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Monday, June 5, 2023

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष- छंदबद्ध कविता







विश्व पर्यावरण दिवस विशेष- छंदबद्ध कविता 

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

धरती दाई

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।
पेड़ पात बिन दिखे बोंदवा, धरती के ओना कोना।।

टावर छत मीनार हरे का, धरती के गहना गुठिया।
मुँह मोड़त हें कलम धरइया, कोन धरे नाँगर मुठिया।
बाँट डरे हें इंच इंच ला, तोर मोर कहिके सबझन।
नभ लाँघे बर पाँख उगा हें, धरती मा रहिके सबझन।
माटी ले दुरिहाना काबर, आखिर हे माटी होना।
जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।।

दाना पानी सबला देथे, सबके भार उठाय हवै।
धरती दाई के कोरा मा, सरि संसार समाय हवै।
मनखे सँग मा जीव जानवर, सब झन ला पोंसे पाले।
तेखर उप्पर आफत आहे, कोन भला ओला टाले।
धानी रइही धरती दाई, तभे उपजही धन सोना।
जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

होगे हे विकास के सेती, धरती के चउदा बाँटा।
छागे छत सीमेंट सबे कर, बिछगे हे दुख के काँटा।
कभू बाढ़ मा बूड़त दिखथे, कभू घाम मा उसनावै।
कभू काँपथे थरथर थरथर, कभू दरक छाती जावै।
देखावा धर मनुष करत हे, स्वारथ बर जादू टोना।
जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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कुंडलियाँ छ्न्द

जामे नान्हे पेड़ हे,एती वोती देख।
समय हवै बरसात के,बढ़िया जघा सरेख।
बढ़िया जघा सरेख,बगीचा बाग बनाले।
अमली आमा जाम,लगाके मनभर खाले।
हवा दवा फर देय,पेंड जिनगी ला थामे।
खातू पानी छींच,मरे झन पौधा जामे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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*लावणी छंद* -पर्यावरण 

जतन करव भुइँया के संगी, हरियर पेड़ लगा लव गा।
जिनगी खातिर जुरमिल के सब, पर्यावरण बचा लव गा।।

होही हरियर भुइँया सुग्घर, चारो कोती खुशहाली।
खेत-खार मा लहराही जी, हरियर पाना अउ डाली।।
मिहनत करके तुमन सबो झन, धरती सरग बना लव गा।
जिनगी खातिर जुरमिल के सब, पर्यावरण बचा लव गा।।

शुद्ध हवा बड़ मिलही सबला, मिलही निर्मल पानी हर।
हमर पेड़ पौधा ले चलथे, जानव ए जिनगानी हर।।
हरियर रुखवा के छइँहा मा, थोरिक तो सुरतालव गा।
जिनगी खातिर जुरमिल के सब, पर्यावरण बचा लव गा।।

राजकुमार निषाद"राज"
साधक- सत्र -१७

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शंकर छंद (ऊदा-बादी)
काट-काट के जंगल झाड़ी, पारे गा उजार।
ठँव-ठँव मा तैं चिमनी ताने, परिया खेत खार।
धुँगिया-धुँगिया चारों कोती, बगरे शहर गाँव।
खाँसी-खोखी खस्सू-खजरी, सँचरगे तन घाव

पाटे नरवा तरिया डबरा, देये नदी बाँध।
खोज-खोज के चिरई-चिरगुन, खाये सबो राँध।
बघवा‌ भलुवा मन छेंवागे, देये तहीं मार।
जल‌ के जम्मो जीव‌ नँदागे, नइहे तीर तार।

कोड़-कोड़ के डोंगर-पहरी, बनाये मैदान।
होवत-हावय रोज धमाका, खूब खने खदान।
भरभर-भरभर मोटर गाड़ी, घिघर-घारर शोर।
तोरे झिल्ली पन्नी जग मा, देइस जहर घोर।

छेदे छिन छिन छाती धरती, छेद डरे अगास।
खेती खाती डार रसायन, माटी करे नास।
मनमाने मोबाइल टावर, ठँव-ठँव करे ठाढ़।
आनी बानी तोर यंत्र हे, गेइन‌ सबो बाढ़।

सिरतो मैं हा काहत हाबव, बने सुन दे कान।
जिनगी जीबे हली-भली गा, कहे मोरे मान।
रोक रोक अब ऊदा-बादी, होगे सरी नास
रूरत हे तन देखत देखत, थमहत हवय साँस।

  - मनीराम साहू 'मितान'
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विश्व पर्यावरण दिवस म,

सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                  "धरती दाई "

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।
बंजर होगे खेत खार सब,काय फसल उपजावौं।

सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े।
मोर नैन  मा निंदिया नइहे,संसो दिनदिन बाढ़े।
नाँव  बुझागे  रुख राई के,धरा  बरत हे बम्बर।
मन भीतर मा मातम छागे,काय करौं आडम्बर।
सिसक सकत नइ हावौं दुख मा,कइसे राग लमावौं।
चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।

मोटर  गाड़ी  कार  बनत हे,उपजै सोना चाँदी।
नवा जमाना जल थल जीतै,पतरी परगे माँदी।
तरिया  परिया  हरिया  हरगे,बरगे मया ठिठोली।
हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,झरगे गुरतुर बोली।
नव जुग हे अँधियार कुँवा कस,भेड़ी असन झपावौं।
चंदन  माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।

घुरय हवा पानी मा महुरा ,चूरय  धरती दाई।
सुरसा मुँह कस स्वारथ बाढ़य,टूटय भाई भाई।
हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।
नवा समै ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।
ठिहा ठौर के कहाँ ठिकाना,दरदर भटका खावौं।
चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)


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---- पेड़ लगावव

खेत- खार  मा  पेड़ लगावव ।
धरती  ला  जी  सरग  बनावव ।।

शुद्ध  हवा  शीतल  पुरवाई ।
रुख- राई  हे  बड़  सुखदाई ।।

जुरमिल  पेड़  लगावव  भइया ।
तीपत  हावय  धरती  मइया ।।

पेड़  कभू  झन  काटव  भाई ।
जिनगी  के  होही  करलाई ।।

आवव  सब  झन  पेड़  लगावव ।
जन- मानस  ला  बात  बतावव ।।

रुख- राई  हा  मन  ला भावय ।
भुइयाँ  मा  हरियाली  लावय ।।

मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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- मत्तगयंद सवैया*

पेड़ कटावत जंगल के अब चातर होवत कोन बचाही।
जीव जिनावर जाय कहाँ इँखरो सुख सोचव जी छिन जाही।।
बाँध सुखावत नीर बिना विपदा अब देखव दौड़त आही।
चेत करौ अब पेड़ लगावव ये भुइयाँ तब तो हरियाही।।

शुद्ध हवा बिन पेड़ कहाँ अब दूषित होवत जावत हावै।
साँस इहाँ महँगा कस लागय देखव लोग बिसावत हावै।।
देख अगास धुआँ सब डाहर जाहर रूप उड़ावत हावै।
सूरज देव घलो अब तो धमका बहुते बरसावत हावै।।

बाढ़त हे गरमी अब तो नदिया-नरवा-रुख आज सुखावै।
का दिन बादर आय हवै अब सूरज देव जरावत हावै।।
नीर बिना तड़पै सब जीव बता कइसे अब प्राण बचावै।
हे भगवान करौ बरसा सब जीव इहाँ हिरदे जुड़वावै।।

रचना:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 मत्तगयंद सवैया*

पेड़ लगावव ~ विरेन्द्र कुमार साहू

नी हरियावय  ये  धरती हर, पेड़ लगावव गोठ करे ले।
गांव-गली परती सँवरे नइ, कागज मा बस नेंव धरे ले।
पेड़ बचा अउ  पेड़ लगा तँय, पार लगे नइ पाँव परे ले।
स्वर्ग इहें  भुँइया गर सुंदर, स्वर्ग मिले  नइ तोर मरे ले।।

कवि-
विरेन्द्र कुमार साहू बोड़राबांधा
जिला - गरियाबंद छत्तीसगढ़
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 *लावणी छंंद*
रुख-राई हा आज उजरगे, जंगल बनगे हे परिया।
भू-जल स्तर गिरगे हावय अब, सुक्खा परगे हे तरिया।। 

जीव-जंतु मन तरसत हें सब, छाँव कहाँ एमन पावय।
अब हावय भरमार स्वार्थ के, रुख-राई कोन लगावय।। 

आज प्रदूषण बढ़गे हावय, अब्बड़ घाम जनावत हे।
बेरा आगी उगलत हावय, सब झन ला तड़पावत हे।। 

रुख-राई ला आज लगाके, धरती ला सबो बचावव।
धरती के दोहन कम करके, भुइयाँ ला सरग बनावव।।

*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
*सत्र 14*
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मदिरा सवैया-


कोंन लगावत पेड़ इँहा अब काम विकास विनाश हवे।

रोज कटावत पेड़ जिहाँ मनखे सुख स्वारथ दास हवे।।

शुद्ध हवा जलवायु कहाँ हर साँस प्रदूषण पास हवे।

चेत गजानन तैं कर ले जिनगी बिरवा बिन लाश हवे।।


मोटर कार अँधाधुँध दौड़त छोड़त खूब अशुद्ध हवा।

पेड़ बिना भुइँया तिपगे जइसे तिपथे चढ़ आग तवा।।

रोग समाय दमा तन मा तरसे मनखे तब साँस दवा।

जान गजानन पेड़ बिना जिनगी नइ होय बिहान नवा।।


रचना- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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दोहे 


1-

बइठे कालीदास बन, नीचे काटय डाल |

देख आज इन्सान मन, खुदे बलावय काल ||

2-

हरा-भरा सब पेड़ के, करदिन सत्यानाश |

आ बइला तैं मार ले, होइन जिन्दा लाश ||

3-

कोनो ला मतलब नही, अपने में सब खोय |

शुद्ध कहाँ पर्यावरण, अइसन मा जी होय ||

4-

जंगल झाड़ी काट के, नइ पछतावय लोग |

अंत घड़ी सुरता करे, जभे झपाइस रोग ||

5-

शर्माबाबू देख लव, कोन भला समझाय |

आज मुरुख इन्सान ला, बुद्धि कहाँ ले आय ||


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला-केसीजी 

साधक सत्र-20

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केंवरायदु: दोहा छंद 


लीम आँवला पेड़ हा,औषधि के भंडार।

 होही शुद्ध पर्यावरण, मिलही शुद्ध बयार।।


राखो शुद्ध पर्यावरण,पेड़ लगा दू चार।

बोंले रुखवा लीम के,परबे नहीं बिमार।।


मानुष जीवन पाय के,करले पर उपकार। 

शुद्ध हवा मिलही सुनव, पेड़ लगा दू चार।।


पेड़ लगाबो आज ले,जंगल वो बन जाय।

पर्यावरण सुधार के सबले सरल उपाय।।


बड़ पीपर के पेड़ के,कर पितु कस सम्मान।

पर्यावरण सुधार ले,होही रोग निदान।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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कमलेश्वर वर्मा 9: प्रकृति रानी


 पर्यावरण सबो ला देथे, सुग्घर सुख के जिनगानी।

 रखव अवइया दिन बर संगी, तुम रुख-राई अउ पानी।।

 करिया- करिया धुआँ करत हे,  बीमारी अउ नुकसानी।

 जहर असन अब घुलत हवा मा,साँस होत नइ आसानी।।


 तरिया-नदिया तक मइलागे, जउन हमर हे कल्यानी।

 कचरा मन के ढेर लगा के, करथन जम्मों नादानी।।

 जादा हल्ला-गुल्ला सुनके, होवत हाबय परशानी।

 बिकट प्रदूषण ले पड़ जाही, दुनिया ला मुँह के खानी।।

साफ हवा अउ फरियर जल बर, उदिम करव आनी-बानी।

 पेड़ लगावव पेड़ बचावव,झन काटव तुम मनमानी।।

चिरई-चिरगुन जीव-जंतु के, कम गूँजत मीठा बानी।

सब सँवार दव जुरमिल संगी, हरियर हमर प्रकृति रानी।।


रचना --कमलेश वर्मा

सत्र -09

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 अशोक कुमार जायसवाल: विश्व पर्यावरण दिवस मा

*कुकुभ छंद*

हमर गाँव आबे बरसा मा, हरियाली सुघर दिखा हूँ|

रूख खोंधरा मा चिरई के, सुघ्घर गीत सुना हूँ ||


तरिया नदिया नरवा भरगे,  तउरत कस गाँव दिखा हूँ |

खेत खार सब उल्ला भागे, मुही चोरिया खेलाहूँ ||


चरण पखारत महादेव के, छलकत तरिया के पानी |

जेकर आशीर्वाद मिलेले, हमर चलत हे जिनगानी ||


बबा गुड़ी मा रामायण के, कथा कहय सुघ्घर गा के |

तोरो हिरदे गदगद होही, पावन भुइँया मा आ के ||


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

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2 comments:

  1. पर्यावरण संरक्षण बर सुग्घर सन्देश

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  2. सुग्घर संकलन

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