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Friday, June 9, 2023

जनकवि मस्तुरिया जी ला काव्याजंलि

 


 बादल: *जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया*

(भावांजलि)


*शब्द शब्द जेकर गीता हे, गीत गीत गंगा धारा।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।।*


*कोन हवय जी मस्तुरिहा कस, साहित के चमकत हीरा।*

*जेकर कलम लिखै अउ गावै, दीन दुखी मन के पीरा।*

*देख दसा धरती मइयाँ के, दहकै अंतस  अंगारा ।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*


*मन के उज्जर छत्तीसगढ़िहा, मँदुरस कस गुत्तुर बोली।*

*छत्तीसगढ़ के पावन धुर्रा, जेकर माथा के रोली।*

*खँड़िच नहीं वो जात पाँत मा, बाँटे हे भाई चारा।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*


*छत्तीसगढ़ी रीत नीत के, जेकर हे कंठ खजाना।*

*करमा सुवा ददरिया पंथी, लोकगीत जेकर गाना।*

*चरन कमल मा माथ नवाववँ,जे हे जन-जन ला प्यारा।*

*जब ले सूरज चंदा रइही, सुरता करही जग सारा।*


चोवा राम 'बादल'

हथबन्द, छत्तीसगढ़

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ज्ञानू कवि: जनकवि मस्तुरिया जी ला काव्याजंलि


कुकुभ छंद


कहाँ लुकाये दिखय नही अब, गिरे परे के सँगवारी।

अलख जगाये ज्ञान दीप के, मेटे बर वो अँधियारी।।


दया मया अउ करम धरम के, गीत रोज के उन गावै।

सुनके अंतस हिलोर मारय, दुख पीरा बिसरा जावै।।


करय रातदिन बेटा हितवा, भाखा माटी के सेवा।

जनकवि तब वो नाम धराये, मिलगे जीते जी मेवा।।


ढोंग धतूरा आडंबर के, रहय विरोघी वो भारी।

देख नैन ले आँसू छलके, दीन दुखी अउ लाचारी।।


अमर नाम होगे दुनियाँ मा, हे लक्ष्मण मस्तुरिया जी।

आज कहाँ तँय पाबे अइसन, छत्तीसगढ़िया बढ़िया जी।।


छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी-कबीरधाम

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सोरठा छंद


दुनिया भर मा शोर, उड़त हवय चारों डहर।

अमर नाम हे तोर, शत शत सादर हे नमन।।


जन जन के आवाज, बनके बोलस रोज तँय।

सबके हिरदै राज, करथस तैहा आज भी।।


मैं साथी हव तोर, गिरे परे मनखे तुँहर।

चलव संग मा मोर, दया मया बाँटत कहै।।


छत्तीसगढ़ के शान, दुनिया भर बगराय तँय।

सेवा अउ गुनगान, माटी के सेवा करे।।


रखे जिहाँ तँय पाँव, सात जून उनचास के।

ओ मस्तूरी गाँव, भाग अपन सहरात हे।।


मस्तुरिया के नाम, सबके हिरदै मा बसे।

सादर मोर प्रणाम, अइसन जनकवि ला हवै।।


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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दोहा छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"


लक्ष्मण मस्तुरिया हरय, ये माटी के शान।

साहित भाखा गीत के, रखे हवय वो मान ।।

छत्तीसगढ़ी गीत ला, लिख-लिख के वो गाय ।

बोली भाखा के अपन, सुग्घर मान बढ़ाय।।

संग चलव कहिके अपन, सुग्घर गीत बनाय।

परे-डरे ला संग मा, ले के सँघरा जाय।।

बंदत हँव दिन-रात वो, कहत करे जयकार।

धरती माँ के पूत बन, सेवा करे अपार।।

गाड़ी वाला लेग जा, पता अपन दे जाव।

लक्ष्मण मस्तुरिया कहे, मोर संग सब आव।।

दया-मया के गीत ला, गुरतुर-गुरतुर गाय।

लोगन के अंतस छुए, जनकवि वो कहलाय।।

रइही मस्तुरिया अमर, जुग-जुग चलही नाम।

वोखर नाम लिए बिना, सुन्ना साहित धाम।।

खाली रइही वो जघा, जेमा लक्ष्मण जाय।

भाखा के सम्मान बर, जिनगी अपन खपाय।।

पार पाय नइ हम सकन, भाव गीत के तोर।

नइ भूलन उपकार ला, श्रद्धांजलि हे मोर।।

"जलक्षत्री" हा भाव ला, समझ सकय नइ तोर।

माटी महिमा गाय हव, दया-मया ला जोर।।


 रचनाकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

ग्राम- तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़) 

मोबाइल नंबर- 9300716740

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 लावणी छंद गीत- मोहन लाल वर्मा 

*लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता*


लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।1।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


ये माटी के स्वाभिमान के, गीत सदा जे  गाइँन हें ।

मँय छत्तीसगढ़िया अँव कहिके, जग मा अलख जगाइँन  हें ।।2।

दया-मया के परवा छानी, सुरता मा ओकर छाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


बन गरीब के हितवा-मितवा, संग चले बर जे बोलँय ।

माघ-फगुनवा मा सतरंगी, मया- रंग ला जे घोरँय ।।3।

देश मया के भारत गीता, संदेशा ला बगराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,-----


महानदी-अरपा-पइरी मा, जब- तक पानी हा रइही ।

अपन दुलरवा ये बेटा के, अमर कहानी ला कइही ।।4।

परके सेवा मोर सिखानी, बात कहे ला दुहराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


सुवा-ददरिया-करमा-पंथी, गुरतुर सुर मा जे गावैं ।

सुरुज-जोत मा करँय आरती, छइयाँ भुइँया दुलरावैं  ।।5।

अइसन जनकवि के चरनन मा, श्रद्धा के फूल चढ़ाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।


छंदकार- मोहन लाल वर्मा 

पता:- ग्राम-अल्दा,तिल्दा,रायपुर 

(छत्तीसगढ़)

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