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Saturday, June 7, 2025

खेती किसानी के जोरा

: कुकुभ छन्द- *दिन आगे खेति किसानी*


चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।

रदबिद-रदबिद पानी गिरही, बन किसान के जिनगानी।।


लगही आसाढ़ महीना अब, चतवारव खेत बियारा ला।

काँटा खूंटी बन बाखर अउ, काँदी दूबी डारा ला।।

खातू माटी रखौ सकेले, सँग बिजहा धान बुवानी।।

चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।।


छेना लकड़ी ला कुरिया मा, रखलौ जी बने सकेले।

रखौ बना के झीपारी ला, झन पानी परछी पेले।।

कालकूत झन होवय भाई, छा लौ अब परवा छानी।

चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।।


नाँगर बइला वाले सुन लौ, अउ सुन लौ ट्रेक्टर वाले।

खेती के औजार सजा लौ, झन बाद म दुःख म घाले।।

जाँगर ला भी ठाँगुर राखव, सुन गजानंद के बानी।

चेत लगा के कर लौ जोरा, दिन आगे खेति किसानी।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/06/2025

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: खेती किसानी-- गंगोदक सवैया


देख आगे किसानी चलै जी बने काम बूता इहाँ बोय हे धान गा। 

खेत बारी लगावै सबो जोतके ये किसानी हवै ओखरे जान गा।।

रोज के खेत जाके करै गा किसानी इही हा हवै देख ईमान गा।

आस ला जोर के धान कोदो उगावै गहूँ सोनहा देश के शान गा।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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सरसी छन्द- खेती के दिन आगे


खेती के दिन आगे भैया, नांगर तोर सुधार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


बंबुर के तैं नांगर करले, जुड़ा बोइर सार।

डाँड़ी ला सैगोना के गा, होथे हल्का भार।

धँवरा के पंचारी करके, खीला ओमा मार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


कोप्पर झटले तैं पटियाले, दंतारी बर दाँत।

परहा बर गा बनेच बनही, जाही पाँते-पाँत।

नांगर लोहा ला फरगाले, करवा लेना धार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


मोरा,खुमरी,छत्ता,झिल्ली, सबके जोरा-जोर।

माई-कोठी बिजहा के तैं , छबना ला अब फोर।

का-का धान बोय बर हावे, करले बने बिचार।

लकठा गेहे अब तो पानी, जल्दी कर तइयार।


हेमलाल सहारे

   सत्र-20

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कौशल साहू: आल्हा छंद

     *खेती-किसानी*


खेती के बेरा दिन आगे ,झन राहय जी परिया खेत।

बन कचरा अउ काँटा खूँटी,चतवारव सब करके  चेत।।


खातू माटी तोप ढाँक के, घर मा राखव उन्नत बीज।

हाथ पसारे झन लागय जी, मँगनी मा नहीं मिलै चीज।।


गोबर खातू गाड़ा -गाड़ा,ओरी -ओरी कुढ़हा पाल।

दांदर -भरका झन राहय जी, खेत बरोबर ढेला चाल।।


नाँगर जूँड़ा अरइ तुतारी, पंचारी के कर ले सोर ।

खिली नाहना जोंता डोरी, कोन पठेरा माढ़े तोर।।


आगर पैदावारी खातिर, अँकरस नाँगर  दूना जोंत।

एक नेत के बीज जामही, घना होय झन बिजहा बोंत।।


कविवर कौशल कहना मानौ,छोल फेंक दौ दूबी काँद।

नाँगर जोंतइया मिलै नहीं ,खोजे मा घरजिंया दमाँद।।


कौशल कुमार साहू

फरहदा (सुहेला)

जिला -ब.बा.भाटापारा (छ.ग)

06/06/2025

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 ज्ञानू कवि: गीत 


बेरा कहाँ थिराये के हे, हावय करे सियानी के

अपन तियारी करलौ संगी, आगे बखत किसानी के


- खातू-कचरा घलो पाल लव, मेड़पार चतवार डरौ।

  मुही पार फूटे होही ता, बने उहू ल तियार करौ।।


सावचेत हो जावव भइया, नइये समय नदानी के

अपन तियारी......


- बीजभात खातू माटी के, जोरा जोरी  करलौ जी।

   नाँगर-जूड़ा, नहना-जोता, हाथ अपन अब धरलौ जी।।


अर-तता तुतारी बइला ले, बेरा अभी मितानी के

अपन तियारी....


- बारी-बखरी रुँधना-बंधना, देदव घलो पलानी जी

बाँधव घलो झिपारी संगी, छालव परवा छानी जी


हवा गरेरा धूंका आँधी, बेरा बादर पानी के

अपन तियारी.....


ज्ञानु

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 डी पी लहरे: ताटंक छन्द


गड़ गड़ गरजै करिया बादर,

अब्बड़ गिरही पानी जी।

नाँगर बख्खर जोरव संगी,

आगे हवय किसानी जी।।1


खेत खार के काँटा खूँटी,

सबो बिने ला जावौ जी।

सरलग बूता काम करव गा,

खेती ला सुघरावौ जी।।2


ठलहा बइठे अब झन राहव,

जाँगर बने चलावौ जी।

धरव तुतारी हाँकव बइला,

धान बीज बों जावौ जी।।3


बन कचरा ला फेंकव संगी,

गोबर खातू डारौ जी।

बने उपजही धान सोनहा,

रसायनिक ला टारौ जी।।4


खेत खार के जतन करौ गा,

खेती ले तुहँर मितानी जी।

छाती पेरव जाँगर टोरव,

येही तुहँर कहानी जी।।5


छंदकार 

डी.पी.लहरे कवर्धा 'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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