गौरैय्या बचावव -
(1)
गौरैय्या मन मा गुनै, खाए बर दव धान
अपने मा बौराय हव, मोर बचावव प्रान।
मोर बचावव प्रान, सुखावत हावै पोटा
मुश्किल मा हे जान, सबो टूटै परकोटा।
सब्बो जीव समान, कहिस बलदाऊ भैया
खाए बर दव धान, गुनै मन मा गौरैया।
(2)
गौरैय्या - खाही बने, देहे हाववँ भात
भुखही हावै खात हे, दाल भात हे तात।
दाल भात हे तात, फूँक के खावत हावै
मोरे टठिया तीर, बैठ के बढिया खावै।
संगी कस दिन रात, खेलथन भूल भुलैया
देहे हाववँ भात, बने खाही गौरैय्या।
रचनाकार - शकुन्तला शर्मा,
भिलाई, छत्तीसगढ़
(1)
गौरैय्या मन मा गुनै, खाए बर दव धान
अपने मा बौराय हव, मोर बचावव प्रान।
मोर बचावव प्रान, सुखावत हावै पोटा
मुश्किल मा हे जान, सबो टूटै परकोटा।
सब्बो जीव समान, कहिस बलदाऊ भैया
खाए बर दव धान, गुनै मन मा गौरैया।
(2)
गौरैय्या - खाही बने, देहे हाववँ भात
भुखही हावै खात हे, दाल भात हे तात।
दाल भात हे तात, फूँक के खावत हावै
मोरे टठिया तीर, बैठ के बढिया खावै।
संगी कस दिन रात, खेलथन भूल भुलैया
देहे हाववँ भात, बने खाही गौरैय्या।
रचनाकार - शकुन्तला शर्मा,
भिलाई, छत्तीसगढ़
बहुत सुघ्घर कुण्डलिया दीदी बधाई हो
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् सुग्घर सिरजाय हव दीदी।
ReplyDeleteगौरैया सिरतो म भूख पियास ले ब्याकुल हे।अब तो ये लुप्त घलो होवत हे।
वाहःहः दीदी
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर चिरई के गोठ ला सुने हव
अउ बड़ सुघ्घर बुने हव।
बहुत सुघ्घर चिरई के गोठ ला बने हव दीदी
ReplyDeleteवाह....
वाह्ह दीदी शानदार सृजन।
ReplyDeleteअब्बड़ सुग्घर दीदी गौरैय्या ला बचाय बर प्रेरित करत सुग्घर
ReplyDeleteरचना दीदी पायलगी
अनुपम रचना दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteअनुपम रचना दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteसुघ्घऱ सन्देश देवत शानदार रचना,बधाई अउ नमन दीदी।
ReplyDeleteकुण्डलियां छंद मा सुग्घर संदेश देवत रचना हे,दीदी।सादर प्रणाम।
ReplyDeleteआजकाल गौरइया चिरई ह देखे बर नइ मिलत हे । पहिली घरो घर एकर खुंदरा राहय ।सचमुच में येला बचाना जरुरी हे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना दीदी जी
बहुत बहुत बधाई ।
माटी