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Friday, November 3, 2017

चकोर सवैया छंद - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

चकोर सवैया छंद - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
(1)

कातिक के महिना धरके अपने सँग मा घर लावय जाड़।
अग्घन हा बनगे जस निंदक कान भरै भड़कावय जाड़।पूस घलो सुलगावत हे बनके कुहरा गुँगवावय जाड़।
काँपत ओंठ ल देख परै तब अंतस मा सुख पावय जाड़।

(2)
                                   
घूमत हे लइका उघरा उँहला नइतो डरुहावय जाड़।
कोन जनी बुढ़वा मन के मन ला कइसे नइ भावय जाड़।
देखत हे कमिया कर जाँगर मूड़ ल ढाँक लुकावय जाड़।
काम बुता नइहे कुछु हाँथ त रोज अलाल बनावय जाड़।

(3)

धान लुवावत माढ़त जावत हे करपा बड़ हाँसय ठाँव।
हे खलिहान घलो फभथे मइया परथे तुँहरे शुभ पाँव।
देख किसानन के श्रम ला भगवान घलो सँहरावय नाँव।
राँधत पोवत खावत मानुष के सँग मा खुश हे सब गाँव।

रचनाकार - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

17 comments:

  1. लाजवाब चकोर सवैया छंद मा सृजन सर।सादर बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर जी।

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  2. बहुते सुघ्घर चकोर सवैया हे भाई

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    1. सराहना बर आभार दीदी।सादर प्रणाम।

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  3. तोर छंद म बहुत सुग्हर शब्द चित्र अपने अपन बनत हे, सुखदेव ! सुग्हर चकोर ।

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    1. सराहना बर आभार दीदी।सादर प्रणाम।

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  4. लाजवाब चकोर सवैया सृजन बर अहिलेश्वर जी ला हार्दिक बधाई।

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    1. सादर आभार बादल भैया।प्रणाम।

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  5. बहुत सुग्घर चकोर सवैया छंद के रचना करे हव,अहिलेश्वर जी।बधाई अउ शुभकामना।

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  6. बहुत सुघ्घर छंद लिखे हव सुखदेव भाई चकोर सवैया मा बधाई बहुत बहुत

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  7. उम्दा चकोर भैया जी

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  8. सुग्घर चकोर हे अहिलेशवर जी

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