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Wednesday, March 21, 2018

*सरसी छन्द - आशा देशमुख*

सीता हरण

कुटिया तीर सोनहा मिरगा ,चरत चरत हे आय।
देखय जब गा सिया जानकी ,मिरगा बर ललचाय। 1

अति सुंदर मिरगा ला देखय ,जागय मन मा मोह।
नइ जानय बपरी हा कारण,येहा मोर बिछोह।2

बोलत हावय रघुवीरा ला ,मिरगा लावव नाथ।
अइसन सुन्दर नइ देखे हँव,नावत हांवय माथ। 3

कहत हवय जी रघुवीरा हा ,सुन वो सीता बात।
नइ होवय वो सोना मिरगा ,छुपय शत्रु के घात। 4

आघू आघू मिरगा भागे ,पाछू मा रघुबीर ,
येती ओती कूदत फांदत ,भागय जंगल तीर | 5)

 टहक टहक के मुड़ी घुमावय ,फेर दुरिहा जाय ,
बाण धरे रामा हा खोजे ,मिरगा कहाँ लुकाय | 6)

कतका दूर निकलगे दूनो ,जंगल हे घनघोर ।
सरसर करथे पाना डारा ,करय झिंगुर मन शोर | 7)

सोचत हे माया मिरगा हा ,अब बन जाही काम ।
रेंगत हावय थकहा जइसे ,देखत हावय राम |8)

साधत हे अब राम निशाना ,मारत हावय बाण ।
मारीच बने माया मिरगा ,तड़फय ओकर प्राण |9

असल रूप मा आये मिरगा ,सिया लखन चिल्लाय
देखय रामा मायावी ला ,अबड़ अचम्भा खाय | 10

सीता ला लागत हे अइसे ,रामा करे पुकार ।
सुन लक्ष्मण तुँहरे भैया हा ,पारत हे गोहार | 11)

लक्ष्मण हा बोलय सीता ला ,ये सब माया चाल ।
मोरे प्रभु के आघू मैया ,खुदे डराथे काल | 12)

कहाँ सुनय गा बात सिया हा ,शंका मा बड़ रोय
बरपेली वोहा लक्ष्मण ला ,तुरते उहाँ पठोय | 13)

रक्षा रेखा खीच लखन हा ,दउड़त जंगल जाय
अब येती गा पर्णकुटी मा ,भारी विपदा आय | 14)

सबो खेल ला जेन रचे हे ,वो रावण अब आय ।
छल कपट के झोला धरके ,साधू रूप बनाय |15)

लक्ष्मण रेखा के भीतर मा ,साधू पांव मढ़ाय ।
उठय उहाँ आगी के ज्वाला ,रावण देख डराय |16)

भिक्षा दे दे द्वार खड़े हव ,कपटी ह गोहराय |
देखय साधू ला कुटिया मा ,सीता भिक्षा लाय | 17)

भीतर रहिके दान करत हस ,होय मोर अपमान ।
साधू कहत हवय सीता ला ,नइ लेवव मैं दान | 18)

साधू मान रखे बर सीता ,जइसे बाहिर आय ।
असल रूप में आए रावण ,देखत सिया डराय 19)

सिया हरण करके रावण हा ,बैठ विमान उड़ाय
रोवत हे अबला नारी हा ,राम राम चिल्लाय 20)

रचनाकार - आशा देशमुख
एन टी पी सी, कोरबा

14 comments:

  1. सीता हरण के सुग्घर वर्णन दीदी

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  2. सीता हरण के सुग्घर वर्णन दीदी

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  3. वाह वाह आशा बहिनी जी।सीता हरण के सरसी छंद मा मनोहारी चित्रण।

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  4. बहुत सुघ्घर सरसी दीदी जी

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  5. सरसी मा रस भर के भारी,दीदी परोसे साग।
    सीता तक लचावत हवय,सोन हिरण गय भाग।
    सुग्घर सरसी दीदी।बधाई।

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  6. सरसी मा रस भर के भारी,दीदी परोसे साग।
    सीता तक ललचावत हावय,सोन हिरण गय भाग।
    सुग्घर सरसी दीदी।बधाई।

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  7. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत बहुत सुग्घर सरसी छंद मा सीता हरण के बरनन करे हव दीदी।सादर बधाई

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  8. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् बहुत बहुत सुग्घर सरसी छंद मा सीता हरण के बरनन करे हव दीदी।सादर बधाई

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  9. वाह वाह बहुतेच सुघ्घऱ दीदी।।

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  10. लाजवाब सरसी छंद मा सीता हरण के वर्णन । बहुत बहुत बधाई दी।

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  11. वाह्ह वाह्ह दीदी सीता हरण के सुन्दर चित्रण।

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  12. "समर शेष है नहीं पाप का, भागी केवल व्याध
    जो तटस्थ है समय लिखैगा, उसका भी अपराध।"
    रामधारी सिंह "दिनकर"

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  13. सीता हरण के मनोहारी वर्णन करत शानदार सरसी छन्द हे,दीदी ।बधाई अउ शुभकामना।

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  14. बहुत सुघ्घर रचना दीदी जी
    गाड़ा गाड़ा बधाई हो

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