चकोर सवैया - श्री दिलीप कुमार वर्मा
(1)
देखत हौं बड़का मन हा हर छोटन ला अबड़े ग दबाय।
छोटन छोटन बात म भी अबड़े बड़का मन रोब दिखाय।
ऊंखर हो कतको गलती पर ओमन ला कुछु कोन सुनाय।
साँच कहे तुलसी हर जी बड़का मन ला कब दोस लगाय।
(2)
भीड़ भरे मनखे मन के पर दीखत हे मनखे अब कोन।
होवत हे अपराध तभो सब देखत हे उँहचे कर मोन।
आज घरो नइ बाँचत हे अबड़े अपराध भरे घर तोन।
काबर ये मनखे ह भुलावय मानवता हर होवय सोन।
(3)
नोंचत खावत हे गिधवा मुड़ मा बइठे मुरदा कर कान।
लेवत हे रस नाक चबावत बाँच सके कुछ ना अब जान।
ये गिधवा नइ सोंचत हे उन जीवत मा कतका ग महान।
ये तन हा कुछ काम न आवय जावय जीव छुटे जब प्रान।
(4)
जाँगर टोर कमावत हे जब खेत म जावत हे ग किसान।
खानत जोंतत छींचत हे अउ लूवत हे जब होवय धान।
बाँधत जोरत लानत हे खरही सब मीजत संग मितान।
भाव कहाँ पर पावत हे जब जावत जे धर बेचन धान।
(5)
लालच मा सब आय रचावत हे दुनिया भर के जब खेल।
होवत हे अपराध तहाँ पकड़ावय जावत हे तब जेल।
जेलर मारत कूटत हे अउ पीसत रोज निकारय तेल।
काबर काम करे मन सोंचत लालच के फल पावय सेल।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
(1)
देखत हौं बड़का मन हा हर छोटन ला अबड़े ग दबाय।
छोटन छोटन बात म भी अबड़े बड़का मन रोब दिखाय।
ऊंखर हो कतको गलती पर ओमन ला कुछु कोन सुनाय।
साँच कहे तुलसी हर जी बड़का मन ला कब दोस लगाय।
(2)
भीड़ भरे मनखे मन के पर दीखत हे मनखे अब कोन।
होवत हे अपराध तभो सब देखत हे उँहचे कर मोन।
आज घरो नइ बाँचत हे अबड़े अपराध भरे घर तोन।
काबर ये मनखे ह भुलावय मानवता हर होवय सोन।
(3)
नोंचत खावत हे गिधवा मुड़ मा बइठे मुरदा कर कान।
लेवत हे रस नाक चबावत बाँच सके कुछ ना अब जान।
ये गिधवा नइ सोंचत हे उन जीवत मा कतका ग महान।
ये तन हा कुछ काम न आवय जावय जीव छुटे जब प्रान।
(4)
जाँगर टोर कमावत हे जब खेत म जावत हे ग किसान।
खानत जोंतत छींचत हे अउ लूवत हे जब होवय धान।
बाँधत जोरत लानत हे खरही सब मीजत संग मितान।
भाव कहाँ पर पावत हे जब जावत जे धर बेचन धान।
(5)
लालच मा सब आय रचावत हे दुनिया भर के जब खेल।
होवत हे अपराध तहाँ पकड़ावय जावत हे तब जेल।
जेलर मारत कूटत हे अउ पीसत रोज निकारय तेल।
काबर काम करे मन सोंचत लालच के फल पावय सेल।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
बहुत सुंदर छंद भाई दिलीपजी के
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत बधाई उनला
धन्यवाद भइया जी।
Deleteसुन्दर सर जी
ReplyDeleteआभार अजय भाई।
Deleteसुन्दर सर जी
ReplyDeleteबढ़िया लिखे हस, दिलीप ! तोर संदेश लाजवाब हे ।
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी।
Deleteसुन्दर सृजन वर्मा सर
ReplyDeleteअभार अहिलेश्वर जी।
Deleteसुग्घर रचना बर बधाई सर जी
ReplyDeleteअभार दुर्गा जी।
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुदेव।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर चकोर सवैया छंद लिखे हव ,गुरुदेव।बधाई अउ शुभकामना
ReplyDeleteअनुपम रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteअनुपम रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर चकोर सवैया हे दिलीप भाई जी
ReplyDeleteलाजवाब सर जी
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया भईया जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया भईया जी बधाई हो
ReplyDelete