अरज दूज(रथ यात्रा विशेष) कविता
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रथ चढ़े बड़े जान
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रथ चढ़े बड़े जान,जगन्नाथ भगवान,देवत हे वरदान, होवत हे गुणगान।
परब हे ये महान, रजुतिया के हे शान, भक्ति भाव के उफान, संस्कृति के आन बान।
पूजा पाठ जप ध्यान,यज्ञ होम दान पान, भक्ति भाव के उफान,संस्कार के होथे ज्ञान।
रथयात्रा पहिचान,दूज तिथि फुरमान,पुरी बसे जग प्रान, पावन हे हिंदुस्तान।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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दोहा- रथदूज
तीर समुंदर के बसे,जगन्नाथ पुर धाम।
बहन सुभद्रा कृष्ण जी,बैठे हैं बलराम।।
शुक्ल पक्ष आषाढ़ के,रथ दुतिया हे आज।
पूजन कर जगनाथ के,पूरण होही काज।।
झालर घंटा हे बजे,होवे जयजयकार।
कहिथे जगन्नाथ के,महिमा अपरम्पार ।।
जगन्नाथ के आटिका, खाही जे इक बार।
कहिथे ज्ञानी संत जन, होही भव से पार।।
चार धाम में एक हे,जगन्नाथ के धाम।
तर जाही चोला मनुज,दर्शन कर घनश्याम।।
रथ में बइठे जगपिता,सँग सोहे बलराम।
बहन सुमद्रा बीच में,सुमिरो श्री घनश्याम।।
नगर गली मा घूम के,दर्शन दे भगवान।
पूरण होवे कामना,मन में अतका मान।।
भाई बहना सँग में,दर्शन पाते लोग।
गजामूँग फल फूल ले,लगा रहे हैं भोग।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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दोहा - रथयात्रा
महिना लगे अषाढ़ के, मन मा खुशी समाय।
पाख अँजोरी दूज के, रथ यात्रा जब आय।।
व्यास हवै जी सात फुट,सोलह चक्का संग।
ऊँचा पैंतालीस फुट, देखत रहिबे दंग।।
लम्बाई पैंतीस फुट, लकड़ी सुग्घर साज।
चौड़ाई पैंतीस फुट, बने हवै रथ आज।।
बहिन सुभद्रा संग मा, जगन्नाथ भगवान।
अउ बइठे बलराम जी, रथ ला झिके सुजान।।
बने मनाथे देश भर, रथयात्रा त्यौहार।
कहिथे मनखे रजुतिया, चुक-चुक ले श्रृंगार।।
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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सरसी छंद-रथ यात्रा(गीत)
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।
रथ मा कृष्ण सुभद्रा बइठे,बइठे हे बलराम।
चमचम चमचम रथ हा चमके,ढम ढम बाजय ढोल।
जुरे हवै भगतन बड़ भारी,नाम जपे जय बोल।
झूल झूल के रथ सब खीँचयँ,करै कृपा भगवान।
गजा - मूंग के हे परसादी,बँटत हवे पकवान।
तीनों भाई बहिनी लागय,सुख के सुघ्घर घाम।
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।
दूज अँसड़हूँ पाख अँजोरी,तीनों होय सवार।
भगतन मन ला दर्शन देवै,बाँटय मया दुलार।
सुख अउ दुख के आरो लेके,सबके आस पुराय।
भगतन मनके दुःख हरे बर,अरज दूज मा आय।
नाचत गावत मगन सबे हे, रथ के डोरी थाम।
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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रूपमाला छंद- "जगन्नाथ भगवान"
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तीन रथ मा बइठ तीनों, जाय देखन हाल।
देख तीनों रूप जेंकर, गूँजथे सुर ताल।।
चले अगुवा बलभद्र हा, सुभद्रा हा बीच।
कृष्ण रथ हा तीसरा हे, भक्त मन लय खींच।।
दरस पा के धन्य मानत, भाग ला सँहराय।
मूँग भीजे चना प्रसाद, झोंक ठोम्हा खाय।।
दूज तिथि मा निकल तीनों, गुंडेचा थिराय।
रहय मौसी गुंडेचा घर, फेर मंदिर जाय।।
बसे मालिक हृदय सब के, नाथ जगत कहाय।
नाच गा के भक्ति करके, आसीस ला पाय।।
संग तीनों बहन भाई, रूप अचरित पाय।
नाथ तीनों लोक के ये, धाम पुरी कहाय।।
धन्य होगे धाम धरती, ओड़िसा के नाम।
कृष्ण बलराम के बहिनी, सुभद्रा सुख धाम।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
रथ यात्रा विशेषांक सुग्घर छंदबद्ध संकलन
ReplyDeleteजय जगन्नाथ प्रभु
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