मँय
मँय के उपजे फाँस मा,अरझे साँसा रोज।
मँय के ये बुनियाद ला,अपन भीतरी खोज।।१
छांव परे मँय के कहूँ,जर जर मानुष जाय।
करे बुद्धि ला खोखला,अंत घड़ी पछताय।।२
मँय के जानव भेद ला,छोड़व जी अभिमान।
हँसी जगत संसार मा,देवत जी अपमान।।३
रावन मरगे काल मँय,करके कुल के नाश।
मँय मा मरगे कंस हा,मँय के बनके दास।।४
मँय के सही इलाज हे,समानता के सोच।
छोड़ अहं के भाव ला,मँय ला खूँटी खोंच।।५
रचनाकार - ईंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
छत्तीसगढ़
मँय के उपजे फाँस मा,अरझे साँसा रोज।
मँय के ये बुनियाद ला,अपन भीतरी खोज।।१
छांव परे मँय के कहूँ,जर जर मानुष जाय।
करे बुद्धि ला खोखला,अंत घड़ी पछताय।।२
मँय के जानव भेद ला,छोड़व जी अभिमान।
हँसी जगत संसार मा,देवत जी अपमान।।३
रावन मरगे काल मँय,करके कुल के नाश।
मँय मा मरगे कंस हा,मँय के बनके दास।।४
मँय के सही इलाज हे,समानता के सोच।
छोड़ अहं के भाव ला,मँय ला खूँटी खोंच।।५
रचनाकार - ईंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
छत्तीसगढ़
सुग्घर दोहावली बर पात्रे जी ला हार्दिक शुभकामना ।
ReplyDeleteबढिया दोहावली पात्रे जी बधाई
ReplyDeleteबढ़िया दोहा हे अनुज, आइस हे आनंद
ReplyDeleteगणपति के पर्याय अस, नाव हे गजानंद।
बहुँत बढ़िया सर जी
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया सर जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली,पात्रे भैया।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteशानदार दोहावली सर जी।
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह्ह् शानदार रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह्ह् शानदार रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहा छंद सिरजाय हव पात्रे भाई
ReplyDeleteमँय दानव ए जान लौ, बनौ न एकर दास।
ReplyDeleteजतका मँय मिमियाय हें, होगे उंखर नास।।
बहुत सुंदर भाई गजानंद....