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Tuesday, June 20, 2023

जेठ मास---सवैया*

 *जेठ मास---सवैया*


जेठ जरे बड़ चाम तिपे तन पाँव घलो अगियावत हे। 

छाँव निंहीं सुख ठाँव निंहीं रुखुवा ह घलो अइँलावत हे।

ताल सुखे खग राग तजे सब कोन जगा लरघावत हे।

बेर ढरे तब ले रिस मा रवि देव चिढ़े बगियावत हे।


खोर गली सुनसान दिखे जुड़ छाँव तरी म लुकाय रथे।

प्यास हरे करसा मटका पसिया म  जिया ह लुभाय रथे। 

भाय निंहीं पटकू गमछा उघरा उघरा तन भाय रथे।

जेठ तिपे घुसियाय सहीं भभका चुलहा सिपचाय रथे।


रात बिते भुसड़ी चुहके पुरवा हघलो मिटकाय रथे। 

देंह फिजे जब धार बहे खटिया ह घलो सकलाय रथे।

नींद परे बिहना बिहना सुकुवा कुकरा ह जगाय रथे।

 का कहिबे यहु घाम घरी हलकान करे परवान रथे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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