महतारी भाखा
आखर आखर भाखा बनथे,
आखर आखर भाखा बनथे,
भाखा प्रगटे भाव बिचार।
महतारी बोली ला बोलव,
निज भाखा बिन सब बेकार।1
सिखव सबो भाखा ला सब झन,
होथे एमा गुन के खान।
फेर अपन महतारी भाखा ,
इही हमर हे गरब गुमान।2
बाढ़ँय फूलँय जम्मो भाखा,
ना हिजगा हे नही बिरोध।
भाखा हमरो आगू बढ़ही,
राखव अपने अंतस बोध।3
जनमे जेखर कोरा मा मैं,
वो भुँइयाँ हे सरग समान।
नान्हेंपन के गुरतुर लोरी,
वो भाखा हे ब्रम्ह गियान।4
लोककला महतारी संस्कृति,
निज भाखा के आय अधार।
जतका जादा करबो सेवा,
मया बाढ़ही अमित अपार।
रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"*
भाटापारा, छत्तीसगढ़
बहुत सुघ्घर आल्हा छंद हे भाई अमित
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर भईया जी
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आल्हा छंद केके सृजन करे हव आदरणीय अमित भैया जी।।
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर भईया जी
ReplyDeleteआल्हा सुग्हर लिखे कन्हैया, सब झन गाबो आल्हा आज
ReplyDeleteजय जयकारा करबो भैया, देश - धर्म के सबो समाज।
वाह अमित भाई बढिया
ReplyDeleteवाह अमित भाई बढिया
ReplyDeleteमातृभाषा के महिमा गान करत सुग्घर आल्हा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर बखान करे हव भईया जी
ReplyDeleteबधाई आप ला
बहुत सुग्घघर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घघर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबड़ सुग्घर आल्हा छंद के सृजन करे हव अमित सर।
ReplyDeleteमहतारी भाखा ला समर्पित लाजवाब आल्हा छंद ,अमित भैया।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteगजब के आल्हा छंद सिरजाय हव अमित भाई।बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाई कन्हैया....
ReplyDeleteसादर बधाई..
बहुत बढ़िया भाई कन्हैया....
ReplyDeleteसादर बधाई..