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Saturday, September 6, 2025

अंधविश्वास

 अंधविश्वास *सच का हे तँय जान*

*दोहा छंद*


जादू टोना टोटका, आँख मूंद झन मान।

बैगा भटरी छोड़ के, सच का हे तँय जान।।


थरथर काँपे जाड़ ले, देह गोड़ अउ हाथ।

चक्कर उल्टी संग मा, पीरा बाढ़ै माथ।।


झाड़फूँक सब छोड़ के, दौड़ चिकित्सक पास।

मलेरिया लक्षण हवै, जाँच करा तँय खास।।


खानपान भावय नहीं, झूकन लगै शरीर।

भारी-भारी मुड़ लगै, गाँठ-गाँठ तन पीर।।


चक्कर झन पड़ काखरो, चिटको झनकर देर।

अस्पताल जा खा दवा, नइ तो होबे ढेर।।


साँप काँट दिस जब कभू, फूँकझाड़ रह दूर।

लापरवाही होय ले, होबे चकनाचूर।।


मन से भगवत भक्ति कर, देखा सब बेकार।

सोच समझ के काम कर, अंधभक्त मन टार।।


नया जमाना आज हे, पढ़े लिखे हस जाग।

कखरो कहना मान के, बिन विचार झन भाग।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

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दोहा छ्न्द 


रोग अंधविश्वास के, बाढ़त दिन दिन जाय।

पढ़ें लिखे मनखे तभो, मगज हवय भरमाय।।


अस्पताल ला छोड़ के, बइगा कर हे जाय।

जादू टोना हे लगे, फूँक झार करवाय।।


झारय मिर्चा डार के, गुनिया फेंकय दाँव।

हावय लइका ला धरे, भूत प्रेत के छाँव।।


लइका तोर बचाय के, हावय एक उपाय।

कहिबे झन कखरो करा, बात म हे अरझाय।।


कुकरा उल्टा पाँख के, उलट धार के नीर।

लिमऊ सात उतार के, हरिहँव येखर पीर।।


महुआ पानी के बिना, भागय नहीं मसान।

पाव नहीं आधा नहीं, सइघो बोतल लान।।


देख हरत हँव फेर मैं, ये भुतवा के प्रान।

जंतर-मंतर हे पढ़े,  खीचय दूनों कान।।


लिमऊ चानी काँट के, देवय बंदन डार।

कुकरी पूजे रात के, महुआ पानी मार।।


बइगा चक्कर मा करे, धन दौलत के नास।

ठीक नहीं हो पाय ता, जाये डॉक्टर पास।।


डॉक्टर जाँचे अउ कहे, कब ले हे बीमार।

पीत्त मुड़ मा हे चढ़े, लगे भीतर बुखार।।


रोग टाइफाइड बढ़े, घुसगे हावय हाड़। 

लदलद लदलद हे कँपे, लागत जमके जाड़।।


सुजी लगा देवय दवा, कर बढ़िया उपचार।

हउस आय होगे बने, कटगे रोग बुखार।।


लइका होगे ठीक हे, हाँसत घर मा आय।

देख सबो परिवार मा, भारी खुशियाँ छाय।।


करनी ले दुख आत हे, करनी ले दुख जात।

करनी कर जी नेक हे, सब सुख दँउड़े आत।।


ठग जग घूमत रोज हे, गाँव गली अउ द्वार।

सुख सपना देखाय के, लूटत लाख हजार।।


गाँठ बाँध के राख ले, मनखे जिनगी खास।

साँच बात ही सार हे, छोड़ अंधविश्वास।।


     तातु राम धीवर 

भैसबोड़ जिला धमतरी

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कुंडलिया 


टोना जादू टोटका, आय अंधविश्वासI 

मनखे येकर आड़ मा, धरे अशिक्षा आसI 

धरे अशिक्षा आस, आड़ मा शोषण करथेI  

उल्टा सीधा काम, करे बर मनखे मरथेI 

थोकिन करव विचार, नींद ला काबर खोनाI 

फूलत हे व्यापार, टोटका जादू टोनाII


फेंकत चारा गूँथ के, आड़ धरम के लेतI 

जादू मंतर मार के, सब ला करत अचेतI 

सब ला करत अचेत, आय ये बात बुराईI 

जादू करके लूट, मचावत हावय भाईI 

बुनत बइठ के जाल, राह मा काँटा छेंकतI

स्वारथ खातिर आज, गूँथ के चारा फेंकतII  


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव धरसीवाँ

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मुक्तामणि छन्द गीत - घोर अन्धविश्वास हे (२३/०८/२०२५)


मनखे मन ला देख के, होवत हे करलाई ।

घोर अन्धविश्वास हे, ये दुनिया मा भाई ।।


जादू टोना टोटका, रूढ़िवाद कहलाथे ।

एमा बड़ नुकसान हें, काम कहाॅं बन पाथे ।।


जब तन मा ब्याधा रथे, आथे काम दवाई ।

घोर अन्धविश्वास हे, ये दुनिया मा भाई ।।


पाखण्डी मन हा इहाॅं, जाल बिछाये भारी ।

करथें ढोंग ढकोसला, फॅंसगें नर अउ नारी ।।


सच लगथे गा झूठ हा, जिनगी हे दुखदाई ।

घोर अन्धविश्वास हे, ये दुनिया मा भाई ।।


पढ़े-लिखे मन हा घलो, चक्कर मा पड़ जाथे ।

नइ बदलय गा सोंच ला, धोखा निसदिन खाथे ।।


देवत हें बलिदान ला, बनके आज कसाई ।

घोर अन्धविश्वास हे, ये दुनिया मा भाई ।।


✍️छन्दकार व गीतकार🙏 

ओम प्रकाश पात्रे 'ओम ' 

ग्राम- बोरिया, जिला- बेमेतरा (छत्तीसगढ़)

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[साव: सार छंद - अंधविश्वास 


जादू टोना के चक्कर में, बैगा मन के चाँदी।

अन्ध भक्त मन ला लुटके जी, अपने खाथे माँदी।।


सिधवा मन ला लालच देके, बइठे बन बैपारी।

पढ़े लिखे मन तको बनय जी, इँखरे तो सँगवारी ।।


ढोंगी बाबा बनके लुटथे, मूढ़ बनय सब भारी।

कतको धोखा खाथे तबले, नइ चेतय नर नारी।।


गाँव गँवतरी ला का कहिबे, शहरो जमाय डेरा।

झाड़ फूँक मे बने करे बर, इन लगवावय फेरा।।


अंधभक्ति के दरद मरज हा, अल्प ज्ञान ले होथे।

जानौ समझौ झूठ कपट ला, नइ जाने ते रोथे।।


झूठा लम्पट के दुनिया हे, बच के रहना भाई।

सच्चा सीधा जिनगी जी लौ, हावे सबर भलाई।।


नंदकिशोर साव "नीरव"

राजनांदगाँव (छ. ग.)


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कुंडलियाँ


पसरे हावय देख लव, आज अंध विश्वास |

नीबू मिरचा टाँग के, धंधा होगे खास||

धंधा होगे खास, टँगाये हर दुकान मा|

नजर उतारय पान, गुँथाये हे मकान मा||

ग्राहक हे मोहाय, बात मन हिय ला भावय|

छिन भर मा बिक जाय, देख लव पसरे हावय||


खातू माटी ले बने, सिरजय फुल फर डार |

गँगलय कोंवर पान हा, छतरावय हर नार||

छतरावय हर नार, लदै गा भाजी पाला|

टूटय टुकना लाल, कोचकिच ले बंगाला||

ओखी होगे आज, हँसे के हे परिपाटी|

महिनत ले सब होय, छींचलव खातू माटी||


देखे हावव टोटका, गल के गिरथे पान|

भाटा मिरचा झर जथे, सरहा मखना चान||

सरहा मखना चान, भेकथें रोज गली मा|

सरथे लोवा झार, रोस नइ रहय कली मा||

बंदन बुके हजार, टाँग भड़वा मढ़ियावव|

चउँक पुराये राख, टोटका देखे हावव||


भरे लबालब मूँहटा, देखँय तव फुरमान|

खाली मरकी हाँथ के, कतका हे अपमान||

कतका हे अपमान, देखलव नारी मनके|

का इज्जत के भान, ठेठ महतारी पनके||

पीरा होथे घात, चोंट ये करय हबाहब|

पानी प्यास बुझाय, मूँहटा भरे लबालब||


अश्वनी कोसरे रहँगिया कवर्धा कबीरधाम (छ. ग.)

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मुक्तामणि गीत


रोज अंधविश्वास के ,जपथें कतको माला।

चारो कोती छाय हे, अंध-भक्ति के जाला।।


देखव तो पाखण्ड हा, बनगे पक्का धंधा।

पढ़े-लिखे मनखे घलो, मानय होके अंधा।।

जादू टोना टोटका, पर बइगा के पाला।

रोज अंधविश्वास के ,जपथें कतको माला।


ठग-जग बाबा हे बनें, बाढ़त हें पाखंडी।

धरम बने बाजार हे, खुलगे जइसे मंडी।

बेंचावत हे झूठ हा, सच के मुँह मा ताला।

रोज अंधविश्वास के ,जपथें कतको माला।।


अंध-भक्ति हा पेरथे, जइसे बइला घानी।

सूते मन अब जागजौ, छोड़व गा नादानी।

बात मौज के मान लौ, सत्य वचन हे लाला।

रोज अंधविश्वास के ,जपथें कतको माला।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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कुण्डलिया छन्द- *अंधविश्वास*


होही कइसे दूर अब, रोग अंधविश्वास।

अंधभक्ति मा डूब के, लोग बने हें दास।।

लोग बने हें दास, हकीकत नइतो समझे।

ढोंग रूढ़ि पाखंड, फाँस मा हावँय अरझे।।

खात मलाई आन, चुसत हें इन तो गोही।

अइसे मा उद्धार, बता तो कइसे होही।।


सुन लौ आस्था आड़ मा, बाढ़त हावय ढोंग।

अंधभक्ति के तेल ला, देह लिये हें ओंग।।

देह लिये हें ओंग, आँख ला मनखे मूँदे।

भटक गये हें राह, भुलन काँदा ला खूँदे।।

सच्चाई ला जान, परख अउ मन मा गुन लौ।

गजानंद के गोठ, ध्यान दे के जी सुन लौ।।


सोंचव स्वयं दिमाग मा, काय सहीं अउ झूठ।

आँखी मूँदे झन करौ, ये जिनगी ला ठूठ।।

ये जिनगी ला ठूठ, करे हे कोंन बिचारव।

सच्चाई लौ तौल, तभे अंतस मा धारव।।

रूढ़िवाद के पाँख, हृदय मा झन तो खोंचव।

गजानंद के गोठ, सुजानिक बनके सोंचव।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 23/08/2025

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कुंडलिया


सबके घर ज्ञानी बने, पढ़ लिख लइका लोग।

तभे अन्धविश्वाश के, दूर भागही रोग।।

दूर भागही रोग, टोनही जादू टोना।

जिनगी के सुख त्याग, पड़े झन थोकन रोना।।

डर मा लइका लोग, रहय झन कउनो दबके।

भरे खुशी के रंग, सुघर जिनगी मा सबके।।


जगन्नाथ ध्रुव घुँचापाली

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 कुंडलियां (अंधविश्वास)


बीमारी तन मा हवै,अस्पताल मा जाव।

झाड़ फूंक ब‌इगा जघा,झन गा तुमन कराव।।

झन गा तुमन कराव,नहीं ते धोखा खाहू।

रुपिया समय शरीर,हाथ ले अपन गँवाहू।।

मूड़ धरे पछताय,परे झन तुँहला भारी।

डाँक्टर ले उपचार,करावव जी बीमारी।।


रमेश कुमार मंडावी (राजनांदगांव)

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 ज्ञानू कवि: विषय - जादू- टोना 

छंद - विष्णुपद 


ढोंगी पाखंडी मनके बड़, चलत दुकान हवै|

मनखे बन नइ सकै बरोबर, बन भगवान हवै||


बइठे बनके बइगा- गुनिया, जाल बिछाय हवै|

नाम लेय जादू- टोना के, बस डरुहाय हवै||


लीमू- बंदन ला धर करतब, रोज दिखाय हवै|

जंतर- मंतर रंग- रंग के, बात बताय हवै||


पढ़े- लिखे मन घलो इँखर गा, चक्कर मा फँसगे|

कइसे चंगुल ले निकलै अब, दलदल मा धँसगे||


बढ़त अंधविश्वास रोग हा, का बताँव जग मा|

कतको के गा पेट चलत हे, लूटपाट ठग मा||


झार उतारै नइ बिच्छी के, सांप बिला टमरै|

खड़े- खड़े भुइयाँ ले ढोंगी, बादर ला अमरै||


सुनै कान ला कौव्वा लेगे, पाछू दउड़त हे|

हवै नही ते काबर कोनो, नइ ते टमरत हे||


लूट खसोट भरे हे हो जव, सावचेत भइया|

बीच भँवर मा नइ ते फँसही, जिनगी के नइया||


ज्ञानु

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: जादू टोना--- अमृतध्वनि छंद 


टोना जादू टोटका, हवय अंधविश्वास।

झाड़ फूँक के नाँव मा, देथें झूठा आस।।

देथें झूठा, आस सबो गा, बइगा गुनिया।

काम बनाहूँ, कहिके ठगथें, सगरो दुनिया।।

जान गँवाथें, तब तो परथे, रोना धोना।

होवय नइ जी, सच मा कोनो, जादू टोना।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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*रोला छंद--अंधविश्वास* 

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का- का रीति-रिवाज,सहीं हे मानवता बर।

काकर ले तकलीफ,पाय कोनो नारी- नर।।

करना हवय बिचार,प्रथा अउ परंपरा ला।

तिरिया के सब खोट,राखना हवै खरा ला।।


ककरो ले झन भेद,होय अब धरम काज मा।।

छुआछूत कस रोग, मिटय जम्मो समाज मा।

कोनो भी विश्वास,अंधविश्वास बनय झन।

करके सउँहे तर्क,सरी दिन मानयँ जन-जन।।


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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: कुंडलिया छंद


विषय - टोना-टोटका


करके टोना- टोटका, लोगन ला भरमाँय।

झाड़ -फूँक के आड़ मा, बइगा खूब कमाँय।।

बइगा खूब कमाँय, मनुज मन देखत नइये।

कतको जान गवाँय, तभो जी चेतत नइये।।

पढ़े लिखे कतकोन, जात हे नीबू धर के।

सरी चीज मँगवाय, टोटका टोना करके।।


कौशल कुमार साहू

जिला - बलौदाबाजार

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*विषय - टोनही,टोटका,जादू*

            *सार छंद* 


जादू टोना भरम भूत के,चक्कर मा जें आथे।

अपन करम ला ठठा ठठा के,पाछू बड़ पछताथे।


हाथ देख के लोगन मन ला,अइसे इन भरमाथे।

डर के मारे लोगन कतको, बरबस अरझे जाथे।

उही बाँचथे जेन बखत मा, हिम्मत अपन अड़ाथे।

बांकी कुछु तो कर नइ पावय,सरबस सिरिफ गँवाथे।


फूंक असर नइ होवय कहिके,जावन नइ दे मइके।

बेटी माई रहि जाथे चुप,ये सब दुख ला सहिके।

अपने काम सधाये खातिर‌‌ ,घर घर इन लड़वाथे।

अपन करम ला ठठा ठठा के,पाछू बड़ पछताथे।


लेके विज्ञान के सहारा, ढोंगी करयँ तमाशा।

बता बताके चमत्कार इन, देवयँ सबला झाँसा।

अनपढ़ मन ले गे बीते तो,पढ़े लिखे हो जाथे।

अपन करम ला ठठा ठठा के, पाछू बड़ पछताथे।


बइगा गुनिया के झाँसा मा,कभु कोनो झन आवौ।

तबियत ककरो बिगड़ जाय ता,अस्पताल ही जावौ।

ए सब के चक्कर मा संगी,समय व्यर्थ ही जाथे। 

अबड़ अंधविश्वास सिर्फ गा,लोगन ला भरमाथे।

जादू टोना भरम भूत के, चक्कर मा जे आथे।

अपन करम ला ठठा ठठा के,पाछू बड़ पछताथे।


अमृत दास साहू 

  राजनांदगांव

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