छकड़ा गाड़ी मा फँदे,भागय बइला बाट।
बूढ़ी दाई अउ बबा, जावत हाबय हाट।
आगू बइठे हे बबा,धरे काँसड़ा झीक।
घल्लर-घल्लर घंघड़ा,लागत हे बड़ नीक।
बूढ़ी दाई हा कहय,नइ दे बर हे डाँक।
गाड़ी हा उदकत हवय,धीर लगा के हाँक।
कहाँ बात मानय बबा,अगुवावत हे काट।
निकले पाछू वो रहिस,पहुँचय आगू हाट।
सबले पहिली हाट मा,कपड़ा पसरा जायँ।
पटकू पंछा संग मा,लुगरा घलो बिसायँ।
बूढ़ी दाई दोहनी,लय मरकी गंगार।
माँगय नानक ठेकली,राँधे बर हे दार।
चना-फुटेना ओखरा,मुर्रा घलो बिसायँ।
लावय गठरी बाँध के,सबो बाँट के खायँ।
रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"
ग्राम - कचलोन (सिमगा) छत्तीसगढ़
बूढ़ी दाई अउ बबा, जावत हाबय हाट।
आगू बइठे हे बबा,धरे काँसड़ा झीक।
घल्लर-घल्लर घंघड़ा,लागत हे बड़ नीक।
बूढ़ी दाई हा कहय,नइ दे बर हे डाँक।
गाड़ी हा उदकत हवय,धीर लगा के हाँक।
कहाँ बात मानय बबा,अगुवावत हे काट।
निकले पाछू वो रहिस,पहुँचय आगू हाट।
सबले पहिली हाट मा,कपड़ा पसरा जायँ।
पटकू पंछा संग मा,लुगरा घलो बिसायँ।
बूढ़ी दाई दोहनी,लय मरकी गंगार।
माँगय नानक ठेकली,राँधे बर हे दार।
चना-फुटेना ओखरा,मुर्रा घलो बिसायँ।
लावय गठरी बाँध के,सबो बाँट के खायँ।
रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"
ग्राम - कचलोन (सिमगा) छत्तीसगढ़
बहुत बढ़िया दोहा भईया जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहा भईया जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत खूब भाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहा साहू जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
एक प्रश्न मन मा हे गुरुजी समाधान करे के कृपा करहू
ReplyDelete(1) गंगार = का होथे ।
(2) बिसायँ
खायँ
अइसे काबर लिखे हस
येला तो - बिसाय, खाय
अइसे लिख सकथन का ?
गंगार=माटी के छोटे कोटना। *बिसायँ* अइसे लिखे मा बहुवचन हो जथे काबर दूनो कि दूनो मिलके बिसावथें।
Deleteबहुत सुघ्घर दोहा छंद हे भाई
ReplyDeleteसुग्घर दोहा वली हे मनी भाई जी।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह बड़ सुग्घर मितान।
ReplyDeleteवाह वाह बड़ सुग्घर दोहावली साहू जी।
ReplyDeleteबधाई।
आप सब ला बहुत बहुत धन्यवाद आभार
ReplyDeleteसुग्हर - दोहा हे मनी, बढिया करे विचार
ReplyDeleteसबके मन पुलकित रहै,कर अइसन व्यवहार।
बहुत सुग्घर दोहावली सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर अउ लाजवाब दोहावली हे मितान जी। सादर बधाई।
ReplyDelete