1)
वरुण देव हा जी रिसाय।
पानी आसो नइ गिराय।।
रोवत नदिया बहत जाय।
हाल देख भुइँया सुनाय।
रोवत हावे सब किसान।
आसो होइस नहीँ धान।
भुइँया जेकर हवै जान।
सुक्खा मा छूटत परान।
पानी के नइ पास धार।
सुन्ना हावय खेत खार।
रोवय बारी बइठ मरार।
पानी बिन नइ हवै नार।
जिनगी बर जी हवै काल।
सबके निकलत हवै खाल।
तीन साल परगे अकाल।
होवत नइ हे अंत राल।
जिनगी मा ला तँय बहाल।
वरुण देव करदे कमाल।
बारिश होय टरै दुकाल।
मन हरियर हो इही साल।
2)
जप ला करके राम राम।
छाँव रहय या बने घाम।
करले बढ़िया सँगी काम।
होयव जग मा तोर नाम।
जाँगर बढ़िया सँगी पेर।
जिनगी मा नइहे अँधेर।
पाबे सुख तँय बने फेर।
जिनगी बर तँय समे हेर।
होवय चर्चा गली खोर।
अपन मेहनत लगा जोर।
जस हा बाढ़त बने तोर।
पानी मा आलस ल बोर।
छोड़व मनके अंहकार।
दुरिहा होवय अंधकार।
दिया करम के बने बार।
आवय लछमी घर दुवार।
3)
सबो डहर हे लूट पाट।
बने रथें साहेब लाट।।
मानवता ला देत पाट।
खोल चोर सबके कपाट।।
मिलै न बिन सबूत चोर।
न्याय हवे अंधरा मोर।।
घुमय चोर हा गली खोर।
कहाँ पुलिस ला हवै सोर।
करत परोसी हवै खोट।
जबले देखे हवै नोट।।
भाई के मन होय छोट।
पइसा खातिर बिके वोट।।
गार पसीना करव काम।
अपन समे के हाथ थाम।
रही जगत मा तोर नाम।
पेरव जाँगर छाँव घाम।
आवव देवव जी सबो साथ।
काम बाँट सब अपन हाथ।।
सबो डहर गढ़ नवा गाथ।
धरती सेउक नवा माथ।।
रचनाकार -हेमलाल साहू
ग्राम-गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
(छत्तीसगढ़) मो. 9977831
वरुण देव हा जी रिसाय।
पानी आसो नइ गिराय।।
रोवत नदिया बहत जाय।
हाल देख भुइँया सुनाय।
रोवत हावे सब किसान।
आसो होइस नहीँ धान।
भुइँया जेकर हवै जान।
सुक्खा मा छूटत परान।
पानी के नइ पास धार।
सुन्ना हावय खेत खार।
रोवय बारी बइठ मरार।
पानी बिन नइ हवै नार।
जिनगी बर जी हवै काल।
सबके निकलत हवै खाल।
तीन साल परगे अकाल।
होवत नइ हे अंत राल।
जिनगी मा ला तँय बहाल।
वरुण देव करदे कमाल।
बारिश होय टरै दुकाल।
मन हरियर हो इही साल।
2)
जप ला करके राम राम।
छाँव रहय या बने घाम।
करले बढ़िया सँगी काम।
होयव जग मा तोर नाम।
जाँगर बढ़िया सँगी पेर।
जिनगी मा नइहे अँधेर।
पाबे सुख तँय बने फेर।
जिनगी बर तँय समे हेर।
होवय चर्चा गली खोर।
अपन मेहनत लगा जोर।
जस हा बाढ़त बने तोर।
पानी मा आलस ल बोर।
छोड़व मनके अंहकार।
दुरिहा होवय अंधकार।
दिया करम के बने बार।
आवय लछमी घर दुवार।
3)
सबो डहर हे लूट पाट।
बने रथें साहेब लाट।।
मानवता ला देत पाट।
खोल चोर सबके कपाट।।
मिलै न बिन सबूत चोर।
न्याय हवे अंधरा मोर।।
घुमय चोर हा गली खोर।
कहाँ पुलिस ला हवै सोर।
करत परोसी हवै खोट।
जबले देखे हवै नोट।।
भाई के मन होय छोट।
पइसा खातिर बिके वोट।।
गार पसीना करव काम।
अपन समे के हाथ थाम।
रही जगत मा तोर नाम।
पेरव जाँगर छाँव घाम।
आवव देवव जी सबो साथ।
काम बाँट सब अपन हाथ।।
सबो डहर गढ़ नवा गाथ।
धरती सेउक नवा माथ।।
रचनाकार -हेमलाल साहू
ग्राम-गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
(छत्तीसगढ़) मो. 9977831
बहुत सुग्घर कज्जल छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर कज्जल छंद सिरजाय हस भाई
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
गजब सुघ्घर हेम भाई
ReplyDeleteशानदार कज्जल छंद ,हेमलाल भैया।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteशानदार कज्जल हेम सर।वाह्ह्ह्ह।
ReplyDeleteकज्जल काजू कस लगय, मोला भाई हेम
ReplyDeleteअक्कल माँगै शकुन हर,नहीं निभावय - नेम।
बहुँत बढ़िया बधाई
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया बधाई
ReplyDeleteसुग्घर छन्द भइया वाह्ह्ह्ह्ह्
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