"ऊँ गं गणपतये नमः"
उमा उमापति के संतान।
कातिक गनपति आँय महान।।
कोटि कोटि के लैं अवतार।
करैं देव दानव संहार।।
ईश्वर के तो रूप अनेक।
करैं काज उन जग बर नेक।।
पशु पक्षी नर वानर रूप।
किसम किसम के तोर सरूप।।
कइसे बनिन गजानन देव।
किस्सा थोकिन जानिच लेव।।
चलिस देव दानव संग्राम।
चलिन लड़न शिव छोड़िन धाम।।
गौरी इच्छा जागिस जान।
सोचिन करौं अभी असनान।।
रहिन भवन माँ गौरी माय।
पहरा बर काला बलवाय।।
काया के दिस मइल उतार।
करिन पुत्र माता तैयार।।
बालक बली, बुद्धि के खान।
पहरेदारी करिन सियान।।
महादेव राक्षस ला मार।
लहुटिन तहाँ अपन घर बार।।
जइसे चाहिन घुसरन द्वार।
पिता पुत्र के होइस वार।।
गुस्सा मा मदहोस महेस।
कलम करिस सर तोर गनेस।।
दाई पारबती के क्रोध।
होइस शंकरजी ला बोध।।
महतारी के मया सियान।
कहिन उमा डारे बर प्रान।।
असमंजस मा परिन महेस।
विष्णु देखाइन राह विशेष।।
लइका मात सुते पहिचान।
लइका डहर पीठ हो जान।।
हथिनी मिलिस अइसने काय।
बालक हाथी मूँड़ गँवाय।।
लगिस सती सुत हाथी मूड़।
बड़का दाँत कान अउ सूँड़।।
फूँकिन शंकर तहाँ परान।
प्रकटिन देव गजानन जान।।
रचनाकार - श्री सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
उमा उमापति के संतान।
कातिक गनपति आँय महान।।
कोटि कोटि के लैं अवतार।
करैं देव दानव संहार।।
ईश्वर के तो रूप अनेक।
करैं काज उन जग बर नेक।।
पशु पक्षी नर वानर रूप।
किसम किसम के तोर सरूप।।
कइसे बनिन गजानन देव।
किस्सा थोकिन जानिच लेव।।
चलिस देव दानव संग्राम।
चलिन लड़न शिव छोड़िन धाम।।
गौरी इच्छा जागिस जान।
सोचिन करौं अभी असनान।।
रहिन भवन माँ गौरी माय।
पहरा बर काला बलवाय।।
काया के दिस मइल उतार।
करिन पुत्र माता तैयार।।
बालक बली, बुद्धि के खान।
पहरेदारी करिन सियान।।
महादेव राक्षस ला मार।
लहुटिन तहाँ अपन घर बार।।
जइसे चाहिन घुसरन द्वार।
पिता पुत्र के होइस वार।।
गुस्सा मा मदहोस महेस।
कलम करिस सर तोर गनेस।।
दाई पारबती के क्रोध।
होइस शंकरजी ला बोध।।
महतारी के मया सियान।
कहिन उमा डारे बर प्रान।।
असमंजस मा परिन महेस।
विष्णु देखाइन राह विशेष।।
लइका मात सुते पहिचान।
लइका डहर पीठ हो जान।।
हथिनी मिलिस अइसने काय।
बालक हाथी मूँड़ गँवाय।।
लगिस सती सुत हाथी मूड़।
बड़का दाँत कान अउ सूँड़।।
फूँकिन शंकर तहाँ परान।
प्रकटिन देव गजानन जान।।
रचनाकार - श्री सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
वार जान ले नोहय सार, सूर कहत हँव बारंबार।
ReplyDeleteसुग्घर सिरजन भइया
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् भैयाजी बहुत सुग्घर चौपई छंद के सृजन।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् भैयाजी बहुत सुग्घर चौपई छंद के सृजन।सादर बधाई
ReplyDeleteसुग्घर रचना भइया। बधाई।
ReplyDeleteअनुपम सृजन।बहुत बहुत बधाई आदरणीय भैया ल।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार चौपई छंद के रचना करे हव,गुरुदेव गुप्ता जी।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteदीदी ल सादर प्रणाम।गुरुवर भैया अरुण ल प्रणाम अउ जम्मो मयारुक साहित्यकार मन नमस्कार करत रचना ल पसंद करे बर बहुत बहुत बहुत धन्यवाद...।
ReplyDeleteदीदी शकुंतला ल सादर प्रणाम।गुरुवरश्रद्धेय अरुण निगम भैया जी ल सादर प्रणाम अउ जम्मो मयारुक साहित्यकार मन ला नमस्कार करत रचना ल पसंद करे बर बहुत बहुत बहुत धन्यवाद...।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सर जी
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