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Thursday, November 2, 2017

चकोर सवैया - श्री दिलीप कुमार वर्मा

 चकोर सवैया  - श्री दिलीप कुमार वर्मा

(1)

देखत हौं बड़का मन हा हर छोटन ला अबड़े ग दबाय।
छोटन छोटन बात म भी अबड़े बड़का मन रोब दिखाय।
ऊंखर हो कतको गलती पर ओमन ला कुछु कोन सुनाय।
साँच कहे तुलसी हर जी बड़का मन ला कब दोस लगाय।

(2)
भीड़ भरे मनखे मन के पर दीखत हे मनखे अब कोन।
होवत हे अपराध तभो सब देखत हे उँहचे कर मोन।
आज घरो नइ बाँचत हे अबड़े अपराध भरे घर तोन।
काबर ये मनखे ह भुलावय मानवता हर होवय सोन।

(3)
नोंचत खावत हे गिधवा मुड़ मा बइठे मुरदा कर कान।
लेवत हे रस नाक चबावत बाँच सके कुछ ना अब जान।
ये गिधवा नइ सोंचत हे उन जीवत मा कतका ग महान।
ये तन हा कुछ काम न आवय जावय जीव छुटे जब प्रान।

(4)
जाँगर टोर कमावत हे जब खेत म जावत हे ग किसान।
खानत जोंतत छींचत हे अउ लूवत हे जब होवय धान।
बाँधत जोरत लानत हे खरही सब मीजत संग मितान।
भाव कहाँ पर पावत हे जब जावत जे धर बेचन धान।

(5)
लालच मा सब आय रचावत हे दुनिया भर के जब खेल।
होवत हे अपराध तहाँ पकड़ावय जावत हे तब जेल।
जेलर मारत कूटत हे अउ पीसत रोज निकारय तेल।
काबर काम करे मन सोंचत लालच के फल पावय सेल।

रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
 बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

19 comments:

  1. बहुत सुंदर छंद भाई दिलीपजी के
    बहुत बहुत बहुत बधाई उनला

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  2. बढ़िया लिखे हस, दिलीप ! तोर संदेश लाजवाब हे ।

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  3. सुन्दर सृजन वर्मा सर

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  4. सुग्घर रचना बर बधाई सर जी

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  5. बहुत सुग्घर चकोर सवैया छंद लिखे हव ,गुरुदेव।बधाई अउ शुभकामना

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  6. अनुपम रचना सर।सादर बधाई

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  7. अनुपम रचना सर।सादर बधाई

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  8. बहुत सुघ्घर चकोर सवैया हे दिलीप भाई जी

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  9. बहुँत बढ़िया भईया जी बधाई हो

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  10. बहुँत बढ़िया भईया जी बधाई हो

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