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Monday, June 19, 2023

विश्व पिता दिवस के अवसर मा छंदबद्ध कविता

  विश्व पिता दिवस के अवसर मा छंदबद्ध कविता


*पूज्य पिताजी*

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*जीवन बगिया के तैं माली, निस दिन करे सम्हाल।*

*पूज्य पिताजी दुख के आगू, बने कवच अउ ढाल।।*



 खड़े रथस मुड़का कस बोहे ,

खाँध अपन परिवार।

मुस्कावत अउ हाँसत रइथस,

बाँटत मया दुलार।

सुख देये बर अंतस तोरे, नइये कभू दुकाल।

पूज्य पिताजी दुख के आगू, बने कवच अउ ढाल।।


ये धरती मा शिव शंकर कस,

तैं सँउहे भगवान।

 खुशहाली के अमरित देये,

करे कष्ट  विषपान।

हुरियाये दुर्दिन बइरी ला,बन अभाव बर काल।

पूज्य पिताजी दुख के आगू, बने कवच अउ ढाल।।


छाती मा लदकाये करजा, 

माथा चिंता भार।

पूछे मा मैं खुश हँव कइथस,

महिमा तोर अपार।

तोर कृपा पारस ला पाके,

हावन मालामाल।

पूज्य पिताजी दुख के आगू, बने कवच अउ ढाल।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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*पिता दिवस - मत्तगयंद सवैया*


मोर ददा बड़ पेड़ बरोबर गा छइँहा सुख लावत हावै।

जे जिनगी भर खूब सबो बर चाँउर दार भिड़ावत हावै।।

भूख पियास मरै बपुरा खुद जाँगर पेर कमावत हावै।

दुःख कभू पर जाय तहाँ चुपके हिरदे म दबावत हावै।


हाथ धरे लइका खुद के गुरु रूप सबोच सिखावत हावै।

अक्षर ज्ञान करा जिनगी बर सुग्घर राह दिखावत हावै।।

ये अँगरी धर के लइका खुद रेंगत-रेंगत जावत हावै।

हार कभू नइ मानय येहर जीत खुशी बगरावत हावै।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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मुक्तामणि छन्द गीत

पितृ-दिवस


बाबू  पालनहार  हे,बाबू  मोर सहारा।

बाबू आवय देवता,बाबू सबले प्यारा।।


बाबू  सिरजनहार हे,बाबू  मोर विधाता।

बाबू तो संसार मा,सब ले बड़का दाता।।

कमा-कमा के लानथे,मुँह मा डारै चारा।।

बाबू  पालनहार  हे,बाबू  मोर सहारा।।


चरन कमल  के धूल हा,मोर माथ के चंदन।

करय द्वारिका रोज गा,बाबू तोला वंदन।।

सुरुज असन लाये सदा,जिनगी मा उजियारा।

बाबू  पालनहार  हे,बाबू  मोर सहारा।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 कुण्डलिया छंद- पितृ दिवस


जीवन के दुख धूप मा, बने पिता सुख छाँव।

जेखर पा पावन चरण, भाग अपन सहराँव।।

भाग अपन सहराँव, पिता के दुलार पा के।

शिक्षा अउ संस्कार, दिये परदेस कमा के।।

मान पिता अभिमान, समर्पित हे ये तन-मन।

तोर नाम से नाम, मोर साँसा ये जीवन।।


पाथँव बहुत सुकून मैं, बइठ पिता के संग।

फेरे सर मा हाथ जब, मन मा जगे उमंग।।

मन मा जगे उमंग, मोर सब दुख मिट जाथे।

जीवन के सुख सार, सिखौना सीख सिखाथे।।

छोड़ शहर परदेश, गाँव मैं जब -जब जाथँव।

बचपन सही दुलार, पिता से अब भी पाथँव।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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*गीतिका छंद*

*बाप रूप भगवान के*

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बाप बरगद के असन नित छाँव देथे सुख भरे।

बन सहारा संग रइथे रेंगथे अँगरी धरे।।


लानथे सुग्घर खिलौना खइ-खजानी छाँट के।

हो जथे गलती कहूँ ता राखथे वो डाँट के।।


बन जथे घोड़ा कभू अउ पीठ मा बइठारथे।

रीस मा चटकन घलो चेथी डहर ला मारथे।।


रातदिन मिहनत करय आराम ला जानय नहीं।

नव जथे कनिहा तभो ले हार वो मानय नहीं।।


कर सियानी गोठ रखथे जोड़ घर परिवार ला।

मुस्कुराके सह जथे परिवार के दुख भार ला।।


शब्द छोटे पर जवत हे देख ओकर शान ला।

का कहँव कइसे बखानँव बाप के गुनगान ला।।


दुख निवारत संग रइथे रूप मा भगवान के।

भाव कर "साँची" समर्पित बाप ला सम्मान के।।


     *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

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*उल्लाला - छंद*


गिरे पसीना माथ ला, बाबू अबड़ कमाय गा ।

तब बइठे घर मा सबो, उछल उछल के खाय गा ।।


करथे मिहनत रात दिन, पानी बादर घाम मा।

पाले बर परिवार ला, जावय रोजे काम मा  ।।


*आशीष बघेल "जागृति"* 

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हरे घर के पटिया छत छप्पर धारन नेव मियार ददा।

अथाह समंदर मां बन केंवट खेत रहे पतवार ददा।

धरे सइते दुख ला मन भीतर बाहिर ले सुख सार ददा।

जरे जग ताप म जे जिनगी भर आज बने जग भार ददा।

शशि साहू

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