संत कबीर प्राकट्य दिवस विशेष
दोहे - सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
बीत जही बिपदा घड़ी, मन मा धर ले धीर।
सन मा हे आठो पहर, सद्गुरु दास कबीर।।
मूढ़-मती के माथ मा, आ जाही सद्ज्ञान।
सुनही संत कबीर ला, जे दिन देके ध्यान।।
झूठ ढोंग पाखण्ड के, घपटे घुप-ॲंधियार।
वाणी शबद कबीर के, करत रथे उजियार।।
जाति-धरम के नॉंव मा, खींचे कहूॅं लकीर।
जान रिसागे तोर ले, सद्गुरु दास कबीर।।
प्रेम भक्ति अइसे करी, जइसे करिस कबीर।
देख सुफल जोनी जनम, सहुॅंराहय तकदीर।।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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दोहा छंद
संत कबीर
ज्ञान भक्ति के पंथ मा, ऊँच माथ बड़ धीर।
ज्ञान दीप बाती जरय, दोहा गुनव कबीर।।
निर्गुण ज्ञान कपाट हे,नाव सुमर धर
आस।
कहाँ ढूँढबे राम ला,अंतस अपने खास।।
जात-पात झन भेदकर, मानवता धर ध्यान।
जिहाँ जिहाँ ज्ञानी मिलय, अंतस भर ले ज्ञान।।
जइसन जेखर धारणा , वइसन वोखर भेष।
समरसता के आन बर,दे कबीर संदेश।।
मनखें तन ला पाय हस, कर ले तँय उपकार।
बड़ परोपकारी बनव,पेड़
पौध गुनकार।।
डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग
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: कुण्डलिया छंद- सुन लौ संत कबीर के-
सुन लौ संत कबीर के, बोली सच अनमोल।
मन के अंध किवाड़ ला, देही झटकुन खोल।।
देही झटकुन खोल, ढ़ोंग के सब दरवाज़ा।
चल लौ राह कबीर, कहत हे कब से आ जा।।
तथाकथित पाखंड, छोड़ के सच बर गुन लौ।
जिनगी मा उजियार, तभे होही जी सुन लौ।।
बोली संत कबीर के, शबद-शबद गुन ज्ञान।
भटक-भटक झन खोज मन, पथरा मा भगवान।।
पथरा मा भगवान, कहाँ तँय मनुवा पाबे।
सेवा दीन ग़रीब, करे ले भव तर जाबे।।
पढ़े लिखे इंसान, खेल झन आँख मिचोली।
आजौ शरण कबीर, मान लौ कहना बोली।।
सोंचे आज कबीर हा, देख जगत के हाल।
झूठ ढ़ोंग पाखंड के, फ़इले अब तक जाल।।
फ़इले अब तक जाल, कोंन जी सच ला परखे।
जाति धरम के आड़, डँसत मनखे ला मनखे।।
छाँया छूत अछूत, मनुज तन-मन मा खोंचे।
गजानंद कविराय, कबीरा देखत सोंचे।।
रचना- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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सार छन्द गीत
ए दुनिया मा तोर बात ला,माने कोन कबीरा।।
सत्य बात ला माने बर तो,सब ला होथे पीरा।।
आडंबर ला छोड़व कहिके,कतका ला समझाये।
तभो आजकल के मनखे हा,एही मा बउराये।।
जात-धरम के सब मनखे ला,खावत हावय कीरा।
ए दुनिया मा तोर बात ला,माने कोन कबीरा।।(1)
एक बरोबर सब मनखे ला,सतगुरु साहिब माने।
तोर सिखाये सत्य ज्ञान ला,लोगन समझें आने।।
तोर सहीं अब कोन इहाँ हे,सच्चा आज फकीरा।।
ए दुनिया मा तोर बात ला,माने कोन कबीरा।।(2)
ऊँच-नीच अउ छुआछूत के,छाये हावय जाला।
सत्य बात बोले बर सब के,मुँह मा लगगे ताला।।
अक्षर अक्षर तोर लिखे हा,जइसे मोती,हीरा।
ए दुनिया मा तोर बात ला,माने कोन कबीरा।।(3)
डी.पी.लहरे"मौज"
कबीरधाम छत्तीसगढ़
सप्रेम साहेब बंदगी
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शानदार संकलन हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसादर साहेब बंदगी साहेब
ReplyDeleteसत्य सार कबीर वाणी। सुग्घर संकलन
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