सीता हरण
कुटिया तीर सोनहा मिरगा ,चरत चरत हे आय।
देखय जब गा सिया जानकी ,मिरगा बर ललचाय। 1
अति सुंदर मिरगा ला देखय ,जागय मन मा मोह।
नइ जानय बपरी हा कारण,येहा मोर बिछोह।2
बोलत हावय रघुवीरा ला ,मिरगा लावव नाथ।
अइसन सुन्दर नइ देखे हँव,नावत हांवय माथ। 3
कहत हवय जी रघुवीरा हा ,सुन वो सीता बात।
नइ होवय वो सोना मिरगा ,छुपय शत्रु के घात। 4
आघू आघू मिरगा भागे ,पाछू मा रघुबीर ,
येती ओती कूदत फांदत ,भागय जंगल तीर | 5)
टहक टहक के मुड़ी घुमावय ,फेर दुरिहा जाय ,
बाण धरे रामा हा खोजे ,मिरगा कहाँ लुकाय | 6)
कतका दूर निकलगे दूनो ,जंगल हे घनघोर ।
सरसर करथे पाना डारा ,करय झिंगुर मन शोर | 7)
सोचत हे माया मिरगा हा ,अब बन जाही काम ।
रेंगत हावय थकहा जइसे ,देखत हावय राम |8)
साधत हे अब राम निशाना ,मारत हावय बाण ।
मारीच बने माया मिरगा ,तड़फय ओकर प्राण |9
असल रूप मा आये मिरगा ,सिया लखन चिल्लाय
देखय रामा मायावी ला ,अबड़ अचम्भा खाय | 10
सीता ला लागत हे अइसे ,रामा करे पुकार ।
सुन लक्ष्मण तुँहरे भैया हा ,पारत हे गोहार | 11)
लक्ष्मण हा बोलय सीता ला ,ये सब माया चाल ।
मोरे प्रभु के आघू मैया ,खुदे डराथे काल | 12)
कहाँ सुनय गा बात सिया हा ,शंका मा बड़ रोय
बरपेली वोहा लक्ष्मण ला ,तुरते उहाँ पठोय | 13)
रक्षा रेखा खीच लखन हा ,दउड़त जंगल जाय
अब येती गा पर्णकुटी मा ,भारी विपदा आय | 14)
सबो खेल ला जेन रचे हे ,वो रावण अब आय ।
छल कपट के झोला धरके ,साधू रूप बनाय |15)
लक्ष्मण रेखा के भीतर मा ,साधू पांव मढ़ाय ।
उठय उहाँ आगी के ज्वाला ,रावण देख डराय |16)
भिक्षा दे दे द्वार खड़े हव ,कपटी ह गोहराय |
देखय साधू ला कुटिया मा ,सीता भिक्षा लाय | 17)
भीतर रहिके दान करत हस ,होय मोर अपमान ।
साधू कहत हवय सीता ला ,नइ लेवव मैं दान | 18)
साधू मान रखे बर सीता ,जइसे बाहिर आय ।
असल रूप में आए रावण ,देखत सिया डराय 19)
सिया हरण करके रावण हा ,बैठ विमान उड़ाय
रोवत हे अबला नारी हा ,राम राम चिल्लाय 20)
रचनाकार - आशा देशमुख
एन टी पी सी, कोरबा
कुटिया तीर सोनहा मिरगा ,चरत चरत हे आय।
देखय जब गा सिया जानकी ,मिरगा बर ललचाय। 1
अति सुंदर मिरगा ला देखय ,जागय मन मा मोह।
नइ जानय बपरी हा कारण,येहा मोर बिछोह।2
बोलत हावय रघुवीरा ला ,मिरगा लावव नाथ।
अइसन सुन्दर नइ देखे हँव,नावत हांवय माथ। 3
कहत हवय जी रघुवीरा हा ,सुन वो सीता बात।
नइ होवय वो सोना मिरगा ,छुपय शत्रु के घात। 4
आघू आघू मिरगा भागे ,पाछू मा रघुबीर ,
येती ओती कूदत फांदत ,भागय जंगल तीर | 5)
टहक टहक के मुड़ी घुमावय ,फेर दुरिहा जाय ,
बाण धरे रामा हा खोजे ,मिरगा कहाँ लुकाय | 6)
कतका दूर निकलगे दूनो ,जंगल हे घनघोर ।
सरसर करथे पाना डारा ,करय झिंगुर मन शोर | 7)
सोचत हे माया मिरगा हा ,अब बन जाही काम ।
रेंगत हावय थकहा जइसे ,देखत हावय राम |8)
साधत हे अब राम निशाना ,मारत हावय बाण ।
मारीच बने माया मिरगा ,तड़फय ओकर प्राण |9
असल रूप मा आये मिरगा ,सिया लखन चिल्लाय
देखय रामा मायावी ला ,अबड़ अचम्भा खाय | 10
सीता ला लागत हे अइसे ,रामा करे पुकार ।
सुन लक्ष्मण तुँहरे भैया हा ,पारत हे गोहार | 11)
लक्ष्मण हा बोलय सीता ला ,ये सब माया चाल ।
मोरे प्रभु के आघू मैया ,खुदे डराथे काल | 12)
कहाँ सुनय गा बात सिया हा ,शंका मा बड़ रोय
बरपेली वोहा लक्ष्मण ला ,तुरते उहाँ पठोय | 13)
रक्षा रेखा खीच लखन हा ,दउड़त जंगल जाय
अब येती गा पर्णकुटी मा ,भारी विपदा आय | 14)
सबो खेल ला जेन रचे हे ,वो रावण अब आय ।
छल कपट के झोला धरके ,साधू रूप बनाय |15)
लक्ष्मण रेखा के भीतर मा ,साधू पांव मढ़ाय ।
उठय उहाँ आगी के ज्वाला ,रावण देख डराय |16)
भिक्षा दे दे द्वार खड़े हव ,कपटी ह गोहराय |
देखय साधू ला कुटिया मा ,सीता भिक्षा लाय | 17)
भीतर रहिके दान करत हस ,होय मोर अपमान ।
साधू कहत हवय सीता ला ,नइ लेवव मैं दान | 18)
साधू मान रखे बर सीता ,जइसे बाहिर आय ।
असल रूप में आए रावण ,देखत सिया डराय 19)
सिया हरण करके रावण हा ,बैठ विमान उड़ाय
रोवत हे अबला नारी हा ,राम राम चिल्लाय 20)
रचनाकार - आशा देशमुख
एन टी पी सी, कोरबा
सीता हरण के सुग्घर वर्णन दीदी
ReplyDeleteसीता हरण के सुग्घर वर्णन दीदी
ReplyDeleteवाह वाह आशा बहिनी जी।सीता हरण के सरसी छंद मा मनोहारी चित्रण।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सरसी दीदी जी
ReplyDeleteसरसी मा रस भर के भारी,दीदी परोसे साग।
ReplyDeleteसीता तक लचावत हवय,सोन हिरण गय भाग।
सुग्घर सरसी दीदी।बधाई।
सरसी मा रस भर के भारी,दीदी परोसे साग।
ReplyDeleteसीता तक ललचावत हावय,सोन हिरण गय भाग।
सुग्घर सरसी दीदी।बधाई।
वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत बहुत सुग्घर सरसी छंद मा सीता हरण के बरनन करे हव दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत बहुत सुग्घर सरसी छंद मा सीता हरण के बरनन करे हव दीदी।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह वाह बहुतेच सुघ्घऱ दीदी।।
ReplyDeleteलाजवाब सरसी छंद मा सीता हरण के वर्णन । बहुत बहुत बधाई दी।
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह दीदी सीता हरण के सुन्दर चित्रण।
ReplyDelete"समर शेष है नहीं पाप का, भागी केवल व्याध
ReplyDeleteजो तटस्थ है समय लिखैगा, उसका भी अपराध।"
रामधारी सिंह "दिनकर"
सीता हरण के मनोहारी वर्णन करत शानदार सरसी छन्द हे,दीदी ।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर रचना दीदी जी
ReplyDeleteगाड़ा गाड़ा बधाई हो