Followers

Sunday, July 27, 2025

नारी मनके गहना गुठिया

   नारी मनके गहना गुठिया


हरिगीतिका-छंद 


नारी करै श्रृंगार तब, मोहा जथे भगवान हा।

कामी बने पाछू परै, बोहा जथे इन्सान हा।।

पत्नी बने तो सुख सबो, माया बने तो नाश हे।

सोला करै श्रृंगार तो, राजा प्रजा सब दास हे।।


कुमकुम महुर सिन्दुर लगै, अउ मेंहदी बड़ सोहथे।

चुक आँख मा काजर लगै, बिँदिया फुली मन मोहथे।।

साटी फबै बड़ गोड़ मा, ककनी बनुरिया हाथ मा।

चूरी कलाई मा सजै, अँइठी पटा के साथ मा।।


गजरा लगै जब बाल मा, तब मेनका भी फेल हे।

बिंदी लगै जब माथ मा, रंभा डरै नइ मेल हे।।

टोंटा म रुपिया हार हे, तब उरवशी शरमाय हे।

सब अप्सरा घर मा हवै, श्रृंगार जब पोहाय हे।।


पहुँची बिना सुन्ना भुजा, झुमका बिना जस कान जी।

श्रृंगार बिन नारी नहीं, कोठी बिना जस धान जी।।

नखशिख सजै श्रृंगार सब, कुछ-कुछ तभो रीता हवै।

"बाबू" कहै तैं राम बन, ता तोर घर सीता हवै।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़-

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


  कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू कुंडलियाँ


नारी श्रृंगार 


नारी के शोभा बढ़ै, करथे जब श्रृंगार।

साटी बिछिया मुंदरी, नथली झुमका ढार।।

नथली झुमका ढार, संग मा अवरी दाना।

ककनी करधन हार, सुहावै टिकली नाना।।

गोंदा दवना खोंच, कान मा पहिरे बारी।

काजर आँजय आँख ,फबै चुक ले सब नारी।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला केसीजी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  पुरुषोत्तम ठेठवार *नारी श्रृंगार*

               *रोला छंद*


फूली सोहय नाक, पाॅंव मा पैरी बाजय।

झूलय बाली कान, कमर करधनिया साजय।।

चूरी भरभर हाथ, लाल हरियर अउ नीला।

रिगबिग टिकली माथ, फबे तन लुगरा पीला।।


गर सोना के हार, रचाये माहुर सुग्घर।

दिखय चेहरा गोल, लगे चंदा अस उज्जर।।

खुले बने कलदार, नैन मा ऑंजे कजरा।

करिया करिया केश, छाय जस करिया बदरा।।


बिछिया ॲंगरी पाॅंव, बढा़थे शोभा भारी।

बाजू बाजूबंद, बाॅंधथे‌ बज्जर नारी।।

नारी के श्रृंगार, देख दरपन सकुचाथे।

नारी गुरतुर गोठ,बोल के प्रीत बढा़थे।।


नारी के श्रृंगार, देख तपसी तप डो़ले।

कपटी मन के भेद, रूप नारी के खोले।।

कर नारी श्रृंगार, अपन माया बगराये।

मनुज दनुज अउ देव, तभे नारी गुन गाये।।


नारी घर के शान, बिना नारी जग सुन्ना।

नारी के सम्मान, करव सुख मिलही दुन्ना।।

नारी के गुन गाॅंय, वेद अउ पबरित गीता।

नारी कमला मात, सती सावित्री सीता।।


        *पुरुषोत्तम ठेठवार*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  मुकेश  कुंडलिया छंद-- नारी सिंगार   


बाली झुमका कान मा, टिकली माथ लगाय।

नारी के सिंगार हा, सबके मन ला भाय।।

सबके मन ला भाय, सोन के माला मोती।

चुकचुक लागय रूप, जाय जब एती ओती।।

बिछिया साजे पाँव, होंठ मा सुग्घर लाली।

मन ला मोहत जाय, कान के खिनवा बाली।।


फीता गजरा बाल मा, अउ गर सोहय हार।

सुग्घर बेनी गॉंथ के, करे साज सिंगार।।

करे साज सिंगार, पाँव साँटी अउ टोड़ा।

शोभा पाये पोठ, हाथ मा अँइठी जोड़ा ।।

नथनी पहिरे नाक, कभू नइ राहय रीता।

क्रीम पावडर गाल, मूड़ मा गजरा फीता।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  अश्वनी कोसरे  नारी श्रृंगार- प्रदीप छंद


परंपरा आदी ले बनगे, सुघर साज *सिंगार* के |

मँगनी जँचकी बिहाव मेला, उत्सव परब तिहार के||


गहना गोंटी साजैं गोरी,  जावँय सब ससुरार मा |

पहिरँय टोड़ा करधन रुपिया, काया के *सिंगार* मा||


कान म खिनवा हाथ म ककनी , साँटी पहिरँय पाँव गा|

छनर छनर झाँझर झनकावत, गोरी घूमँय गाँव गा||


बेनी फूल गँथाए गजरा, महर महर ममहाय गा|

मुटियारिन के होंठ गुलाबी, देख सबो मुसकाँय गा||


गर गरलगी गुथाए हावँय, दुलहिन ढ़ाँके चेहरा| 

खोपा खोंचे हावँय कलगी, झूलत राहय शेहरा||


हँसली दुलरी तिलरी सूता, सूर्रा अउ कलदार गा|

मोहन माला कंठी माला, सोना रानी हार गा||


मुकुट मटुकिया मुड़ मा खापैं, मुँगुवा मोती माँथ मा|

कंगन काँसल ककनी चूरी, मुँदरी अँगरी हाँथ मा||


साजैं चूरी बहुँटा पहुची, हाँथ घड़ी ला बाँह मा|

कटहर लच्छा टोड़ा पैरी, पहिरे रहँय उछाह मा||


कमरबंद कनिहा मा पहिरँय, प्रसव बाद मा पोठ गा|

छै दस लर के चाँदी करधन, कमर पटी हा रोठ गा||


खिनवा तरकी टाप ढार अउ, झुमका बाली कान मा

बरे बिरन माला ला डारँय, अपन पिया के मान मा||


आनी बानी घुँघरू काँटा, चुटकी बिछिया पाँव मा|

राहय घलो गोदना गहना, सुख सुहाग के नाँव मा||


संस्कृति के पोषक हें नारी, चलन हवय जी गाँव मा|

कतको गहना गुरिया पहिरँय, मया पिरित के छाँव मा|


अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  अश्वनी कोसरे  कवित्त छंद- नारी श्रृंगार


ढोलकी हा घेंच सँटे, कोतरी हा पाँव डँटे, 

कान मा लटे हे ढार, झूलनी हे हाँथ मा |


बाजूबंद नागमोरी, कड़ा चैन बाँधे डोरी,

मूड़ी माँग मोती सौहै, मूंगा रहै साथ मा|


नंग भरे सोने आँखि, उड़ै न लगा पाँखी,

अंग ला सजावैं गोरी, टिकली रहै माथ मा|


झबली गँथाए बेनी, गजरा खोंचे साथ मा,

ककनी बनुरिया हे, चूरी पटा हाँथ मा|



टोंड़ा लच्छा पैजन हे, साँटी पैरी पाँव मा

पहिर समहर के, जावैं गोरी गाँव मा|


बाढ़य मया पिरित, राहँय सुख छाँव मा,

हाँथ मा रचे महेंदी, महाउर पाँव मा|


पति हे सुहागन के, हिरदे चित ध्यान मा,

गोदना गोदाये राहैं, पिया जी के मान मा|


अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  डी पी लहरे सरसी-सार छन्द गीत


सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।

गर मा सोहे मन ला मोहे, नौ लखिया के हार ।।


माँघ लाल सेंदूर सजाथे, तब फबथे गा नारी।

आनी-बानी गहना-गोंटी, नारी मन के भारी।।

खिनवा झुमका ढरकी लुरकी, झुले कान के ढार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


फबे नाक मा नथनी फुल्ली, बेनी बर हे गजरा।

होंठ रचावँय लिपस्टिक मा, आँखी बर हे कजरा।

इसनु पावडर लगे गाल मा,रूप दिखे उजियार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


ऐठी बहुँटा चूरी कंगन, खनखन खनखन खनके।

हर्रइया हा खुले हाथ मा, चमचम मुँदरी चमके।

अंग अंग मा खिले गोदना, जुड़े मया के तार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


टोंड़ा साँटी  पैजन पैंरी, सजे गोड मा लच्छा।

कटहर चुरवा चुटकी बिछिया, लागे सब ला अच्छा।

सातो लर के कनिहा करधन,हे गहना मा सार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  ओम प्रकाश अंकुर नारी के गहनागुठा 


     (  सार छंद )


होथे पहिचान सुहागन के, सिंगार सुघर सोला।

धन धन हावय भाग उँकर हा, स्वामी चाहय वोला।

भरथे सुघ्घर नारी मन हा,अपन मांग मा टीका।

कर लै कतको सिंगार भले, येकर बिन हे फीका।‌।


लुरकी झुमका करनफूल अउ, तरकी लुलुड़ी बारी।

धारन करथे नीक कान मा, बढ़िया दिखथें नारी।।

हावय बाहाँ मा पहुँची अउ, कॅंगन हाथ मा गोरी।

बहुटा ताबीज कड़ा करधन, तिरिया तोर तिजोरी।‌


चमकै बिंदी तोर माथ मा,काजर आँजे आँखी,

दिखथस तॅंय हा बने परी कस,हावय जइसे पाँखी।

तोर हार हा अइसे लगथे,जलत हवय जस जोती।

नथली अब्बड़ चमकत रहिथें, पहिने हस तॅंय मोती।


चन्दा कस मुख हावय सुघ्घर, चमचम चमकै माला।

क्रीम पाउडर गजब लगावय, मन ला मोहैं बाला।।

लाल पान पहिने अँगरी मा,पिपर पान अउ छल्ला।

होवत हावय तोर रूप के,गजब गाँव मा हल्ला।


खुलै पैरपट्टी अउ लच्छा,चुटकी बिछिया पैरी,

घात सुघर तॅंय हस वो गोरी,जलत हवय सब बैरी।

तोर हाथ मा गजब सुहावय,चूरी अँइठी टोंड़ा।

गर मा सूॅता मोतीमाला,खेलत हस तॅंय गोड़ा।।


कनिहाँ के ऊपर मा सोना,सुघ्घर पहिने जाथे।

तन मा येला धारन करथें,सुम्मत बिचार आथे।।

चांदी मन के आभूषण हा,अवगुन दूर भगाथै।

कनिहाँ के नीचे मा पहिने,येहा गजब सुहाथै।।


होथें किस्मत वो नारी के, पति के जेहा    प्यारी।

जिनगी जीथें सुख सुम्मत ले, गोरी हो या कारी।।    

                 

                ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

                    सुरगी, राजनांदगांव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  पात्रे जी *


आल्हा छंद- *नारी के गहना*


आल्हा छंद लिखे हौं संगी, पढ़ लेहू सब गुनिक सुजान।

नारी के गहना के बरनन, गजानंद जी करय बखान।।


आठो अंग सजावय गहना, सुग्घर मुड़ से लेके पाँव।

आवव तुँहला हवँव बतावत, एक-एक कर सबके नाँव।।


मुड़ मा सिंदूर माँगमोती अउ, टिकली बिंदी माथ सुहाय।

कान म तरकी झुमका झूले, नाक म फुल्ली खिनवा भाय।।


नौलक्खा के हार गला मा, धनमाला सुतिया कलदार।

कटुआ चंपाकली दुलारी, मंगलसूत्र फबे हे यार।।


बाँह नाँगमोरी अउ बहुटा, लपटे पहुची बाजूबंद।

कलिवारी ताबीज घलो हा, गहना आय गला के चंद।।


हाथ कंगना चूड़ी ककनी, बनोरिया हर्रइया भाय।

हाथफूल अउ चेन कड़ा हा, सुग्घर ये हा हाथ सुहाय।।


सात लरी के कमर करधनी, नारी के ये सुख सिंगार।

सोहे गजब कमरपट्टा हा, कमर लपेटा गजबे मार।।


पाँव म पैरी साँटी टोड़ा, बिछिया लच्छा अउ पैजेब।

राजमोल के गहना पहिने, मिट जाथे मन ले सब ऐब।।


छत्तीसगढ़िया नारी मन के, ये सब सुग्घर गहना आय।

लिखके आल्हा छंद म संगी, गजानंद हे आज बताय।। 


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  पात्रे जी *


ताटंक छंद गीत- *नारी के गहना*


गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।

सोना चाँदी हीरा मोती, करे शौक ला पूरा हे।।


कारी कजरा आँखी आँजे, गजरा खोफा मा फूले।

नाक म नथनी फुल्ली खिनवा, कान म झुमका हा झूले।।

लहरावत बेनी हर लागे, छेड़त तान तमूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


हार गला मा नौलक्खा के, गोरी तन ला हे सोहे।

ऊपर ले सिंगार सादगी, पति परमेश्वर ला मोहे।।

मुस्कावत हे मुचमुच सुग्घर, मन के मगन मयूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


पहिरे बाजूबंद बाँह मा, ताबीज नाँगमोरी ला।

बहुटा पहुची कलिवारी हा, फबे गजब के गोरी ला।।

नारी बर गहना के आगे, सुन सब चीज धतूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


लाली पीली चूड़ी खनखन, खनके हाथ कलाई मा।

कंगन ककनी हर्रइया हा, इतराये सुघराई मा।।

कमर करधनी झटका मारे, हिलगे मया कँगूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


पाँव म पैरी छनछन बाजे, पैजब गीत सुनाये हे।

साँटी टोड़ा लच्छा बिछिया, सुन लौ राज बताये हे।।

गजानंद जी हँस ले गा ले, ये जिनगी तो चूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  सरसी छन्द गीत- आनी-बानी गहना गोठी (२२०७२०२५)


मन ला मोहत हावय संगी, सुग्घर रूप निखार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


नाक कान मा नथनी बाली, रुनझुन पइरी पाॅंव ।

दुनों हाथ मा चूरी खनकॅंय, झूमॅंय जम्मों गाॅंव ।।


माथा मा टिकली हा सोहय, सोहय गल मा हार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


खोपा के गजरा बड़ सुग्घर, महर-महर ममहाय ।

अपन डहर नित खींचय संगी, कोनों बच नइ पाय ।।


ये दुनिया के रीत पुरानी, कर लव मया- दुलार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


करधन कंगन बिछिया मुॅंदरी, लुगरा हरियर लाल ।

पहिरे ओढ़े निकलय गोरी, नागिन जइसे चाल ।।


नखरावाली हें दिलवाली, देखव ये संसार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


काजर ला ऑंखी मा ऑंजॅंय, मुॅंहरंगी ला होठ ।

टोरा ला मनटोरा पहिरे, लच्छा ऐंठी मोठ ।।


तन के शोभा हा बढ़ जाथे, मिलथे खुशी अपार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।



✍️छन्दकार, गीतकार व लोकगायक🙏

ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  राजेश निषाद छन्न पकैया छंद - नारी सिंगार 


छन्न पकैया छन्न पकैया, सुनलव मोरो कहना।

आनी बानी हावय संगी, नारी मन के गहना।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, आँखी आँजय कजरा।

होंठ रचावय लाली संगी, बेनी गाँथय गजरा।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, अँगरी पहिरय मुँदरी।

खिनवा बाली झुलय कान मा, सुग्घर दिखथें सुँदरी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, कमर बँधे करधनिया।

टोड़ा चुटकी लच्छा साँटी, बजे पाँव पैजनिया।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, गीत मया के गाथे।

चूड़ी कँगना पहिर हाथ मा, कनिहा ला मटकाथे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, टिकली माथा दमके।

नथली फूली फभे नाक मा, चंदा जइसे चमके।।


राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


  तुषार वत्स 🥰🌹 *नारी सिंगार*

*लावणी छन्द*

गहना पहिरे सुग्घर दिखथे, होवय कोनो जी नारी।

कान नाक गर हाथ गोड़ मा, लादे रहिथे बड़ भारी।।


टोंड़ा साँटी अइॅंठी बिछिया, बहुॅंटा पहुॅंची अउ करधन।

किसम किसम के गहना भावय, माई लोगिन के तन मन।।


सोना चाॅंदी महॅंगा अड़बड़, लगथे रुपिया सौ कोरी।

तभो पहिर इतरावत रहिथे, गाॅंव शहर के सब गोरी।।


टिकली फुॅंदरी कुमकुम लाली, कमती गहना ले नोहय।

लगा जेन ला नारी मन हा, स्वामी के हिय ला मोहय।।


हमर राज के गहना मन के, कहिहूॅं कतका मॅंय कहिनी।

मान बाढ़थे पहिरे जब भी, दाई दीदी अउ बहिनी।।

*तुषार शर्मा "नादान"*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

   

*नारी सिंगार*


सरसी छंद 


लाये हँव मैं सबो सवांँगा, करले तैं सिंगार |

पुतरी कस दिखबे तैं सुग्घर, गोरी रूप निखार ||


चंदा अइसन चेहरा चमके, सूरज टिकली माथ |

झमकत बिजली कान पहिर ले,नाक जोगनी साथ ||


तरिया डबरा उज्जर रुपिया , झटकुन नरी सँवार |

रद्दा बाँह बहुँँटिया फबही ,नरवा सूँता हार || 


अशोक कुमार जायसवाल 

भाटा पारा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


  विजेन्द्र दुर्मिल सवैया - नारी के श्रृंगार 


बिछिया मुँदरी अँइठी कँगना,फँभथें गहना महिला मन ला।

गर मा रुपया पुतरी तिलरी,चमकाय बने झुमका तन ला। 

अउ पाँव जड़े पइरी झनके,दमकाय बने घर आँगन ला।

सब अंग खिले गहना गुरिया,महकाय बने मन कानन ला।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  गुमान साहू लावणी छन्द

।।गहना आनी बानी।।


रिकिम रिकिम के गहना पहिरै, सुग्घर देखव सब नारी।

हीरा मोती सोना चाँदी, रतन जड़े बड़ सँगवारी।।


किलिप मांगमोती हा सर के, शोभा ला खूब बढ़ावय।

नागिन जस बेनी मा गजरा, खोपा मा कभू लगावय।।


माथा टिकली चमके चम-चम, जइसे जी चाँद सितारा।

लाली सेंदुर सजे मांग मा, आँखी मा काजर धारा।।


ऐंठी ककनी पटा कंगना, चूड़ी बड़ रंग बिरंगी।

खन-खन खनके सबो हाथ मा, अँगुरी मा मुँदरी संगी।।


पइरी लच्छा टोंड़ा सांटी, बजै पाँव मा पैजनिया।

सजै गोड़ के अँगुरी बिछिया, कनिहा पहिरै करधनिया।।


नाक कान मा फूली नथनी, खिंनवा लटकन हा लटके।

बाली झुमका ढार पहिर के, लगथे नारी मन हट के।।


गर मा सूता हार रूपिया, नौलक्खा अउ कलवारी।

बाँह नागमोरी अउ पहुची, पहिरै बहुटा ला नारी।।


सबले बड़ के हावै संगी, लज्जा नारी के गहना।

येकर बिन हे सब्बो फीका, सुन लौ सब दीदी बहना।।


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी) 


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

मत्तंगयद सवैया


।।सोलह श्रृंगार।।

कान फभै खिनवा झुमका लटकै बड़ सुग्घर देखव बाली।

माथ लगै टिकली जस चाँद लगावय माँग म सेंदुर लाली।

हार गला हसुली पुतरी रुपिया सुतिया अउ रेशम काली।

हाथ पटा ककनी पहुची अँगुरी मुँदरी पहिरै नग वाली।।


पाँव लगावय लाल महाउर काजर आँख करै कजरारी।

गोड़ म पैजनिया छम बाजय राह चलै पहिरे जब नारी।

नाक फभै नथली चमकै जस चाँद करै रतिहा उजियारी। 

हाथ कड़ा कँगना खनकै बहुटा हर बाँह बँधे बड़ भारी।।


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  


दोहा छंद - नारी सिंगार (सुधार)


लक्ष्मी उहाँ बिराजथे, नारी करे सिंगार।

बेटी होय गरीब के, देवय रूप निखार ।।


सजे धजे बिन नइ रहय, हमर तुँहर परिवार।

खर्चा बाढ़य घर लुटे, मुड़ मा चढ़य उधार।।


फूली चाही सोनहा, पहुँची चांदी बाँह।

रुपया माला गर चढ़े, देखव तहाँ उछाह।।


बिछिया दूनो अँगुरिया, साँटी पहिरे पाँव।

छमक छमक बेटी बहू, किंदरय मइके गाँव।।


काजर आँखी आँज के, खिनवा कान झुलाय।

कनिहा करधन बाँध के, दौना ला देखाय।।


मुँदरी चूरी मेंहदी, शोभा हाथ बढ़ाय।

सुग्घर मया पिरीत के, रोज खुशी बरसाय।।


सोला सिंगार हा हमर, संस्कृति के पहिचान।

गोसाइन बेटी बहू , नारी सरुप महान।।


मुँदरी अँगरी पहिर के, बंँधना मा बँधजाय।

सात जनम गठ जोड़ के, जुग जोड़ी कहवाय।।


करधन कनिहा मा कसे, चेत करे परिवार।

जइसे रक्षा बर अड़े, सीमा मा रखवार।



हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा जिला-गरियाबंद

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  नंदकिशोर साव  साव *

सरसी छन्द - नारी श्रृंगार 


रंग रंग के नारी मन के, साज सवाँगा आय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


पैरी लच्छा चुटकी साँटी, बिछिया सोहय पाँव।

कनिहा मा करधन छै लर के, मोहय सगरो गाँव।।

अँगरी मुँदरी पहुँची ककनी, चूरी कंगन भाय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


बाहु बहुंटा अँइठी आला, दीदी करे पसंद।

गला ढोलकी सुर्रा सूंता, सुग्घर खुले ननंद।।

पुतरी तिलरी संकरी बिना, सिंगार यहू काय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


गल मा मंगलसूत्र पहिन के, चले सुहागिन नार।

माथा सोहय लाली सेंदुर, अमर रहे भातार।।

फबय मांगमोती पटिया जी, नथनी फुल्ली माय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


खिनवा बारी टिकली खूंटी, लुरकी लवंग फूल।

झूलत झुमका कान हवय जी, रहिथे नंगत खूल।।

खोपा गजरा फूल मूड़ मा, सुवा पाँख खोँचाय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


हरियर लाली लुगरा पोल्खा, सजथे नारी देह।

ममता के वो मूरत लगथे, रखथे सब ले नेह।।

कर सोलह सिंगार निकलथे, घर लक्ष्मी कहलाय ।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


नंदकिशोर साव 

राजनांदगाव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  प्रिया *नंदावत गहना* *सर्वगामी सवैया*


कौड़ी न बिंदी न सिंगी न कंघी सुना माथ राखे कहाँ ये गँवागे।

ना कान बाली नहीं नाक फुल्ली बुलाकी घलो आदमी हा भुलागे।।

सुर्रा पटा ढोलकी नागमोरी सुने नाम कोनो त हाँसी हमागे।

ऐठी कड़ा पाँव पैरी न बाजे जमाना नवा आय जम्मो सिरागे।।


प्रिया देवांगन *प्रियू*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  Jaleshwar Das Manikpuri  छत्तीसगढ़ी सिंगार रोला 

खिनवा पहिरे कान,नाक मा नथुली साजे।

बहुँटा पहिने बाँह,,पाँव मा पइरी बाजे।।

टिकली साजे माँथ ,माँग म सोनहा मोती।

कनिहा करधन हाफ, पहिर के जावय ओती।।


ढरकव्वा हे कान, नाँगमोरी अउ सुतिया ।

मटकावत हे चाल,फबे हे चांदी रुपिया।।

हरियर पिंवरी लाल, चुरी हर लागे कंँगना।

जाही सज के आज,  धनी के वो हर अंँगना।।

जलेश्वर दास मानिकपुरी ✍️ 

मोतिमपुर बेमेतरा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  

सार छंद - *नारी श्रृंगार* 


सज धज के जब निकले गोरी, अड़बड़ सुंदर लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत,परी उतर के आगे।


टिकली सोहे सुघर माथ मा, माँग बिंदिया चमके।

पहिरे चुक ले फुली नाक मा,होंठ लाल बड़ दमके।

खोपा पारे बाँधे फुँदरा ,बेनी सुघर गँथागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत,परी उतर के आगे।


बहाँ नागमोरी अउ बहुँटा,कनिहा करधन सोहे।

पैजन साँटी टोंड़ा पैरी,सबके मन ला मोहे।‌

पटा कड़ा हर्रैंयां चूरी,सुघर कलाई लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत,परी उतर के आगे।


सुर्रा पुतरी सुता सुहागिन,हार गला मा राजे ।

मुँदरी बिछिया मूँगा मोती,पाँचो अँगरी साजे।

लच्छा ककनी बनोरिया ले,तन मनभावन लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत, परी उतर के आगे।


कान कनौती खिनवा झुमका,लटके सुग्घर बाली।

हांथ मेंहदी रचे पाँव मा ,माहुर लाली लाली।

किसम-किसम के गहना गूँठा,नारी गजब सँवागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत, परी उतर के आगे।


सज धज के जब निकले गोरी, अड़बड़ सुंदर लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत, परी उतर के आगे।


अमृत दास साहू 

राजनांदगांव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  अनिल सलाम, कांकेर नारी सिंगार

आल्हा छंद


चूरी कँगना माथा बिंदी, मुड़ मा गजरा गर मा हार।

नथनी फुल्ली काजर बाली, हावय सब नारी सिंगार।।

 

अँइठी पहुँची माला मुँदरी, लाली लुगरा मन ला भाय।

पँयरी साँटी बिछिया करधन, पहिरे नारी बड़ मुस्काय।।


सोना चाँदी मुंगा मोती, असली नकली सब मिल जाय।

असली बहुते महँगा मिलथे, नकली हा सस्ता मा आय।


कतको सुग्घर सज धज ले तैं, तभो कमी हा नइ तो जाय।

मीठा बोली हँसी ठिठोली, सबके जी मन ला हरसाय।


सुमता ममता लोक लाज अउ, दाई बाबू के संस्कार

दया मया सद बेवहार हा, सबले बड़का हे सिंगार।



अनिल सलाम

उरैया नरहरपुर कांकेर छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  jeetendra verma खैरझिटिया

 रंग रंग के गहना गुठिया-लावणी छंद


रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।

खुले रूप सजधज बड़ भारी, सँहिरायें मनखें सबझन।।


सूँता सुर्रा सुँतिया सँकरी, साँटी सिंगी अउ हँसली।

चैन चुड़ी सोना चांदी के, आये असली अउ नकली।।

कड़ा कोतरी करण फूल फर, ककनी कटहर अउ करधन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


बिधू बुलाक बनुरिया बहुटा, बिछिया बाली अउ बारी।

बेनिफूल बघनक्खा बिछुवा, माला मुँदरी मलदारी।।

चुटकी चुरवा औरीदाना, पटा पाँख पटिया पैजन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


तोड़ा तरकी टिकली फुँदरी, रुपिया लगथे बड़ अच्छा।

पटा लवंग फूल नथ लुरकी, झुमका ऐंठी अउ लच्छा।।

ढार नांगमोरी नकबेसर, पैरी बाजे छन छन छन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


कटवा कौड़ी फुल्ली पँहुची, खूँटी खिनवा गहुँदाना।

हार हमेल किलिप हर्रइयाँ, माथामोती पिन नाना।।

सोना चाँदी मूंगा मोती, गहना गुठिया आये धन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  जगन्नाथ सिंह ध्रुव  कुण्डलिया छन्द  - नारी के श्रृंगार 


गहना गुठिया रूप के, नइ  होवय आधार।

बेवहार सबले बड़े, नारी के श्रृंगार।।

नारी के श्रृंगार, असल मा नइ हे सोना।

कुंदन जइसे साफ, रहय मन के सब कोना।।

नेक रहय संस्कार, समय के हावय कहना।

नारी मन के आय, दया हा सुग्घर गहना।।


    जगन्नाथ ध्रुव 

चण्डी मंदिर घुँचापाली 

     बागबाहरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  तातुराम धीवर  नारी के श्रृंगार 

विधा - बरवै छन्द , 


पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।

 होरी देवारी अउ, परब तिहार।।


बाँह फभे नइ बँहुची, गर बिन हार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


कड़ा बनुरिया टोंड़ा, पीपर पान।

बाला खिनवा के बिन, सुन्ना कान।।


करनफूल अउ खूँटी, लटकन ढार।

पति बिन बिरथा हावय,सब श्रृंगार।।


बिँदिया सिन्दूर नही, टिकली माथ।

मूँड़ माँगमोती मन, के छुटे साथ।।


चूरी कँगना सुँतिया, भय बेकार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


गजरा फूँदरा सजे, बेनी फूल।

फूली नथली झुमका, झूले झूल।।


गोड़ बजे नइ पैरी, के झंकार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


कनिहा पहिरे करधन,सुग्घर मोठ।

गहना गुरिया के हे, भारी गोठ।।


लच्छा साँटी पहुँची, लच्छेदार।

पति बिन बिरथा हावय,सब श्रृंगार।।


नइये पाँव महाउर, पँवरी लाल।

आँखी काजर बइरी, लागे काल।।


पुन्नी रात अमावस, जस अँधियार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


हावय सुग्घर नख बर, पालिस नेल।

किरिम पाउडर स्नो अउ, सेसा तेल।।


सादा लुगरा बनथे, तन आधार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


माला बैजंती अउ, हे जंजीर।

मंगलसूत्र घलो हा, देवय पीर।।


रोवावय पर बन के, घर परिवार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


सोलह श्रृंगार करें, चमके रूप।

पति बिन छायाँ लागय, भारी धूप।।


विधवा जिनगी लगथे, बहिनी भार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


     तातु राम धीवर 

भैंसबोड़ जिला धमतरी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  +   नारी श्रृंगार*

*विधा- सरसी छंद*

~~~~~~~~~~~~~~~

लाली टिकली लगे माथ मा, गर नवलखिया हार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


बाली तितरी हवय सोनहा, फुली नाक मा भाय।

लगा ओंठ मा लाली सुग्घर, अहिवाती इतराय।

पहुँची बहुँटा अउ हररैया, ऐंठी ककनी ढार। 

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


रुपिया सुर्रा सुता पहिर के, दमकय नारी रूप।

मुसकाई हा लगथे पबरित, भिनसरहा के धूप।

खन-खन खनकय जब चूरी हा, देवय खुशी अपार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


कनिहा मा करधन के शोभा, झमझम लुगरा लाल।

रुनझुन-रुनझुन पैरी बोलय, नागिन जइसे चाल।

देखत नारी के सुघराई, रीझे ये संसार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


अहिवाती के असली गहना, ओकर अमर सुहाग।

जीयत भर पति संग रहय ओ, सँहरावय निज भाग।

मया-पिरित के गहना पहिरे, नारी सुख आधार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


     *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

  +   नारी श्रृंगार*

*विधा- रोला छंद*

~~~~~~~~~~~~~~~~

लाली लुगरा देह, माथ मा बिन्दी लाली।

लाली चूरी हाथ, कान मा पहिरे बाली।।

लाली हे सिंदूर, माँग के शोभा भारी।

कर सोला सिंगार, पिया मन भाये नारी।।


असल रूप सिंगार, सोन-चाँदी हा नोहय।

त्याग समर्पन भाव, धरे नारी हा सोहय।।

बाँधे सुमता डोर, शांति सुख घर मा लावय।

सुग्घर घर-परिवार, सुमत ले उही बनावय।।


नारी ममता रूप, त्याग के पबरित मूरत।

देवी जइसे दिव्य, दिखय अहिवाती सूरत।।

ओकर अछरा छाँव, हवय दुख दूर करइया।

संस्कारी संतान, बनावय नारी भइया।।


मन के पबरित भाव, नता ला पोठ बनावय।

मइके अउ ससुरार, दुनो के मान बढ़ावय।।

शोभा पाय समाज, सुशीला नारी पाके।

नारी हे सिंगार, रखय घर सरग बनाके।।


       *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  अश्वनी कोसरे  गीतिका छंद -नारी श्रॄंगार



हे फभे नारी ल टिकुली, नीक लागै माथ मा|

बड़ सुहावन घेंच लागय, हार राहय साथ मा||

हे जड़े हीरा बने मोती सही चवकोर हे|

तैं पहिनले हार रानी, सब सुमंगल तोर हे||


नाक मा फूली फभै अउ कान मा तो झूल ओ|

बाल मा गजरा गँथाए, मूड़ बेनी फूल ओ||

ढार खिनवा कान सोहय, घेंच सोहय हार ओ|

रूप तुहँरे घात मोहय, साज ले श्रृंगार ओ||


मैं दिवाना रूप के हौं, तै बने देबे मया|

रूप चंदा तोर फभथे, दास तुहँरे कर दया||

मोहनी हे रूप तोरे, पाँव मा पैरी बजै|

ढोलकी मन ला हरे हे, कान मा बाली सजै||


अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  ज्ञानू कवि विषय - नारी श्रृंगार 


छंद - विष्णुप्रद 


आनी- बानी नारी मन के, तो श्रृंगार हवै |

सबले ऊपर काखर कइसन, का व्यवहार हवै||


इतरावत, लहरावत बेनी, चले लगा गजरा|

बादर करियागे जस लागय, आँखी के कजरा||


माँग फभे लाली सिंदुर मा, दम- दम ले दमकै|

लगे माथ मा रँग- रँग टिकली, बिजुरी कस चमकै||


देख नाक के नथली, फुल्ली, अड़बड़ खूलत हे|

झुमका, बाली लगे कान के, जस फर झूलत हे||


रुपिया, सुतिया, माला सँग मा, मंगलसूत्र गला| 

सोना- चाँदी नइते रेशम, पहिरे आज घला||


बाजूबंद, नागमोरी अउ, चूरी कंगन हे| 

घड़ी एक चूरा दूसर मा, कइसन फैशन हे||


हाथ रचाये अउ मेहंदी, नखपालिश अँगरी|

कोनो एक, तीन कोनो हा, पहिरे अउ मुँदरी||


पटा, बनुरिया , ऐंठी, ककनी, कनिहा, करधनिया|

लच्छा, साँटी, टोड़ा, पैंजन, सुघर फबे बिछिया||


बेनीफूल, माँगमोती अउ बहुटा, सूर्रा, ढार घलो|

करनफूल, पहुँची, नवलक्खा, रानीहार घलो||


तइँहा के दाई- माई मन, मूड़ी ढाँक चलै|

नजर मिलावय नइ कखरो ले, झुक- झुक आँख चलै||


सादा खावय, सादा पहिरय, उच्च विचार रहै|

टिकली, चूरी अउ माहुर मा, सब श्रृंगार रहै||


कतको अपन मान मर्यादा, छोड़े आज हवै|

फैशन के चक्कर मा भूले, लोक लिहाज हवै ||


ज्ञानु

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  नीलम जायसवाल *छन्न पकैया छन्द*


*नारी श्रृंगार सामग्री*


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नारी मन हा साजय।

हाथ म चूरी कमर करधनी, गोड़ म पैरी बाजय।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, माँग म सेंदुर सोहे।

गोड़ महावर हिना हाथ के, खुशबू मन ला मोहे।।



छन्न पकैया-छन्न पकैया, अँगठी सोहे मुंदरी।

हाँथ म बहुँटा गोड़ म सांँटी, गला म सुर्रा पुतरी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नाक म फुल्ली चमके।

कान म खिनवा झूमत हावै, टिकली माथ म दमके।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया,आँख म काजर आँजे।

बेनी मा गजरा ला गाँथे, होठ म लाली साजे।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, सजे बहुरिया भावै।

साज सिंँगार ह बने लागथे, हमर रीति ये हावै।।


नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़

  

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *सार छंद --बिछिया (नारी श्रृंगार)** 


बिछिया हरयँ निशानी सुघ्घर, सबो सुहागिन मन के।

सजा पाँव ला गजब बढ़ावयँ,शोभा नख-शिख तन के।।

महुर पाँव मा नख नकपालिस,बिछिया पहिरे अँगरी।

धीर लगा के रेंगय गोई,लहरावय मन सगरी।।

सोना-चाँदी अउ नग वाले, बिछिया सब ला भावयँ।

इँकरे नवा रूप चुटकी मा, कतकों काम चलावयँ।।

बर-बिहाव मा बिछिया दे के, सगा निभावयँ नाता।

कँगला घलो बिसा लय एला,चाहे खाली खाता।।

हार नौलखा या बिछिया कस, महँगा- सस्ता गहना।

नारी बर सबके महत्व हे, इही नीति के कहना।।


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  कौशल साहू कुंडलिया छंद 


नारी श्रृंगार


चुन चुन के हीरा सँही, सरी सवाँगा साज।

मइके ससुरे रह जिहाँ, सबला होवँय नाज।। 

सबला होवँय नाज, भले दुख पीरा सहना।

आदत गुन संस्कार, लाज नारी के गहना।।

राखव मीठ जुबाँन, बहुरियाँ बेटी सुन सुन।

ना चाँदी ना सोन, सवाँगा कर लौ चुन चुन।।


कौशल कुमार साहू

जिला -बलौदाबाजार (छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  नारायण वर्मा बेमेतरा *मत्तगयंद सवैया*


नारी श्रृंगार


माथ लगे टिकली बिजली मुख चाँद सही चमकावत हाबै।

घात फभे कजरा गजरा झुमका नथनी मन भावत हाबै।।

हाथ सजे अइँठी कँगना मुँदरी मुचले मुसकावत हाबै।

बाजत हे पइरी रुनझुन धन भाग अपन सहँरावत हाबै।।


🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  Dropdi साहू  Sahu ‌ सरसी-सार छंद गीत-"गहना गुरिया"

                  *******

बढ़थे  सुघराई  नारी  के, जब  वो करे सिंगार।

लगथे  जइसे   गढ़े  विधाता, देहे  परी  उतार।।


अँगुरी खातिर चुटकी बिछिया, घुठुवा पैजन साँटी।

कनिहा के करधन लड़ी कड़ी, कसथे खीली घाँटी।।

पहुँची बँहुँटा बइहाँ सोभे, कान करनफुल ढार,

लगथे  जइसे  गढ़े   विधाता, देहे  परी  उतार।।


चूरी पहिरे हाथ काँच के, बीच पटा चिकनाही।

नोख बनुरिया ककनी अँइठी, चैनफाँस अँइठाही।।

किसम किसम के गहना गुरिया, सरी अंग झकदार।

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे  परी  उतार।


सजे हाथ के अँगुरी मा हे, छप्पा छपे छपाही।

नागमुरी मुँदरी हे सुग्घर, भौंरा कस भौंराही।।

चुकचुक ले फभे हवय गहना, रूप दिखे ओग्गार,

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे  परी  उतार।।


नाक सोभथे नथली फुल्ली, चिकनी चिटिक रवाही।

नग हा चमकत जाथे लुकलुक, जगमग आवाजाही।

खोंचनियाँ किलीप खोंचाए, चिपकी जालीदार, 

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे  परी   उतार ।।


एँड़ी रचे आलता माहुर, नख मा नाखून पालिस।

रचे होंठ मुँहरंगी हावय, सेंदुर माँग लगालिस।। 

टिकली बिन्दी कुमकुम बंदन, चंदा मुख पंछार,

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे   परी  उतार।।  

                         *******

द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुंद छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *गहना साजे अंग*

*कुण्डलिया छंद*


पायल पैरी गोड़ के, शोभा खूब बढ़ाय।

चूड़ी खनकय हाथ के, जइसे गीत सुनाय।

जइसे गीत सुनाय, कमर करधनिया सोहे।

बहुँटा पहिरे बाँह, नागमोरी मन मोहे।।

टिकली चमकय माथ, देख मन होथे घायल। 

टोड़ा साँटी गोड़, छना-छन बाजे पायल।।


नथली फुल्ली नाक मा, नकबेसर हे संग।

माँघामोती माँग अउ, गहना साजे अंग।।

गहना साजे अंग, आँख में कजरा  कारी।

बेनी गजरा फूल , कान हे झुमका बारी।।

फैशन के है दौर, सुंदरी दिखथे जकली।

खूब बढ़ाथे रूप, मुंदरी चुटकी नथली।।


करधन ककनी हे फबे, नवलख्खा गल हार।

आज नँदावत देख लव, बारी खिनवा ढार।।

बारी खिनवा ढार, घेच ले रुपिया सुर्रा।

अवरी दाना आज, नँदाके होगे फुर्रा।

फैशन के हे दौर,  पहिरथें नकली जबरन।

पहरइया हे कोन, बता अब बहुँटा करधन।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *सोलह सिंगार*

*कुण्डलिया छंद*


नारी मन तन साजथें, कर सोलह सिंगार।

गहना गुरिया ले सबो, भरथें तन भण्डार।

भरथें तन भण्डार, नाक बर फुल्ली नथनी।

पैरी साँटी गोड़, हाथ बर ऐंठी ककनी।

खिनवा बाला ढार, कान मा सोहे बारी।

बहुँटा पहिरैं बाँह, माँग भरथें सब नारी।।


टोड़ा लच्छा बनुरिया, करधन झुमका हार।

सुर्रा रुपिया मुंदरी, चुटकी पुतरी सार।।

चुटकी पुतरी सार, पटा ऐंठी शुभ चूरी।

पहिर बढ़ाथें रूप, सबो का कारी -भूरी।।

बिछिया जालीदार, नागमोरी हे जोड़ा।

नकबेसर हे नाक, गोड़ मा पायल टोड़ा।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  श्लेष चन्द्राकर  दोहा छंद  - नारी के श्रृंगार 


नारी के असली हरय, सोज्झेपन श्रृंगार।

जेमा बने हमाय हें, आदत अउ व्यवहार।।


नारी के श्रृंगार के, जिनिस हवँय कतकोन।

पूरा कर-कर थक जहू, लेबर पड़ही लोन।।


बखत साथ बदलत हवय, नारी के श्रृंगार।

जे येला अपनात हे, आज उही हुशियार।।


नवा डिजाइन के मिलत, कतको गहना आज।

जुन्ना जिनिस नँदात हे, जावत कती समाज।।


पहिरे सब इतरात हें, गहना डुप्लीकेट।

असली महँगा हे अबड़, झन पूछव गा रेट।।


श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  नारायण वर्मा बेमेतरा नारी अउ श्रृंगार 


दोहा-छंद


मालिक कंचन देह के,पहिरे कंचन हार।

फेर लाज सबले बड़े, नारी के सिंगार।।


सोन बरन काया बने, चंदा जइसन रूप।

लगथे बदरा मा खिले, इंद्रधनुष के धूप।।


चूड़ी पहिरे बाँह भर, अइँठी ककनी ढार।

पइरी बाजे पाँव के, मीठ लगे झंकार।।


सोना चांदी ला कभू, जेवर भर झन जान।

कई किसम के रोग के, करथे इही निदान।।


स्वस्थ रहे तन मन सदा, राखँय उच्च विचार।

सुन्दर लागे सादगी, बने रहे व्यवहार।।


बहुत कीमती आजकल, बढ़े बिकटहा दाम।

तोला मासा सोन के, सुनके तीपय चाम।।


सोन असन हे देह हा, पिंयर रूप अउ रंग।

जेवर हा सहरात हे, पा गोरी के संग।।


होथे भारी भोरहा, असली नकली कोन।

माल बजरहा छाय हे, पीतल लागय सोन।।


नारी लुगरा मा लगे, देवी कस अवतार।

रिंगी-चिंगी पहिनथे, लगथे तन मा भार।।



🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

  संगीता वर्मा, भिलाई नारी के श्रृंगार- कुंडलिया 

नारी के गहना हरे, गजरा फूलन हारI 

महके घर बन अंगना, रहय मधुर व्यवहारI 

रहय मधुर व्यवहार, लाज हे सुग्घर गहनाI 

मया दया के खान, होय फिर का हे कहनाI 

नारी के श्रृंगार, रहय जब वो संस्कारीI 

जग मा पूजे जाय, तभे भारत के नारीII

 

संगीता वर्मा भिलाई

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

No comments:

Post a Comment