चौपाई छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बइगा गुनिया
दोहा -
आदत ले लाचार हे, सुने नही गा बात।
बन बन मा किंजरत रथे,बिहना ले वो रात।1
चौपाई -
सरी मँझनिया घूमे टूरा। सिरतों मा बइहा हे पूरा।
पीपर पेड़ तरी जा बइठे।सबझन जिहाँ भूत हे कइथे।
झुँझकुर छइँहा हे मनभावन। उँही मेर लागे सुरतावन।
बइठे टूरा गोड़ लमाये।खुसरा घुघवा देख डराये।
खारे खार कोलिहा भागय।देखय भोड़ू बड़ डर लागय।
नांग साँप के हरय बसेरा। दँतिया भाँवर डारे डेरा।
हवा चले बड़ डारा डोले। रहि रहि के बनबिलवा बोले।
काँव काँव कौवा चिल्लाये। टेटका बिन बिन चाँटी खाये।
साँप पेड़ के उप्पर नाचे। चिरई अंडा कइसे बाँचे।
चील बाज उड़ बादर नापे। भूँके कुकुर जिया हा काँपे।
झरे पछीना तरतर तरतर। काँपय टूरा थरथर थरथर।
हुरहा बड़का डारा टूटे। मुँह ले बोल कहाँ ले फूटे।
सुध बुध खोये भागे पल्ला। पारा भर मा होगे हल्ला।
दाई दाई कहि चिल्लाये। मनखे तनखे बड़ सँकलाये।
दोहा -
हफरत हफरत काँपथे, रहि रहि के चिल्लाय।
घाम जेठ अब्बड़ जरे,चक्कर खा गिर जाय।2
चौपाई -
बोली बोलय आनी बानी। डारव सिर मा ठंडा पानी।
खींच बाहरी कोनो मारव। भूत धरे हे कोनो झारव।
लान जठावव खटिया खोर्रा। मारव भँदँई मारव कोर्रा।
हाथ गोड़ ला चपकव दोनो। जावव बइगा लानव कोनो।
जल्दी मरी मसान भगावव। लइका लोग तीर झन आवव।
रोवय दाई बाबू बइठे। आये बइगा मेंछा अँइठे।
आँखी मा छाये हे लाली। पहिरे मूँदी माला बाली।
गुर्री गुर्री देखय बइगा। माँगे नरियर लिमवा सइघा।
भूत भाग जा रे पीपर के। छीचे राख जाप कर करके।
लानव खैरी कूकरी चंदन। माँ काली के करहूँ बंदन।
लहूँ भरे हाथे हे लोटा। देखब काँपे सबके पोटा।
बइगा लेवय लउहा लउहा। जल्दी लानव लिमवा मउहा।
हँसिया धरे करे दू चानी। काटे लिमऊ फेकय छानी।
बोलय मंतर बड़ चिल्लाये। कुकरी काटे बली चढ़ाये।
दोहा -
जंतर मंतर मार के,बइगा भूत भगाय।
बंदन चाँउर छीच के, देह भभूत लगाय।3
चौपाई -
फूँके मंतर बाँधे डोरी। पइसा माँगे चालिस कोरी।
बोले भूत भाग गे कहिके। चेत ह आही थोरिक रहिके।
भीड़ देख के डॉक्टर आगे। बइगा गठरी बाँधे भागे।
बोले डॉक्टर चेकप करके। गिरे हवय ये लइका डरके।
जरत घाम मा लू के डर हे। बइगा नइ जाने का जर हे।
दवई ला जब लइका पीही। का होइस तेला उठ कीही।
भूत प्रेत अउ जादू टोना। हरे वहम एखर गा होना।
भूत प्रेत के डर देखाके। ले जाथे पइसा गठियाके।
बइगा गुनिया के चक्कर मा। मर जाथे लइका मन जर मा।
बइगा तीर कभू झन जावव। कहीं होय डॉक्टर देखावव।
जादू टोना टोटका ,हरय अन्ध विश्वास।
बइगा गुनिया झन धरव,लेगव डॉक्टर पास।4
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा) छत्तीसगढ़
9981441795
बइगा गुनिया
दोहा -
आदत ले लाचार हे, सुने नही गा बात।
बन बन मा किंजरत रथे,बिहना ले वो रात।1
चौपाई -
सरी मँझनिया घूमे टूरा। सिरतों मा बइहा हे पूरा।
पीपर पेड़ तरी जा बइठे।सबझन जिहाँ भूत हे कइथे।
झुँझकुर छइँहा हे मनभावन। उँही मेर लागे सुरतावन।
बइठे टूरा गोड़ लमाये।खुसरा घुघवा देख डराये।
खारे खार कोलिहा भागय।देखय भोड़ू बड़ डर लागय।
नांग साँप के हरय बसेरा। दँतिया भाँवर डारे डेरा।
हवा चले बड़ डारा डोले। रहि रहि के बनबिलवा बोले।
काँव काँव कौवा चिल्लाये। टेटका बिन बिन चाँटी खाये।
साँप पेड़ के उप्पर नाचे। चिरई अंडा कइसे बाँचे।
चील बाज उड़ बादर नापे। भूँके कुकुर जिया हा काँपे।
झरे पछीना तरतर तरतर। काँपय टूरा थरथर थरथर।
हुरहा बड़का डारा टूटे। मुँह ले बोल कहाँ ले फूटे।
सुध बुध खोये भागे पल्ला। पारा भर मा होगे हल्ला।
दाई दाई कहि चिल्लाये। मनखे तनखे बड़ सँकलाये।
दोहा -
हफरत हफरत काँपथे, रहि रहि के चिल्लाय।
घाम जेठ अब्बड़ जरे,चक्कर खा गिर जाय।2
चौपाई -
बोली बोलय आनी बानी। डारव सिर मा ठंडा पानी।
खींच बाहरी कोनो मारव। भूत धरे हे कोनो झारव।
लान जठावव खटिया खोर्रा। मारव भँदँई मारव कोर्रा।
हाथ गोड़ ला चपकव दोनो। जावव बइगा लानव कोनो।
जल्दी मरी मसान भगावव। लइका लोग तीर झन आवव।
रोवय दाई बाबू बइठे। आये बइगा मेंछा अँइठे।
आँखी मा छाये हे लाली। पहिरे मूँदी माला बाली।
गुर्री गुर्री देखय बइगा। माँगे नरियर लिमवा सइघा।
भूत भाग जा रे पीपर के। छीचे राख जाप कर करके।
लानव खैरी कूकरी चंदन। माँ काली के करहूँ बंदन।
लहूँ भरे हाथे हे लोटा। देखब काँपे सबके पोटा।
बइगा लेवय लउहा लउहा। जल्दी लानव लिमवा मउहा।
हँसिया धरे करे दू चानी। काटे लिमऊ फेकय छानी।
बोलय मंतर बड़ चिल्लाये। कुकरी काटे बली चढ़ाये।
दोहा -
जंतर मंतर मार के,बइगा भूत भगाय।
बंदन चाँउर छीच के, देह भभूत लगाय।3
चौपाई -
फूँके मंतर बाँधे डोरी। पइसा माँगे चालिस कोरी।
बोले भूत भाग गे कहिके। चेत ह आही थोरिक रहिके।
भीड़ देख के डॉक्टर आगे। बइगा गठरी बाँधे भागे।
बोले डॉक्टर चेकप करके। गिरे हवय ये लइका डरके।
जरत घाम मा लू के डर हे। बइगा नइ जाने का जर हे।
दवई ला जब लइका पीही। का होइस तेला उठ कीही।
भूत प्रेत अउ जादू टोना। हरे वहम एखर गा होना।
भूत प्रेत के डर देखाके। ले जाथे पइसा गठियाके।
बइगा गुनिया के चक्कर मा। मर जाथे लइका मन जर मा।
बइगा तीर कभू झन जावव। कहीं होय डॉक्टर देखावव।
जादू टोना टोटका ,हरय अन्ध विश्वास।
बइगा गुनिया झन धरव,लेगव डॉक्टर पास।4
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा) छत्तीसगढ़
9981441795
सुग्घर संदेश जितेंद्र जी
ReplyDeleteसुग्घर संदेश जितेंद्र जी
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteलाजवाब चौपाई छंद के रचना करे हव भैया जी।बधाईअउ शुभकामना।
ReplyDeleteबहुतेच सुग्हर चौपाई - दोहा, फेर जितेन्द्र भाई तँय एक पइत "रामचरितमानस" ल देख ।
ReplyDeleteदोहा के बाद चौपाई के संख्या ऊपर धियान दे बर काहत हव का दीदी
Deleteसुग्घर चौपाई अउ दोहा छंद सृजन बर जितेंद्र जी ला बहुत बहुत शुभकामना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteगुरुदेव सँग आप सबो झन ल सादर पायलागी।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteलाजवाब सृजन सर।
ReplyDeleteवाह जी बढ़िया
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ जे साहित्य ल सबल करे बर आप मन के प्रयास सराहनीय है
बहुँत बढ़िया बधाई हो
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