योग दिवस विशेष-छंदबद्ध सृजन
पात्रे जी: मत्तगयंद सवैया- योग
योग करौ सब लोग करौ हँस लौ सब ला तुम रोज हँसा के।
स्वस्थ समाज निरोग समाज रखौ सपना नित नैन बसा के।।
लोगन योग हवे दुरिहावत नास नशा तन फाँस फँसा के।
जाग जगा अभियान चला सब ला बतला नुकसान नशा के।।
योग निवारण रोग करे रख स्वस्थ निरोग बने हितकारी।
का बुढ़हा अउ का लइका सब योग करौ सुन लौ नर नारी।।
लोम विलोम कपाल सुखासन आवन दे नइ पास बिमारी।
योग गजानन रोज करे महके जिनगी बन के फुलवारी।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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योग दिवस मा
मोर सोरठा छंद म आसन
करलव संगी योग, थोरक समे निकाल के।
ठाहिल संग निरोग, होवय तन मन हा सुघर।।
जिनगी सुघर बनाय, ठाहिल संग निरोग ये।
धीरज संयम आय, अपनाये ले रोज के।।
करथे दूर तनाव, धीरज संयम आय अउ।
तन ला अपन बचाव, बड़का बड़का रोग ले।।
बीमारी झन होय, तन ला अपन बचाव सब।
जाने बिरला कोय, आवय फोकट के दवा।।
जाने जें अपनाय, महिमा अड़बड़ योग के।
कहै ज्ञानु कविराय, करलव थोरक योग सब।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा
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*मत्तगयंद सवैया - योग करौ*
रोज बिहान उठौ मुँह धोवव नाम जपौ हरि औ हर संगी।
पेट सफा सब रोग दफा कहिथे सच बात सबो नर संगी।।
योग करौ तन के सुख खातिर रोग नहीं जिनगी भर संगी।
आज तभे सब स्वस्थ समाज निरोग रही फिर का डर संगी।।
भारत विश्व गुरू कहलाइस योग सिखाइस स्वारथ त्यागे।
संत पतंजलि के रसता चल आलस छोड़ सबो नित जागे।।
योग महातम के गुन जानिन एखर ले कतको दुख भागे।
सूरज ले पहिली उठ के मनखे मन ध्यान लगावन लागे।।
योग करौ फिर रोग भगावव होथय ये जिनगी सुखदाई।
सेहत खातिर उत्तम साधन ये पइसा बिन होय सहाई।।
आवव तेज दिमाग बनावव औ करलौ सँग साथ भलाई।
शुद्ध विचार रहै मन भीतर आवव सोच बढ़ावव भाई।।
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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: योग भगाथे रोग
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(सोरठा छंद)
निसदिन करलव योग,मन मा सुग्घर ठान के।
नइतो होही रोग, तन मन चंगा हो जही।।
भारत के ये ज्ञान, रिसि मुनि सब साधे रहिन।
योग हवै वरदान, पाही जेहा झोंकही।।
मिट जाथे अवसाद,ठंडा होथे चित्त हा।
करे ओम के नाद, रस झरथे अनुलोम मा।।
साधे साँस विलोम, तेज बढ़ाथे भस्त्रिका।
जइसे फरियर व्योम, अंतस निर्मल हो जथे।।
करथे जे व्यायाम, तेकर बल हा बढ़ जथे।
रेंग बिहनिया शाम, हवा जनाथे जस दवा।
रोग बढ़ाथे भोग, मर्यादा ला लाँघ के।
सुख पाथें सब लोग, जे मन के तन स्वस्थ हे।।
करथे योग किसान, माथ पछीना गार के।
सुग्घर हे पहिचान, मिहनत हा तो योग कस।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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योग महिमा( हरिगीतिका छंद )
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हे योग के महिमा गजब, दुनिया घलो सब जानगें।
होथे हमर तन बर बने, मनखें सबो अब मानगें।।
हो रोग कतको गा बड़े, सब दूरिहा जी भाग ही।
अउ पाय बर जी लाभ ला, दे बर समय गा लागही।।
भरमार आसन के हवय,अड़बड़ नियम हे जान लव।
अब रोज करबो योग ला, अइसन परन सब ठान लव।।
मनखे जनम अनमोल हे, कर लव जतन अब योग ले ।
सब रोग तन मन के हटा, संसार के सुख भोग ले।।
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-------छंदकार:- मोहन लाल वर्मा
( छंद साधक सत्र- 03)
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*हरिगीतिका छंद*
(16/12),पदांत -212
2212 2212 2 , 212 2212
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नित योग प्राणायाम ले सब, रोग दुरिहा भागही।
तन-मन रही जब स्वस्थ सुग्घर, भाग हमरो जागही।
भारी हवय जी योग महिमा, ध्यान दे सुन लव सबो।
बिन योग कइसे स्वस्थ रहिहू, बात ये गुन लव सबो।।
संयम सिखाथे योग विद्या, चित्त मा स्थिरता भरे।
मन ला निरोगी स्वस्थ रख के, देह के पीरा हरे।
आधार प्राणायाम बनथे, बुद्धि बल बढ़वार के।
ये चेतना अंतस जगाथे, राखथे दुख टार के।।
उलझे रहन मत ठान लव अब, रात दिन बस काम मा।
रखबो हमन थोरिक लगा मन, ध्यान प्राणायाम मा।
येकर बिना जिनगी चलय नइ, सच इही हे जान लो।
कर योग प्राणायाम रखबो, स्वस्थ तन-मन ठान लो।
*इन्द्राणी साहू "साँची"*
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