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Monday, September 15, 2025

नारी शक्ति विशेष, छंदबद्ध कविता

  भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *मनहरण घनाक्षरी*

*नारी*

नारी जग हे महान,  सुन लेना देके ध्यान, झनकर अपमान,  कहाँ कमजोर हें।

देख लेना आसमान , उड़ावत वायुयान, थाम्हे आज हे कमान,  नारी तो सजोर हें।।

खेलत हें मैदान म, कार्यालय दुकान म, संगीत अउ गान म, उड़त जी शोर हे।

नारी बिना अँधियार, जिनगी के कारोबार, नइ भाय घर द्वार, नारी हे त भोर हे।।


 मइके ससुराल म, दिन महीना साल म, जिहाँ हे हरहाल म, सुन्ना जी संसार हे।

 घर परिवार बर, लइका दुलार बर, पति के जी प्यार बर, नारी एक सार हे।।।

 नारी जाति एक तन, रुप म अनेक ठन, नानी दादी पत्नी बन,   बहिनी के प्यार हे।

सब सुख ला छोड़ के, परिवार ला जोड़ के,  मन ला नइ तोड़ के, बोहे रथें भार हे।।।।


नारी धरम निभाथें,  कुल ल आगू बढ़ाथें, घर सरग बनाथें, शक्ति पहिचान लौ।

घर होथे अँधियारी, मुशकिल होथे भारी, मइके जाथे सुवारी, महिमा ल जान लौ।

सबके पीरा मिटाथे, घर भर ल खवाथे, बाँचे खोंचे खुद खाथे, उपकार मान लौ।।

अबला तो झन जान, सबला होगे हें मान, कर नारी सनमान, गुण ल बखान लौ।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

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  जगन्नाथ सिंह ध्रुव  कुण्डलिया छन्द     -    नारी


नारी हे नारायणी, नारी जग आधार।

घर -घर पूजा पाठ अउ, करव इॅंखर सत्कार।।

करव इँखर सत्कार, इही मन लक्ष्मी सीता।

करथे रोज बखान, वेद अउ भगवत गीता।।

नारी मन हा आय, सबो जग के महतारी।

करथे अँचरा छाँव, घरोघर मा सब नारी।।


    जगन्नाथ ध्रुव घुँचापाली 

बागबाहरा

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   दीपक निषाद, बनसांकरा *सार छंद--नारी शक्ति* 

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सेवा-ममता-मया-समर्पण, गुन के खानी नारी।

जग सिरजन-पालन-पोषण के, इँकरे जिम्मेदारी।।

संस्कृति-रीति-धरम के एमन,करयँ सदा रखवारी।

हर पीढ़ी ला होना चाही,एमन के आभारी।।


नारी ए माँ दुर्गा- लक्ष्मी,सरस्वती-संतोषी।

बहिनी-बेटी-बाई-माई,फूफू-काकी-मोसी।।

सब ला रखयँ सहेजत एमन,घर-बन सगा-परोसी ।

इँकर दशा बिगड़े मा नर के,सोच घलो हें दोषी।।


नारी हठ अउ त्रिया चरित्तर,इँकर शान मा दागी।

कतको बाला अंग प्रदर्शन,फैशन के अनुरागी।।

काबर कतको जगमग दीया,बनथें भभकत आगी।

सच्चरित्र नारी ले लागयँ,घर-समाज बड़भागी।।


आदर-मान जिहाँ नारी के,उहाँ देव के बासा।

जिहाँ सुरक्षित नइ ए नारी,नरक वो करमनासा।।

सहीं जघा पावय हर नारी,झन बन जाय तमाशा।

इही वक्त के माँग हरय अउ, हवयँ सबो के आशा।।


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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  विजेन्द्र नारी शक्ति –दुर्मिल सवैया 


अबला खुद ला झन तो समझो,ममता मइ रूप महान हरौ I

जग के जननी महिमा अतका,लइका बर तो भगवान हरौ I

तुहरे परताप हरे जिनगी,घर बार सबो बर शान हवौ I

पइयाँ सब लागय तोर इहाँ,कतका गुण के तुम खान हवौ I

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवां)


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प्रदीप छंद- *नारी शक्ति*


नारी महिमा गाथा गाये, गीता ग्रंथ कुरान हे।

दू कुल के महकत फुलवारी, नारी शक्ति महान हे।।


दुनिया के तो सृष्टि करइया, सुख के सिरजनहार ये।

ये ममता मनुहार भरइया, भवसागर पतवार ये।।

रखे मया के छइँहा अँचरा, गोदी सरग समान हे।

नारी महिमा गाथा गाये, गीता ग्रंथ कुरान हे।।


कोंन कथे हे नारी अबला, ताड़न के अधिकार ये।

आँख उठा के देख तहूँ तो, हाथ धरे तलवार ये।।

बैरी बर रणचंडी बनके, थामे तीर कमान हे।

नारी महिमा गाथा गाये, गीता ग्रंथ कुरान हे।।


आसमान मा रखे कदम हे, रचे नवा इतिहास ला।

सबो क्षेत्र मा अव्वल नारी, गढ़े चले विश्वास ला।।

भारत माँ के सबला बेटी, सदा बढ़े यश शान हे।

नारी महिमा गाथा गाये, गीता ग्रंथ कुरान हे।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

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,   +   ""नारीशक्ति "" आल्हा छंद 


हाथ जोड़ के माथ नवालव, नारी हे जग के आधार ।

जनम दिये तॅंय  सरी जगत ला, तोर बिना सुन्ना संसार ।।


तोर मया हे अड़बड़ भारी, कखथस सबके तॅंय हा सोर ।

बेटी बहिनी भार्या बनके, सबके मन ला करे ॲंजोर।।

कभू देव सॅंग करे लड़ाई, दानव मन से करे सॅंहार ।

कभू सीख दे लइका मन ला, कभू चलाए घर परिवार ।।

तही जगत के कर्ता धर्ता,  तोर बिना दुनिया लाचार ।

जनम दिये तॅंय सरी जगत ला, तोर बिना सुन्ना संसार ।।


त्याग तपस्या के तॅंय मूरत, दुख सहिके दुनिया सिरजाय ।

दुनिया कहिथे फिर भी अबला, करके  सब ला काम दिखाय ।।

आठो पहर डटे तॅंय रहिथस, करके सबके तॅंय सत्कार ।

दोनों कुल ला तॅंय हर तारे, चाहे मइके या ससुरार ।।

देश धरम ला घलो चलाथस, बड़े सुजानिक बन सरकार ।

जनम दिये तॅंय सरी जगत ला, तोर बिना सुन्ना संसार ।।


तोर कोख मा जनम धरे हे, तुलसी मीरा राम रहीम 

माथा ऊॅंचा करके चलथे, पाॅंच पाण्डव में वीर भीम ।।

वीर नरायण गुण्डाधुर के, तही सहासी माता आत ।

तोर चरण मा सेवा करथे, भक्तन मन नव दिन नव रात ।।

दुर्गा काली मात् भवानी, रूप तोर हे अपरंपार ।

जनम दिये तॅंय सरी जगत ला, तोर बिना सुन्ना संसार ।।


संजय देवांगन सिमगा 

चन्द्राकर

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,   डी पी लहरे सार छन्द गीत

विषय-नारी

हाँ इतिहास रचइया हावँय, आजकाल के नारी। 

अत्याचार सहइया नोहँय, हिम्मत हावय भारी।।


शिक्षा के जे अलख जगाये, हे सावित्री बाई।

मदर टरेसा पाटे जानव, ऊँच-नीच के खाई।।

इंद्रा गाँधी प्रतिभा पाटिल, होइन सत्ताधारी।।

हाँ इतिहास रचइया हावँय, आजकाल के नारी।।


बीस बलत्कारी मन ला तो, मारिस दन-दन गोली।

फूलन देवी पापी मन के, बंद करिस हे बोली।।

देखव तो मजबूर कहाँ हें, नइ हे अब लाचारी।

हाँ इतिहास रचइया हावँय, आजकाल के नारी।।


मैरी काम किरण बेदी मन, पाइन ऊँचा दर्जा।

आज कल्पना दीदी मनके, कहाँ चुकाबो कर्जा।।

वंदन कर लौ घेरी-बेरी, इनमन तारनहारी।।

हाँ इतिहास रचइया हावँय, आजकाल के नारी।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

चन्द्राकर

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,चौपई(जयकारी) छन्द - नारी महिमा (१०/०९/२०२५)


नारी महिमा अपरम्पार ।

जानत हें पूरा संसार ।।

थामें रखथे घर परिवार ।

नइ मानय जिनगी मा हार ।।


माॅं बेटी बहिनी कहलाय ।

पत्नी बन पति के घर आय ।।

रिश्ता-नाता खूब निभाय ।

सब के मन ला वो हर्षाय ।।


त्याग तपस्या जेकर पास ।

नइ छोड़य आशा विश्वास ।।

दया-मया करथे बिन्दास ।

सुख-दुख के जे साथी खास ।।


बूता भारी दिन अउ रात ।

रोज बिहनिया ले शुरुआत ।।

सरदी गरमी का बरसात ।

भोजन बाॅंटय ताते-तात ।।


नारी अबला नइ हे आज ।

बड़े-बड़े वो करथे काज ।।

साजे सुग्घर सिर मा ताज ।

नारी मन के आगे राज ।।


नारी ला देवव सम्मान ।

आन बान वो घर के शान ।।

शक्ति-भक्ति ला लव पहिचान ।

झन बनहू पढ़-लिख नादान ।।



ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

बोरिया बेमेतरा (छत्तीसगढ़)


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,   तातुराम धीवर  ।। रूप घनाक्षरी ।। 

        नारी शक्ति -


जनम देवय नारी, कहें जग महतारी,

महिमा हावय भारी, शक्ति कर अवतार।

जने ऋषि मुनि ज्ञानी, बड़े-बड़े महादानी,

बने वीर बलिदानी,  गुण गावय संसार ।।

राधा बन प्रेम करे, मोहना के मन हरे,

कालिका के रूप धरे, मारे भारी किलकार।

मीरा भेष जोगन के, नाम जपे मोहन के,

दुख सहे लोगन के, शक्ति तोर हे अपार।।


नारी आय रूपबती, नारी आय गुनबती,

नारी आय शीलबती, नारी के शक्ति महान।

करतब बड़े-बड़े, यम के हे पाछु पड़े,

पति प्रान बर लड़े, अबला हे झिन जान।।

नारी रनचण्डी बन, भिड़य कछोरा तन,

बइरी मारत रन, हरत हावय प्रान।

देव शक्ति हे समाय, देवन हे गुण गायँ,

नारी शक्ति ले होवय, नर कर फहिचान।।


नारी शक्ति हे भवानी, जतमाई घटारानी,

बहे झरना के पानी, झरे अमरित धार।

माता देवी भगवती, शिव जी के आय सती,

सबके बनाय गति, जोरे मन के हे तार।।

नारी ला जगाये बर,जग रचे घरो घर,

जियो नइ डर डर, भरव अब हूंकार।

जागो जागो नारी मन, जागें तब जन जन,

बाढ़ जाही शक्ति धन, होवय जब संस्कार।।


    तातु राम धीवर 

भैसबोड़ जिला धमतरी


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,   मुकेश  बरवै छंद--- नारी शक्ति 


नारी मन के महिमा, अपरंपार।

सुमता मा राखँय जी, घर परिवार।।


आज करत हें उन मन, जम्मों काम।

पढ़-लिख बने कमावत, हावँय नाम।।


नारी बिन हावय गा, जग अँधियार।

माँ बेटी पत्नी बन, बाटँय प्यार।।


रानी दुर्गा लक्ष्मी, बनिन महान।

बैरी मन ले लड़के, देइन प्रान।।


बने चलावत हावँय, अब सरकार।

राजनीति मा बनके, भागीदार।।


बड़े-बड़े ग्रंथन हा, करय बखान।

शक्ति स्वरूपा नारी, देवव मान।।


मान गउन सब झन ला, दँय हरहाल।

करँय सदा पति सेवा, जा ससुराल।।


दुनिया भर मा अब तो, होवय शोर।

नइहें नारी अबला, अउ कमजोर।।


ओलंपिक उन खेलँय, गा मैदान।

मेडल जीत बनावँय, जी पहिचान।।


नारी मन हें जग के, सिरजनहार।

मातृ रूप मा पूजय, अब संसार।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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,   नंदकिशोर साव  साव कुंडलिया छंद - नारी शक्ति


नारी जग जननी हरे, नारी ले ही प्राण।

नारी गौरव गान ए, कहिथे वेद पुराण।।

कहिथे वेद पुराण, शक्ति के सरूप होथें ।

अबला नइ तो जान, मया के बीजा बोथें।।

नापय भू आकाश, सबर बर पड़थे भारी।

माता बहिनी मान, करव आदर जी नारी।।


नंदकिशोर साव 

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,   भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *नारी*

*प्रदीप छंद*


 नारी ला कमती झन समझव, नारी घर के शान हे।

नारी के बिन लगथे घर हा, जइसे जी समसान हे।

नारी ले ही नर के जग मा, आज सबो पहिचान है।

नारी ही नइ रही कहूँ तब, जिनगी सबो विरान हे।।


दुर्गा रानी लक्ष्मी बाई, सुषमा  प्रतिभा नाज हे।  ।

राधा मीरा लक्ष्मी सीता, देव लोक मा राज हे।।

शेखर बिस्मिल प्रहलाद भगत, जन्मे सबो महान हे।

नारी ला कमती झन समझव, नारी घर के शान हे।।


सुलोचना अनुसुइया शबरी, शति शावित्री जान लौ।

झुकिन देवगण इँखरो आगू, नारी ताकत मान लौ।।

बाँचव नारी के निंदा ले, नारी ले सनमान हे।

नारी ला कमती झन समझव, नारी घर के शान  हे।।


आज राष्ट्रपति बनके सुघ्घर, नारी देश चलात हें।

बस ट्रक रेल ल कोन पुछय जी, अब जहाज ल उड़ात हें।।

मंत्री संत्री बने हवँय अउ, लड़त युद्ध मैदान हे।

नारी ला कमती झन समझव, नारी  घर के शान हे।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

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,   भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *मनहरण घनाक्षरी*

*नारी*

नारी जग हे महान,  सुन लेना देके ध्यान, झनकर अपमान,  कहाँ कमजोर हें।

देख लेना आसमान , उड़ावत वायुयान, थाम्हे आज हे कमान,  नारी तो सजोर हें।।

खेलत हें मैदान म, कार्यालय दुकान म, संगीत अउ गान म, उड़त जी शोर हे।

नारी बिना अँधियार, जिनगी के कारोबार, नइ भाय घर द्वार, नारी हे त भोर हे।।


 मइके ससुराल म, दिन महीना साल म, जिहाँ हे हरहाल म, सुन्ना जी संसार हे।

 घर परिवार बर, लइका दुलार बर, पति के जी प्यार बर, नारी एक सार हे।।।

 नारी जाति एक तन, रुप म अनेक ठन, नानी दादी पत्नी बन,   बहिनी के प्यार हे।

सब सुख ला छोड़ के, परिवार ला जोड़ के,  मन ला नइ तोड़ के, बोहे रथें भार हे।।।।


नारी धरम निभाथें,  कुल ल आगू बढ़ाथें, घर सरग बनाथें, शक्ति पहिचान लौ।

घर होथे अँधियारी, मुशकिल होथे भारी, मइके जाथे सुवारी, महिमा ल जान लौ।

सबके पीरा मिटाथे, घर भर ल खवाथे, बाँचे खोंचे खुद खाथे, उपकार मान लौ।।

अबला तो झन जान, सबला होगे हें मान, कर नारी सनमान, गुण ल बखान लौ।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

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,   Jugesh *नारी शक्ति* 

जयकारी चौपई छंद


नारी ला देवव सम्मान,नारी के हर रूप महान ।

आवय दुर्गा सती समान,अतका तो लेवव सब जान॥


नारी मा गुन हवय अपार,देव घलो मन जाथे हार।

दया मया सुख बाँटे सार,ले बेटी बहिनी अवतार॥


सखी रूप मा मन ला भाय, सुख के वो बरसा बरसाय ।

जाँवर जोड़ी बन जबआय,जीवन बगिया ला महकाय॥


खानदान के होथे आन,बेटी बन के राखे मान।

ददा बबा केआवय शान,मया रूखवा येला जान॥


रूप धरे महतारी आय,सबो सरग धर अँचरा लाय।

देव घलो मन हा ललचाय,भाग मान हा ये सुख पाय॥


कृपा करै देवन के नाथ, चमक जथे घिनहा के माथ ।

शक्ति रूप धर देथे साथ,तब नारी के मिलथे हाथ॥


जुगेश कुमार बंजारे  धीरज 

नवागाँवकला छिरहा दाढ़ी बेमेतरा

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,   विजेन्द्र माटी के कटाव- कुंडलिया छंद 


जंगल झाड़ी पेड़ ले, होथे बने बचावI 

रुकथे माटी के तभे, होवत जेन कटावI 

होवत जेन कटाव, करत हे बड़ नुकसानीI 

आथे पूरा बाढ़, लबालब पानी-पानीI 

माटी रखव सहेज, तभे जिनगी मा मंगलI 

रोकय बने कटाव, पेड़ झाड़ी अउ जंगलII


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव-(धरसीवां)

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,    अशोक कुमार जायसवाल *कुण्डलियाँ*


*नारी शक्ति*


नारी महिमा जान ले,शक्ति स्वरूपा आय |

दुर्गा चंडी कालिका, शितला कभू कहाय ||

शितला कभू कहाय, अबड़ जुड़ जेकर अँचरा |

मनखे थके थिराय, हरै दुख जिनगी पचरा ||

नारी शक्ति महान, वेद हा गाथे भारी |

नर हे पालनहार, फेर जननी हे  नारी ||


अशोक कुमार जायसवाल 

भाटापारा

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,   Jaleshwar Das Manikpuri  कुंडलियां नारी शक्ति 


नारी के सम्मान बर,सरलग राहव संग।

पीटव ओला सोंट  के,करय जेन अतलंग।।

करय जेन अतलंग,ठठावा मुटके मुटका।

टूटय चाहे हाड़,करव तन कुटका -कुटका।

बदलव अपन बिचार, समे  आहे  ए दारी।

राखव ऊंखर मान,तभे सम्मानित नारी।।

 जलेश्वर दास मानिकपुरी ✍️ 

 मोतिमपुर बेमेतरा

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,   नंदकिशोर साव  साव कुंडलिया छंद - नारी शक्ति


नारी जग जननी हरे, नारी ले ही प्राण।

नारी गौरव गान ए, कहिथे वेद पुराण।।

कहिथे वेद पुराण, शक्ति के रूपस होथें ।

अबला नइ तो जान, मया के बीजा बोथें।।

नापय भू आकाश, सबर बर पड़थे भारी।

माता बहिनी मान, करव आदर जी नारी।।


नंदकिशोर साव "नीरव"

राजनांदगाँव (छ. ग.)

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,   नीलम जायसवाल *छन्न पकैया छन्द*

*नारी शक्ति*


छन्न पकैया-छन्न पकैया,नारी हे महतारी।

सबो नता ला बने निभावय, झन दव ओला गारी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, महामूर्ख अज्ञानी।

जे नारी के शोषण करथे, अधम हरे वो प्रानी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, ममता रहे हमाये।

जग जननी के रूप हरे ये, मया-पिरित बगराये।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, तिरिया जिहाँ पुजाही।

उहें भ्रमण करथें ग देवता, लछमी उँहिचे आही।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, कभू रहय न उदासी।

नारी के सम्मान जिहाँ हे, सम्पति उहिँ के वासी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नारी जनम ल देथे।

अवतार घलो तन पाये खातिर, इँखर सहारा लेथे।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, कखरो ले कम नो हे।

उही एवरेस्ट मा चग जाथे, स्पेस तको मा ओ हे।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, कोन क्षेत्र हे बाँचे।

जल-थल-नभ मा नारी हावै, नारी खुद ला जाँचे।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नारी सब ला पालै।

पहिली सब के पेट व भरथे, बचे-खुचे ला खा लै।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नारी महिमा जानौ।

दव अधिकार बराबर ओला, वहू ल मनखे मानौ।।


*नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़*

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,   ज्ञानू कवि विषय- नारी शक्ति 

छंद - विष्णुपद 


पार पाय नइ सकिस देवता, सदा महान हवै|

नारी बिना अधूरा सिरतों, जग वीरान हवै||


नारी के शक्ति, बुद्धि, बल ले, दुनिया हा चलथे|

अँधियारी ला दूर करें बर , दीया बन जलथे||


नारी के महिमा ला गावत, वेद पुराण हवै|

नारी बिन दुनिया हा सिरतों, जस शमसान हवै||


कोन आज तक समझे हे गा, पीरा अंतस के|

नारी हृदय समझना कखरो, नइये गा वश के||


नारी ममता के मूरत हे, नारी हे सबला|

बखत परे रणचंडी बनथे, समझौ झन अबला||


मिला खाँध ले खाँध चलत हे, नारी आज हवै|

बचे कहाँ कुछ करत आज हे, जम्मों काज हवै||


तभो करत हे दुनिया काबर, बड़ अत्याचार हवै|

कतको नियम बनाये तब ले, अउ सरकार हवै||


दाई, पत्नि, बहन, बेटी बन, साथ हमर रहिथे|

नारी ला सम्मान सदा दव, सब बर दुख सहिथे||


ज्ञानु


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,   +   *नारी जागरण*

विधा - ताटंक छंद गीत

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उठव नींद ले दाई बहिनी, अब जागे के पारी हे।

घर परिवार समाज सुरक्षा, तुँहरे जिम्मेदारी हे।।


पढ़े-लिखे के उदिम करव अउ, दियना बारव शिक्षा के।

बाना तुहीं उठावव जुरमिल, लइका मन के दीक्षा के।

बदल सकत हव ये दुनिया ला, तुँहर परन बड़ भारी हे।

घर परिवार समाज सुरक्षा, तुँहरे जिम्मेदारी हे।।


कोमल हव कमजोर नहीं हव, ताकत ला पहिचानौ जी।

कर सकथव सब काम तहूँ मन, मन मा कस के ठानौ जी।

मया पिरित के जुड़ छइहाँ मा, महकत तुँहर दुवारी हे।

घर परिवार समाज सुरक्षा, तुँहरे जिम्मेदारी हे।।


दो-दो कुल के लाज बचाथव, सह जाथव सब पीरा ला।

पाल-पोस इंसान बनाथव, घर के सुग्घर हीरा ला।

मधुरस कस सुघराई भाखा, गोठ-बात संस्कारी हे।

घर परिवार समाज सुरक्षा, तुँहरे जिम्मेदारी हे।।


     *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)


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,   अमृतदास साहू  *विषय - नारी शक्ति*

       *सार छंद*


हावय संगी नारी मनके, महिमा अड़बड़ भारी।

इँकर बिना नइ चलय थोरको,सगरो दुनिया दारी।


कभू हार नइ मानै येमन ,कतको बाधा आवै।

अपन आखरी साँस चलत ले ,नारी धरम निभावै।

संत देव ऋषि ज्ञानी ध्यानी,हवय इँकर आभारी।

इँकर बिना नइ चलय थोरको,सगरो दुनिया दारी।


झन समझौ जी अब इनला तुम, शक्तिहीन अउ अबला।

बात रथे जब इँकर मान के,कँपा देत इन जग ला।

करव सदा सम्मान इँकर सब,होथें इन अवतारी।

इँकर बिना नइ चलय थोरको, सगरो दुनिया दारी। 


अलग अलग रुप मा येमन हा, ये दुनिया मा आथे।

दया मया बगराके सुग्घर,जिनगी ला महकाथे।

इहीं रूप देवी दुर्गा के,आवय जग महतारी।

इँकर बिना नइ चलय थोरको, सगरो दुनिया दारी।

 

 अमृत दास साहू 

   राजनांदगांव


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,   मीता अग्रवाल *घनाक्षरी छंद -नारी शक्ति* 


पुरुष प्रधान देश, भारतीय हवे वेष,

मान दे विधाता नारी, देवी के अवतार।

लछमी गायत्री गौरी,  ईखर त्रिदेव पति,

सीता राम राधेश्याम,पूजे सब संसार।

नारी शक्ति अवतार, विश्व के पालनहार,

रूप कतकों धरे हे,

सब्बो ग्रंथ आधार।

जुन्ना नवा इतिहास,नारी महिमा विकास,

गाथा गढ़े कतकों हे,जानगे अधिकार।



नारी गुन के हे खान, दू कुल बसाय जान,

रुप हे कल्याणकारी,ऐखर से संसार।

धीर हे सहनशील,पोषे सब जगजीव,

धरा कस गुनी नारी, पोषय परिवार।

काल धारा बदलगे, बदलिस रुप रंग,

बदलाव संग नारी,हर क्षेत्र विस्तार।

हर-दिन आघु बढ़े,जिम्मेदारी घर धरे,

दूनों हाथ काम करें,

आज मान सत्कार।


मेल मा शक्ति हे नारी, खेल मां शक्ति हे नारी,

संयम साहस शक्ति,नारी गुन सार हे।

नव रुप पूजा कर,नव ज्ञान गुन धर,

शक्ति ले ही शक्ति बाढ़े,  शक्ति तलवार हे।

आपसी सम्मान करें, नारी  ही नारी ल गढ़े,

सहयोग भाव भरे

 नारी शक्ति धार हे।

नारी नर परिवार,लइका पालनहार,

हर क्षेत्र आघु बढ़े,महिमा अपार हे।


डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़


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