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Sunday, July 27, 2025

हरेली तिहार विशेष छंदबद्ध कविता

 



अजय अमृतांसु: हरेली तिहार


सावन के महिना हवय, आय हरेली आज।

पबरित हमर तिहार ये, बंद हवय सब काज।।

बंद हवय सब काज, बनत हावय चौसेला।

नाँगर बक्खर धोय, चढ़त हे नरियर भेला।

हावँय मगन किसान, खेत लागत मनभावन। 

आय हरेली आज , लगत हे सुग्घर सावन।


अजय अमृतांशु 

साधक,सत्र -3




परब हरेली मानबो, पहिली हमर तिहार। 

गुरहा चीला भोग बर, गरमागरम उतार।।

खोंचे डारा नीम के, बिपत टरे के आस।।

खेती के औजार ला, धो लव पूज पखार।।


गेंड़ी मा चढ़ के चलव, चिखला तरिया धार।

रचमच रचमच बोल हर, उतरे हिरदे पार।।

राँपा गैंती माँज लव, पूजव देके हूम।

देबर सुघर असीस ला, पुरखा आँय हमार।।


नीम डार ला खोंच दव, कुरिया  ठौर दुआर।

गुलगुल भजिया ठेठरी, बूँदी कढ़ी बघार।

धान पान सुघ्घर रहय, सूपा टुकनी टाँग।

जरी खवावव गाय गरु, होवय झन बीमार।।


हरियर हरियर गाँव घर, धान भरे कोठार।

कलुष कपट मन भाव ला, मया दिया मा बार।

हाथ जोर के लव मना, भाई बहिनी आज।

राजी खुशहाली रहँय, एक रहय परिवार।।


डॉ. दीक्षा चौबे



गीतिका छंद- *हरेली*


हे हरेली के परब जी, नीक लागय गाँव हा।

बड़ सुहावय खेत डोली, नीम बरगद छाँव हा।।

गीत सावन गात हे सुन, ताल लय मा झूम के।

हे मगन हलधर सबो अब, ये धरा ला चूम के।।


जात हें गउठान मनखे, थाल साजे हाथ मा।

हें करत पूजा किसानी, मिल जमो झन साथ मा।।

गाय गरुवा ला खवावँय, नून लोंदी पान ला।

माँगथें वरदान सुख के, कर अरज भगवान ला।।


आत हें लोहार भाई, सुख धरे त्योहार मा।

दूर बीमारी ले रहे बर, कील ठोके द्वार मा।।

आत हें राउत घलो हा, रख मया व्यवहार ला।

सुख सुमत बर द्वार खोंचे, नीम पाना डार ला।।


रचरचावत हे गजब जी, आज गेड़ी पाँव मा।

लेत हें लइका मजा बड़, ये परब के नाँव मा।।

ठेठरी खुरमी घरोघर, अउ बनय पकवान जी।

ये परब छत्तीसगढ़ के, आय शोभा शान जी।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/07/2025



*हरेली परब (सरसी छंद)*


छत्तीसगढ़ी परब हरेली, 

                       पहिली इही तिहार ।

आवौ जुरमिल संग मनाबो,

                        लेलव जी जोहार ॥


लिपे-पुते भिथिया हे सुग्घर, 

                         सवनाही पहिचान।

नाँगर बख्खर धोये माँजे, 

                      हमरो देख किसान।।

खेत खार हरियाली सोहय, 

                          धरती के सिंगार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली............


रच-रच-रच-रच गेड़ी बाजै,

                       मन मा खुशी समाय।

गाँव-गली मा रेंगय लइका, 

                          पारा मा जुरियाय ॥

अइसन खुशहाली के बेरा, 

                              होवत हे गोहार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली.............


डंडा अउ पचरंगा खेलय, 

                           फुगड़ी के हे जोर।

खो-खो रेस,कबड्‌डी खेलत,

                        उड़त हवै जी सोर।।

मया प्रेम मा जम्मों बूड़े, 

                            बरसत हावै धार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली..............


होय बियासी हरियर धनहा, 

                            सुग्घर खेती खार।

मोर किसनहा भइया देखव,

                         खुश होवै बनिहार।।

सावन महिना रिमझिम रिमझिम,

                            बुँदियाँ परे फुहार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली............


छंद रचना :-

बोधन राम निषादराज "विनायक".



: हरेली - कुण्डलिया 


हरियर लुगरा कस लगे, धरती के श्रृंगार।

खुशी छाय चारों मुड़ा, झूमें खेती-खार।

झूमें खेती-खार, छाय घर बन खुशहाली।

परब हरेली आय, सबो कोती हरियाली।

नाँगर बक्खर पूज, चढ़ावय भेला नरियर।

रोग कभू झन आय, रहय सब हरियर-हरियर।।


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)



*हरेली तिहार*

        *रोला छंद*


बबा बिसाये बाॅंस, बौसुला बतर बनाये।

गाना गुरतुर गात,गजब गेड़ी सिरजाये।।

पोही दुधिया नार, बाॅंध के तेल लगाये।

गेड़ी रचरच बाज, सुने मा मन सुख पाये।।


सावन के अम्मास,हरेली परब मनायें।

नाॅंगर पूजा होय,मीठ चीला सब खायें।।

देवरास सब जाॅंय, मनायें ठाकुर देवा।

बइगा पूजा पाठ, करे समलाई सेवा।।


लखन लाल लोहार, गाॅंव मा घर घर जाये।

चौखट पीटे कील,धान अउ पइसा पाये।।

खोंच भेलवाॅं डार, घरोघर बइगा होरी।

मिले दान मा धान, सकेले बड़का बोरी।।


लइका गेड़ी साज, खोर निकले इतराये।

गेड़ी के आवाज़, रचारच बने बजाये।।

हरियर चादर ओढ़, सजे हे धरती दाई।

हरियर खेती खार, देख कुलके भौजाई।।


पुरुषोत्तम ठेठवार




हरियर-हरियर धान-पान हे, हरियर हमर हरेली।

सूता रुपिया करधन पहिरे, नाँचय सखी सहेली।।


खो खो फुगड़ी गेंडी बाजे, फेंकय नरियर भेला।

पागा पनही पहिर सियनहा, बइठे देखय मेला।।


लहर-लहर के लहरावत हे, खेत-खार हे धानी।

गात-ददरिया करमा साल्हो, भींजय रिमझिम पानी।।


बइला नाँगर औजार जमे, करथें साफ-सफाई।

पूजा करथें परब हरेली, जुरमिल दाई भाई।।


गाँव-गाँव हे आज हरेली , छाए हे खुशहाली।

गुरहा चीला भोग चढ़ावँय, टिकय सेन्दुर लाली।।


सदा रहय ऐ धरती हरियर, बरसय बढ़िया पानी।

फसल धान भरपूर होय गा, सुन किसान के बानी।।


चौका चंदन पूजन अर्चन, रीत हमर हे बढ़िया।

सदा सहेजन माटी पानी, हमन छत्तीसगढ़िया।।


गाड़ा गाड़ा देय बधाई, मान तिहार हरेली।

बाग बगीचा झुलवा झूलय, भावय ठेलक ठेली।।



रामकली कारे





आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।

सावन मास अमावस भाये, नाचे गाये सुग्घर।। 


पहिली तिहार छत्तीसगढ़ ये, रच रच गेड़ी बाजे।

नदी नाल बन बाग बगीचा, पेड़ पात सब साजे।।

करे सुवागत गाँव गली शुभ, बगर खुशी हर घर घर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


खार खेत हर लहलहाय जब, होके बउग बियासी।

नाँगर बइला राँपा गैती, धो किसान मन हाँसी।।

सुख समृद्धि संदेश लाय ये, सबके अँचरा भर भर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


नून पिसान ल पान खम्हारी, लोई सान खवाये।

गरुवा गाय कंदइल काँदा, मान सबो बड़ पाये।।

खोच लीम डारा मुहटा मा, रोग दोष लेवय हर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


घरघुँदिया खो संग कबड्डी, फाँफाफुगड़ी भटकुल।

खेल छुवउला तिरिपग्गा सब, झूले झुलझुल रेचुल।।

दँउड़ कूद अउ रंग रंग के, खेले फेँके नरियर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


घर के देवी देव सुमर शुभ, रोटी राँध बनाये।

कोठा डोली मान पाय बड़, संस्कृति हमर सिखाये।।

रहय राज खुशहाली सब दिन, धरय कभू झन तो जर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदाबाजार



*जग हरेली गीतिका छंद मा कोशिश*


आज हावय जग हरेली,मात गेहे खार गा।

खोंच दशमुर के चले हे,द्वार लिमवा डार गा।।

साज गेड़ी आज लइका,घूम झूमे गाँव मा।

रूख राई झूमरे मन,थोर पीपर छाँव मा।।


दौड़ बइला देख के मन,वाह वाही गात हे।

घेंच घाँटी मेछरावै, जोर के इतरात हे।।

फूगड़ी के खेल खेले,खोर नोनी हाँस के।

जाँच होथे साँच मा अब,हे परीछा साँस के।।


मान बाढ़ै शान बाढ़ै, मोर धरती मात हे।

जोन कोती देख तैंहर,डोंगरी  घन छात हे।

अब लगाले एक ठन गा,रूख दाई नाँव के।

कोन तरसे अब इहाँ, हाथ ममता छाँव के।।



तोषण चुरेन्द्र "दिनकर" 

धनगाँव डौंडी लोहारा


] कौशल साहू: *कुंडलिया छंद*


     *हरेली*


हरियर खेती खार हा, हरियर निमवाँ पान।

सावन अमवस दिन घड़ी, परब हरेली मान।।

परब हरेली मान, कलेवा चीला गढ़ ले।

नाँगर कृषि औजार, पूज के गेंड़ी चढ़ ले।।

बिल्लस खो खो खेल, फेंक बेला भर नरियर। 

जिनगी झन मुरझाँय, रहे मन हरियर हरियर।।

🌿🌿🌿🙏🙏🌿🌿🌿

✍️

कौशल कुमार साहू

फरहदा ( सुहेला )

जिला बलौदाबाजार -भा.पा.



कमलेश प्रसाद शरमाबाबू: कुंडलियाँ

नाँगर


नाँगर जूड़ा संग मा, हँसिया कुदरा धोय।

घर-घर मा जी भोग बर,‌गुरहा चीला पोय।।

गुरहा चीला पोय, हरेली आय अमावस।

सावन पहिली पाख,लगै मनभावन पावस।।

चंदन बंदन भोग, रहै सुख सब के जाँगर।

सुमरँय सबो किसान,नँदाबे तैं झन नाँगर।।


गेंड़ी 

तैंहा गेंड़ी खाप दे,बबा मयारू मोर।

सँगवारी के संग मा, चढ़ के जाहूँ खोर।

चढ़ के जाहूँ खोर, मजा बड़ आही मोला।

रच-रच मच के आज, बबा देखाहूँ तोला।।

करहूँ सेवा तोर, सदा दिन अब तो मैंहा।

सउँक आज तैं मोर, बबा कर पूरा तैंहा।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला केसीजी

छत्तीसगढ़



 !!!! तबहो हमर हरेली हे !!!!


हमर खेत चिमनी जामे हे, तबहो हमर हरेली हे।

जघा जघा टावर खामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


आवय बादर हाँसत कुलकत, थमके नाचय गाँव हमर,

ओकर ठौर धुआंँ लामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


बर पीपर के छाँव थिरावन, बइठे चिरगुन गात रहँय,

जेती देखव अब घामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


आत रहय जुड़ जुड़ पुरवइया, सरलग हमर पछीती ले,

अब ओला फुतकी झामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


बाजय गर मा ठिनठिन-ठिनठिन, गउ माता मन चरत रहँय।

उंँकर सहारा अब रामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


मया गंँवागे झिल्ली कचरा, खोजत हवय ‘मितान’ नँगत, 

अब अद्धी पउवा थामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


-मनीराम साहू ‘मितान’




: दोहा -"हरेली"

                   *****

नांगर  के  पूजा   करे, चीला   हूम   चढ़ाँय।

सोंहारी अउ गुलगुला, बइठ सबो झन खाँय।।


जम्मों कृषि औजार के, पूजा करे किसान।

खावन सब झन पेट भर, माँगे अस वरदान।।


पूजा  नांगर  के   करे, हरियर   होगे खार।

हमर किसनहा के इही, पहिली आय तिहार।।


खेती के औजार के, अपन जान उपकार।

आदर  अउ  सम्मान  ले, करे उतारा भार।।


बउरे खेती काम मा, जतका चीज किसान।

समझ किसानी मीत अउ, करथे बड़ गुनगान।।


पालन सबके हे करे, उपजा के जी धान।

सबो जीव के आसरा, पूरा करे किसान।।


हरियर चारों खूँट अउ, हरिया जाथे  खार।

तभे  हरेली  के   परब, आथे  पाँव  पसार।।


हरियर  डोली‌  खेत  के, सुघरइ  बाढ़े  घात।

होके मगन किसान के, परब होय सुरुआत।।

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द्रोपती साहू सरसिज 

महासमुंद छत्तीसगढ़


 विष्णुपद छंद -"हरेली"

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आय हरेली तिहार पहिली, हमरे किसान के।

बइला खाथे नुन गठरी अउ, लोंदी पिसान के।।


हमर छत्तीसगढ़ हरियर हे, अक्खड़  निसान हे।

असल  चिन्हारी  धान  फसल, बोंथे  किसान  हे।।


आरुग भुइयाँ के मुरमी ला, राखें दुवार मा।

औजारन के पूजा करथें, बिहना जुवार मा।।


नाँगर बक्खर कुदरी कोपर, सजथे दुवार मा।

येमन  के   पूजा  हा  होथे, गेंड़ी  तिहार  मा।।


बुता  करे  नांगर  कोपर ले, खेत  खार  मन के।

झरथे बुता किसानी के जब, तब रखे जतन के।।


घर के मनखे मन जुरिया के, माने तिहार ला।

गुरहा  चीला भोग  लगाथें, सबो  औजार ला।।


जतका हवय किसानी साथी, इखर उपकार ला।

भूलय नइ तो करे किसनहा, चुकता उधार ला।।


भारी  आदर  देवत   पूजा, करथे   तिहार  मा।

नाम हरेली हरियर हरियर, रुख खेत खार मा।।

                      *******

द्रोपती साहू "सरसिज"



-- जयकारी छंद


आये हावय हमर तिहार।

खुशी मनालव मिल परिवार।।

घर अँगना मा चउँक पुराय।

गुरहा रोटी बड़ ममहाय।।


धोवँय नाँगर कोपर आज।

बइला मन ला देवँय साज।।

जाँय खवाये बर गउठान।

लोंदी भर-भर नून पिसान।।


बइगा खोंचय लिमवा डार।

दय असीस सब दुख ला टार।।

चीला रोटी सबो बनाँय।

पूजा करके भोग लगाँय।।


नाँगर बइला हवय मितान।

मान गौन सब करै किसान।।

जुड़े किसानी ले गा आस।

सबके मन मा भरै उजास।।


खेलयँ सुग्घर गेंड़ी खेल।

मया पिरित के होवय मेल।।

हरियर-हरियर खेती खार।

सावन महिना आय तिहार।।


खीला ठोंकय तब लोहार।

जावय सबके घर-घर द्वार।।

हाथा देवँय चउँर पिसान।

माथ नवाँ मागँय वरदान।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)




 पुरुषोत्तम ठेठवार: *हरेली*


सावन मास अमावस के दिन, आवै जबर हरेली।

अपन संग मा ये तिहार हर, लावै खेला-खेली।।


लइका मन खोंचँय दुवार मा, लीम-पान के डारा।

खुश हो के मनखे मन झूमँय, गली गाँव चौबारा।।


जहाँ हरेली आइस लइका-मन के वारा-न्यारा।

रच-रच रच-रच गेंड़ी चघ के, किंदरँय आरा-पारा।।


नान-नान लइका मन खेलैं, इत्ता-इत्ता पानी।

घर मा राँध-राँध के खावैं, चिजबस आनी-बानी।।


नोनी मन परछी मा मिलके, खेलँय फुगड़ी सुग्घर।

बइला ला नहवा के चेलिक, कर दँय उज्जर-उज्जर।।


राँपा गैंती बक्खर नाँगर, माँज-माँज के धोवँय।

गुरहा चीला के परसादी, सरधा भाव चघोवँय।।


दूर करै दुख के अँधियारी, सुख अँजोर बगरावै।

हरे हरेली सबके पीरा, दया-मया बरसावै।।


*अरुण कुमार निगम*




*हवय हरेली गढ़ तिहार*


हवय हरेली गढ़ तिहार।

पानी बादर करय मार।

हरियर डारा खेत खार।

नदिया नरवा बहे धार।


सावन महिना झोर-झोर।

करय पवन हे जोर-शोर।

नोनी  के  फूगड़ी  खेल।

बाबू    गेड़ी   रेल   पेल।


नाँगर बइला खेत खार।

आगी   पानी हूम  डार।

खनखन घाँघर साज बाज।

हमर   छत्तीस गढी   राज।


झुलवा  सुन्ना   लीम  डार।

नवकैना गिन  दिखय चार।

बिसरय   संगी  हे  लुकाय।

खोजत खोजत दिन पहाय।


पेड़  लगाले  मिलय छाँव।

हरियर दिखही हमर गाँव।

हारे  झिन  गा  थके पाँव।

सरग  बरोबर सबो  ठाँव।



तोषण चुरेन्द्र "दिनकर" 

धनगाँव डौंडी लोहारा




विष्णुपद छंद -"हरेली"

                    *******

आय हरेली तिहार पहिली, हमरे किसान के।

बइला खाय नून गठरी अउ, लोंदी पिसान के।।


हमर छत्तीसगढ़ हरियर हे, अक्खड़  निसान हे।

असल  चिन्हारी  धान  फसल, बोंथे  किसान  हे।।


आरुग भुइयाँ के मुरमी ला, राखें दुवार मा।

औजारन के पूजा करथें, बिहना जुवार मा।।


नांगर बक्खर कुदरी कोपर, सजथे दुवार मा।

येमन  के   पूजा  हा  होथे, गेंड़ी  तिहार  मा।।


बुता  करे  नांगर  कोपर ले, खेत  खार  मन के।

झरथे बुता किसानी के जब, तब रखे जतन के।।


घर के मनखे मन जुरिया के, माने तिहार ला।

गुरहा  चीला भोग  लगाथें, सबो  औजार ला।।


जतका हवय किसानी साथी, इखर उपकार ला।

भूलय नइ तो करे किसनहा, चुकता उधार ला।।


भारी  आदर  देवत   पूजा, करथे   तिहार  मा।

नाम हरेली हरियर हरियर, रुख खेत खार मा।।

                      *******

द्रोपती साहू "सरसिज"




1: सरसी छन्द 


हरियर हरियर धरती दाई, करे हवै श्रृंगार।

हरियर हरियर दिखत हवै जी, सबके  खेती खार।।

हरियर हरियर जंगल झाड़ी, हरियर दिखे पहार।

हरियर हरियर पात पेड़ के, हरियर होगे डार।।

हरियर फरियर मनखे मन के, लागय मन हा आज।

सबों एक मन आगर अब तो, करही खेती काज।।

धरती ला अउ श्रृगारे बर, चलो लगाबो पेड़।

खाली झन राहय कखरो अब, खेत खार के मेड़।।

हरियर हरियर ये धरती के, उजड़े झन श्रृंगार।

नइ ते छीन जही मनखे बर, जीये जे आधार।।


जगन्नाथ ध्रुव 

घुँचापाली


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