कह मीरा कर जोर,पेड़ ला झन तुम काटो।।

2

 बरगद पीपर दे लगा,आही अब्बड काम।

सुरताबे तँय बइठ के, जब-जब लगही घाम।

जब-जब लगही घाम,छाँव मा बइठ थिराहीं।

तोता मैना बइठ, रोज दिन गाना गाही।

रही अमर गा नाम,तोर मन होही गदगद।

कहिहँव साँची बात,लगालौ पीपर बरगद।।

3

पावन पुन मिलही चलो,करलो पर उपकार। बिगड़े  झन पर्यावरण, सुखी रही परिवार।

सुखी रही परिवार,पेड़ दू चार लगालौ।

होय प्रदूषण रोक,हवा तुम निछमल पालौ।

घिरे घटा घनघोर, झमाझम बरसे सावन।

पेड़ लगा ले चार, काम होथे बड़ पावन।।


केवरा यदु"मीरा"

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